चाहिए 5 करोड़ यूनिट ब्लड प्रतिवर्ष मिलता है सिर्फ 2.5 करोड़ यूनिट ?
शुरुआत में इंसानों को कुत्ते का खून चढ़ाया …
कैसे हुई ब्लड ग्रुप की खोज; ब्लड डोनर डे पर जानिए रोचक बातें
दुनिया भर में इंसानों की आबादी 800 करोड़ से ज्यादा है। हर साल करीब 12 करोड़ यूनिट ब्लड डोनेट किया जाता है। आम तौर पर 8 तरह के ब्लड ग्रुप होते हैं- A+, A-, B+, B-, O+, O-, AB+, और AB-। मरीज की जरूरत के हिसाब से उसके ब्लड ग्रुप का खून चढ़ाया जा सकता है। अगर इसमें गलती हुई तो जान जा सकती है।
जिंदगी के लिए जरूरी इस ब्लड ग्रुप की खोज करने वाले वैज्ञानिक का नाम है कार्ल लैंडस्टीनर। कार्ल के जन्मदिन पर उनके सम्मान में रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए हर साल 14 जून को ब्लड डोनर डे मनाया जाता है।
पोप शासक को दोबारा जवान बनाने के लिए पिलाया गया इंसानों का खून
ब्रिटिश पत्रकार रोज जॉर्ज अपनी किताब ‘नाइन पिंट्स’ में लिखते हैं कि जब खून के साइंस से दुनिया अनजान थी तब हमारे समाज में इसे लेकर तरह-तरह की मान्यताएं और मिथक थे। पहले के समय में लोगों के लिए खून किसी रहस्य की तरह था। कई संस्कृतियों में लोग इसे जीवन या मौत का प्रतीक मानते थे।
उदाहरण के लिए 15वीं शताब्दी के अंत में पोप इनोसेंट VIII को युवाओं का खून पिलाकर स्वस्थ और जवान बनाने का प्रयास किया गया था। जब इनोसेंट बीमार पड़े तो उनके डॉक्टरों ने उन्हें 3 स्वस्थ युवाओं का खून पिलाने की कोशिश की, ताकि उनमें युवाओं जैसी ताकत आ सके।
ग्रीक सभ्यता में खून और इसके लाल रंग को देवताओं की शक्ति और जुनून का प्रतीक माना गया है। ग्रीक सभ्यता में लाल पोशाक पहने देवी एफ्रोडाइट इसका उदाहरण हैं। इसी तरह ईसाई धर्म में खून के लाल रंग को ईसा मसीह के रक्त और मानवता के लिए उनके बलिदान का प्रतीक माना गया है। सूली पर चढ़ाए जाने के दौरान ईसा मसीह द्वारा पहना गया लाल वस्त्र पवित्र माना जाता है और लाल रंग को अक्सर शहादत और बलिदान से जोड़ा जाता है।
शुरुआत में कुत्ते और भेड़ का खून इंसानी शरीर में ट्रांसफ्यूज करने की कोशिश की गई
साल 1628 में फिजिशियन विलियम हार्वे ने एक बड़ी खोज की। उन्होंने बताया कि हमारे शरीर में ब्लड एक क्लोज सिस्टम में सर्कुलेट होता है यानी नसों का एक जाल है, जिसमें खून बहता रहता है।
इसके बाद इंसानों में एक-दूसरे से ब्लड लेने या देने की कोशिशें शुरू हो गईं। करीब 39 साल बाद नवंबर 1667 में इंग्लैंड के साइंटिस्ट रिचर्ड लोवर ने एक भेड़ के बच्चे के ब्लड को इंसानों में ट्रांसफ्यूज करने की कोशिश की। इससे पहले उन्होंने कुत्तों के ब्लड के साथ भी ये एक्सपेरिमेंट करने की कोशिश की थी।
रिचर्ड लोवर के अलावा फ्रांस के साइंटिस्ट जीनबैप्टिस्ट डेनिस भी इसी तरह के एक्सपेरिमेंट कर रहे थे। उन्होंने भी भेड़ के बच्चे का ब्लड एक इंसान के शरीर में ट्रांसफ्यूज किया। हालांकि जिस इंसान को ब्लड दिया गया, उसकी मौत हो गई। इसके बाद जानवरों से इंसानों में ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर रोक लगा दी गई।
1875 में जर्मनी के फिजियोलॉजिस्ट लैनर्ड लैंडवॉ ने अपनी रिसर्च में पाया कि इंसानों के शरीर में जानवरों का ब्लड चढ़ाने से ब्लड में मौजूद रेड ब्लड सेल्स थक्का बना लेती हैं। इस तरह पहली बार फाइनली पता चल गया कि इंसानों को सिर्फ इंसानों का खून ही दिया जा सकता है।
एक खोज, जिससे दुनियाभर में ब्लड डोनेट करना संभव हुआ
ऑस्ट्रिया के साइंटिस्ट कार्ल लैंडस्टीनर ब्लड पर रिसर्च कर रहे थे। विएना यूनिवर्सिटी से MD की पढ़ाई करने के बाद कार्ल कई सालों से इम्यूनोलॉजी पर शोध कर रहे थे। 1901 में उन्होंने ब्लड ट्रांसफ्यूजन को लेकर सबसे बड़ी खोज की।
उन्होंने खून में मौजूद एंटीजन और एंटीबॉडी को खोज लिया और बताया कि अगर अलग-अलग ग्रुप के ब्लड को मिलाया जाता है तो ये एंटीजन और एंटीबॉडी खून में थक्का जमा देती हैं। इस आधार पर उन्होंने A, B, AB और O चार तरह के ब्लड ग्रुप बनाए।
कार्ल का कहना था कि खून में मौजूद एंटीजन को पहचान कर ही हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम रिएक्ट करता है। अगर किसी A ब्लड ग्रुप वाले इंसान को B ग्रुप का ब्लड दिया जाता है तो हमारा शरीर उस ब्लड ग्रुप के एंटीजन को एक वायरस की तरह ट्रीट करता है और एंटीबॉडी बनाना शुरू कर देता है।
कार्ल की इसी खोज के लिए साल 1930 में उन्हें मेडिसिन का नोबल पुरस्कार दिया गया। कार्ल की इस खोज की वजह से दुनियाभर में एक इंसान से दूसरे इंसान के शरीर में ब्लड डोनेट करना संभव हुआ।
इंसानों में एक रेयर ब्लड ग्रुप गोल्डन भी…
गोल्डन ब्लड इंसानों के शरीर में पाया जाने वाला एक दुर्लभ, यानी रेयर ब्लड ग्रुप है। इस ब्लड ग्रुप का दूसरा नाम आरएच नल (Rhnull) है। दुनिया के महज 45 लोगों के शरीर में पाया जाने वाला यह खून किसी भी ब्लड ग्रुप वाले इंसानों के शरीर में चढ़ाया जा सकता है।
इस ग्रुप का खून काफी कम लोगों में पाया जाता है, इसीलिए इस बल्ड ग्रुप को रेयर माना गया है।
गोल्डन ब्लड को Rhnull इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये खून उसी शख्स के शरीर में पाया जाता है, जिसका Rh फैक्टर null होता है।
अब आप सोच रहे होंगे कि ये Rh फैक्टर और null क्या होता है? दरअसल, हमारे शरीर में खून 3 तरह के सेल्स से मिलकर बनता है- 1. रेड ब्लड सेल्स 2. व्हाइट ब्लड सेल्स 3. प्लेटलेट्स। हमारे शरीर का ब्लड ग्रुप क्या है, ये दो चीजों के आधार पर पता चलता है…
1. एंटीबॉडी: व्हाइट ब्लड सेल्स में मौजूद प्रोटीन को कहते हैं।
2. एंटीजन: रेड ब्लड सेल्स में मौजूद प्रोटीन को कहते हैं।
Rh रेड ब्लड सेल्स की सतह पर मौजूद एक प्रोटीन होता है। आम इंसान के शरीर में ये Rh या तो पॉजिटव होता है या नेगेटिव, लेकिन जिस इंसान की बॉडी में गोल्डन ब्लड होता है, उसकी बॉडी का Rh न तो पॉजिटिव होता है और न ही नेगेटिव। मतलब ये कि उसके शरीर में Rh फैक्टर null होता है।
अब अगले 6 ग्राफिक्स में ब्लड और ब्लड डोनेशन से जुड़ी रोचक बातें जानते हैं…
चाहिए 5 करोड़ यूनिट ब्लड प्रतिवर्ष …
मिलता है सिर्फ 2.5 करोड़ यूनिट, वर्ल्ड ब्लड डोनर डे पर जानिए रक्तदान के फायदे
हर साल 14 जून को ‘वर्ल्ड ब्लड डोनर डे’ सेलिब्रेट किया जाता है। आज से 20 साल पहले 2004 में इसकी शुरुआत हुई और दिन चुना गया 14 जून का, जो महान ऑस्ट्रियन वैज्ञानिक कार्ल लैंस्टाइनर का जन्मदिवस है। कार्ल वही वैज्ञानिक हैं, जिन्हें ABO ब्लड ग्रुप ऑर्गेनिज्म की खोज के लिए वर्ष 1930 में मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
ब्लड डोनेशन यानी रक्तदान की और जानेंगे कि रक्तदान करना क्यों जरूरी है। इससे सेहत को क्या लाभ होता है।
एक्सपर्ट- डॉ. स्वाति .., जनरल फिजिशियन
ब्लड डोनेशन क्यों है जरूरी
रक्तदान करने का अर्थ है किसी को जीवन दान करना। रक्त न किसी दुकान में मिलता है, न किसी पेड़ पर उगता है। न कोई इसे लैब में बना सकता है। सिर्फ और सिर्फ एक मनुष्य ही दूसरे मनुष्य को यह जीवन दान दे सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल पेशेंट्स को 5 करोड़ यूनिट खून की जरूरत पड़ती है, जबकि उपलब्ध खून सिर्फ 2.5 करोड़ यूनिट है। हर दो सेकेंड पर देश में किसी को खून की जरूरत होती है। हर दिन 38 हजार से ज्यादा लोगों के ब्लड डोनेशन की जरूरत पड़ती है।
देश में हर साल 10 लाख से ज्यादा कैंसर के नए पेशेंट्स आते हैं, जिन्हें खून की जरूरत पड़ती है। अगर किसी का सीवियर कार एक्सीडेंट हो जाए तो उसे 100 यूनिट तक खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।
आप समझ सकते हैं कि ब्लड डोनेशन की स्थिति कितनी क्रिटिकल है। डिमांड और सप्लाय में बहुत फर्क है और इसका सबसे बड़ा कारण है, लोगों में जागरूकता का अभाव। लोगों को पता ही नहीं है कि ब्लड डोनेट करने से डोनर को भी हेल्थ बेनिफिट होता है।
रक्तदान से जुड़े मिथक और सच्चाई
रक्तदान को लेकर जागरूकता के अभाव के साथ लोगों में बहुत सारी गलतफहमियां भी हैं। वील कॉर्नेल मेडिकल सेंटर में ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के डायरेक्टर डॉ. रॉबर्ट डी. सिमोन कहते हैं कि वैज्ञानिक जानकारी के अभाव के कारण लोग रक्तदान करने से हिचकिचाते हैं।
इसलिए इसके फायदों पर बात करने से पहले नीचे ग्राफिक में देखिए इससे जुड़े कुुछ मिथ और सच्चाई।
ब्लड डोनेशन से पहले क्या चेकअप होता है
आपका ब्लड लेने से पहले डॉक्टर या प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ आपके कुछ प्राइमरी हेल्थ चेकअप करते हैं। जैसेकि-
- पल्स यानी नाड़ी देखना
- ब्लड प्रेशर चेक करना
- बॉडी टेंपरेचर चेक करना
- ब्लड में हिमोग्लोबिन का लेवल चेक करना
ये तो हो गए कुछ बेसिक चेकअप। लेकिन इसके अलावा ब्लड की भी जांच की जाती है कि उसमें किसी बीमारी के संकेत तो नहीं हैं। खासतौर पर ऐसी बीमारियां, जो रक्त संक्रमण के जरिए फैल सकती हैं। जैसेकि-
- हेपेटाइटिस बी
- हेपेटाइटिस सी
- एचआईवी (HIV)
- वेस्ट नाइल वायरस (West Nile virus)
- सिफलिस (syphilis)
ब्लड डोनेट करने से डोनर को भी फायदा
हर स्वस्थ व्यक्ति को साल में कम-से-कम दो बार ब्लड डोनेशन जरूर करना चाहिए। ऐसा करके हम न सिर्फ किसी की जान बचा सकते हैं, बल्कि खुद भी ज्यादा स्वस्थ रह सकते हैं। कई हेल्थ स्टडीज और रिसर्च यह कहती हैं कि ब्लड डोनेशन सेहत के लिए फायदेमंद है।
ब्लड डोनेशन से कम होता हार्ट डिजीज का खतरा
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित वर्ष 2013 की एक स्टडी के मुताबिक रेगुलर ब्लड डोनेट करने से स्टोर्ड आयरन लेवल कम होता है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा भी कम हो जाता है। ब्लड में स्टोर्ड आयरन का हाई लेवल हार्ट अटैक का रिस्क बढ़ाता है।
रक्तदान करने से ब्लड प्रेशर रहता है कंट्रोल में
ब्लड डोनेट करने से हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल का रिस्क कम होता है। कुल मिलाकर हमारी कार्डियोवस्कुलर हेल्थ बेहतर होती है।
शरीर में आयरन की मात्रा संतुलित रहती है
रेगुलर ब्लड डोनेट करने से ब्लड में आयरन का संतुलन बना रहता है। जैसे आयरन की कमी खतरनाक है, वैसे ही आयरन का ज्यादा स्टोर होते जाना भी खतरनाक है। वैसे भी हमारी रेड ब्लड सेल्स लगातार टूटती और नई बनती रहती हैं। उनकी औसत लाइफ 120 दिन यानी 4 महीने की होती है। उसके बाद वह अपने आप नष्ट हो जाती हैं और नई रेड ब्लड सेल्स बनती हैं।
जब हम ब्लड डोनेट करते हैं तो बॉडी में ब्लड का वॉल्यूम यानी उसकी मात्रा तो 24 घंटे के अंदर ही पूरी हो जाती है, लेकिन रेड ब्लड सेल्स को दोबारा बनने में 4 से 6 हफ्ते का समय लगता है।
प्राइमरी हेल्थ स्क्रीनिंग हो जाती है
चूंकि ब्लड डोनेशन से पहले डॉक्टर प्राइमरी हेल्थ स्क्रीनिंग करते हैं तो इससे हेल्थ के बारे में बुनियादी जानकारी मिल जाती है। वजन कितना है, ब्लड प्रेशर की क्या स्थिति है, हिमोग्लोबिन कम या ज्यादा तो नहीं है या ब्लड में किसी बीमारी के वायरस तो नहीं हैं, ये सब रेगुलर ब्लड डोनेशन से पता चलता रहता है। ये सब ऐसे टेस्ट हैं, जो आमतौर पर हम नहीं करवाते।
ब्लड डोनेशन का असर मेंटल हेल्थ पर
ये तो हुई फिजिकल हेल्थ की बात, लेकिन क्या मेंटल हेल्थ पर भी इसका कुछ असर पड़ता है। यह जानने के लिए मेंटल हेल्थ फाउंडेशन, यूके ने 2015 में एक स्टडी की। इसमें उन्होंने उन लोगों की मेंटल हेल्थ कंडीशन को रिव्यू करने की कोशिश की, जो साल में कम-से-कम एक या दो बार ब्लड डोनेट करते थे।
फाउंडेशन की स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक ब्लड डोनेट करना हमारी इमोशनल हेल्थ के लिए भी बहुत उपयोगी है। इससे ये फायदे होते हैं-
- स्ट्रेस कम होता है
- इमोशनल हेल्थ बेहतर होती है
- निगेटिव फीलिंग्स दूर होती हैं
- स्ट्रेस हॉर्मोन कोर्टिसोल का लेवल कम होता है
- अकेलापन कम होता है और एक तरह के साथ और जुड़ाव की भावना बढ़ती है
- जीवन में कुछ अच्छा भलाई का काम करने का एहसास होता है
इसके अलावा ब्लड डोनेशन से जुड़े आमतौर पर जो सवाल पूछे जाते हैं, वो ये हैं कि अगर हम ब्लड डोनेट करने जा रहे हैं तो उसके पहले क्या बेसिक बातें जानना जरूरी है और क्या सावधानियां बरतना जरूरी है।
नीचे ग्राफिक में देखें-
इसके अलावा एक सवाल यह भी होता है कि ब्लड डोनेट करने के बाद क्या सावधानियां बरतनी चाहिए। क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
नीचे ग्राफिक में देखें-