हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण अगर है जायज तो वक्फ पर क्यों नहीं ?

 हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण अगर है जायज तो वक्फ पर क्यों नहीं, सरकार देर आयी पर दुरुस्त आयी

वक्फ बोर्ड को समझने की जरूरत 

वक्फ बोर्ड और वक्फ अधिनियम को जानने से पहले ये जानना होगा कि वक्फ क्या है. कुरान में वक्फ नाम का कोई चर्चा नहीं है. इस्लामिक इतिहास में भले ही वक्फ का नाम सामने आ चुका है. कोई मुस्लिम व्यक्ति अगर अल्लाह के नाम पर अपनी चल या अचल संपत्ति दान दे देता है तो उसे वक्फ कहा जाता है.

 देश में आजादी और बंटवारे के बाद नेहरू सरकार ने 1955 में वक्फ बोर्ड एक्ट बनाया जिसमें ये कहा गया कि वक्फ की संपत्ति को संभालने के लिए सरकार एक बोर्ड बनाएगी, जो कि मुसलमानों द्वारा चलित होगी. उसके बाद इंदिरा गांधी, पी वी नरसिम्हा राव और राजीव गांधी ने अपने समय पर इसमें संशोधन करके, इसको और मजबूत किया.

मनमोहन सिंह की सरकार ने 2012 में संशोधन कर के उसमें और सुधार किया और कहा कि वक्फ कोई भी कार्य कर सकती है जिससे कि वक्फ की संपत्ति को मजबूत किया जा सके. इस संशोधन के बाद वक्फ ने असंवैधानिक कार्य इतने बेहतर ढंग से किया कि आज के समय में देश की सबसे अधिक संपत्ति रखने वाली संस्था है. पहले और दूसरे स्थान पर भारतीय रेलवे और भारतीय डिफेंस है. देश में करीब 80 फीसदी हिंदुओं वाले देश में हिंदुओं के पास उतनी संपत्ति नहीं हैं, बल्कि देश में 13 प्रतिशत संख्या वाले मुसलमानों के पास सबसे अधिक संपत्ति है. 

कई संपत्तियों पर कब्जा 

वक्फ बोर्ड के पास ये संपत्ति कहां से आती हैं. इसको भी जानना होगा, वक्फ बोर्ड ने पार्लियामेंट, राष्ट्रपति भवन, पटना हाईकोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट, दिल्ली के 70 फीसदी हिस्से, लाल किला, ताजमहल, अयोध्या, काशी विश्वनाथ मंदिर सहित कई जगहों पर दावा कर के रखा है. वक्फ ने ऐसी जमीनों पर दावा कर के रखा है, जिनका इतिहास खंगालें तो वे 1600 वर्ष पुराने हैं, जबकि इस्लाम तो सिर्फ 1400 सालों से ही है. ये घटना तमिलनाडु के एक गांव में हुई थी, जहां 16 शताब्दी पुराने मंदिर सहित पूरे गांव पर ही अपना कब्जा बता दिया.  

अगर वक्फ  की ओर से किसी जमीन कर क्लेम किया जाता है तो उसके बारे में संबंधित व्यक्ति को बताना भी जरूरी नहीं होता है. अगर उनको आपत्ति भी करना होगा तो उनको वक्फ  के ट्रिब्यूनल के पास जाकर ही क्लेम करना होगा. वक्फ के जो आज तक ट्रिब्यूनल हुए हैं वो मुसलमान हुए है,  क्योंकि अभी तक जो कांग्रेस ने कानून बनाए थे उसके अंतर्गत यही स्थिति थी. आज उसको तोड़ने की कोशिश की गई है तो ऐसा हंगामा हो रहा है.

लोकसभा में गैर जिम्मेदाराना बयान 

गुरुवार को जो लोकसभा में सदन की कार्रवाई हुई, उसमें गैर जिम्मेदाराना बयान दिया गया. समाजवादी पार्टी ने इसका पुरजोर विरोध किया है और ये कहा है कि इस्लाम और दूसरे के धर्म में क्यों सरकार घुसने की कोशिश कर रही है. इसके साथ ही सड़कों पर लोगों के आने की धमकी सपा की ओर से दी गई, कि जिस प्रकार से बांग्लादेश में हो रहा है. ये सपा वही पार्टी है, जिसने अखिलेश यादव के सीएम रहते हिंदुओं के सबसे बड़े धार्मिक मेला यानी कुंभ को ऑर्गनाइज करने की जिम्मेदारी आजम खान को दिया था.

ऐसे में जब मुसलमान हिंदू के धर्म में घुस सकता है तो फिर वक्फ बोर्ड के मामले में हिंदू क्यों नहीं घुस सकता है? मोदी सरकार की ओर से जो नया बिल लाया जा रहा है उसमें हिंदुओं को भी उसमें जाने की आजादी मिलेगी. ओवैसी ने सदन में ये कहा है कि जो बिल सरकार की ओर से लाया गया है वो आर्टिकल 14 को वायलेसन है. आर्टिकल 14 का मतलब राइट टू इक्वालिटी होती है. 

13 फीसद मुसलमान के पास अधिक संपत्ति 

देश में वक्फ की कानून के वजह से ही देश में 13 फीसद मुसलमानों की संख्या होने के बावजूद भी तीसरी बड़ी संपत्ति का मालिक वक्फ है. जब हिंदुओं के पास ऐसी व्यवस्था नहीं है और मुसलमानों के पास ऐसी व्यवस्था है तो ऐसे में तो आर्टिकल 14 को वायलेंस का मामला तो पहले से ही है. इसलिए ओवैसी की खुद ही कथन गलत साबित हो जाता है. मनीष तिवारी ने सदन से बाहर आकर ये बयान दिया है कि पार्लियामेंट के पास ये अधिकार ही नहीं है कि वो इस पर कानून बना सके.

जब पार्लियामेंट में कांग्रेस की सरकार में वक्फ बोर्ड में अमेंडमेंट करने के लिए प्रस्ताव ला सकती है तो अभी की सरकार क्यों नहीं ला सकती है? तमिलनाडु में डीएमके की सरकार है. वहां पर 33 हजार मंदिर पर सीधे तौर पर सरकार कंट्रोल करती है. आज उनके सांसद पार्लियामेंट में इसको एंटी डेमोक्रेटिक बता रहे है. जब तमिलनाडु सरकार हिंदू मंदिरों पर कंट्रोल कर सकती है तो वक्फ पर सरकार क्यों कंट्रोल नहीं कर सकती.

नये बिल में कलेक्टर को अधिकार 

जो नया बिल संसद में लाया गया है उसके अंतर्गत लोकल प्रशासन यानी कि कलेक्टर अपने अनुसार उस पर फैसला ले पाएंगे. जब हिंदुओं के मंदिरों में कलेक्टर देखरेख कर सकते हैं तो वक्फ पर कंट्रोल क्यों नहीं रख सकते हैं? पॉलिटिकल पार्टियों ने ऐसी स्थिति बनाकर रख दी है जिसको ना केवल हिपोक्रेटिक कहा जा सकता है बल्कि दोहरे चरित्र के तौर पर भी देखा जा सकता है.

अभी जो मोदी सरकार वक्फ को लेकर बिल लायी है, उसको और काफी पहले हो जाना चाहिए. देश के लगभग सभी शहरों में एक बड़ा सा मैदान हुआ करता था, जिसमें कभी रामलीला, मेला और ईद के मौके पर नमाज अदा किया जाता था,  लेकिन आज के समय में बड़े मैदानों को वक्फ ने ईदगाह के नाम पर कोर्ट में क्लेम करना शुरू कर दिया है. कनार्टक  में गणेश चतुर्थी इसलिए नहीं हो पायी क्योंकि वहां के मैदान को वक्फ ने चैलेंज कर दिया था. 

इस कानून में ये प्रावधान किया गया है कि किसी सरकारी भूमि पर दावा किया जाता है तो कलेक्टर के पास ये अधिकार होगा कि वो जांच करें और सही रिपोर्ट दें. इससे पहले कलेक्टर को अधिकार नहीं था. अभी तक वक्फ के लोग ही मामला दर्ज भी कराते थे और वो खुद ही फैसला भी करते थे. वक्फ में सिर्फ मुसलमान होते हैं इसलिए एक बायस यानी की पक्षपात की बात सामने भी आती थी.

अब इसमें महिलाओं को भी रखने की बात कही गई है, इसमें मुस्लिम महिलाएं भी रह सकेगी और दूसरे धर्म के लोग भी रह पाएंगे. अगर कोई संस्था समुदाय के हित के लिए काम करती है तो वो करना चाहिए, लेकिन उसमें सभी की भागीदारी होनी चाहिए.

वक्फ के पास है अपार संपत्ति 

अब कुछ समय से ये देखने को मिल रहा है कि मस्जिद के अंदर नहीं बल्कि रोड पर आकर नमाज पढ़ रहे हैं, इससे ये पता चलता है कि वक्फ बोर्ड कितना कामयाब इस देश में हुआ है? देश में जो नया कानून आ रहा है उसका देश में स्वागत होना चाहिए और जो बेबुनियाद आरोप है उस पर रोक लगना चाहिए. हमारे देश में आर्टिकल 14, 19 , 21 और 25 को मिलाकर एक बेहतर काम करता है, जिसमें राईट टू लाईफ, राईट टू इक्वलिटी, राईट टू रिलीजियस फ्रीडम को सुनिश्चित करता है.

ऐसे में हिंदुओं और मुसलमान को अलग-अलग ट्रीट नहीं किया जा सकता. देश में हिंदू मंदिरों को सरकार कंट्रोल करती है और मुसलमान के वक्फ पर कंट्रोल नहीं रखती तो ये ठीक नहीं है. अतिरिक्त छूट के कारण ही वो सरकारी संपत्तियों वो अन्य चीजों पर क्लेम करते आते हैं. इलाहाबाद कोर्ट को खुद दो बार सुप्रीम कोर्ट वक्फ की जमीन के क्लेम को लेकर आना पड़ा.

इलाहाबाद कोर्ट पर भी दावा 

कपिल सिब्बल और इंदिरा जय सिंह जैसे लोग वक्फ बोर्ड के लिए लड़ रहे हैं और उलटा इलाहाबाद हाईकोर्ट पर भी दावा कर रहे थे. ऐसा ही हाल पटना हाईकोर्ट के लिए भी हो रहा है. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है, क्योंकि पुराने टॉम्ब पर वक्फ बोर्ड दावा करते हुए क्लेम कर रहा था. उसके बाद हाईकोर्ट ने ये कहा कि ऐसे में तो आने वाले समय में तो कोर्ट की जमीन पर भी दावा वक्फ बोर्ड कर सकता है. ऐसा रहा तो पूरे देश में ये हाल हो सकता है. ये तरीका किसी भी हाल में सही नहीं है.

कानूनों का दुरुपयोग कांग्रेस सरकार में किया गया और वक्फ बोर्ड उसका गलत इस्तेमाल कर के देश में कब्जा करते जा रहा है. पहले जो कानून का प्रावधान किया गया था उसमें ये प्रावधान किया गया था कि अगर कोई क्लेम या आपत्ति होगी तो ऐसे में ट्रिब्यूनल के पास जाना होगा और उसमें भी मुसलमान ही होते थे. ऐसे में कोई रास्ता ये जरूर निकलना चाहिए था कि क्यों कोई सिविल कोर्ट में नहीं जा सकता है? 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  … न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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