यूपी में भाजपा की समीक्षा का निकलने लगा नतीजा ?

 यूपी में भाजपा की समीक्षा का निकलने लगा नतीजा…मौर्य को हद, सहयोगी दलों को सलाह और योगी को मिली छूट

लोकसभा चुनाव के परिणाम के आने के बाद से ही यूपी में भाजपा की मीटिंग का दौर लगातार चल रहा है. मीटिंग पर मीटिंग होती जा रही है, हालांकि उसका नतीजा अभी तुरंत तो कुछ खास सामने नहीं आ सका है, लेकिन संकेत जरूर मिलने लगे हैं. राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राष्ट्रीय महासचिव स्तर पर भी मीटिंग हुई. यूपी भाजपा के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी हाल में पीएम मोदी से मिल चुके हैं. उसके बाद करीब एक घंटे तक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मीटिंग हुई. हाल में ही केशव प्रसाद मौर्य भी दिल्ली में जाकर सबसे मिल चुके हैं.

योगी के खिलाफ हवा लगातार

2017 में यूपी का विधानसभा चुनाव हुआ और उसके बाद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. योगी आदित्यनाथ को सीएम बने करीब साढ़े सात साल हो गए. हर दो महीने पर ये प्रश्न और कयासबाजी होती रहती थी कि कि अब याेगी आदित्यनाथ को सीएम पद से हटाया जाएगा.

हवा तो ये भी उड़ाई गयी कि योगी आदित्यनाथ दिल्ली में मंत्री का पद संभालेंगे. एक सप्ताह पहले ये बात उठी कि याेगी को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान सौंपी जाएगी और वो यूपी के सीएम अब नहीं रहेंगे.

अब ये बात खुलकर सामने आ गई कि दिल्ली और लखनऊ में भाजपा की बीच एक टेंशन चल रहा था, क्योंकि ये बात पहले भी उठी थी कि अंदरखाने कुछ पक रहा है. लेकिन अब ये बात सामने आ चुकी है. यूपी में मुख्यमंत्री नहीं थे, तब भी केशव प्रसाद मौर्य ने विधायकों को धरना दिलवा दिया था. वह तो एक तरह से वोट डिविजन ही था, तो इस तरह से ये कहा जा सकता है कि केशव प्रसाद मौर्य का योगी को हटाने का दूसरा प्रयास था.

हार के बाद भाजपा की समीक्षा 

भाजपा वो अकेली पार्टी है जो समीक्षा कर रही है और ये दौर सबसे अधिक लंबे समय तक चलाया, क्योंकि यूपी में भाजपा का प्रदर्शन ठीक नहीं था. समाजवादी पार्टी के लिए उत्सव का माहौल होना चाहिए क्योंकि वह यूपी में अधिक सीटें लाई है और वो क्षेत्रीय पार्टी है. कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, इसके बावजूद उसकी यूपी समेत कई राज्यों में काफी कम सीटें आयी. ऐसे में उसके यहां अभी तक समीक्षा बैठक देखने को नहीं मिला है. कांग्रेस को 99 सीटें पूरे देश में आई हैं, तो ऐसे में राहुल गांधी ऐसा व्यवहार कर रहे हैं मानों वो सरकार में हैं.

हालांकि, एक हकीकत ये है कि भाजपा ने अपने कम सीटें आने के बाद समीक्षा बैठक की, चाहे उसका परिणाम जो भी आया हो. इसमें संगठन के मुखिया राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक के लोग शामिल रहे. उसमें योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अति आत्मविश्वास के कारण भाजपा को यूपी में हार मिली है. उस बात का कहीं ना कहीं जवाब देते हुए ही केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि संगठन सरकार से बड़ा होता है.  

केशव को खानी पड़ी मात 

उसके बाद उन्होंने पीएम मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलने का समय मांगा. हालांकि पीएम मोदी से तो मुलाकात नहीं हो पाई, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले. उसके बाद उनकी बॉडी लैंग्वेज में काफी बदलाव देखने को मिला. केशव प्रसाद माैर्य अति-आत्मविश्वास में ये कह गए कि संगठन सरकार से बड़ा है. ये बात तो केंद्र सरकार पर भी लागू होता है. एक ओर केशव प्रसाद को समय मांगने पर नहीं मिला तो दूसरी ओर पीएम मोदी ने भूपेंद्र चौधरी को बुलाकर उनसे करीब एक घंटे तक इस पर वार्ता की और फीडबैक लिया.

संगठन सरकार से बड़ा होता है ये बात सही है, लेकिन इसको कब और कैसे कहना चाहिए ये बात केशव प्रसाद को समझ नहीं आई. उसके बाद पीएम से केशव प्रसाद की मुलाकात नहीं हुई. केशव प्रसाद मौर्य अभी संगठन में कुछ भी नहीं हैं. इससे साफ संदेश केशव प्रसाद मौर्य को मिल गया है. इन सब बिंदुओं के बाद अमित शाह और मोदी की मीटिंग भी करीब एक घंटे तक हुई. उसके बाद अब रिजल्ट आ गया कि योगी सीएम थे और आगे भी रहेंगे. ये बातें कह कर केशव प्रसाद मौर्य दिल्ली चले गए. दूसरी तरफ, कांग्रेस 99 लोकसभा सीटों पर सिमट गई, लेकिन इस पर समीक्षा करने की उसने जहमत तक नहीं उठाई.

उपचुनाव में 10 सीटों पर भाजपा 

यूपी में 10 विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव होने हैं. 9 लोग सांसद बने हैं, जबकि एक इमरान सोलंकी जिनकी सदस्यता चली गई है, उस कारण से वहां पर चुनाव होना है. चुनाव की तैयारी को लेकर सरकार ने जबरदस्त तैयारी की है. लगभग 16 मंत्रियों की टीम बनाई है जिसमें एक सीट पर दो मंत्री रहकर देखभाल करेंगे.

योगी आदित्यनाथ ने ये साफ कर दिया कि वे काफी मजबूती से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. यूपी सीएम ने एक साफ संदेश अपने घटक दलों को भी दे दिया है जिसमें भाजपा सभी सीटों पर खुद ही चुनाव लड़ रही है और उसमें संजय निषाद जो मंत्री है उनको भी एक सीट की जिम्मेदारी दी गई है.

लोकसभा में कुछ सीटों के नुकसान होने के बाद जो घटक दलों की ओर से सवाल उठाए जा रहे थे, उसको दरकिनार करते हुए खुद ही इस उप-चुनाव को सेमी-फाइनल के तौर पर लिया है. योगी इस चुनाव को आने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव के सेमी-फाइनल के तौर पर देख रहे हैं.

सहयोगी दल को समझाया गया है और वो समझ गए है उसकी एक वजह है. सरकार में रहकर वो सारे सुविधाएं ले रहे हैं तो फिर उनको दस सीटों में क्यों हिस्सा चाहिए? अगर भाजपा ने अपनी सीटें खोई हैं तो सहयोगी दल भी तो अपने सीटें हारे हैं. इसलिए आज भी योगी आदित्यनाथ ही फ्रंट सीट पर है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  ………. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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