संसद अब समस्याओं के समाधान पर फोकस करे !

संसद अब समस्याओं के समाधान पर फोकस करे !

लोकसभा चुनाव के जनादेश में मतदाताओं ने समावेशी विकास के मुद्दे पर अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट रूप से तय कर दी थीं। विभाजनकारी नैरेटिव को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया था। इसमें यह संदेश भी निहित था कि चुनाव समाप्त होने पर संसद को समस्याओं के समाधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

चुनाव के बाद पहला बड़ा मुद्दा नीट की प्रतियोगी परीक्षा में पेपर-लीक होने का आया और इसने पिछले कुछ वर्षों में लीक हुए पर्चों की संख्या को भी उजागर किया। व्यापमं (पीईबी या व्यावसायिक परीक्षा मंडल) ने लीक घोटाले की जांच की।

लीक को रोकने और पारदर्शिता लाने के लिए स्पष्ट आदेशों के साथ अगस्त 2015 में ही सतर्क अधिकारियों की एक टीम बना दी गई थी और परीक्षा को ऑनलाइन कर दिया गया था। केंद्रों की पहचान की गई, पीसी और सर्वर प्रदान किए गए, अभ्यास मोड को वेब पर पोस्ट किया गया और इसका प्रचार किया गया।

लोगों का विश्वास जीतने के लिए यह भी कहा गया कि अगर कहीं कोई गड़बड़ी होती है, तो पीईबी अपने खर्च पर उस केंद्र पर फिर से परीक्षा आयोजित करवाएगा और अगर कोई भी गलती बताता है तो उसे एक लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा।

उपरोक्त सभी कार्य केवल एक महीने के समय में कर लिए गए थे। विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा बनाए प्रश्नों को मिलाकर समान कठिनाई वाले प्रश्न-पत्रों के सेट बनाए गए। परीक्षा से कुछ मिनट पहले ही पेपर अपलोड किया गया था।

इसकी अनूठी विशेषता यह थी कि प्रत्येक छात्र का लॉग-इन समय रिकॉर्ड किया गया, प्रश्न जारी किए गए, हल किए गए और जब तक छात्र अंतिम उत्तर पुस्तिका जमा करता, तब तक सिस्टम को बंद करने से पहले स्कोर देखा जा सकता था।

यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले 9 वर्षों से नई प्रणाली सही काम कर रही है। नीट में धोखाधड़ी का तरीका बिल्कुल वैसा ही था, जिसमें धोखाधड़ी करने वाले छात्रों की ओएमआर शीट को फिर से भर दिया जाता था, इसलिए यह आश्चर्य की बात है कि एक अच्छी तरह से प्रचारित और सिद्ध उदाहरण से सबक क्यों नहीं लिए गए, गिरफ्तारियां क्यों नहीं हुईं।

राष्ट्रीय स्तर पर 25 लाख प्रतिभागियों के लिए ऑनलाइन परीक्षा कराना मुश्किल नहीं है और प्रक्रिया में रैंडमनेस से धोखाधड़ी को रोका जा सकता है। कई प्रतिष्ठित परीक्षाएं ऑनलाइन ही होती हैं। प्रणाली में सुधार करके युवाओं का विश्वास बहाल करना अनिवार्य है।

एक और मुद्दा रोजगार-सृजन का है। एमएसएमई और उनके मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके उन्हें हल करना जरूरी है। चुनाव के बाद देश और उसके नागरिकों को समस्याओं को हल करने के लिए सत्ताधारी और विपक्षी दलों के सहभागी-दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

हमारे पास स्वतंत्रता के बाद 60 के दशक में रोजगार-सृजन और दूरदराज के क्षेत्रों में विकास को गति देने वाले टाउनशिप स्थापित करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश थे, फिर कृषि क्रांति हुई जिसने अकाल की समस्या को हल कर दिया, फिर स्वास्थ्य-देखभाल केंद्र में आई, 73वें और 74वें संशोधन ने न केवल विकेंद्रीकृत स्थानीय निकायों को अधिक निर्णय लेने की शक्ति दी, बल्कि वित्त आयोगों, विशेष रूप से 13वें और 14वें के माध्यम से बुनियादी ढांचे के लिए खुले हाथ से धन देकर इसका समर्थन किया।

इन सब उपायों ने गांवों और कनेक्टिविटी को बदल दिया था। 90 के दशक की शुरुआत में आर्थिक उदारीकरण के माध्यम से नौकरियां आईं। 2012 में वित्तीय समावेशन और डीबीटी (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) को क्रियान्वित किया गया।

अब समय आ गया है कि कृषि, एमएसएमई, शिक्षा, स्वास्थ्य और गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में स्थायी नौकरियां पैदा करने की एक और लहर आए। दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना ही काफी नहीं है, देश की व्यापक युवा जनसंख्या का फायदा उठाने के लिए इसे समावेशी होना होगा।

नागरिकों ने उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपना निर्णायक जनादेश दिया है, जो समावेशी विकास में बाधा बन रहे हैं। निर्वाचित प्रतिनिधियों को इसे समझना चाहिए और जनादेश का सम्मान करते हुए उसके अनुसार कार्य करना चाहिए।

जिन कानूनों और योजनाओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं, उन पर फिर से विचार किया जाना चाहिए। और सबसे महत्वपूर्ण है रोजगार-सृजन पर पूरा ध्यान केंद्रित करना। अपेक्षा और आशा है कि सरकार और विपक्ष द्वारा अहम समस्याओं के प्रति जीरो-टॉलरेंस दिखाते हुए काम किया जाएगा।

निर्वाचित प्रतिनिधियों को जनादेश का सम्मान करना चाहिए। जिन कानूनों और योजनाओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं, उन पर फिर से विचार किया जाना चाहिए। और सबसे महत्वपूर्ण है नौकरियों के क्रिएशन पर पूरा ध्यान केंद्रित करना।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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