सरकारी बंगलों के नियम ?

ये किसे मिलता है, क्या सुविधाएं होती हैं; सरकारी बंगलों के नियम 

दिल्ली के पंडारा रोड पर बंगला नंबर AB-5। टाइप-7 कैटेगरी के इस बंगले में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा 13 महीने से रह रहे हैं। 3 मार्च को राज्यसभा सचिवालय ने उन्हें ये बंगला खाली करने के लिए कहा था। राघव चड्ढा राज्यसभा सचिवालय के इस आदेश के खिलाफ पटियाला हाउस कोर्ट पहुंच गए। अब कोर्ट ने सचिवालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए बंगला खाली करने के लिए कहा है।

 राघव चड्ढा के बंगला विवाद की पूरी कहानी और दिल्ली में सरकारी बंगला अलॉट होने के नियम और कानून जानेंगे…

AAP सांसद राघव चड्ढा के बंगला विवाद की पूरी कहानी…
2 मई 2022 को राघव चड्ढा ने राज्यसभा सांसद के तौर पर शपथ ली। करीब दो महीने बाद 6 जुलाई 2022 को उन्हें दिल्ली के पंडारा पार्क स्थित बंगला नंबर- C-1/12 अलॉट किया गया। ये बंगला टाइप-6C कैटेगरी का है। इस तरह के बंगले में एक ड्राइंग रूम और तीन बेडरूम सेट होते हैं। हालांकि राघव को ये बंगला पसंद नहीं आया।

29 अगस्त को 2022 को उन्होंने राज्यसभा चेयरमैन को पत्र लिखकर टाइप-7 बंगला उन्हें अलॉट करने का आग्रह किया। राघव की अपील पर उन्हें 3 सितंबर 2022 को राज्यसभा कोटे से पंडारा रोड पर बंगला नंबर- AB-5 अलॉट किया गया। ये बंगला टाइप-7 कैटेगरी का है। 11 महीने पहले 9 नवंबर 2022 को राघव इस बंगले में शिफ्ट हुए थे।

शिफ्ट होने के 4 महीने बाद ही 3 मार्च को राज्यसभा सचिवालय ने AAP सांसद राघव चड्ढा को ये बंगला खाली करने के लिए नोटिस जारी किया। सचिवालय के इस आदेश के खिलाफ राघव चड्ढा पटियाला हाउस कोर्ट पहुंच गए। AAP सांसद ने कोर्ट में बताया कि बतौर सांसद अभी उनका कार्यकाल 4 साल से ज्यादा समय का बचा हुआ है। ऐसे में उनसे ये बंगला खाली नहीं कराया जाए।

18 अप्रैल को पटियाला हाउस कोर्ट ने राज्यसभा सचिवालय के इस आदेश पर रोक लगा दी थी। अब 6 अक्टूबर को दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने बंगला खाली करने के मामले में लगाई गई अंतरिम रोक हटा दी है। साथ ही कोर्ट ने बंगला खाली करने के लिए भेजे गए राज्यसभा सचिवालय के नोटिस को सही ठहराया है।

राघव के सरकारी आवास खाली करने के मामले में राज्यसभा सचिवालय के वकील ने कहा कि राघव चड्ढा को बंगला खाली करने का आदेश इसलिए दिया गया क्योंकि टाइप-7 बंगला पात्रता के अनुसार नहीं था। AAP सांसद टाइप-6 बंगला पाने के हकदार हैं।

राघव चड्ढा ने कोर्ट के इस फैसले के बाद कहा कि यह फैसला पूरी तरह से मनमाना है। राज्यसभा के 70 साल से ज्यादा समय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब एक सांसद को उसके आवंटित आवास से हटाने की मांग की जा रही है।

अदिल्ली के टाइप-6 और टाइप-7 के सरकारी बंगला में क्या अंतर है…

राघव की तरह पहली बार सांसद बनने वालों को कौन सा बंगला दिया जाता है?
राघव चड्ढा की तरह पहली बार सांसद बनने वालों को टाइप-5 और टाइप-6 बंगला दिए जाते हैं। टाइप-7 बंगले 5 बार के सांसद, केंद्रीय राज्य मंत्रियों, दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को आवंटित किया जाता है। टाइप-8 बंगला सबसे अच्छा माना जाता है। इसे कैबिनेट मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश इत्यादि को आवंटित किया जाता है।

लोकसभा सांसदों को देने के लिए दिल्ली में फिलहाल 517 आवास है। इसमें भी 159 बंगले हैं, 37 ट्विन फ्लैट, 193 सिंगल फ्लैट, 96 मल्टीस्टोरी फ्लैट और 32 यूनिट्स सिंगुलर रेगुलर घर हैं। ये सभी प्रॉपर्टी सेंट्रल दिल्ली के नॉर्थ एवेन्यू, साउथ एवेन्यू, मीना बाग, बिशम्बर दास मार्ग, तिलक लेन, विट्ठल भाई पटेल हाउस और बाबा खड़क सिंह मार्ग में है।

दिल्ली में नेताओं को बंगला अलॉट करने के नियम-कानून क्या हैं?
लोकसभा सदस्यों को दिल्ली में बंगले का आवंटन ‘डायरेक्टरेट ऑफ स्टेट्स’ करता है। यह मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स के तहत आता है। ‘डायरेक्टरेट ऑफ स्टेट्स’ के अंदर भी यह काम जनरल पूल रेसिडेंशियल एकॉमोडेशन यानी GPRA एक्ट के तहत किया जाता है। इसमें घरों के आवंटन के लिए केंद्र सरकार के जनरल पूल रेसिडेंशियल एकॉमोडेशन रूल्स 2017 का पालन किया जाता है।

GPRA में केंद्र सरकार का कोई भी कर्मचारी घर के लिए आवेदन कर सकता है, लेकिन अलॉटमेंट के लिए पे स्केल, ऑफिस और पोजिशन को देखा जाता है और उसी के अनुसार आवास दिए जाते हैं। इन आवासों के लिए सरकार की तरफ से एक मासिक किराया भी तय है। इसे सरकार मार्केट रेट के हिसाब से ही रखने की कोशिश करती है। इन घरों के रख-रखाव के लिए सरकार की तरफ से भत्ता भी दिया जाता है।

जिन सांसदों को आवास नहीं मिलता, वो कहां रहते हैं?
जिन सांसदों को सरकार बंगला नहीं दे पाती, वो सांसद दिल्ली के किसी भी होटल में सरकार के खर्चे पर रह सकते हैं। सांसद जितने दिन भी अपने काम से दिल्ली में ठहरता है उसका खर्च केंद्र सरकार उठाती है।

सरकार सांसदों के लिए होटल में अस्थायी आवास कैटेगरी के तहत भी रहने की व्यवस्था करती है। होटल में सिंगल सुइट दिया जाता है। यह तब तक के लिए होता है जब तक सरकार उस सांसद के लिए नियमित घर की व्यवस्था नहीं कर देती है।

बंगला खाली करवाना हो तो उसके लिए नियम क्या हैं?
राघव चड्ढा जैसे या अन्य इसी तरह के मामलों में सरकारी बंगला खाली कराने का भी एक कानून है। इसके लिए पब्लिक प्रिमाइसेस (एविक्शन ऑफ अनऑथोराइज्ड ऑक्यूपेंट्स एक्ट) का इस्तेमाल किया जाता है। कानून के नियमों के मुताबिक…

  • नोटिस मिलने के 30 दिन के अंदर बंगला खाली करने को कहा जाता है।
  • बंगला खाली नहीं करने वाले को 3 दिन में इस नोटिस का जवाब देना होता है।
  • जवाब में यह बताना होता है कि उन्हें प्रॉपर्टी को खाली करने का आदेश क्यों ना दिया जाए।
  • दोनों पक्षों में कोई विवाद होने पर शो-कॉज नोटिस भी जारी किया जाता है। फिर डायरेक्टरेट ऑफ स्टेट्स मामले की सुनवाई करता है। इतने के बावजूद भी कोई जवाब नहीं मिलता है तो बंगला खाली कराने के लिए राज्य बल प्रयोग कर सकता है।
  • 2019 में इस कानून में एक संशोधन के मुताबिक बंगला खाली नहीं करने पर अब 10 लाख रुपए तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

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