महिलाओं का खतना बन रहा है पूरी दुनिया के लिए चिंता की वजह !

महिलाओं का खतना बन रहा है पूरी दुनिया के लिए चिंता की वजह
महिलाओं का खतना एक गंभीर मुद्दा है जो वैश्विक चिंता का विषय है. दुनियाभर में महिलाओं का खतना मानवाधिकार का उल्लंघन माना जाता है. ये लड़के और लड़की के बीच बराबरी न करने की सोच को दिखाता है.

दुनियाभर में करीब 23 करोड़ लड़कियों और महिलाओं के साथ खतना जैसी क्रूरता हुई है. इनमें से बहुत सी लड़कियां 15 साल से भी कम उम्र की थीं. ये काम पूरी दुनिया में गैर-कानूनी है लेकिन फिर भी ऐसा होता रहता है. खतने से महिलाओं के शरीर और दिमाग को बहुत बुरा असर पड़ता है, चाहे ये कहीं भी और कैसे भी किया जाए.

महिलाओं के खतने को महिला जननांग विकृति (FGM) भी कहते हैं. इसका मतलब है कि लड़कियों या महिलाओं के शरीर के निचले हिस्से को काट देना या उसमें कोई चोट पहुंचाना. ये बिना किसी मेडिकल वजह के किया जाता है. ज्यादातर ये काम छोटी लड़कियों के साथ किया जाता है, जब वो 15 साल से छोटी होती हैं. इस तरह की क्रूरता हर जगह गैर-कानूनी है और ये महिलाओं के अधिकारों का बहुत बड़ा उल्लंघन है.

महिलाओं का खतना कितना खतरनाक
महिलाओं के खतने से कोई फायदा नहीं होता, बल्कि इससे बहुत सारी दिक्कतें हो सकती हैं और कभी-कभी जान भी जा सकती है. जब ये किया जाता है तो बहुत दर्द होता है, खून ज्यादा बह सकता है, शरीर में सूजन आ सकती है, बुखार आ सकता है, इंफेक्शन हो सकता है, पेशाब करने में दिक्कत हो सकती है, घाव ठीक नहीं हो पाता, आस-पास की जगहों को भी नुकसान पहुंचता है, शरीर में झटका लग सकता है और कभी-कभी तो मौत भी हो जाती है.

यूनिसेफ (unicef) के अनुसार, इससे लड़की का मन भी बहुत दुखता है. वो अपने घरवालों पर भरोसा नहीं कर पाती और हमेशा उदास रहती है. बड़े होने पर प्रेग्नेंसी के समय बहुत समस्या हो सकती है. बच्चे के जन्म के बाद बहुत खून बह सकता है, बच्चा मर सकता है या उस महिला की भी मौत हो सकती है.

ये परंपरा लड़के और लड़की के बीच के बराबरी न होने की सोच को दिखाती है. कई जगहों पर ऐसा भी देखा गया है कि डॉक्टर भी एफजीएम करने लगे हैं क्योंकि लोग सोचते हैं कि डॉक्टरों के पास ये सुरक्षित होता है. लेकिन डब्ल्यूएचओ कहता है कि डॉक्टरों को ये बिल्कुल नहीं करना चाहिए. 

महिलाओं का खतना बन रहा है पूरी दुनिया के लिए चिंता की वजह

डॉक्टर भी करते हैं ये जुल्म
डॉक्टरों को लगता है कि अगर वो एफजीएम करते हैं तो उससे कम नुकसान होगा क्योंकि उनको सही तरीका पता है और साधन भी उपलब्ध हैं. कुछ डॉक्टर सोचते हैं कि अगर वो एफजीएम करेंगे तो धीरे-धीरे करके लोग इसे करना बंद कर देंगे.

जो डॉक्टर एफजीएम करते हैं वो भी उन्हीं समाजों से आते हैं जहां ये होता है और उन पर भी वही दबाव होता है. हो सकता है कि पैसे कमाने के लिए भी डॉक्टर ये करें. लेकिन डब्ल्यूएचओ कहता है कि डॉक्टरों को ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए. अब डब्ल्यूएचओ की मदद से बहुत से डॉक्टर ये समझने लगे हैं कि एफजीएम गलत है और इसे परंपरा बंद होनी चाहिए. 

क्यों किया जाता है FGM?
कुछ लोग इसे एक रस्म या प्रथा समझते हैं. हर जगह इस प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण होते हैं. ये समय के साथ भी बदलते रहते हैं. ये सब परिवार और समाज से जुड़े कारण होते हैं. जहां महिलाओं का खतना आम बात है, वहां लोग दबाव में आकर ऐसा करते हैं कि दूसरे लोग ऐसा कर रहे हैं, इसलिए हमें भी करना चाहिए. अगर कोई ऐसा नहीं करता तो उसे समाज से निकाल दिया जाता है.

कुछ लोग सोचते हैं कि लड़की को बड़ा करने के लिए ये करना जरूरी है और शादी के लिए तैयार करना है. कुछ लोग ये भी सोचते हैं कि इससे लड़की की इच्छाएं कम हो जाती है और वो शादी के बाद वफादार रहेगी. हालांकि इस्लाम या ईसाई जैसे किसी भी धर्म में ऐसा नहीं लिखा है कि ये करना जरूरी है. कुछ धर्म गुरु इसके खिलाफ भी बोलते हैं. फिर भी लोग धर्म के नाम पर इसे सही ठहराते हैं.

कई जगहों पर लोग इस प्रथा के खिलाफ भी हैं. यहां तक कि लड़के भी इसके खिलाफ हैं. इसका मतलब है कि बहुत से लोग चाहते हैं कि ये प्रथा खत्म हो जाए. अफ्रीका और मिडिल ईस्ट के उन देशों में जहां ये प्रथा सबसे ज्यादा चलन में है, वहां के दो-तिहाई लोग चाहते हैं कि ये बंद हो जाए. ऐसे करीब 40 करोड़ लोग हैं.

लंबे समय तक रहने वाले नुकसान
इस जुल्म के बहुत सारे बुरे असर लंबे समय तक रहते हैं. जैसे पेशाब करते समय दर्द. योनि से जुड़ी समस्याएं जैसे पानी जैसी चीज आना, खुजली, बैक्टीरिया से होने वाले इंफेक्शन और दूसरे इंफेक्शन. पीरियड्स से जुड़ी समस्याएं जैसे पीरियड्स के दौरान बहुत दर्द, पीरियड्स का खून अच्छे से निकल नहीं पाना. घाव का निशान और मांस का ज्यादा बढ़ जाना. 

प्रेगनेंसी के दौरान दिक्कतें बढ़ जाना जैसे बच्चे का मुश्किल से पैदा होना, सी-सेक्शन, बच्चे को सांस दिलाने की जरूरत पड़ना और बच्चे की मौत का खतरा बढ़ जाना. फिर बाद में सर्जरी की जरूरत पड़ना. इसके अलावा दिमाग से जुड़ी समस्याएं जैसे डिप्रेशन, घबराहट, किसी खौफनाक चीज का याद आना, खुद को कम समझना आदि.

महिलाओं का खतना बन रहा है पूरी दुनिया के लिए चिंता की वजह

दुनिया में कहां होता है सबसे ज्यादा ये जुल्म
अफ्रीका के पश्चिमी, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिस्सों के 30 देशों और मध्य पूर्व और एशिया के कुछ देशों के आंकड़ों के मुताबिक आज से पहले 20 करोड़ से ज्यादा लड़कियों और महिलाओं के साथ ये हो चुका है और हर साल करीब 30 लाख लड़कियों को ये खतरा होता है. इसलिए ये पूरी दुनिया की समस्या है.

यूनिसेफ के अनुसार, दुनियाभर में 23 करोड़ से ज्यादा लड़कियों और औरतों के साथ ये जुल्म हुआ है. ये आंकड़ा पिछले आठ सालों से 15% बढ़ गया है. सबसे ज्यादा ये अफ्रीका में हुआ है, जहां 14 करोड़ से ज्यादा महिलाओं के साथ ये हुआ है. इसके बाद एशिया में 8 करोड़ से ज्यादा और मिडिल ईस्ट में 60 लाख से ज्यादा मामले हैं. ये समस्या दुनिया के हर छोटे-बड़े देश में देखने को मिलती है.

कोलंबिया, भारत, मलेशिया, ओमान, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों में भी ये होता है, लेकिन यहां के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है. यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में भी ये होता है, क्योंकि इन देशों में वो लोग रहते हैं जहां से ये प्रथा आई है.

यूएनएफपीए के हिसाब से हर साल 40 लाख से ज्यादा लड़कियों को एफजीएम का खतरा होता है. कोरोना महामारी के वक्त स्कूल बंद होने और लड़कियों की हिफाजत के काम में रुकावट की वजह से साल 2021 में ये पता चला कि अगले दस सालों में और 20 लाख केस बढ़ सकते हैं.

क्या ये परंपरा बदल रही है?
कुल मिलाकर देखा जाए तो ये प्रथा कम हो रही है. सिएरा लियोन, इथियोपिया और बुर्किना फासो जैसे देशों ने दिखाया है कि जहां पहले एफजीएम बहुत ज्यादा होता था, वहां भी इसे कम किया जा सकता है. लेकिन सारे देशों में इसमें सुधार नहीं हुआ है और ये कितनी तेजी से कम हो रहा है, ये भी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग है. ज्यादातर देश इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएंगे कि 2030 तक एफजीएम खत्म हो जाए, ये लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में था.

सतत विकास लक्ष्यों के तहत दुनिया ने मिलकर ये फैसला किया है कि साल 2030 तक महिलाओं के साथ होने वाले इस जुल्म को पूरी तरह खत्म कर देंगे. लेकिन इसके लिए हमें बहुत तेजी से काम करना होगा. पिछले 10 सालों से हमें 27 गुना ज्यादा तेजी से काम करना होगा. ये 21वीं सदी है और इस तरह का जुल्म बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए.

बहुत सारे देशों के कानून और दुनिया भर की बड़ी-बड़ी संस्थाएं FGM को गलत मानती हैं. कानून कहता है कि हर इंसान को अच्छे से जीने का अधिकार है और ये काम इस अधिकार को छीन लेता है. महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली संस्थाएं भी इस काम के खिलाफ हैं. इसे यातना भी माना जाता है, इसलिए यातना के खिलाफ बने कानून के तहत भी इस पर कार्रवाई हो सकती है. क्योंकि ये काम ज्यादातर बच्चियों के साथ होता है, इसलिए बच्चों के हक की लड़ाई लड़ने वाली संस्थाएं भी इसके खिलाफ हैं. 10 बड़ी संस्थाओं ने मिलकर 2008 में एक बयान जारी किया था जिसमें इस प्रथा को गलत बताया गया था.

WHO ने इस जुल्म के खिलाफ क्या कदम उठाए?
साल 2008 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तय किया था कि एफजीएम प्रथा को खत्म करना है. इसके लिए सभी देशों से कहा कि वो मिलकर काम करें. WHO ने डॉक्टरों को भी समझाया कि उन्हें ये काम नहीं करना चाहिए और इसके लिए उसने कई देशों की मदद की.

WHO ने डॉक्टरों को ट्रेनिंग दी और उन्हें बताया कि कैसे इस प्रथा को रोका जा सकता है. अगर फिर भी ऐसा किसी के साथ हो जाए तो उसका इलाज कैसे किया जाए. WHO ने इस बारे में बहुत सारी जानकारी जुटाई और देशों को बताया कि कैसे इस प्रथा को रोका जा सकता है.

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