स्कूल बैग की संस्कृति में हम कुछ कर सकते हैं?

स्कूल बैग की संस्कृति में हम कुछ कर सकते हैं?

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय स्कूलों में दस दिन बिना बैग की एक गाइडलाइन पर काम कर रहा है, हो सकता है कि जल्द ही ये पूरे देश में लागू हो जाए। उस दौरान विद्यार्थियों को व्यावहारिक कौशल सिखाने के लिए स्कूल परिसर के बाहर का दौरा कराया जाएगा।

भारी स्कूल बैग वर्षों से स्कूल अथॉरिटी के लिए एक मुद्दा हैं, कोर्ट ने भी राज्य सरकारों को अनिवार्य किया है कि वे बैग का वजन सीमित करने संबंधी नीति बनाएं। कुछ स्कूल वैकल्पिक पुस्तकालय में संसाधनों के बेहतर उपयोग को बढ़ावा देने और भारी बैग के बोझ को कम करने के लिए क्विज़, समूह चर्चा, विशेष पठन सत्र जैसी वैकल्पिक शिक्षण गतिविधियों में हाथ आजमा रहे हैं।

कुछ स्कूलों में खेलकूद में शामिल बच्चों के लिए लॉबी में ड्रॉप ऑफ टब होते हैं, जबकि कक्षा तीन से आठवीं तक पाठ्यपुस्तकों और नोटबुक को एकसाथ किया गया है। कई लोग “नो-बैग डे’ को आशाजनक समाधान के रूप में देखते हैं।

मेरा प्रश्न है कि क्या एक वर्ष के लिए दस दिन बिना बैग की नीति में, स्कूल बैग के वजन जैसे मुद्दे हल करने की पर्याप्त क्षमता है? या हमें जापानी पद्धति अपनानी चाहिए? वहां के स्कूलों में डिब्बे जैसा, मोटा बैग पैक (randoseru) ले जाने का नियम उस देश में किसी ने भी नहीं थोपा है, लेकिन स्कूल जाने वाला हर बच्चा रेन्दोसेरु ले जाता है।

वहां परंपरा है कि पहली कक्षा के सारे बच्चों की स्कूल के पहले दिन माता-पिता के साथ तस्वीर ली जाती है। स्कूल के सामने खींची गई तस्वीर को जब आप देखेंगे तो दिखेगा कि हर बच्चे की पीठ पर रेन्दोसेरु है। हालांकि इसके रंग का नियम नहीं है, पर अधिकांश लड़कियां लाल और लड़के काला रेन्दोसेरु ले जाते हैं। कुछ ब्राउन भी ले जाते हैं।

रेन्दोसेरु ले जाना उतना ही आम है जितना कतार में धैर्यपूर्वक खड़े होना, ज्यादातर समय मास्क पहनना, ट्रैफिक सिग्नल का पालन करना, और खेल आयोजन के बाद दर्शकों द्वारा वहां की सफाई क्योंकि उन्हें किंडरगार्टन से ही ऐसा करने के लिए ट्रेन्ड किया गया है।

जापान में कुछ आदतें सांस्कृतिक अपेक्षाएं हैं। बड़े-बुजुर्ग, स्कूल अधिकारी बच्चों के साथ इनकी बार-बार ड्रिल करते हैं, जबकि पीयर प्रेशर भी अपना खेल दिखाता रहता है। कम से कम कम सतही स्तर पर तो यह जापानी समाज को आराम से चलाने में मदद करता है।

रेन्दोसेरु का टोटेमिक स्टेटस यानी हर कोई वही डिजाइन इस्तेमाल करता है, इसकी जड़ें 19वीं सदी में मिलती है, जब जापान अलग-थलग सामंती साम्राज्य से आधुनिक राष्ट्र में बदला। उनका मानना था कि शैक्षिक प्रणाली एक साझा संस्कृति के साथ एक ही राष्ट्र में स्वतंत्र जागीरों को एकजुट कर सकती है।

इसलिए स्कूलों ने इस विचार को जन्म दिया कि हर कोई एक जैसा है, हर कोई परिवार है। 1885 में शिक्षित जापान के शाही परिवार गाकुशुइन ने स्कूल के लिए हैंड्स-फ्री मॉडल बैकपैक पेश किया, जो उन्हें नीदरलैंड से मिला था, जिसे ‘रैंसल’ नाम से जाना जाता था।

वहां से रेन्दोसेरु बचपन की पहचान बन गया और अब तक है। मैं ऐसी कुछ कंपनियां जानता हूं, जो कर्मचारियों के बच्चों को रेन्दोसेरु तोहफे में देती हैं। सोनी जैसी बड़ी कंपनियां उन कर्मचारियों के लिए रेन्दोसेरु सेरेमनी आयोजित करती हैं, जिनके बच्चे पहली कक्षा में प्रवेश ले रहे हैं और उन्हें ये बैकपैक देती हैं। यह उन कर्मचारियों के बीच एक अपनत्व स्थापित करने के लिए है।

फंडा यह है कि हमें क्या करना चाहिए? क्या वजन कम करना चाहिए या बच्चों को भारी स्कूल बैग ले जाने की ट्रेनिंग देना चाहिए? क्या इसमें एकरूपता है? आपको नहीं लगता कि हमें ऐसी संस्कृति जल्द से जल्द लानी चाहिए जो सदियों तक बनी रहे और कई पीढ़ियां इसे अपनाएं?

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