नई दिल्ली। केरल के वायनाड में भूस्खलन से हुई जान-माल की भारी हानि के बाद राहत और बचाव कार्य के बीच चिंतन इस पर भी शुरू हो गया है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? विभिन्न राजनीतिक दलों के सुझाव आ रहे हैं कि प्राकृतिक आपदा के पूर्वानुमान की व्यवस्थाएं अधिक चाक-चौबंद हों।

350 से अधिक लोगों की जान भूस्खलन के कारण जा चुकी है

इस बीच बुधवार को लोकसभा और राज्यसभा में भी सांसदों ने इस मुद्दे पर चर्चा की। लोकसभा में भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या इतना ही कह पाए थे कि केरल में बीते पांच वर्ष में 350 से अधिक लोगों की जान भूस्खलन के कारण जा चुकी है। यह आपदाएं वेस्टर्न घाट क्षेत्र में अनियमित व्यावसायिक गतिविधियों की वजह से आईं। इस संबंध में कई रिपोर्ट सामने आईं, लेकिन केरल की यूडीएफ और एलडीएफ सरकार कई वर्षों से इन्हें दबाती रही।

तेजस्वी के इस बयान का कांग्रेस सदस्य वेणुगोपाल ने राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप बताते हुए विरोध किया। तब संसद में यह मामला यहीं रह गया, लेकिन केरल से जुड़ी यह रिपोर्ट सामने आ चुकी है कि केरल में भूस्खलन के संबंध में दो विशेषज्ञ पैनलों की रिपोर्ट दस साल से ठंडे बस्ते में पड़ी है, लेकिन उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।

के. केस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाले हाईलेवल वर्किंग ग्रुप ने इकोलाजिकल सेंसिटिव क्षेत्र चिह्नित किए थे, जिनमें वायनाड के भी 13 गांव थे। समिति ने इन क्षेत्रों में अनियमित व्यावसायिक-औद्योगिक गतिविधियों को रोकने के लिए विशेष प्रविधान की अनुशंसा की थी।

कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार ने भी विरोध किया

बताया जाता है कि तब राज्य के विभिन्न संगठनों सहित कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार ने भी विरोध किया। उसके बाद राज्य सरकार की ओर से बनाई गई तीन सदस्यीय समिति ने भी ऐसी ही अनुशंसाएं करते हुए 2014 में रिपोर्ट सौंप दी, लेकिन उसके बाद अब तक राज्य सरकार नोटिफिकेशन तक जारी नहीं कर सकी।