अबकी बार NDA 300 से नीचे, क्या मुश्किलें आएंगी

अबकी बार NDA 300 से नीचे, क्या मुश्किलें आएंगी:संसद में कौन से बिल अटक सकते हैं; क्या-क्या नहीं कर पाएगी मोदी सरकार

 300 से कम सीटों वाले NDA को इस बार संसद में क्या-क्या मुश्किलें हो सकती हैं, कौन-से बिल अटक सकते हैं और क्या समझौता करना पड़ सकता है…

संसद में ही कोई भी बिल लाया जाता है। कुछ बिल केवल लोकसभा में; तो कुछ दोनों सदनों में लाए जा सकते हैं, जैसी मनी बिल लोकसभा में ही लाया जाता है।
संसद में ही कोई भी बिल लाया जाता है। कुछ बिल केवल लोकसभा में; तो कुछ दोनों सदनों में लाए जा सकते हैं, जैसी मनी बिल लोकसभा में ही लाया जाता है।

भारत की संसद में दो सदन होते हैं- लोकसभा और राज्यसभा। दोनों सदनों का मुख्य काम विधान या कानून बनाना है। इसके लिए पहले विधेयक सदन में पेश किया जाता है। फिर इस पर चर्चा होती है, उसके बाद सभी की सहमति या वोटिंग कराकर इसे पारित कर दिया जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ये कानून बन जाता है। सबसे पहले समझते हैं कि बिल कितने प्रकार के होते हैं और इन्हें पास कराने का प्रोसेस क्या है…

1. ऑर्डनरी बिलः साधारण बहुमत की जरूरत
आर्डनरी या साधारण बिल वे हैं जिनका कॉन्स्टिट्यूशन में विशेष रूप से जिक्र नहीं है। ये साधारण बिल कहलाते हैं। इसमें बिल या विधेयक को सांसद या मंत्री पेश करते हैं। बिल को संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। जो बिल पेश करता है, वो ही बिल के उद्देश्य और कायदों को बताता है।

सांसद बिल पर अपनी राय रखते हैं। बहस के बाद वोटिंग होती है। वोटिंग के समय सामान्य बहुमत से बिल पारित हो जाता है। सदन में जितने भी सांसद मौजूद होते हैं, उनका आधे से एक वोट ज्यादा को साधारण बहुमत कहते हैं। इनमें फिलहाल मोदी सरकार को कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि उनके गठबंधन में बहुमत के 272 से ज्यादा सांसद हैं।

2. मनी बिलः साधारण बहुमत से पास हो जाते हैं
मनी बिल यानी धन विधेयक केवल रेवन्यू, टैक्स संबधित, सरकारी उधारी और सरकार के फाइनेंशियल मामलों से संबंधित होते हैं। इन्हें केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है।

राज्यसभा को केवल सिफारिशें करने का अधिकार है, जिसे लोकसभा मानने के लिए बाध्य नहीं है।

लोकसभा में पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है।

अनुच्छेद 110(3) के मुताबिक किसी विधेयक को धन विधेयक मानने या न मानने का अंतिम निर्णय लोकसभा स्पीकर पर होता है। उसके फैसले को चैलेंज नहीं किया जा सकता। वोटिंग के समय सामान्य बहुमत से बिल पारित हो जाता है।

3. फाइनेंस बिलः साधारण बहुमत से पास हो जाते हैं
इन्हें वित्त विधेयक भी कहा जाता है। ये बिल राजकोष से संबंधित होते हैं। ये मनी बिल की कैटेगरी में नहीं आते हैं। धन विधेयक की तरह ही लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है। राज्यसभा में भेजे जाने के बाद, इसे सामान्य विधेयक की तरह ही प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद कानून बनता है। वोटिंग के समय सामान्य बहुमत से बिल पारित हो जाता है।

4. संविधान संशोधन विधेयक: दो-तिहाई बहुमत की जरूरत
इस विधेयक से संविधान के किसी भी प्रावधान को बदला जाता है। दोनों सदनों में पारित होना चाहिए। दोनों सदनों में प्रत्येक सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।

यदि संविधान के कुछ विशेष प्रावधानों जैसे संघवाद, न्यायपालिका की स्वतंत्रता आदि में संशोधन का प्रावधान हो, तो इसे पास करने के बाद आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं का भी समर्थन जरूरी है। दोनों सदनों में पारित होने के बाद राष्ट्रपति के लिए मंजूरी के लिए भेजा जाता है।

5. प्राइवेट बिलः साधारण बहुमत से पास हो जाते हैं
इसे संसद के किसी भी सदन का मेंबर पेश कर सकता है, जो मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं हो। साधारण बिल की तरह ही प्रक्रिया से गुजरते हैं। सदन में इसे पेश करने के लिए एक महीने का नोटिस देना होता है। प्राइवेट बिल केवल शुक्रवार को ही पेश किए जा सकता है। इस दिन इस पर चर्चा भी हाे सकती है।

जो इस बिल को पेश करता है वह मंत्री की रिक्वेस्ट पर वापस ले सकता है या इसे पारित कराने के लिए आगे बढ़ा सकता है। आखिरी बार दोनों सदनों ने 1970 में प्राइवेट बिल पास किया था। यह सुप्रीम कोर्ट विधेयक 1968 था।

मोदी 3.0 में सरकार के ये 4 महत्वाकांक्षी विधेयक अटक सकते हैं…

1. बीमा सुधार कानून: FDI सीमा 49% से बढ़ाकर 74% करेंगे

  • बीमा क्षेत्र को बड़े सुधारों के लिए अभी और इंतजार करना पड़ सकता है। बीमा संशोधन विधेयक को एक क्रांतिकारी कानून माना जा रहा है। जिस तरह से गठबंधन सरकार है और FDI की सीमा 74% तक करने की बात कही गई है, उससे लगता है कि यह उस रूप में पास नहीं हो पाएगा जैसा BJP सरकार ने सोचा है।
  • नए कानून के तहत बीमा क्षेत्र में FDI की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% किया जाएगा, ताकि फॉरेन इन्वेस्टमेंट को आकर्षित किया जा सके। इसके अलावा बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) को ताकतवर बनाया गया है। ऐसा इसलिए ताकि वे अधिक कुशलता से बीमा कंपनियों की निगरानी कर सकें और कस्टमर के अधिकारों का ध्यान रख सकें।
  • दरअसल, कुछ पॉलिटिकल पार्टीज और अन्य संगठनों का मानना है कि बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने से घरेलू बीमा कंपनियों पर असर पड़ेगा। भारतीय ग्राहक के हितों की अनदेखी होगी। ये भी तर्क दिया जा रहा है कि विदेशी कंपनियों के बढ़ते प्रभाव से बीमा क्षेत्र का कंट्रोल भारत के हाथ से निकल जाएगा। कुछ लोग मानते हैं कि ये कदम प्राइवेटाइजेशन की तरफ है। ऐसे में इस बिल को पास कराना NDA के लिए आसान नहीं होगा।

2. डिजिटल इंडिया एक्ट: विपक्ष काे दुरुपयोग का डर

  • इस एक्ट को लेकर पिछली बार IT राज्यमंत्री रहे राजीव चंद्रशेखर ने खूब प्रचार किया था। उन्होंने मीडिया को खुलकर इसके फायदे बताए थे। दुर्भाग्य से वे चुनाव हार गए हैं, इसलिए वे इस कानून को पेश नहीं कर पाएंगे। मोदी सरकार इस कानून को 23 साल पुराने IT एक्ट की जगह लाना चाहती है।
  • सरकार का कहना है कि IT एक्ट में इंटरनेट शब्द नहीं है। नए कानून में साइबर सुरक्षा, AI, गोपनीयता और अन्य जरूरी क्षेत्रों पर ध्यान देने की बात की गई है। कानून तोड़ने पर दस साल की सजा और जुर्माने के प्रावधान से विपक्ष डरा हुआ है।
  • सरकार को भले ही लगता है कि वो अच्छा करने जा रही है, लेकिन विपक्ष उससे सहमत नहीं है। विपक्ष को लगता है कि इस कानून की आड़ में सरकार उन लोगों को दबाएगी जो इंटरनेट पर उसकी आलोचना करेगा। सरकार इसका मसौदा इस शीतकालीन सत्र से पहले जारी कर सकती है। हालांकि, तगड़े विपक्ष के चलते इसे शीतकालीन सत्र में पास कराना आसान नहीं होगा।

3. बीज विधेयक: केवल बड़े किसान और बड़ी कंपनियों को लाभ होगा

  • NDA सरकार बीज विधेयक 2019 को लाने के लिए लंबे समय से प्रयास कर रही है। पिछली सरकार के दौरान हुए किसान आंदोलन में इस बिल का भी जोरदार विरोध किया गया था। सरकार इसे बीज बिल 1966 की जगह लाना चाहती है। सरकार का मानना है कि इससे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज मिलेंगे। खराब और नकली बीज बनाने वाली कंपनियां खत्म हो जाएंगी।
  • बीज विधेयक 2019 खराब क्वालिटी के बीज बेचने वाली कंपनी पर जुर्माना 5 हजार रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया गया है। विपक्ष और विरोध कर रहे किसानों का मानना है कि ये बिल छोटे किसान और छोटी कंपनियों के खिलाफ है। इससे बड़ी कंपनियों को ही लाभ होगा।
  • वे कहते हैं कि छोटा किसान महंगा बीज कैसे खरीदेगा। छोटी कंपनियां सरकार के मानक पर खरी उतरेंगी ही नहीं। जब ऊपर से ही बीज महंगा आएगा तो छोटा किसान कैसे खरीदेगा। तमाम विरोधों के बीच भी अगर सरकार इस बिल को लाती है तो इसे पास कराना टेढ़ी खीर होगा। सहयोगी दल भी इस पर दूरी बना सकते हैं, क्योंकि किसान इसके विरोध में हैं।

4. बिजली बिल: मोबाइल नेटवर्क की तरह बिजली कंपनी चूज कर सकेंगे

  • 8 अगस्त 2022 में बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 पेश किया गया था। यह दोनों सदनों में पास नहीं हो सका है। संसद में अब विपक्ष के बहुत मजबूत होने के कारण यह बिल वैसे तो पास नहीं हो पाएगा, जैसा सरकार चाहती है।
  • इस बिल पर विपक्ष, गैरबीजेपी शासित राज्यों और सरकारी बिजली कंपनियों ने विरोध दर्ज कराया है। इस बिल के तहत एक ही क्षेत्र में कई बिजली कंपनियों को लाइसेंस दिए जाएंगे। जैसे आप मोबाइल के लिए अपनी मर्जी का नेटवर्क चूज करते हैं। ऐसे ही बिजली कंपनी भी चूज कर सकेंगे।
  • विपक्ष का मानना है कि बिल में ये बदलाव बिजली आपूर्ति और कीमत तय करने के नागरिकों के अधिकारों में घुसपैठ कर रहा है। इस बिल पर चर्चा होनी चाहिए। विपक्ष का कहना है कि निजी कंपनियां कुछ शुल्क देकर मुनाफा कमाएंगी और सरकारी कंपनियां दिवालियां हो जाएंगी। विपक्ष के तेवर देखकर लगता है कि ये बिल पास होने में NDA को खूब जोर लगाना होगा। विपक्ष की बात भी माननी होगी।
  • BJP के पास नंबर कम होने से ऊपर दिए गए बिलों के अलावा IBC संशोधन विधेयक, कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, औषधि, चिकित्सा उपकरण और प्रसाधन सामग्री विधेयक 2023 सहित प्रमुख विधेयकों के पारित होने में देरी हो सकती है।
जानकार मान रहे हैं कि फिलहाल मोदी सरकार सारे निर्णय अपने सहयोगियों को में रखकर लेगी। इस बार BJP की सीटें कम आने से NDA में असली NDA दिखेगा। पिछली दो सरकार में केवल BJP हावी थी।
जानकार मान रहे हैं कि फिलहाल मोदी सरकार सारे निर्णय अपने सहयोगियों को में रखकर लेगी। इस बार BJP की सीटें कम आने से NDA में असली NDA दिखेगा। पिछली दो सरकार में केवल BJP हावी थी।

मोदी सरकार फिलहाल जल्दबाजी नहीं करेगी
राजनीतिक विश्लेषक अविनाश कल्ला कहते हैं कि हो सकता है कि इनमें से कुछ बिल पास भी हो जाएंगे, लेकिन इनमें लंबा समय लगेगा। अगर मोदी सरकार इन बिलों को 100 दिन की योजना में पेश करके पास कराने के बारे में सोच रही है तो इस बार ऐसा होने वाला नहीं है। फिलहाल तो वो एक या दो सेशन वेट करेंगे।

कल्ला कहते हैं कि इस दौरान कुछ राज्यों में चुनाव भी हो जाएंगे। ऐसे में BJP को अपनी स्थिति भी पता चल जाएगी कि जो जनाधार उसने खोया है वह धीरे-धीरे मिलना शुरू हुआ है या नहीं। अगर चुनावों की रिपोर्ट BJP के फेवर में आई तो ये बिल पेश करेंगे। वर्ना इनको अपने सहयोगियों की भी सुननी पड़ेगी और विपक्ष की भी। ऐसे में कई बिलों को पास होने में दो से तीन साल लग सकते हैं।

पूर्ण बहुमत न मिलने पर मोदी 3.0 पर और क्या असर पड़ेगा?

  • सहयोगियों पर निर्भरता: इससे पहले मोदी सरकार अपने सांसदों के बूते पर सदन में बिल लाती थी और पास करा लेती थी। अब ऐसा नहीं होगा। उसकी निर्भरता गठबंधन की पार्टियों पर बढ़ेगी। सरकार को बड़ा ही नहीं, मध्यम स्तर का फैसला भी सहयोगियों से पूछकर लेना होगा, क्योंकि सरकार के फैसले से उनके हित भी प्रभावित होंगे।
  • विपक्ष को अवॉयड नहीं किया जा सकता: मोदी सरकार के लिए मजबूत विपक्ष बड़ी परेशानी खड़ी करेगा। अब उसे विपक्ष की सुननी होगी। कांग्रेस बस सौ से एक नंबर पीछे, 99 सीटें लाकर सबसे बड़ी पार्टी है। तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सपा, कांग्रेस के कंधे से कंधा मिलाकर सरकार का विरोध करेगी। ऐसे में NDA सरकार विपक्ष की आवाज नहीं दबा पाएगी। सरकार काे सदन को चलाने के लिए विपक्ष से भी समय-समय पर बैठक करनी होगी।
  • राज्यसभा में पास करना मुश्किल: जोड़-तोड़ करके NDA लोकसभा में इन बिलों को पास भी करा ले, तब भी इन बिलों को राज्यसभा में पास कराना संभव नहीं होगा। यहां BJP ही नहीं, NDA के पास भी पर्याप्त संख्या नहीं है। अगर जोड़-तोड़ की बात भी की जाए तो कट-टु-कट आंकड़े आएंगे। ऐसे में कोई भी बिल राज्यसभा में पास कराना आसान नहीं होगा।

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