संसद में पेश बजट नहीं समझ में आता है?
संसद में पेश बजट नहीं समझ में आता है? आसान भाषा में जानें काम की चीजें
इस साल लोकसभा चुनाव के कारण बजट दो बार पेश किया जा रहा है. वित्त वर्ष 2024-25 के लिए चुनाव से पहले अंतरिम बजट 1 फरवरी को पेश किया गया था और अब चुनाव बाद अंतिम बजट 23 जुलाई को पेश किया जाएगा.
हर साल सरकार एक हिसाब-किताब का ब्योरा पेश करती है, जिसे बजट कहते हैं. इसमें सरकार बताती है कि अगले साल वो किन-किन मंत्रालयों पर कितना पैसा खर्च करेगी और टैक्स वगैरह से कितना पैसा जुटाएगी.
साथ ही सरकार ये भी बताती है कि उसे कितना कर्ज लेना पड़ेगा और कुल मिलाकर उस पर कितना कर्ज होगा. सबसे जरूरी बात सरकार बताती है कि उसने पिछले साल जितना पैसा जुटाया या खर्च किया, वो संसद को बताए गए अनुमान से कितना अलग था.
बजट में यह बताया जाता है कि सरकार किन चीजों पर टैक्स बढ़ाएगी या घटाएगी, नए प्रोजेक्ट्स और योजनाओं के लिए कितना पैसा दिया जाएगा, किन चीजों पर सरकार सब्सिडी देगी या बढ़ाएगी, नौकरियां बढ़ाने के लिए क्या योजनाएं हैं.
सरकार एजुकेशन, हेल्थ, डिफेंस, एग्रीकल्चर और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे अलग-अलग सेक्टर पर पैसा खर्च करती है. बजट में यह बताया जाता है कि सरकार हर सेक्टर पर कितना पैसा खर्च करेगी. इसके अलावा किसानों के लिए क्या नई सुविधाएं दी जाएंगी, अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे, ये भी जानकारी दी जाती है.
सरकार अपने खर्च के लिए पैसे कैसे जुटाती है?
सरकार के पास खर्च के लिए जो पैसा होता है उसे सरकारी आमदनी कहते हैं. ये मुख्य रूप से दो तरह से पैसा जुटाती है: पहला खुद का पैसा कमाना और दूसरा उधार लेना. सरकार को अलग-अलग विभागों से टैक्स, जुर्माना, सरकारी कंपनियों के मुनाफे में हिस्सा और सरकारी संपत्ति बेचकर पैसे मिलते हैं. अगर सरकार के खर्च के मुकाबले उसकी कमाई कम पड़ जाती है तो उसे कर्ज लेना पड़ता है.
सरकार के खुद के कमाए पैसे को दो तरह से बांटा जा सकता है: आमदनी और पूंजीगत आमदनी. सरकार की आमदनी में भी दो हिस्से होते हैं: टैक्स से मिलने वाला पैसा और टैक्स के अलावा मिलने वाला पैसा.
टैक्स से मिलने वाला पैसा सबसे ज्यादा होता है, करीब 90% पैसा सिर्फ टैक्स से आता है. इनमें से सबसे ज्यादा पैसा GST, कॉरपोरेशन टैक्स और इनकम टैक्स से मिलता है. साल 2023-24 में इन तीनों से मिलकर 26%, 25% और 24% पैसा आया था. टैक्स के अलावा भी सरकार को पैसा मिलता है जैसे जुर्माना, सरकारी कंपनियों से मिलने वाला मुनाफा, पेट्रोल से मिलने वाली रॉयल्टी और लाइसेंस बेचने से मुनाफा. साल 2023-24 में इन सबसे सरकार को 8% पैसा मिला था.
कुछ तरह के पैसे ऐसे होते हैं जिनसे सरकार की संपत्ति या कर्ज में बदलाव आता है. जैसे अगर सरकार उधार लेती है तो उसका कर्ज बढ़ जाता है और अगर वो अपनी कोई संपत्ति बेचती है तो उसकी संपत्ति कम हो जाती है. ऐसे पैसे को ‘पूंजीगत आमदनी’ (Capital Receipts) कहते हैं. साल 2023-24 में सरकार को पूंजीगत आमदनी (उधार छोड़कर) से सिर्फ 2% पैसा मिला था.
सरकार अपना पैसा कैसे खर्च करती है?
सरकार अपना पैसा सेना पर, सड़क-पुल जैसे कामों पर, अपनी योजनाओं को चलाने पर, सब्सिडी देने पर, कर्ज पर ब्याज देने पर और अपने कर्मचारियों की तनख्वाह और पेंशन देने पर खर्च करती है.
सरकार जो पैसा कर्ज लेती है उस पर ब्याज देना पड़ता है. साल 2023-24 के बजट के हिसाब से सरकार अपने कुल खर्च का 24% हिस्सा सिर्फ ब्याज चुकाने में लगाया. ये एक तरह का जरूरी खर्च है, जिसे सरकार को देना ही पड़ता है. इसके अलावा सरकार अपने पैसे का 9% हिस्सा सब्सिडी देने में और 5% हिस्सा पेंशन देने में लगाती है. यानी सरकार अपने कुल खर्च का 38% हिस्सा सिर्फ ब्याज, सब्सिडी और पेंशन देने में लगा देती है. इन सब खर्चों को राजस्व खर्च कहते हैं. इसमें सरकार के कर्मचारियों की तनख्वाह और ऑफिस चलाने का खर्च भी शामिल होता है.
बाकी बचा हुआ पैसा सरकार पूंजीगत खर्च करती है. इससे सरकार की संपत्ति बढ़ती है या कर्ज कम होता है. जैसे सड़क, अस्पताल और स्कूल बनाना. सेना, शिक्षा या ट्रांसपोर्ट जैसे सेक्टर में सरकार राजस्व और पूंजीगत दोनों तरह के खर्च करती है. उदाहरण के तौर पर, अगर स्कूल की इमारत बनाई जाए तो वो पूंजीगत खर्च है क्योंकि इससे सरकार की संपत्ति बढ़ती है. लेकिन अगर स्कूल के टीचरों को तनख्वाह दी जाए तो वो राजस्व खर्च है.
अगर सरकार का खर्च उसकी कमाई से ज्यादा हो जाए तो क्या?
अगर सरकार का खर्च उसकी कमाई से ज्यादा हो जाता है तो उसे पैसे उधार लेने पड़ते हैं, इस अंतर को ‘फिस्कल डेफिसिट’ कहते हैं. हिंदी में फिस्कल डेफिसिट को राजकोषीय घाटा कहा जाता है. यह अंतर होता है कि सरकार कितना पैसा कमाती है और कितना खर्च करती है. अगर सरकार की कमाई खर्च से ज्यादा हो जाए तो उसे ‘फिस्कल सरप्लस’ कहते हैं.
साल 2000-2001 में जहां सरकार का खर्चा सिर्फ 3.3 लाख करोड़ रुपये था, वहीं अब साल 2023-24 में ये खर्च बढ़कर 45 लाख करोड़ रुपये हो गया है. मतलब हर एक नागरिक पर सरकार करीब-करीब 32,150 रुपये खर्च कर रही है.
साल 2023-24 में सरकार की कमाई और खर्च के बीच का अंतर देश की कुल आमदनी का 5.9% था. इसका मतलब है कि सरकार को देश की कुल आमदनी का 5.9% उधार लेना पड़ा था और इसमें से भी 2.9% उधार सिर्फ राजस्व घाटा पूरा करने के लिए कर्ज लिया गया.
क्या सरकार का बजट अनुमान उसके असली खर्च से मिलता है?
सरकार बजट में अगले साल के लिए अपना अनुमान बताती है. साल खत्म होने के बाद CAG उसकी असली हिसाब-किताब की जांच करता है कि सरकार ने सच में जितना पैसा बताया था उतना ही कमाया और खर्च किया या नहीं. ये सारी जानकारी अगले साल के बजट के साथ आती है, यानी कि बजट बनाने के दो साल बाद ही पता चलता है कि पिछले साल का हिसाब-किताब क्या था.
कई बार ऐसा होता है कि साल शुरू होने के बाद सरकार को पता चलता है कि कुछ मंत्रालयों को पहले से तय किए गए पैसे से ज्यादा पैसे चाहिए या फिर सरकार को उम्मीद थी कि उसे किसी काम से इतना पैसा मिलेगा लेकिन असल में वो पैसा कम या ज्यादा मिला. ऐसे में सरकार के अनुमान और असल में हुए खर्च में फर्क आ जाता है.
अगर साल के बीच में सरकार को ज्यादा पैसे खर्च करने की जरूरत पड़ जाए तो क्या?
साल के बीच में अगर सरकार को ऐसा लगता है कि उसे पहले से तय किए गए पैसे से ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे, तो वो संसद से और पैसा मांग सकती है. इसे ‘अतिरिक्त मांगें’ कहते हैं. बजट के साथ जो मांगें आती हैं उनकी तो सांसदों की कमेटियां जांच करती हैं, लेकिन इन अतिरिक्त मांगों की जांच नहीं होती.
साल 2023-24 में सरकार ने दो बार और पैसा मांगा था. इन दोनों बार में सरकार ने कुल मिलाकर 1.4 लाख करोड़ रुपये और खर्च करने की इजाजत मांगी थी. ये पूरे साल के बजट का 3% था. जैसे कि दूसरी बार सरकार ने खाना और खाद की सब्सिडी के लिए 9231 करोड़ और 3000 करोड़ रुपये और मांगे थे.
बजट के साथ फाइनेंस बिल भी किया जाता है पेश?
फाइनेंस बिल बजट के साथ पेश किया जाता है और इसमें सरकार के अगले साल के पैसे से जुड़े प्रस्ताव होते हैं. इसमें सरकार बताती है कि अगले साल वो पैसे से जुड़े क्या-क्या काम करेगी. ये फाइनेंस बिल एक खास तरह का बिल होता है जिसे ‘मनी बिल’ भी कहते हैं. संविधान कहता है कि मनी बिल में सिर्फ टैक्स, सरकार के कर्ज लेने या देश के खजाने से पैसे निकालने की बातें हो सकती हैं. इस बिल को सिर्फ लोकसभा ही पास करती है, राज्यसभा अपनी राय दे सकती है.
हाल के दिनों में फाइनेंस बिल में ऐसी बातें शामिल की गईं जिनका टैक्स या सरकार के खर्च से कोई लेना-देना नहीं होता. जैसे कि साल 2017 के फाइनेंस बिल में 19 अर्द्ध न्यायिक निकाय (क्वासी-जुडिशियल बॉडीज) को बदल दिया गया था और 7 संस्थाओं को ही खत्म कर दिया गया था. इसी बिल में राजनीतिक पार्टियों को गुप्त रूप से दान देने की भी इजाजत दी गई थी. साल 2022 के फाइनेंस बिल में रिजर्व बैंक को डिजिटल नोट छापने की इजाजत मिली थी.