देश भर में फैले ये कोचिंग संस्थान लाभ कमाने वाली मशीनें हैं !
‘वे तो बस पढ़ रहे थे’: शहरों में अवैध निर्माण बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित व सामान्य; छात्रों की मौत से उजागर
कुछ वर्ष पहले देहरादून में एक साहित्यिक कार्यक्रम में मैं एक युवा लड़की से मिली। वह मुझसे मिलने के लिए बेहद उत्साहित थी, क्योंकि उत्तराखंड के एक छोटे-से शहर से निकलकर मैं दुनिया में अपनी जगह बना रही थी। वह बागेश्वर के सुदूर इलाके से थी और मुझसे आगे भी संपर्क बनाए रखने के लिए वह मेरा मोबाइल नंबर मांग रही थी। मैंने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया। मैं भी उसके संपर्क में रहने से काफी खुश थी और अगले दो वर्षों तक हमारे बीच छिटपुट संवादों का आदान-प्रदान होता रहा।
उसकी एकमात्र समस्या किराये के घर की थी। वह आवास पर हर महीने 10,000 रुपये खर्च करने के लिए तैयार थी, लेकिन दिल्ली में अधिकांश आवासों, यहां तक कि साझे आवास का किराया भी कम से कम 15,000 रुपये प्रति माह या उससे अधिक था। इसके अलावा, वह दिल्ली में किसी को भी नहीं जानती थी और उसे अपना रास्ता खुद ही तलाशना था। मेरे तमाम तर्कों के बावजूद उसने अपना मन बना लिया था।
मुझे एहसास हुआ कि वहां एक समानांतर संस्कृति मौजूद थी, और वह थी-आईएएस एस्पिरेंट की संस्कृति। यह एक ऐसी संस्कृति है, जिसमें न कोई बाध्यता है और न ही कोई बंधन। इस संस्कृति की यही विशेषता है कि जब कोई इन युवाओं से पूछता है कि आजकल क्या कर रहे हो, तो ये पूरी शान से जवाब देते हैं कि आईएस की तैयारी कर रहे हैं। कोचिंग संस्थान से ज्यादा वह लड़की समाज और लिंग द्वारा निर्धारित सीमाओं से परे अपनी आकांक्षाओं के गहन अनुभव की तलाश कर रही थी। उसके लिए अपने जैसे सपने देखने वाले लोगों के बीच रहना ही एक बड़ी प्रेरणा थी, इसलिए इन कोचिंग सेंटरों पर पैसे खर्च करना, जिसमें वह सक्षम नहीं थी, उसके लिए कोई मुद्दा नहीं था।
वास्तव में, देश भर में फैले ये कोचिंग संस्थान लाभ कमाने वाली मशीनें हैं, जो पारंपरिक गुरु-शिष्य परंपरा को मौद्रिक मूल्य में तब्दील कर रहे हैं। इनका व्यावसायीकरण बहुत ही स्पष्ट है, परीक्षा इतनी प्रतिस्पर्धी है कि युवा पढ़ाई करने और जीवन बदलने वाली वास्तविकता को हासिल करने के लिए देश भर में यात्रा करते हैं। यह बताने की जरूरत नहीं है कि ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो अपने सपने को हकीकत में बदल पाते हैं। लेकिन उनकी व्यक्तिगत और सामूहिक कमजोरी का शोषण करना एक गंभीर मामला है, खासकर तब, जब तीन युवा अभ्यर्थी इन लाभ कमाने वाले कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में अपनी जान गंवा देते हैं। वे कोई असाधारण काम नहीं कर रहे थे, जिनमें जोखिम था, बल्कि वे महज पढ़ाई कर रहे थे।
यह एक हृदय विदारक घटना है कि देश के तीन अलग-अलग हिस्सों के माता-पिता अपने बच्चों को अंतिम विदाई दे रहे हैं और हमें यह दुखद एहसास हो रहा है कि हमारी व्यवस्था की गंदगी और भ्रष्टाचार हमारे युवाओं को अपनी कमाई का शिकार बना रहा है। राव कोचिंग सेंटर अपने बेसमेंट में लाइब्रेरी चला रहा था। इस त्रासद घटना की शाम भारी बारिश के कारण लाइब्रेरी में पानी घुस गया। ज्यादातर विद्यार्थ तो भागकर जान बचाने में सफल रहे, लेकिन तीन विद्यार्थी उस शाम हुई बारिश के पानी में डूब गए। इसे दुर्घटना नहीं, बल्कि हत्या ही कहा जा सकता है। बेसमेंट में नियमों का उल्लंघन करके लाइब्रेरी बनाई गई थी, जिसे नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण स्पष्ट रूप से अनदेखा किया गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय पार्षद खुद सभी नियमों का उल्लंघन करने वाले कोचिंग सेंटर के पास की एक इमारत की मालकिन हैं। जब जिम्मेदार लोग नियमों का उल्लंघन करते हैं, तो उससे साफ है कि भ्रष्टाचार व्यवस्थागत और सामाजिक रूप से सामान्य बात हो गई है। हालांकि, किसी त्रासदी से पहले अगर कोई भी कार्रवाई की जाती है या अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाया जाता है, तो वही उल्लंघनकर्ता पीड़ित बन जाते हैं। तीन विद्यार्थियों की दुखद मौत ने अंततः यह उजागर किया है कि हमारे शहरी विस्तार में अवैध निर्माण कैसे बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित, समायोजित और सामान्य है।
सीमित बजट और हाथ में वोट का अधिकार होने के साथ भारत के अधिकांशतः मध्यवर्गीय परिवारों से निकले ये युवा परिवारों के प्रोत्साहन से अपने सपनों को पूरा करने के लिए बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं। हालांकि वे अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित होते हैं। अगले कुछ वर्ष या तो उनके और उनके परिवार के जीवन को बदल सकते हैं, या आकांक्षाओं के सागर में वे एक बूंद के समान अपना अस्तित्व खो सकते हैं, फिर भी वे इस अवसर या चुनौती को स्वीकार करने को तैयार रहते हैं। लेकिन यह ऐसा अवसर या ऐसी चुनौती नहीं है, जिसकी वजह से उन्हें अपनी जान गंवानी पड़े।
एक से ज्यादा विद्यार्थियों ने कोचिंग सेंटर और एमसीडी अधिकारियों को बाढ़ की आशंका के बारे में बताया था, लेकिन हर बार उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। जैसा कि आंसुओं से लबरेज एक छात्रा ने एक पत्रकार से पूछा, ‘इससे ज्यादा मैं और क्या कर सकती थी?’ अब समय आ गया है कि हम यह सवाल उनसे पूछें, जो उनकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं। आज महत्वाकांक्षी और नए भारत के ये युवा व्यवस्था की उदासीनता और भ्रष्टाचार के कारण अनाथ हो गए हैं।