योगी की डांवाडोल कुर्सी ??
यूपी का राजनीतिक घमासान और योगी की डांवाडोल कुर्सी, विपक्ष से सहयोगी तक कर रहे हैं वार
उत्तरप्रदेश की राजनीति में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. लोकसभा चुनाव में यूपी में उस तरह से भाजपा को सीटें नहीं मिली जितनी की उम्मीदें लगाई गई थी. कम सीटें आने के बाद से लगातार मीटिंग और मंथन का दौर चल रहा है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी हाल में ही ये कहा कि अतिआत्मविश्वास के कारण अधिक सीटों पर नुकसान हुआ है.
बावजूद इसके सरकार और बाहर से आरोप-प्रत्यारोप का खेल जारी है. सरकार में साझीदार संजय निषाद से अलग से ही मोर्चा खोलते हुए कहा कि कई अधिकारी बसपा और सपा के लिए काम कर रहे हैं. यूपी की दस सीटों पर उप चुनाव होना है, योगी आदित्यनाथ का कहना है कि किसी भी साझीदार को सीटें ना दी जाए लेकिन साझीदार टिकट के लिए अड़े हुए हैं. साझीदार की ओर से बयानबाजी के साथ पत्र भेजने का कार्य लगातार चल रहा है.
हार की नैतिक जिम्मेदारी
माना जाता था कि योगी आदित्यनाथ की प्रशासनिक पकड़ काफी मजबूत है अब वो छूटता जा रहा है. भाजपा में इस समय बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इस बार विपक्ष से भिड़ने की बजाए भाजपा के अंदरखाने ही लोग आपस में भिड़ते देखे जा रहे हैं. ये एक तरह की जंग बंद कमरों में ही चल रहा है. लोकसभा चुनाव में कम सीटें आने के बाद दो महत्वपूर्ण बैठकें हुई, पहली मीटिंग पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बी आर संतोष की देखरेख में संपन्न हुई. राष्ट्रीय कार्यकारणी के बहाने जेपी नड्डा और अन्य नेताओं ने बैठक करते हुए भाषण दिया. उसमें कहा गया कि हार के कारणों की तलाश की जाएगी.
उसमें सिर्फ बयानबाजी हुई लेकिन कमजोरियों पर बात नहीं की गई. भाजपा में पहली बार यूपी में ये देखा गया है कि हार के बाद त्यागपत्र नहीं आया है. सभी बड़े लोग अपने पदों पर बने हुए हैं, चाहे वो प्रदेश अध्यक्ष हों, मुख्यमंत्री हों, जिम्मेदार संगठन के सदस्य या सरकार के मंत्री हों. किसी ने अभी तक इसकी जिम्मेदारी नहीं ली है. सांत्वना के लिए बस ये फैलाया जा रहा है कि विपक्ष ने संविधान और अन्य बातों को लेकर अफवाह फैलाया उसके बाद चुनाव में कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा.
अति उत्साह पड़ा भारी
अति उत्साह से चुनाव हारने वाला योगी आदित्यनाथ का बयान कहीं न कहीं केंद्र की ओर था. चुनाव पूरी तरह से मोदी की गारंटी और मोदी के नाम पर चल रहा था,जबकि ग्राउंड लेवल पर काम नहीं किया गया. उसी चीजों को योगी ने इंगित करने का काम किया है. आज चुनाव के बाद मोदी की गारंटी का पोस्टर सड़कों पर पड़ा है जिस पर से लोग गुजर जा रहे हैं. एक तरफ से ये योगी आदित्यानाथ का इशारा केंद्र पर है, तो दूसरी ओर याेगी को घेरने की प्लानिंग पार्टी के अंदर से विधायक, पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री की ओर से हो रही है. पार्टी के अंदर से ये कहा जा रहा है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर है. इससे भ्रष्ट सरकार पिछले 42 साल तक नहीं देखी गई. ये बात खुद पूर्व विधायक मोती सिंह ने कही. जो पार्टी अपने अनुशासन के लिए जानी जाती थी, वह अब आपस के बवाल और बयानबाजी के लिए जानी जा रही है.
भाजपा के लोग प्रशासन पर उंगली उठा कर कहीं ना कहीं योगी आदित्यनाथ को ही घेरने का काम कर रहे हैं. प्रशासन एक तरह से मुख्यमंत्री के हाथ में ही होता है. इसलिए इसके जरिये योगी को घेरने की प्लानिंग है. सहयोगी दल भी इसमें पीछे नहीं है, वो भी लगातार सवाल उठा रहे हैं. अनुप्रिया पटेल लगातार चिट्ठियां लिख रही है. संजय निषाद भी सवाल उठा रहे हैं. ओम प्रकाश राजभर भी दबे मुंह ये कह रहे हैं कि उनके बेटे की हार में प्रशासन और अंदर के लोग सम्मिलित है. ओम प्रकाश राजभर और योगी आदित्यनाथ की तल्खी कोई आज की नयी नहीं है. इसी झगड़े को लेकर वो सरकार को भी छोड़ चुके हैं.
योगी की परीक्षा
योगी आदित्यनाथ इस समय क्रीज पर रहकर ऐसे बल्लेबाजी कर रहे हैं जिनके सामने कई धुरंधर खड़े हैं. इस समय राजनीति के मैच में योगी आदित्यनाथ के लिए ये परीक्षा भी है. दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ समर्थकों का ये कहना है कि ये चुनाव दिल्ली ने अपने हिसाब से लड़ा था. चुनाव के क्रम में योगी आदित्यनाथ की बात नहीं सुनी गई, टिकटों को भी नहीं बदला गया.
इसलिए जिन सीटों पर हार हुई है उसकी जिम्मेदारी सीधे तौर पर केंद्र को ही लेनी चाहिए. इसके अलावा योगी खेमे के पास कोई भी दूसरा तर्क इस हार से बचने के लिए नहीं है. अब भ्रष्टाचार बढ़ने, दलित और पिछड़ों पर की उपेक्षा करने और प्रशासन पर आरोप तीनों के जरिये योगी आदित्यनाथ को ही घेरने की प्लानिंग है.
यूपी में पुलिस है निरंकुश
योगी आदित्यनाथ ने माफिया को यूपी से खत्म करने की बात कही थी तो सबको ये बातें अच्छी लगी थी. इस क्रम में पुलिस इतनी निरंकुश हो गई कि पुलिस हिरासत में लोगों की होने वाली मौतों की संख्या में बढ़ोतरी होने लगी. पुलिस के कई दारोगा हत्या के आरोप में जेल भी गए. एक एसएसपी रैंक के अधिकारी भी हत्या कराने, रंगदारी मांगने के आरोप में जेल में बंद हैं. दो दिन पहले ही चित्रकूट और बुंदेलखंड दो जगहों पर हिरासत में लिए गए लोगों की मौत का मामला सामने आया है. पुलिस की निरंकुशता भी सरकार के किए गए दावा को कमजोर कर देती है. इसके बाद ये सवाल भी उठने लगा कि योगी आदित्यनाथ का एंटी माफिया कार्य सिर्फ सेलेक्टिव लोगों के लिए है.
अब जो अपराध का दृश्य है उसमें पुलिस के लोग भी अच्छे खासे स्तर पर शामिल हो चुके हैं. पुलिस की निरंकुशता के कारण लगातार ऐसी घटनाएं हो रही है और क्षेत्र में भी घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. भ्रष्टाचार मुक्त सरकार और भयमुक्त प्रदेश दोनों बनाने का दावा अब सवालों के घेरे में है. चुनावी भाषणों में तो ये ठीक है लेकिन लोग अब इसको मानने से इंकार करने लगे हैं. अब लोगों को माफिया के साथ पुलिस से भी डर लगने लगता है कि कब किसको पुलिस उठा ले जाए. पुलिस उठाकर जिस पर कार्रवाई करती है उसमें सबसे अधिक दलित और पिछड़े समाज के लोग होते हैं. दोनों समुदाय के लोगों के भीतर भी गुस्सा पनप रहा है.
योगी का भविष्य
योगी आदित्यनाथ के भविष्य को देखें तो आगे कुछ भी हो सकता है. केंद्र में भाजपा नेताओं की जिस तरह से स्थिति दिख रही है या फिर यूपी में जिस तरह भाजपा के संगठन और विधायकों की लामबंदी देखी जा रही है उससे ये हो सकता है कि योगी को मनाकर केंद्र में कोई मंत्रालय दिया जाए. दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ के व्यक्तित्व की बात करें तो वो इतनी आसानी से मानने वालों में नहीं है. वो आखिरी दम पर लड़ने में विश्वास रखते हैं और अपनी जिद पर रहते हैं.
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि अभी संघर्ष जारी है आने वाले समय में ये पता चलेगा कि यूपी राजनीति किस ओर जाती है. केंद्रीय मीटिंग में अमित शाह अनुपस्थित रहे, और कई महीनों से अमित शाह और योगी से फोन पर भी वार्ता नहीं हुई है. इसलिए भविष्य की घटनाओं पर अभी कुछ भी कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी.
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