भारत ट्रेन दुर्घटनाओं से कब पाएगा मुक्ति ? आजादी के बाद से भारत में रेल हादसों का दाग हर सरकार पर लगा है …

भारत ट्रेन दुर्घटनाओं से कब पाएगा मुक्ति, हर सरकार पर लगा है ये ‘दाग’
रेलवे भारत की लाइफ लाइन मानी जाती है, इसलिए हर रेल हादसा राष्ट्रीय चिंता का विषय बन जाता है. हर सरकार सुधार का वादा करती है, पर बड़ी दुर्घटनाएं फिर भी नहीं रुकती हैं.

मगर भारत में ट्रेन दुर्घटनाएं एक गंभीर समस्या है जो दशकों से चली आ रही है. हाल ही में उत्तर प्रदेश के गोंडा में चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद एक बार फिर ये सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर भारत कब इन हादसों से मुक्ति पाएगा?

गोंडा में हुए रेल दुर्घटना की रेलवे और यूपी पुलिस मामले की जांच कर रही है. इस हादसे में 4 लोगों की जान चली गई और 32 लोग घायल हो गए. ट्रेन के ड्राइवर का दावा है कि रेल के पटरी से उतरने से ठीक पहले उन्हें एक धमाके की आवाज सुनाई दी थी.

ये इस साल दूसरा और बीते एक साल में चौथा बड़ा रेल हादसा है. इसी साल 17 जून को पश्चिम बंगाल के रंगपानी स्टेशन के पास सियालदह-अगरतला कंचनजंगा एक्सप्रेस एक मालगाड़ी से टकरा गई थी. इस दुर्घटना में कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई थी और 30 से ज्यादा घायल हुए.

  • 29 अक्टूबर 2023: आंध्र प्रदेश में विजयनगरम जिले के कोट्टावालसा जंक्शन रेलवे स्टेशन के पास विशाखापत्तनम-रायगढा और विशाखापत्तनम-पलासा पैसेंजर ट्रेनों की टक्कर होने से हादसा हो गया था. इस हादसे में 14 लोगों की मौत हो गई और 50 घायल हो गए.
  • 2 जून 2023: ओडिशा के बालासोर जिले में एक भयानक ट्रेन हादसा तब हुआ था जब कोलकाता के पास शालीमार रेलवे स्टेशन से चेन्नई जाने वाली 12841 कोरोमंडल एक्सप्रेस ने एक खड़ी मालगाड़ी को टक्कर मार दी, जिसके बाद 20 से ज्यादा डिब्बे पटरी से उतर गए. उसी समय दूसरी तरफ से तेज रफ्तार से हावड़ा जा रही 12864 SMVT बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस भी टकरा गई. इस हादसे में करीब 300 लोग मारे गए थे.

भारत ट्रेन दुर्घटनाओं से कब पाएगा मुक्ति, हर सरकार पर लगा है ये 'दाग

आखिर क्यों होते हैं ट्रेन हादसे?
भारत में अक्सर होने वाले ट्रेन हादसों के पीछे कई कारण होते हैं जिनमें से दो सबसे बड़े कारण हैं: पटरी से ट्रेन का उतरना और इंसानी चूक. सरकारी सुरक्षा रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत में 70% ट्रेन हादसे ट्रेनों के पटरी से उतरने के कारण होते हैं. इसी तरह CAG की 2022 की रिपोर्ट में भी बताया गया कि साल 2018 से 2021 के बीच हुए 10 में से 7 हादसे ट्रेनों के पटरी से उतरने की वजह से हुए थे. 

वहीं रेलवे कर्मचारियों की गलती से भी कई बार हादसे हो जाते हैं. थकान, लापरवाही, भ्रष्टाचार या सुरक्षा नियमों को न मानने की वजह से भी हादसे हो सकते हैं. क्योंकि रेलवे कर्मचारी ही ट्रेनों को चलाते हैं, उनकी देखरेख करते हैं और रेलवे ट्रैक का मैनेजमेंट करते हैं. लेकिन कई बार इनसे भी गलतियां हो जाती हैं. 

UPA vs NDA सरकार का रिपोर्ट कार्ड
इंडिया टुडे को मिले सरकारी आंकड़ों के अनुसार, यूपीए सरकार के कार्यकाल की तुलना में एनडीए सरकार के कार्यकाल में ट्रेन हादसों की संख्या में काफी गिरावट आई है. यूपीए शासन में 2004 से 2014 के बीच कुल 1711 रेल हादसे हुए थे, जबकि मार्च 2023 तक NDA सरकार में ये संख्या 638 थी. 

UPA शासन के दौरान ट्रेन हादसों में 2453 लोगों की मौतें हुईं और 4486 लोग घायल हुए थे. वहीं NDA शासन काल में 2023 तक 781 लोगों की मौत हुई है और 1543 लोग घायल हुए. 2004 से 2014 के बीच 867 ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाएं हुई. जबकि NDA शासनकाल में ये संख्या घटकर 426 रह गई. यानी यूपीए में हर साल औसतन 86.7 बार ट्रेनें पटरी से उतरती थीं, वहीं एनडीए सरकार में ये आंकड़ा घटकर 47.3 प्रति वर्ष हो गया. यूपीए में हर साल औसतन 171 बड़े ट्रेन हादसे होते थे.
एनडीए सरकार में ये संख्या घटकर 71 रह गई.

भारत ट्रेन दुर्घटनाओं से कब पाएगा मुक्ति, हर सरकार पर लगा है ये 'दाग

रेल सुरक्षा पर कितना खर्च
एनडीए सरकार ने 2015 से 2023 के बीच हर साल औसतन 10,201 करोड़ रुपये पटरी की मरम्मत पर खर्च किए, जबकि यूपीए शासन में 2005 से 2014 के बीच ये खर्च सिर्फ 4702 करोड़ रुपये सालाना था. सुरक्षा पर पिछले 9 सालों में रेलवे ने कुल 178,012 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. हर साल औसतन 17,801 करोड़ रुपये खर्च किए गए जो 2014 से पहले के सुरक्षा खर्च से करीब तीन गुना ज्यादा है.

हालांकि, रेल हादसों को पूरी तरह खत्म करना अभी भी एक चुनौती है. फिर भी आंकड़े बताते हैं कि रेल सुरक्षा की दिशा में सकारात्मक बदलाव हुआ है.

भारतीय रेल के इतिहास में सबसे खतरनाक दुर्घटना
6 जून 1981 को बिहार के बगहाट में एक भयानक हादसा हुआ. वहां मानसी से सहरसा जा रही पैसेंजर ट्रेन (416 डाउन) बहुत तेज रफ्तार में थी और उसमें काफी भीड़ थी. तभी अचानक से पुल पार करते वक्त ट्रेन के डिब्बे पटरी से उतर गए और तेज धार वाली बागमती नदी में जा गिरे. ये मानसून का मौसम था और नदी का जलस्तर पहले से ही काफी ऊपर था. इस हादसे में सैकड़ों लोगों की जान चली गई. तब देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी.

हादसे में मरने वालों की संख्या को लेकर सरकारी आंकड़े 800 से 2000 के बीच बताए गए. ये बता पाना नामुमकिन था कि आखिर कितने लोग उस ट्रेन में सवार थे. असल में ट्रेन के डिब्बे ठसाठस भरे हुए थे. कुछ रिपोर्ट्स में तो ये भी बताया गया कि सैकड़ों लोग छत पर या फिर डिब्बे के बाहर दरवाजे के पास खड़े होकर सफर कर रहे थे.

इसके अलावा, कई बार सिग्नल खराब होने की वजह से भी ट्रेन हादसे हो जाते हैं. पहले रेलवे क्रॉसिंग पर फाटक या सिग्नल नहीं हुआ करते थे, जिससे कई हादसे होते थे. ये बहुत खतरनाक होते थे. अब ब्रॉड गेज रेलवे पर ऐसे सारे फाटक हटा दिए गए हैं. वहीं कई बार रेलवे ट्रैफिक इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि रेलवे लाइनों की क्षमता से ज्यादा ट्रेनें चलने लगती हैं. इससे भी ट्रेनों में भीड़भाड़ बढ़ जाती है और हादसों का खतरा बढ़ जाता है. 

हर सरकार पर लगा है ये ‘दाग’ 
आजादी के बाद से भारत में रेल हादसों का दाग हर सरकार पर लगा है. बस अंतर इतना है कि कभी कम हादसे हुए तो कभी ज्यादा. 15 अगस्त 1947 से लेकर 24 मार्च 1977 तक पहले लगातार 30 साल कांग्रेस की सरकार की रही. तब देश में रेलवे नेटवर्क काफी सीमित था. इस दौरान देश में 65 बड़ी रेलवे दुर्घटनाएं हुईं और सैकड़ों लोगों की जान चली गई. पहले दशक में 19, दूसरे दशक में 16, तीसरे दशक में करीब 32 बड़े रेल हादसे हुए. 

इसके बाद पहली बार देश जनता पार्टी की सरकारी बनी, जिसने 14 जनवरी 1980 तक शासन किया. इस दौरान भी रेल हादसे हुए. इस दौरान करीब 24 बड़े रेल हादसे देखे गए. जनवरी 1980 में फिर कांग्रेस सरकार सत्ता में आ गई और दिसंबर 1989 तक शासन किया. इस दौरान करीब 20 रेल हादसे हुए. दिसंबर 1989 से जून 1991 तक जनता पार्टी और समाजवादी जनता दल की सरकारी करीब एक-एक साल रही. इस दौरान सिर्फ 5 रेल हादसे ही हुए.

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जून 1991 से मई 1996 तक कांग्रेस की सरकार रही. पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री रहे और इन पांच सालों के भीतर 16 रेल हादसे हुए. इनके बाद पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार आई. अटल बिहारी की सरकार सिर्फ 16 दिन ही चली, लेकिन इस बीच 14 मई केरल के अलप्पुझा के पास मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर एर्नाकुलम-कायाकुलम ट्रेन एक बस से टकरा गई, जिसमें 35 लोगों की मौत हो गई थी. 1 जून 1996 को जनता दल की फिर सरकार बनी. पहले 324 दिन एचडी देवगौड़ा और फिर 332 दिन इंदर कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने. इस बीच 9 बड़े रेल हादसे हुए. 

19 मार्च 1998 को दूसरी बार बीजेपी सरकार बनी और अटल बिहार प्रधानमंत्री बने. इस बार उनकी सरकार छह साल से ज्यादा चली. 22 मई 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी के शासन में देश में करीब 18 बड़े रेल हादसे हुए. इसके बाद देश में मनमोहन सरकार आ गई.

कैसे रुकेंगे ये रेल हादसे?
भारतीय रेलवे अब पहले से ज्यादा हाई-टेक हो रही है. यात्रियों के लिए डिब्बों और माल डिब्बों में कई सारे सुधार किए जा रहे हैं. अभी 18 जुलाई को गोंडा में हुआ रेल हादसा जितना भयानक था, उस हिसाब से जानमाल का बहुत कम नुकसान हुआ है. असल में चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्‍सप्रेस में LHB कोच लगे हुए थे. इससे कोच ज्‍यादा सुरक्षित रहते हैं. इससे कोच एकदूसरे टकराते नहीं है और दुर्घटना के वक्त आसानी से एकदूसरे पर चढ़ते नहीं है.

आजकल लगभग सभी ट्रेनों एलएचबी कोच का इस्तेमाल किया जा रहा है. माना जा रहा है इस वजह से नुकसान कम हुआ.  LHB कोच की बोगियां आमतौर पर लाल रंग की होती हैं. ये कोच स्टेनलेस स्टील से बने होते हैं. इस वजह से हादसा होने की स्थिति में ठोकर सहने की क्षमता बढ़ जाती है. इसके अलावा ये कोच आईसीएफ कोच के मुकाबले हल्‍के भी होते हैं.

इसके अलावा भी कई सुधार किए गए हैं. ट्रेनों के डिब्बों को जोड़ने वाले कपलर को मॉडिफाई किया जा रहा है ताकि टक्कर होने पर कम नुकसान हो. डिब्बों में अब आग लगने पर उसे तुरंत पता लगाने वाला सिस्टम लगाया जा रहा है ताकि किसी भी दुर्घटना को रोका जा सके. सिर्फ डिब्बों में ही नहीं, पूरे रेलवे नेटवर्क को सुरक्षित बनाने के लिए भी कई नए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है.

कवच एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है. यह सिस्टम ट्रेनों को आपस में टकराने से बचाता है. वहीं ब्लाक प्रूविंग एक्सल काउंटर (BPAC) एक ऐसा सिस्टम है जो रेलवे ट्रैक पर ट्रेन के आने-जाने का पता लगाता है. इस सिस्टम की मदद से यह सुनिश्चित होता है कि एक ही समय में एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें न आ जाएं.

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