मैन्युफेक्चरिंग में ‘मात’ खा रहा भारत ?

मैन्युफेक्चरिंग में ‘मात’ खा रहा भारत, RBI सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा, जानें क्या होगा देश पर असर
आरबीआई के एक सर्वे से पता चलता है कि साल 2024-25 की पहली और दूसरी तिमाही में कई भारतीय कंपनियों की वृद्धि की गति धीमी हुई है.

भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में हालिया गिरावट से चिंता की लहर दौड़ गई है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के एक सर्वे के मुताबिक, कई उद्योगों में उत्पादन और मांग में कमी आई है, जिससे देश आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ने की आशंका जताई जा रही है. इस स्थिति का असर न सिर्फ उद्योगों पर पड़ेगा, बल्कि इससे रोज़गार के अवसर भी प्रभावित हो सकते हैं. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में हम विस्तार से समझते हैं कि आखिर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में हालिया गिरावट के कारण क्या है और इसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा?

क्या कहती है RBI की रिपोर्ट

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के हाल ही में एक सर्वे किया है जिसमें 1,300 मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों का डेटा शामिल है. इस सर्वे से पता चलता है कि साल 2024-25 की पहली और दूसरी तिमाही में इन कंपनियों की वृद्धि की गति धीमी हो रही है. इसका मतलब है कि कंपनियों का उत्पादन और बिक्री पहले के मुकाबले कम हो रहा है. ठीक इसी तरह, मैन्युफैक्चरिंग PMI, जो इस क्षेत्र की गतिविधियों का माप है, भी धीरे-धीरे घट रहा है. इसका मतलब है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सकारात्मक स्थिति कम हो रही है. 

मैन्युफेक्चरिंग में 'मात' खा रहा भारत, RBI सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा, जानें क्या होगा देश पर असर

RBI के सर्वे के मुताबिक, कंपनियों में उत्पादन के बारे में जो आशा या निराशा है, उसका अंतर (नेट रिस्पांस) 2024-25 की पहली तिमाही में 27.9 प्रतिशत से घटकर दूसरी तिमाही में 22.9 प्रतिशत हो गया है.

पिछले वित्तीय वर्ष की चौथी तिमाही में यह अंतर 34.4 प्रतिशत था. इसका मतलब है कि इस साल ज्यादा कंपनियों ने उत्पादन में गिरावट महसूस की है. सबसे बड़ी चिंता यह है कि कंपनियों ने तीसरी और चौथी तिमाही में उत्पादन की वृद्धि की उम्मीद में काफी कमी आने की बात कही है. 

RBI की सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि कच्चे माल की कीमतें, फाइनेंसिंग के खर्च, और वेतन भुगतान का दबाव अब कम हो गया है. इसके कारण, कंपनियों की बिक्री कीमतों और मुनाफे की उम्मीदें भी थोड़ी कम हुई हैं.

इस सर्वे में शामिल निर्माताओं ने 2024-25 की चौथी तिमाही और 2025-26 की पहली तिमाही के लिए उत्पादन, ऑर्डर, रोजगार, क्षमता उपयोग और समग्र व्यवसाय की स्थिति के बारे में बेहतर उम्मीदें जताई हैं. हालांकि, इनपुट लागत का दबाव अभी भी रहेगा, कंपनियां सोचती हैं कि वे अपनी कीमतें बनाए रख पाएंगी और मजबूत मांग के कारण बिक्री कीमतों में बढ़ोतरी कर सकेंगी. 

PMI में गिरावट

आरबीआई के सर्वे के अलावा भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का मासिक खरीद प्रबंधक सूचकांक (PMI) भी गिरावट दर्ज किया गया है. न्युफैक्चरिंग सेक्टर का पीएमआई जो साल 2024 के अप्रैल महीने में 58.8 था, फिर जून में थोड़ा कम होकर 58.3 पर रहा. वहीं अगस्त 2024 में यह और गिरकर 57.5 पर आया, और सितंबर 2024 में यह और घटकर 56.5 पर पहुंच गया.

ग्लोबल रिसर्च कंपनी नोमुरा की रिपोर्ट में भी इसी तरह की स्थिति बताई गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार का खर्च आने वाले महीनों में बढ़ सकता है, लेकिन फिर भी वृद्धि की गति धीमी रहेगी. 

भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट के क्या हैं कारण 

1. भौगोलिक संघर्ष और वैश्विक समस्याएं: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव और संघर्षों ने सप्लाई चेन में बाधाएं उत्पन्न की हैं. इससे कच्चे माल की उपलब्धता और लागत पर प्रभाव पड़ा है, जिससे उत्पादन में रुकावट आई है. 

2. ऊर्जा लागत में वृद्धि: ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी से मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों का संचालन महंगा हो गया है. उच्च ऊर्जा लागत ने उत्पादन खर्चों को बढ़ाया है, जिससे लाभ मार्जिन में कमी आई है.

3. सख्त मौद्रिक नीति: केंद्रीय बैंक के ब्याज दरों में बढ़त होने के कारण ऋण लेना महंगा हो गया है. यह स्थिति व्यवसायों के लिए नए निवेश और विस्तार में रुकावट डाल रही है.

4. कमजोर मांग: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता मांग में कमी आई है. लोग खर्च करने में सतर्कता बरत रहे हैं, जिससे कंपनियों की बिक्री प्रभावित हो रही है.

5. उच्च इनपुट लागत: कच्चे माल, श्रम, और अन्य संसाधनों की लागत में बढ़ोतरी ने मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को प्रभावित किया है. इससे उत्पादन की क्षमता में कमी आई है.

6. पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय समस्याएं भी मैन्युफैक्चरिंग पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं, जिससे कंपनियां अनिश्चितता का सामना कर रही हैं.

7. तकनीकी बदलाव: तेजी से बदलती तकनीक और औद्योगिक स्वचालन के कारण कंपनियों को अपने उत्पादन के तरीके बदलने की आवश्यकता हो रही है, जो एक चुनौती हो सकती है.

मैन्युफेक्चरिंग में 'मात' खा रहा भारत, RBI सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा, जानें क्या होगा देश पर असर

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट का देश पर क्या हो सकता असर

भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट का व्यापक असर हो सकता है. सबसे पहले, यह आर्थिक विकास में रुकावट पैदा कर सकता है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसकी गिरावट से GDP वृद्धि दर धीमी हो सकती है, जिससे पूरा आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है.

इस गिरावट का एक अन्य प्रमुख प्रभाव रोजगार के अवसरों में कमी है. मैन्युफैक्चरिंग में गिरावट के कारण कई नौकरियों पर खतरा हो सकता है. कंपनियां उत्पादन में कमी लाने के लिए कर्मचारियों की संख्या घटा सकती हैं, जिससे बेरोजगारी बढ़ेगी और लोगों की आय में कमी आएगी.

निवेश में कमी भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. जब मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट होती है, तो निवेशक नई परियोजनाओं में निवेश करने से हिचकिचाते हैं. इससे दीर्घकालिक विकास संभावनाएँ कमजोर हो जाती हैं, और यह आर्थिक स्थिरता को भी प्रभावित कर सकता है.

उपभोक्ता मांग भी गिर सकती है. मैन्युफैक्चरिंग में गिरावट के कारण उत्पादों की उपलब्धता में कमी आ सकती है, जिससे उपभोक्ता मांग और भी कमजोर हो जाएगी. यह स्थिति एक नकारात्मक चक्र पैदा कर सकती है, जिससे बाजार में कमी आएगी. इसके अलावा विदेशी व्यापार पर भी असर पड़ सकता है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गिरावट से निर्यात में कमी आ सकती है, जो भारत के विदेशी व्यापार संतुलन को प्रभावित करेगा. इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

महंगाई में वृद्धि भी एक चिंता का विषय हो सकती है. कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी और उत्पादन में कमी के कारण महंगाई बढ़ सकती है. इससे उपभोक्ताओं पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा, जिससे उनकी खरीदारी क्षमता प्रभावित होगी. 

इसके अलावा तकनीकी विकास में भी रुकावट आ सकती है. मैन्युफैक्चरिंग में गिरावट से नई तकनीकों को अपनाने में देरी हो सकती है, जिससे उद्योग की प्रतिस्पर्धा और विकास में कमी आएगी. अंत में, यदि आर्थिक स्थिति बिगड़ती है और बेरोजगारी बढ़ती है, तो इससे सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है, जो एक गंभीर समस्या बन सकता है.

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