खेल अब नया बिजनेस बन चुका है ?

खेल अब नया बिजनेस बन चुका है

अगर अमेरिका ने एशिया के लोकप्रिय खेल क्रिकेट में कूदने का फैसला किया, जबकि वहां पर इसके बहुत कम दर्शक हैं और अभी वहां टी20 ही खेले जा रहे हैं, तो हम क्यों पीछे रहें? अगर उन्हें इस खेल में पैसे की गंध आ गई है, तो आपको लगता है कि हम इसमें पीछे रह जाएंगे? अधिकांश भारतीय युवा व्यवसायी भी आज विभिन्न खेलों में किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें अधिकांश भारतीयों के लिए अल्पज्ञात खेल ‘पिकलबॉल’ भी शामिल है। आप सोच रहे होंगे कि यह क्या है? मैं बाद में समझाऊंगा।

पिकलबॉल भारतीय युवाओं के बीच क्रेज बनता जा रहा है। जयपुर के 25 वर्षीय धीमंत अग्रवाल जैसे युवा, जो पिता के व्यवसाय में बहुत व्यस्त हैं, हमेशा फिट रहने के लिए इनडोर खेल खेलना चाहते थे। पर समस्या ये है कि वे किसी भी खेल के पेशेवर खिलाड़ी नहीं हैं, हालांकि टेनिस, टेबल टेनिस, बैडमिंटन जैसे खेलों के बारे में थोड़ा-बहुत जानते हैं। कुछ दिन पहले ही वह एक नए खेल- ‘पिकलबॉल’ में शामिल हो गए!

पिकलबॉल क्या है? : इसमें ऊपर बताए सभी खेलों के तत्व शामिल हैं, जिसमें बैडमिंटन के आकार का कोर्ट, (पर छत पर बनाया जा सकने वाला छोटा क्रिकेट बॉक्स सरीखा कोर्ट), टेनिस स्टाइल का नेट और टेबल टेनिस जैसा बैट होता है, जिसे पेडल कहा जाता है। इसे आम तौर पर डबल्स में खेला जाता है, जिसका मतलब है कि आपको इसके लिए चार दोस्तों की जरूरत होगी। खेल में कई तरह के रैकेट-खेलों के नियम शामिल हैं। यह थका देने वाला नहीं है, लेकिन इसमें आपका पूरा शरीर व्यस्त रहता है।

पिकलबॉल का इतिहास : 1965 में, जोएल प्रिचर्ड व बिल बेल, गोल्फ खेलने के बाद वॉशिंगटन के बैनब्रिज द्वीप पर प्रिचर्ड के घर पहुंचे। उन्होंने पाया कि उनके परिवार ऊब रहे थे। बोरियत दूर करने के लिए प्रिचर्ड ने गर्मियों के मद्देनजर एक योजना बनाना शुरू कर दी।

प्रिचर्ड की अचल संपत्तियों में एक पुराना बैडमिंटन कोर्ट शामिल था, इसलिए उन्होंने खेलने की उम्मीद के साथ वहां शुरुआत की। हालांकि, उन्हें पूरे खेल के लिए पर्याप्त रैकेट नहीं मिल पाए, इसलिए उन्होंने अतिरिक्त पिंग पोंग पेडल(पेडल का मतलब बैट) और वाइफल बॉल का इस्तेमाल करके खेल को बेहतर बनाया। इन छोटे-छोटे टुकड़ों से एक बिल्कुल नया खेल जन्मा। आज, आप इसे ही पिकलबॉल के नाम से जानते हैं।

भारत में ये कैसे लोकप्रिय हुआ : विशाल लूनिया (33), जयंत सुराना (34) जैसे लोगों ने महसूस किया कि जब वे बैडमिंटन खेलना चाहते थे और बाद में वेन्यू बुकिंग एग्रीगेटर ऐप बनाते थे, तो न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे एनसीआर में वेन्यू की मांग व आपूर्ति में अंतर था।

2017 में उन्होंने भारतीयों के खेल संबंधी बुनियादी ढांचे में इस स्पष्ट अंतर को पाटने के लिए खेल प्रौद्योगिकी व बुनियादी ढांचा कंपनी ‘प्लेऑलस्पोर्ट्स’ शुरू करने के लिए मिलकर काम किया और ‘बॉक्स क्रिकेट, तैराकी, फुटसल, पिकलबॉल’ पर फोकस किया। ऐसा इसलिए क्योंकि ये खेल अलग-अलग कौशल-स्तरों व आयु-समूहों के लिए सुलभ हैं, जिससे कंपनी की बड़ी ग्राहक-आधार पाने की क्षमता बढ़ जाती है।

वे ‘पे एंड प्ले’ मॉडल पर काम करते हैं। आज धीमंत व उनके दोस्त प्रति घंटे 700 से 800 रु. का भुगतान करते हैं और कोर्ट हासिल कर लेते हैं। अकेले जयपुर में ऐसे चार स्थान हैं- वैशाली, सिविल लाइंस, मालवीय नगर, जगतपुरा। चूंकि निवेश 6-8 लाख रु. से अधिक नहीं था, इसलिए धीमंत खुद अपने बिजनेस में ऐसा ही एक कोर्ट जोड़ना चाहते थे।

 क्या आपको यह अहसास हो रहा है कि बढ़ती युवा आबादी के पास खर्च करने लायक पैसा है और वे ऐसे खेल की मांग कर रहे हैं, जो पेशेवर न होकर मजेदार हो और उन्हें फिट रखे? हां, भारत में खेल अब एक बड़ा बिजनेस बन गया है और बना रहेगा।

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