कितना ताकतवर होता है भारत का प्रधानमंत्री !
164 परमाणु हथियारों की कमांड
सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने की पावर; जानिए कितना ताकतवर होता है भारत का प्रधानमंत्री
6 अगस्त 1945 की सुबह। मारियाना द्वीप से उड़ान भरकर अमेरिकी बमवर्षक विमान ‘एलोना गे’ जापान के शहर हिरोशिमा के ऊपर पहुंच चुका था। ठीक सवा आठ बजे इस विमान से दुनिया का पहला परमाणु बम गिरा दिया गया। 43 सेकेंड हवा में रहने के बाद ‘लिटिल बॉय’ फट गया।
मशरूम के शेप में एक बड़ा आग का गोला उठा और आस-पास का तापमान 3000 से 4000 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। विस्फोट से इतनी तेज हवा चली कि 10 सेकेंड में ही ये ब्लास्ट पूरे हिरोशिमा में फैल गया। 70,000 लोग चंद मिनटों में मारे गए, इनमें से कई लोग तो जहां थे वहीं भाप बन गए। ये सिर्फ एक परमाणु बम की भयावहता का मंजर था।
भारत के पास इससे कहीं बड़ी क्षमता के 164 परमाणु हथियार मौजूद हैं। इन हथियारों की कमांड एक पॉलिटिकल काउंसिल के पास होती है, जिसका मुखिया प्रधानमंत्री होता है। यानी भारत के प्रधानमंत्री के पास परमाणु हथियारों की कमांड का एक्सक्लूसिव राइट होता है।
नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कितना ताकतवर होता है प्रधानमंत्री का पद…
संविधान सभा ने कहा- देश का सबसे ताकतवर व्यक्ति प्रधानमंत्री होगा
दिसंबर 1948 के आखिरी दिनों में संविधान सभा की बैठक में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पद को लेकर वाद-विवाद चल रहा था। सदन के सदस्यों के बीच बहस हो रही थी कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री में कौन अधिक ताकतवर होना चाहिए और किसे कितनी शक्तियां देनी चाहिए।
27 दिसंबर 1948 को संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. भीम राव अंबेडकर कहते हैं, ‘हमने बार-बार कहा है, हमारा राष्ट्रपति नाम मात्र का प्रतीक होगा। उसके पास स्वविवेक से कोई अधिकार नहीं होंगे। प्रशासन की कोई शक्तियां नहीं होंगी। देश के प्रशासन का पूर्ण नियंत्रण प्रधानमंत्री के पास होगा। देश का सबसे अधिक शक्तिशाली व्यक्ति प्रधानमंत्री ही होगा।’
संविधान सभा के सदस्य तजम्मुल हुसैन कहते हैं कि यह इंग्लैंड की प्रणाली है। इंग्लैंड में प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है, वहां की सिस्टम कई सालों से सही तरीके से काम कर रहा है। लंबे वाद-विवाद के बाद सभा के सदस्यों ने इस बात पर जोर दिया कि संसदीय लोकतंत्र व्यवस्था में प्रधानमंत्री को मंत्रिमंडल का प्रमुख बनाया जाए। राष्ट्रपति की शक्तियों को सीमित हो। उन्हें संदेह था कि अगर राष्ट्रपति को अधिक शक्तिशाली बना दिया जाए तो वह निरंकुश सम्राट बन सकता है।

इसी चर्चा के दौरान संविधान सभा के सदस्य बी. दास कहते हैं, हमें यह देखना होगा कि हम अपने राष्ट्रपति को ऐसे अधिकार तो नहीं दे रहे हैं कि वो मनमानी कर सके। नेपोलियन भी एक साधारण व्यक्ति ही था, प्रेसिडेंट चुना गया और आगे चलकर वह तानाशाह बन गया। तमाम बहस के बाद निष्कर्ष निकला कि राष्ट्रपति को उनके कामों में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा।
भारत के प्रधानमंत्री के 6 एक्सक्लूसिव अधिकार, जिनसे पता चलता है कि प्रधानमंत्री का पद कितना ताकतवर होता है…
1. राष्ट्रपति हर काम प्रधानमंत्री की सलाह पर करता है
25 जून 1975 की सुबह। इंदिरा गांधी 1 सफदरजंग रोड स्थित आवास में थीं। उनके सामने संवैधानिक मामलों के एक्सपर्ट सिद्धार्थ शंकर राय बैठे थे। तभी इंदिरा कहती हैं, पूरे देश में अव्यवस्था फैल गई है। हमें कड़े फैसले लेने की जरूरत है। करीब 2 घंटे की बातचीत के बाद राय सुझाव देते हैं कि आप देश में हो रही आंतरिक गड़बड़ियों से निपटने के लिए संविधान की धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।
शाम करीब 5 बजे आपातकाल लगाने का प्रस्ताव लेकर इंदिरा राष्ट्रपति से मिलने पहुंची और उनको सारी बातें समझाईं। राष्ट्रपति ने इंदिरा से कहा, आप इमरजेंसी के कागज भिजवाइए। 26 जून 1975 को सुबह 6 बजे मंत्रिपरिषद की बैठक के बाद राष्ट्रपति ने इंदिरा की सिफारिश पर संविधान के आर्टिकल 352 के तहत देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी।

यह भारत के इतिहास का यह एक ऐसा पल था जब प्रधानमंत्री ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करके देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। हालांकि इसके पहले और बाद में भी अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके प्रधानमंत्री ने कभी राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाकर नियंत्रण अपने हाथ में लिया तो कभी आर्म्ड फोर्सेस को पाकिस्तान में भेजकर सर्जिकल स्ट्राइक की।
2. प्रधानमंत्री की सलाह की कोर्ट में जांच नहीं हो सकती
भारतीय संविधान में सरकार की संसदीय व्यवस्था ब्रिटिश मॉडल पर आधारित है। यानी इसमें राष्ट्रपति नाममात्र का प्रमुख (डी जुरे एग्जीक्यूटिव) होता है और असल में सभी पॉवर्स प्रधानमंत्री (डी फैक्टो एग्जीक्यूटिव) के पास होती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो राष्ट्रपति राज्य का जबकि प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है।
भारतीय संविधान के आर्टिकल 74 के मुताबिक, राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री करेगा। देश का राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद से सलाह-मशवरा करने के बाद ही काम करेगा। प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह की जांच किसी कोर्ट में नहीं की जा सकती है।
3. प्रधानमंत्री के एक आदेश पर बर्खास्त हो सकता है मंत्रिपरिषद
संविधान के आर्टिकल 75 के मुताबिक, प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और फिर पीएम की सलाह पर राष्ट्रपति अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेगा। प्रधानमंत्री किसी भी मंत्री से त्यागपत्र मांग सकता है। प्रधानमंत्री अपने पद से त्यागपत्र देकर मंत्रिपरिषद को बर्खास्त कर सकता है। प्रधानमंत्री के इस्तीफा देना या मृत्यु होने की स्थिति में मंत्रिपरिषद समाप्त हो जाता है।
आर्टिकल 85 के तहत प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति से परामर्श करके संसद का सत्र बुलाने और भंग करने की पावर होती है। आर्टिकल 88 के मुताबिक, पीएम को किसी भी सदन में बोलने और कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होगा।
पीएम की पावर्स को लेकर डॉ. बी. आर अंबेडकर ने कहा था कि लोकसभा के कामों के लिए सामूहिक उत्तरदायित्व का निर्धारण करने के लिए एक पद (प्रधानमंत्री) का होना जरूरी है जिसके पास मंत्रियों को नामित और बर्खास्त करने की शक्ति हो। अगर कोई मंत्री संयुक्त रूप से काम नहीं करता है। मंत्रिपरिषद के निर्णय व विचारों का संसद के अंदर और बाहर समर्थन नहीं करता है तो उसे प्रधानमंत्री के कहने पर त्यागपत्र देना पड़ेगा।
4. प्रधानमंत्री को भारत की संचित निधि खर्च करने का अधिकार
देश को टैक्स, राजस्व, कर्ज समेत अलग-अलग कई तरीकों से आमदनी होती है। ये सारी कमाई एक साझा कोष में जमा हो जाती है। इसे देश की ‘संचित निधि’ या ‘कंसोलिडेटेड फंड्स’ कहते हैं। इसका जिक्र संविधान के आर्टिकल 266 (1) में है।
देश की संचित निधि की मालिक संसद है। इसमें एक भी पैसा निकालने के लिए लोकसभा की मंजूरी जरूरी होती है। प्रधानमंत्री लोकसभा का प्रमुख होता है। लोकसभा में उनका बहुमत होता है। इसलिए कहा जाता है कि भारत की संचित निधि प्रधानमंत्री के हाथों में है।
5. प्रधानमंत्री के पास सुप्रीम कोर्ट के फैसले पलटने की भी ताकत
एक उदाहरण देखिए। 23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो केस में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने शाहबानो को तलाक देने वाले शौहर को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। मुस्लिम कट्टरपंथी इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल बताकर विरोध करने लगे।

1986 में मुस्लिमों को खुश करने करने के लिए राजीव सरकार एक कानून लेकर आई, जिसने शाहबानो पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। भारत के राजनीतिक इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कानून बनाकर पलटा जा सकता है। इसके लिए प्रधानमंत्री की अगुवाई में कैबिनेट एक प्रस्ताव बनाएगा और पारित करेगा। इसे लोकसभा में रखा जाएगा। चूंकि यहां सरकार का बहुमत होता है तो ये विधेयक पारित हो जाएगा। राज्यसभा में भी पारित होने के बाद कानून बन जाता है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेअसर हो सकता है।
6. कई विभागों का प्रमुख और ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार
प्रधानमंत्री देश की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वो कईं मिनिस्ट्री, डिपार्टमेंट और प्रोग्राम का हेड या प्रभारी होता है। जबकि उसके पास एडमिनिस्ट्रेटिव और अपॉइंटमेंट पॉवर्स भी होती हैं। साथ ही पीएम सेनाओं के प्रमुख से लेकर इलेक्शन कमीशन जैसे बड़े पदों की पोस्टिंग के लिए राष्ट्रपति को सलाह भी देता है।


क्या प्रधानमंत्री को उसके पद से हटाया जा सकता है?
भले ही प्रधानमंत्री देश का प्रमुख होता है, लेकिन उसे भी हटाने के प्रावधान संविधान में हैं। लोकसभा नियमावली के नियम 198 के अनुसार, कोई भी सांसद लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है। सरकार का मुखिया होने के नाते प्रधानमंत्री अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हैं। इसके बाद वोटिंग होती है। अगर प्रस्ताव के पक्ष में ज्यादा वोट पड़ते हैं तो सरकार गिर जाती है और प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ता है।
अमेरिका-स्विट्जरलैंड जैसे देशों में प्रधानमंत्री नहीं होता
वर्तमान में जिन देशों में संसदीय व्यवस्था के तरह प्रधानमंत्री का चुनाव होता है वहां के पीएम की शक्तियां लगभग भारत के पीएम के समान ही होती हैं। इसमें भारत के अलावा बांग्लादेश , फ्रांस , पाकिस्तान , इटली जैसे कई देश शामिल हैं।
वहीं यूनाइटेड किंगडम, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, नीदरलैंड, जापान में संसदीय राजतंत्र है। यानी यहां राजा भी हैं और संसद भी। इसके अलावा ब्राजील , ईरान , फिलीपींस, इंडोनेशिया जैसे कई देशों ने अब प्रधानमंत्री पद नहीं रहा है। अमेरिका, स्विट्जरलैंड, मैक्सिको और चिली में प्रधानमंत्री नहीं होता है।
ब्रिटेन में भी प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। उसे राजा चुनता है। ब्रिटेन का पीएम किसी भी समय मंत्रियों को नियुक्त या बर्खास्त कर सकता है। साथ ही गवर्नमेंट डिपार्टमेंट को समाप्त और नए डिपार्टमेंट बना सकता है। उसका सिविल सर्विसेज, आर्म्ड फोर्स और न्यूक्लियर वेपन पर भी कंट्रोल रहता है। यहां प्रधानमंत्री एक अनऑफिशियल मीटिंग में सभी सरकारी कामकाज की जानकारी राजा को देता है। ब्रिटेन में किंग भारत के राष्ट्रपति के समान होता है।
पाकिस्तान में नेशनल असेंबली में बहुमत वाले दल या गठबंधन का नेता प्रधानमंत्री बनता है। उसके पास परमाणु हथियारों के भंडार के कंट्रोल रहता है। यूरोपीय देशों (जैसे- जर्मनी, यूनान, स्पेन और स्वीडन) में बड़े राजनीतिक दल का नेता होने के नाते प्रधानमंत्री काफी पावरफुल होते हैं।