भोपाल : 8 लाख आबादी जलसंकट से जूझेगी !
यूं ही गाद आती रही तो दो दशक में न प्रवासी पक्षी आएंगे, न शुद्ध हवा मिलेगी; 8 लाख आबादी जलसंकट से जूझेगी
पिछले 25 साल में बड़े तालाब की जलग्रहण क्षमता करीब 26 अरब करोड़ लीटर घटी
कुदरत ने भोपाल को पेड़, पहाड़ियों और तालाबों के तोहफों से नवाजा है। सबसे बड़ी धरोहर है बड़ा तालाब। मानसून की शुरुआत से पहले जिस बड़े तालाब में पानी का लेवल 1658 फीट था, वह एक महीने में ही बढ़कर 1664.70 फीट पर आ गया है। यानी दो फीट पानी और आने पर भदभदा के गेट खुल जाएंगे।
लेकिन तालाब में बढ़ता यह जलस्तर देख खुश होने की बजाय चिंता होती है कि राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में जो तालाब बनाया था वह 21वीं शताब्दी के मध्य तक बचेगा भी या नहीं? जिस तेजी से तालाब में गाद और सीवेज आ रहा है उसके कारण तालाब उथला हो रहा है। यानी वह नीचे से भर रहा है। यह सिलसिला नहीं रुका तो अगले दो दशक में अंतरराष्ट्रीय महत्व का यह वेटलैंड अपनी पहचान खो देगा। यानी यहां न तो प्रवासी पक्षी आएंगे और न शुद्ध हवा मिलेगी। पुराने शहर की 8 लाख आबादी के लिए पेयजल का संकट भी खड़ा हो जाएगा।
आज तकिया टापू और वन विहार के बीच सबसे ज्यादा 3 मीटर तक गाद जमा हो चुकी है। इसके अलावा बैरागढ़, लहारपुर और तालाब में पानी आने वाली हर जगह पर गाद जमा हो रही है। एसटीपी के बावजूद मिल रहा सीवेज भी पानी को खराब कर रहा है। 1947 तक तालाब का पानी ए कैटेगरी का था यानी इसे बिना फिल्टर किए पिया जा सकता था। अभी सी कैटेगरी का है। यानी इसे साफ कर पेयजल की तरह उपयोग कर सकते हैं। लेकिन यही हाल रहे तो यह डी कैटेगरी का हो जाएगा और फिल्टर के बाद भी इसे पीना संभव नहीं होगा।
पहले तालाब पूरा भरने पर इसमें 101.60 अरब लीटर पानी आता था
अब बड़े तालाब में 75.72 अरब लीटर पानी ही आता है
25 फीसदी कम हो चुकी है तालाब की कैपेसिटी
- 1999 में भोज वेटलैंड प्रोजेक्ट में सामने आया कि तालाब में आ रही गाद से हर साल जलग्रहण क्षमता 36 करोड़ लीटर कम हो रही थी।
- 2014 में सेप्ट की रिपोर्ट- हर साल क्षमता 1 अरब 71 करोड़ 80 करोड़ लीटर कम हो रही है।
- 2022 में हुई स्टडी में सामने आया कि गाद से जलग्रहण क्षमता में 25.88 अरब लीटर की कमी आ चुकी है।
आसान नहीं है तालाब से गाद निकालने की प्रक्रिया
भोज वेटलैंड के समय गाद निकालने के लिए बनी डीपीआर में कहा गया कि तालाब के संवेदनशील क्षेत्र को छोड़ शेष हिस्से से 2 मीटर गाद भी निकाल दी जाए तो कैपेसिटी 40 करोड़ लीटर बढ़ जाएगी। लेकिन इसमें 400 करोड़ खर्च होंगे और 20 साल लगेंगे। इसी आधार पर भदभदा स्पिल चैनल सहित चार जगहों से कुल 29 लाख 35 हजार क्यूबिक मीटर गाद निकाली भी गई थी।
यूं बचेगा तालाब… मानवीय गतिविधियां कम करनी होंगी
तालाब का मास्टर प्लान बनाने के लिए तैयार हुई सेप्ट रिपोर्ट में इसकी जैव विविधता और पानी की क्वालिटी सहित पूरे अस्तित्व को बचाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मानवीय गतिविधियों पर प्रतिबंध की अनुशंसा की गई थी। साथ ही पूरे कैचमेंट एरिया के लिए अलग से प्लान बनाना होगा ताकि कोलांस के रास्ते में अतिक्रमण न हों और नेचुरल फ्लो बना रहे।
बड़ा तालाब बचाना क्यों जरूरी
पौधों, पक्षियों और जीवों की सैकड़ों दुर्लभ प्रजातियों का घर
बड़े तालाब और आसपास की बायो डायवर्सिटी के कारण 2002 में इसे रामसर साइट की अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। रामसर कंवेंशन के तहत यहां जलभराव और जलग्रहण क्षेत्र दोनों को बचाने के प्रावधान किए जाते हैं।
- साल 2000 में यहां जीव और वनस्पतियों की 800 प्रजातियां थीं। लेकिन पिछले दो दशक में इसकी बायो डायवर्सिटी में तेजी से गिरावट आई है और यह संख्या घट रही है।
- साल 2022 में बायो डायवर्सिटी बोर्ड की रिपोर्ट थी कि बड़े तालाब में 223 तरह के जलीय पौधे हैं। इनमें से 103 दुर्लभ घोषित किए हैं।
- प्रवासी पक्षियों की 125 प्रजातियां यहां आती हैं। यहां कुल 210 पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। पिछले साल बर्ड काउंट में 155 प्रजातियों के 30 हजार पक्षी मिले थे।
- 86 प्रजातियों की 32 हजार तितलियां पाईं जाती हैं। इनमें एक दर्जन से अधिक दुर्लभ प्रजातियों की तितलियां भी शामिल हैं।
- एप्को की साल 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक यहां जीव और वनस्पतियों की 182 प्रजातियां रह गई हैं। अब यहां वह प्रजातियां ज्यादा पाई जाने लगी हैं जो सीवेज वाटर में पनपते हैं।