हिंदू ट्रस्ट में मुस्लिम क्यों नहीं?
मंदिरों के ट्रस्ट में क्यों नहीं होने चाहिए मुस्लिम और वक्फ में क्यों रहेंगे हिंदू…
हिंदू ट्रस्ट में मुस्लिम क्यों नहीं?
वक्फ में संशोधन के बाद अगर कोई हिंदू जाएगा भी, तो वहां जो हिंदू है वो हिंदू के नाते नहीं है बल्कि इलेक्टेड रिप्रेजेंटेटिव के नाते से वहां पर रहेंगे. चाहे वह किसी भी धर्म के हों. वहां पर मुसलमान भी हो सकता है, वह हिंदू भी हो सकता है. वह किसी और धर्म का भी हो सकता है. यह कहना कि हिंदुओं के ट्रस्ट में कहीं मुसलमान नहीं होता, ऐसे में उन लोगों के पास या तो जानकारी नहीं है या जानकारी होते हुए भी बेईमानी के साथ एक झूठ को परोस रहे हैं. सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष अंतुले रह चुके हैं, क्योंकि वह वहां के चीफ मिनिस्टर थे, इस नाते से रहे थे. ऐसे ही बाबा अमरनाथ न्यास है, श्राइन बोर्ड है, उसके कई कर्मचारी नन हिंदू भी रहते हैं.
यहां तो हिंदू मुसलमान का प्रश्न ही नहीं है, और इसको बनाना भी नहीं चाहिए क्योंकि जिस प्रकार की वहां पर अव्यवस्थाएं और दूर्रवस्थाएं थी, उनको दूर करना और किस प्रकार से राष्ट्रीय संपत्ति का, हिंदुओं की संपत्ति का, और यहां तक कि मुसलमान की संपत्ति का कुछ मुट्ठी भर लोग दुरुपयोग कर रहे थे. उस दुरुपयोग से उस संपत्ति को मुक्त करना है. और इस मामले पर वही लोग बिलबिला रहे हैं जो इसका दुरुपयोग करते थे.
हिंदू भावना का भी रखना चाहिए ध्यान
इसमें धर्म के आधार पर बात नहीं होनी चाहिए लेकिन जो विपक्ष ने संसद में हंगामा किया तो सीधे तौर उसका ये मानना है कि यह मुसलमान के मामलात में दखल है. ऐसा सरकार को नहीं करना चाहिए, लेकिन मुसलमान के मामलात में दखल तब होता जब मस्जिद के अंदर नमाज कैसे पढ़ी जाए, यह भी तय किया जाता. इसमें कहीं भी मस्जिद का मैनेजमेंट नहीं है. केवल वक्फ की प्रॉपर्टीज का सही ढंग से उपयोग हो, उतना ही तो मात्र है.
धार्मिक मामलों में दखल नहीं होना चाहिए. किसी भी व्यक्ति के अन्य धर्म के मामलों में और अपोजिशन के लोगों को यह बात हिंदुओं के मामले में भी ध्यान रखनी चाहिए. क्योंकि इसके कई उदाहरण है जिसमें कि सिध्दिविनायक, तिरुपति के अंदर कर्मचारी जो है, वह नॉन हिंदू थे. जो कि उसके पैसे का दुरुपयोग कर रहे थे. उस पैसा का क्रिश्चियनिटी का प्रचार करने में करते थे. क्या हम वह दिन भूल गए?
जब हिंदुओं के धर्मादा से आए पैसे को कर्नाटक की सिद्धि रमैया सरकार ने हज यात्रा की सब्सिडी के लिए दिया था. दुरुपयोग करने की परंपरा इन्हीं लोगों की है और इस बिल में कहीं भी मुसलमानों की आस्था का प्रश्न नहीं है. ये बात अलग है कि वो हमारी आस्थाओं पर चोट करते रहे हैं, इसके दर्जनों उदाहरण दिए जा सकते हैं.
सरकार का धर्म में हस्तक्षेप ठीक नहीं
वक्फ में और बाकी जगहों पर जो कर्मचारी हो रहे हैं वो सरकार की तरफ से होते हैं. कई हिंदू संगठनों का कहना है कि सरकारी नियंत्रण से मंदिरों को मुक्त कराना चाहिए. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि सरकार का काम मंदिर चलाना नहीं है , बल्कि सरकार चलाना है. इसलिए सरकार की दखलंदाजी नहीं देनी चाहिए. धार्मिक मामलों के अंदर और धर्म का जो स्थान है उसके संचालन के धर्म के लोगों को ही करना चाहिए. सरकारी तंत्र के नियंत्रण के बाद भी उसका दुरुपयोग कैसे होता है, यह कुछ उदाहरण मैंने दिए हैं. ऐसे और भी उदाहरण है, जिसमें मंदिरों की संपत्ति का उपयोग सरकार के लोगों ने या राजनीतिक लोगों ने अपने मनमानी ढंग से किया है. कई जगह तो संपत्तियां बेची भी गई है.
सरकार नियंत्रण में लेकर कई मंदिरों के व्यवस्था को ठीक नहीं कर सकती है. यह उनका काम ही नहीं है. भारत में एक मंदिर है, वहां बड़ा मेला लगता है, हमारे कार्यकर्ताओं ने कहा जूते पहनकर नहीं जाने चाहिए. मेले में सरकार के प्रतिनिधि ने कहा यह हमारे बस का नहीं है तो हमारे लोगों ने व्यवस्था हम करेंगे , लेकिन आस्था पर चोट नहीं लगनी चाहिए. ऐसे में ये सरकार के द्वारा चलाई जा रही चीज या आस्था के साथ जुड़ी हुई नहीं होती है. मस्जिद का मैनेजमेंट क्या होगा यह मुसलमान तय करेगा और मंदिर का मैनेजमेंट क्या होगा यह हिंदू को तय करने देना चाहिए.
माफिया का जमीन पर कब्जा
हैदराबाद के अंदर कितनी ही प्रॉपर्टी ऐसी है, जिनके ऊपर ओवैसी परिवार ने कब्जा किया हुआ है. ये सब चीज सामने आ चुकी है. रामपुर के आजम खान ने मुसलमान की कितनी प्रॉपर्टीज पर जो वक्फ की थी, उन पर कब्जा करके और अपने विभिन्न प्रकार के काम वहां से संचालित किया. ऐसे बहुत लोग हैं जो मुसलमान के ऊपर भी अन्याय करते हैं और उनका ही कहना है मुस्लिम समाज के लोगों का इस तरह के मामले से हमेशा के लिए मुक्ति चाहिए.
अल्पसंख्यक विभाग के मंत्री किरण रिजिजू ने भी ये कह दिया है कि वक्फ पर माफिया का कब्जा हो गया है. ऐसा निश्चित रूप से हुआ है. गोरखपुर में अंसारी से वक्फ की जमीन को मुक्त कराया गया और उनके ऊपर मुसलमान के ही रहने के लिए आवास बनाए गए. यह तो उदाहरण उत्तर प्रदेश का हाल फिलहाल का ही है. वक्फ पर दादागिरी को चलाए रखने के लिए और वह लोग वास्तव में एक ब्लैंकेट सर्टिफिकेट मांग रहे है.
वक्फ बोर्ड के मामले में निश्चित रूप से काफी समय से पेंडिंग डिमांड है. जो ये कहते हैं कि यह हमारा धार्मिक मामला है सरकार को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, तो इसमें चार बार अमेंडमेंट हो चुका है. जो पहले कानून था 1923 में बना वह भी सरकार ने ही तो बनाया था. उसको अंग्रेजों की की सरकार ने बनाया था. धार्मिक मामलों के लिए शरिया को मानते हैं. ये भी ब्रिटिश गवर्नमेंट आफ इंडिया यानी की अंग्रेजों की दी हुई है.
किसी संपत्ति पर दावा
ये केवल अपने द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को ना रोका जाए, इसके लिए कोशिश चल रही है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 123 प्रॉपर्टी (बड़ी प्राइम लैंड), जिनके ऊपर वक्फ के नाम पर कब्जा किया हुआ था. उसको रिलीज किया है, क्योंकि वो सरकार की संपत्ति है. दुर्भाग्य से मनमोहन सिंह सरकार ने ये लिख कर दिया था कि यह वक्फ की प्रॉपर्टी है, हम इनको छोड़ रहे हैं. उनको छोड़ने का अधिकार नहीं है. क्योंकि वो अपने घर से ये जमीनें नहीं लेकर आए थे. इस गलती को अभी सुप्रीम कोर्ट में ठीक किया गया और वह 123 प्रॉपर्टीज सरकार के पास वापस आई है.
तमिलनाडु के त्रिचि का उदाहरण भी सामने आया ही था. एक गांव के लोग सुबह सोकर उठते हैं तो उन्हें मालूम चलता है कि उनका सारा गांव वक्फ ने क्लेम कर रखा है. जबकि वहां 1500 साल पुराना मंदिर है, जब इस्लाम ने जन्म भी नहीं लिया था. उस समय किसने वक्फ कर दिया और अभी जबलपुर हाईकोर्ट ने परसों एक जजमेंट दिया है. आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट की एक संपत्ति को वक्फ अपनी प्रॉपर्टी का दावा कर रहा था.
ऐसे में ताजमहल, लाल किला, आपके घर पर मेरे घर पर कभी भी दावा किया जा सकता है. यह अधिकार इनको 2013 के अमेंडमेंट में उस समय की पीएम मनमोहन सिंह सरकार ने दिए थे. इसलिए ऐसी लूट का अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता, इस कारण संशोधन जरूरी है.
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