शिक्षा, विद्या, गुरु का मान ईश्वर के तुल्य माना है !

शिक्षा, विद्या, गुरु का मान ईश्वर के तुल्य माना है

सपने बहुत सारे लोगों के टूटते हैं। लोग संभल भी जाते हैं। जो पुरुषार्थवादी होते हैं, वो सपनों को टूटने के बाद इकट्ठा करके पूरा भी कर लेते हैं। लेकिन पीड़ा तब होती है जब किसी विद्यार्थी का, और वो भी योग्य विद्यार्थी का सपना टूटता है। पूरा वंश बिखरने-सा लगता है।

नीट यूजी के परिणामों में विद्यार्थियों के साथ जो धोखा हुआ, वो अब छुपाने का विषय नहीं रहा। शिक्षा की दुनिया में ये मौत के सौदागर प्रवेश कर गए हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के लिए शिक्षा, विद्या, गुरु इनका मान ईश्वर के तुल्य माना है।

महाभारत के युद्ध में पंद्रहवें दिन जब द्रोणाचार्य का वध किया गया तो पांचों पांडवों ने विरोध किया, केवल कृष्ण सहमत थे कि इनके साथ जो हुआ ठीक हुआ। द्रोणाचार्य के पक्षपाती स्वभाव और व्यवहार से कृष्ण कभी सहमत भी नहीं हुए और अप्रसन्न भी थे।

द्रोणाचार्य अर्जुन और अपने बेटे अश्वत्थामा में भी भेद करते थे, दोनों को जब पानी लेने भेजते तो अर्जुन के घड़े का मुंह छोटा होता, अश्वत्थामा के घड़े का मुंह बड़ा होता, ताकि अश्वत्थामा जल जल्दी भर के लौट आएं और वे अर्जुन के मुकाबले दो बातें शस्त्र की अधिक सिखा दें। शिक्षा जगत में ऐसा झूठ-धोखाधड़ी अत्याचार है। नीचे की व्यवस्था से ये लोग बच भी जाएं, लेकिन एक दिन कृष्ण ऐसे लोगों को दंड देंगे।

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