एक कृषि परिवार पर औसतन कर्ज करीब 74,121 रुपये है
भारत में किसानों के कर्ज की बड़ी वजह बन रही है शादियां?
भारत में शादियों को लेकर एक परंपरा रही है- धूमधाम से शादी करना, चाहे इसके लिए कितना भी कर्ज लेना पड़े या कितना भी खर्च करना पड़े. यह परंपरा कई परिवारों पर कर्ज का बढ़ा देती है.
शादी विवाह हर परिवार के लिए खुशी का मौका होता है, पर कभी-कभी ये बोझ बन जाता है. समाज में शादी को लेकर एक रीति-रिवाज है जिसके अनुसार शादी में दावत, महंगे कपड़े और गहने का होना जरूरी माना जाता है. छोटे किसान अक्सर सामाजिक दबाव में आकर अपनी क्षमता से ज्यादा खर्च कर देते हैं.
फिर शादी के लिए लिया गया कर्ज किसानों पर बोझ बन जाता है. कर्ज चुकाने के लिए उन्हें अपनी फसलें कम दाम पर बेचनी पड़ती है जिससे उनकी आय और कम हो जाती है. 2019 में हुए NSS 77वें दौर के सर्वेक्षण के आंकड़े इस परेशान करने वाली हकीकत को बिल्कुल स्पष्ट रूप से दिखाते हैं.
दिखावे की शादियां: गरीबों पर पड़ता है अमीरों का असर!
महीनों से चल रहे धूमधाम वाले प्री-वेडिंग फंक्शन्स के बाद आखिरकार हाल ही में अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की शादी संपन्न हुई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अंबानी की शादी में जो खर्च हुआ है, वो प्रिंस चार्ल्स और प्रिंसेस डायना की शादी पर हुए खर्च (लगभग 163 मिलियन डॉलर) को भी पार कर गया है. अंदाजा लगाया जा रहा है कि अनंत और राधिका की शादी में करीब 5000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. खबरों के अनुसार सिर्फ प्री-वेडिंग फंक्शन्स पर ही 300 मिलियन डॉलर यानी करीब 2250 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे.
इससे पहले साल 2018 में भारत के सबसे अमीर कारोबारी मुकेश अंबानी की बेटी ईशा अंबानी की शादी हुई थी. रिपोर्ट्स के अनुसार, इस शादी में करीब 100 मिलियन डॉलर (7600 करोड़) खर्च हुए थे. शादी समारोह कई अलग-अलग जगहों पर हुए थे. इसमें हिलेरी क्लिंटन और बेयॉन्से नॉलेस जैसी मशहूर विदेशी हस्तियां शामिल हुई थीं.
इसी तरह से 2016 में खनन कारोबारी और राजनेता गली जनार्दन रेड्डी की बेटी की शादी हुई थी. इस पांच दिनों के शादी फंक्शन में करीब 74 मिलियन डॉलर यानी करीब 5500 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस शादी में सोने के बने इन्विटेशन कार्ड, 50 हजार मेहमान और ब्राजील से बुलाए गए सांबा डांसर्स शामिल हुए थे.
2004 में स्टील कारोबारी लक्ष्मी मित्तल की बेटी वानीशा की शादी लंदन के इन्वेस्टमेंट बैंकर अमित भाटिया से हुई थी. इसमें करीब 60 मिलियन डॉलर यानी करीब 4500 करोड़ रुपये खर्च वाली शादी में एक हफ्ते तक जश्न मनाया गया था. 1000 मेहमानों में बॉलीवुड स्टार्स भी शामिल थे, जिन्हें फ्रांस ले जाया गया था. शादी में एफिल टॉवर पर आतिशबाजी और काइली मिनोग का प्राइवेट शो भी शामिल था.
अमीरों की शादियों की ये खबरें आम लोगों तक पहुंचती हैं और उन्हें लगता है कि शादी में इतना ही खर्च करना चाहिए. लेकिन आम लोगों के लिए इतनी शानदार शादी करना मुमकिन नहीं होता. इससे उन पर कर्ज लेने और अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च करने का दबाव बन जाता है.
शादी के लिए कर्ज: छोटे किसानों पर ज्यादा बोझ
यह सर्वे ग्रामीण भारत में रहने वाले किसान परिवारों पर कर्ज के बोझ को दर्शाता है. सर्वे के मुताबिक 50.2% से ज्यादा किसान परिवार कर्ज में हैं. एक कृषि परिवार पर औसतन कर्ज करीब 74,121 रुपये है. यह आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में कर्ज एक बहुत बड़ी समस्या है. बहुत सारे किसान कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं.
आंकड़ों के मुताबिक, शादी और दूसरे रस्मों के लिए लिए गए कर्ज का आकार, खेत के आकार से उल्टा संबंध रखता है. इसका मतलब है कि छोटे किसानों को बड़े किसानों के तुलना में शादी और दूसरी रस्मों के लिए ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है.
जिन किसानों के पास 0.01 हेक्टेयर से भी कम जमीन है उनके कुल बकाया कर्ज में से 12.8 फीसदी हिस्सा शादी और दूसरी रस्मों के लिए लिए गए कर्ज का होता है. इससे पता चलता है कि सबसे कम जमीन वाले किसानों को सामाजिक रस्मों को पूरा करने के लिए कर्ज पर बहुत ज्यादा निर्भर रहना पड़ता है.
दिलचस्प बात ये है कि आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ग के किसान अपने कुल कर्ज का 50.3 फीसदी प्रोफेशनल साहूकारों से लेते हैं और 10 फीसदी रिश्तेदारों और दोस्तों से लेते हैं.
जमीन जितनी कम, कर्ज का बोझ उतना ज्यादा
जिन किसानों के पास थोड़ी ज्यादा जमीन है उनके लिए भी शादी और दूसरे समारोहों पर लिया जाने वाला कर्ज कम होता जाता है, पर खत्म नहीं होता. 0.01 से 0.40 हेक्टेयर वाली जमीन रखने वाले किसान अपने कुल कर्ज का 9.8 फीसदी और 0.40 से 1 हेक्टेयर वाली जमीन रखने वाले 7.7 फीसदी कर्ज शादी वगैरह पर खर्च करते हैं. इन किसानों के लिए भी लिए गए कर्ज का 15 फीसदी से ज्यादा हिस्सा प्रोफेशनल साहूकारों से आता है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जिनके पास 1 हेक्टेयर से कम जमीन है उन्हें सीमांत किसान माना जाता है. 1 से 2 हेक्टेयर वाले किसान छोटे किसान माने जाते हैं. गौर करने वाली बात ये है कि देशभर के 86 फीसदी से ज्यादा किसान छोटे और सीमांत किसानों की श्रेणी में आते हैं. इनमें से एक बड़े हिस्से को कर्ज गैर-सरकारी संस्थाओं से लेना पड़ता है.
जमीन जितनी ज्यादा, कर्ज का बोझ उतना कम
जिन किसानों के पास 1 से 4 हेक्टेयर तक जमीन है उनके लिए भी शादी और दूसरे समारोहों पर लिया जाने वाला कर्ज और भी कम हो जाता है. 1 से 2 हेक्टेयर वाली जमीन रखने वाले किसान अपने कुल कर्ज का सिर्फ 5.8 फीसदी और 2 से 4 हेक्टेयर वाली जमीन रखने वाले 4.6 फीसदी कर्ज शादी वगैरह पर खर्च करते हैं. यानी कि जमीन का आकार जितना ज्यादा होता है, शादी और दूसरी रस्मों के लिए कर्ज लेने की जरूरत और साहूकारों पर निर्भरता उतनी ही कम होती जाती है.
जिन किसानों के पास 4 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन है उन पर कर्ज का बोझ और भी कम है. जैसे 4 से 10 हेक्टेयर जमीन रखने वाले किसान अपने कुल कर्ज का सिर्फ 5.3 फीसदी और 10 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन वाले किसानों पर 0.4 फीसदी कर्ज का बोझ है. इसका कारण ये हो सकता है कि संभव है क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है इसलिए कम कर्ज लेने की जरूरत पड़ती है या उनके पास कर्ज के अलावा पैसे जुटाने के और भी तरीके हो सकते हैं.
आखिर क्या है छोटे किसानों के साथ परेशानी?
छोटे किसानों पर कर्ज का बोझ ज्यादा होता है, इसकी एक बड़ी वजह सामाजिक दबाव है. आंकड़ों के मुताबिक, जिन किसानों के पास 0.01 हेक्टेयर से कम जमीन है उनके लिए गए कर्ज में से 93.1 फीसदी कर्ज तो खेती के अलावा दूसरी चीजों पर खर्च हो जाता है. 0.01 से 0.04 हेक्टेयर वाली जमीन रखने वाले किसान अपने कर्ज का 71 फीसदी और 0.41 से 1 हेक्टेयर वाली जमीन रखने वाले 54 फीसदी कर्ज गैर-कृषि कार्यों पर खर्च कर देते हैं.
छोटे किसानों को शादी और दूसरे समारोहों के लिए ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है. यह इस बात का संकेत हो सकता है कि कम आमदनी के बावजूद सामाजिक दबाव के चलते उन्हें रिश्तेदारों और समाज को खुश रखने के लिए शादी जैसे समारोह पर ज्यादा खर्च करना पड़ता है. ऐसे हालात में सामाजिक मान-मर्यादा और रीति-रिवाज आर्थिक समझदारी से ज्यादा अहम हो जाते हैं. यही वजह है कि छोटे किसानों को कर्ज लेकर सामाजिक दबाव पूरा करना पड़ता है.
आत्महत्या के कारणों में भी कर्ज का बोझ अहम
भारत मूल रूप से एक कृषि प्रधान देश है. यहां 45% से भी ज्यादा लोग खेती और उससे जुड़े कामों में लगे हुए हैं. लेकिन हाल के समय में खेती से जुड़े लोगों के लिए हालात काफी मुश्किल हो गए हैं. इतने मुश्किल कि 2022 में ही इस क्षेत्र के 11,000 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या कर ली.
सरकार ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के आधार पर बताया है कि खुदकुशी के पीछे कई कारण होते हैं जिनमें पारिवारिक कलह, बीमारी और आर्थिक परेशानी शामिल हैं. किसानों के मामले में कर्ज, फसल खराब होना, सूखा, सामाजिक-आर्थिक दिक्कतें और निजी परेशानियां मुख्य कारण माने जाते हैं. इन कारणों में शादी से जुड़ी समस्याएं, दहेज का झगड़ा और समाज में इज्जत कम होना भी शामिल है.
साल 2012 से 2020 के दौरान राज्य सरकारों ने कर्ज माफी के नाम पर ढाई लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए, मगर इसके बावजूद हाल के सालों में किसानों की परेशानी और बढ़ती ही गई है. बड़े पैमाने पर किसानों की आत्महत्या का मुद्दा सुर्खियों में आता रहता है.