नई संसद में इन पुराने कानूनों पर पुनर्विचार होगा?
नई संसद में इन पुराने कानूनों पर पुनर्विचार होगा?
एनडीए सरकार को इस बार बहुमत नहीं मिला है। इसलिए हमारे पास आगे बढ़ने के लिए एक नया बिंदु है। चूंकि भारत में 2024 के चुनावों के बाद संसद का पुनर्गठन किया जा रहा है, इसलिए सीधे तौर पर कहें तो सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित कानूनों पर पुनर्विचार करके उन्हें निरस्त किया जाना चाहिए।
1. नागरिकता संशोधन अधिनियम : जब 2019 में संसद में सीएए पेश किया गया था तो देश भर में इस चिंता को लेकर विरोध-प्रदर्शन हुआ था कि प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के साथ सीएए के कारण कई नागरिक मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री का आग्रह था कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा।
असम में विफल पायलट प्रोजेक्ट- जहां 7% निवासी अंतिम एनआरसी सूची से बाहर रह गए थे- ने इन चिंताओं को बढ़ा दिया। यदि इस 7% की दर को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाता है, तो 10 करोड़ से अधिक की नागरिकता अमान्य हो सकती है।
आपराधिक कानून विधेयक : हाल ही में (मनमाने ढंग से) निर्दिष्ट आपराधिक कानून विधेयकों पर पुनर्विचार करके उन्हें निरस्त करने की आवश्यकता है, क्योंकि वे मैरिटल रेप और राजद्रोह के प्रावधानों को शामिल करते हैं, और ‘किसी पुलिस अधिकारी द्वारा दिए किसी भी निर्देश का पालन करने से इनकार करने, उसकी अनदेखी या अवहेलना करने’ को अपराध मानकर ‘पुलिस राज’ को बढ़ाते हैं।
यह तानाशाही की ओर फिसलन भरी ढलान है, जो मौलिक स्वतंत्रता को कमजोर करती है। यह स्तंभकार गृह मामलों पर संसदीय स्थायी समिति का सदस्य था, जहां अंतिम सिफारिशों में विपक्ष के रचनात्मक सुझावों व असहमति की आवाजों को नजरअंदाज कर दिया गया था।
मैरिटल रेप : भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 दुष्कर्म के अपराध पर बात करती है, लेकिन वैवाहिक दुष्कर्म के लिए अपवाद प्रदान करती है। इसमें कहा गया है कि ‘पुरुष द्वारा पत्नी के साथ यौन क्रिया- अगर पत्नी अठारह से कम की नहीं है- तो दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।’
यह अपवाद पुराने अंग्रेजी कानूनों से उपजा है, जो पुरुषों और महिलाओं को समान नहीं मानते थे। विधि आयोग की 42वीं रिपोर्ट (1971) ने इस अपवाद को हटाने का सुझाव दिया था, यह स्वीकार करते हुए कि यह महिलाओं को उनकी स्वायत्तता से वंचित करता है व वैवाहिक स्थिति के आधार पर उनके साथ असमान व्यवहार करता है। कानून इस सिद्धांत को कमजोर करता है कि दुष्कर्म व्यक्तिगत स्वायत्तता और शारीरिक अखंडता का उल्लंघन है, चाहे अपराधी व पीड़ित के बीच कोई भी रिश्ता क्यों न हो।
राजद्रोह : धारा 124ए (पुराना राजद्रोह कानून) आईपीसी का हिस्सा है। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसका उपयोग स्थगित रखा गया था। कोर्ट ने सरकार को राजद्रोह कानून पर फिर से विचार करने का समय दिया था। इसके बाद, गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि भारतीय न्याय संहिता में अपराधों की सूची से राजद्रोह को हटा दिया गया है।
इस नए संस्करण में ‘राजद्रोह’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है, लेकिन अस्पष्ट रूप से अपराध को ‘भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला’ बताया गया है। यह व्यापक परिभाषा, 22वें विधि आयोग की स्पष्टता की सिफारिश के विपरीत, दुरुपयोग की गुंजाइश छोड़ती है और असहमति और विरोध को दबाने की धमकी देती है।
मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 : अधिनियम चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए चयन समिति की संरचना में बदलाव करता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश कि मुख्य न्यायाधीश को समिति का हिस्सा होना चाहिए, की अवहेलना की गई। अब पीएम, विपक्ष के नेता (लोकसभा) और एक मनोनीत कैबिनेट मंत्री चयन करते हैं, जिससे केंद्र सरकार को चयन पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त हो जाता है।
खदान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 : इस अधिनियम ने केंद्र सरकार को सोना, चांदी, प्लेटिनम, तांबा जैसे कुछ महत्वपूर्ण उच्च मूल्य वाले खनिजों के लिए खनन पट्टों और लाइसेंसों की नीलामी करने का अधिकार दिया। इसने आवश्यक वन मंजूरी को भी समाप्त कर दिया।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम, 2019 : यह केवल ‘यौन शोषण’ को मान्यता देता है, जिसमें महिलाओं से दुष्कर्म पर आजीवन कारावास के विपरीत अधिकतम दो साल की सजा है। यह अपर्याप्त और भेदभावपूर्ण है।
न्याय और समानता के लिए…
चुनावों के बाद संसद का पुनर्गठन किया जा रहा है, इसलिए सीधे तौर पर कहें तो सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कुछ कानूनों पर पुनर्विचार करके उन्हें निरस्त किया जाना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)