सभी भारतवासी हैं मूल निवासी, संविधान में नहीं है नेटिव या आदिवासी शब्द !
सभी भारतवासी हैं मूल निवासी, संविधान में नहीं है नेटिव या आदिवासी शब्द
भारत में मूल निवासी की अवधारणा कभी नहीं रही। 13 सितंबर 2007 को जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने मूल निवासियों के अधिकारों की घोषणा की, तब भारत में स्पष्ट किया था कि हमारे यहां सभी मूल निवासी हैं और कोई बाहर से नहीं आया है।
9 अगस्त को विश्व मूल निवासी दिवस के रूप में मनाता है। 30 साल पहले वर्ष 1994 में इस दिवस को मनाने की शुरुआत हुई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार दुनिया के 40 देशों में 43 करोड़ मूल निवासी हैं, जिनमें 25 प्रतिशत भारत में रहते हैं। हालांकि, भारत के संविधान में कहीं भी ‘नेटिव’ यानी मूल निवासी अथवा ‘आदिवासी’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। इन शब्दों का प्रयोग ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका में किया जाता था।
भारत में मूल निवासी की अवधारणा कभी नहीं रही। 13 सितंबर 2007 को जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने मूल निवासियों के अधिकारों की घोषणा की, तब भारत में स्पष्ट किया था कि हमारे यहां सभी मूल निवासी हैं और कोई बाहर से नहीं आया है।
दरअसल, अंग्रेजी में ‘नेटिव’ शब्द मूल निवासियों के लिए उपयोग में लिया जाता है, जबकि अंग्रेजी के ‘ट्राइबल’ शब्द का अर्थ मूल निवासी नहीं होता है। ‘ट्राइबल’ शब्द का अर्थ होता है ‘जनजाति’। ऐसे में 9 अगस्त को विश्व जनजाति दिवस कहना ज्यादा उचित होगा। भारत में पहले मूल निवासी दिवस मनाने का कोई चलन नहीं था।
अमेरिका के मूल निवासी जरूर 9 अगस्त को अमेरिकी नरसंहार दिवस के रूप में मनाते हैं। वहां हजारों की संख्या में लोग संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय के बाहर इकट्ठा होकर विरोध प्रदर्शन करते हैं, क्योंकि यूरोपीय देशों ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देशों में अपनी बस्तियां बसाकर अपने साम्राज्य की स्थापना की थी। वहां बसे हुए मूल निवासियों को गुलाम बनाते हुए विस्थापित किया था। उनके संस्कृति, जीवन-दर्शन, रीति-रिवाज, मान्यताओं और धर्म को नष्ट किया था। प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा कर लिया था। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री केविन रूड ने 13 फरवरी 2008 को अपनी संसद में वहां के मूल निवासियों से क्षमा मांगी थी।
भारत के संदर्भ में बात करें तो यहां रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी आदिवासी या वनवासी रहा है। कुछ सदी पहले सभी लोग वनों में ही निवास करते थे। विकास की गति जैसे-जैसे आगे बढ़ी तो कुछ ग्रामवासी हो गए और ग्रामों से नगर बने तो नगरवासी हो गए। ऋग्वेद में मनुष्यों के लिए ‘जनजाति’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
ऋग्वेद में ‘जन’ शब्द 127 बार आया है। कुछ इतिहासकार आर्यन इन्वेजन थ्योरी की बात करते हैं, जिस पर लंबे समय से बहस जारी है, क्योंकि कहीं भी आर्य आक्रमण का संदर्भ भारतीय इतिहास के किसी भी कालखंड में नहीं मिलता है।
भारत में आज जो जनजाति हैं, उनमें बड़ी संख्या में रामपंथी हैं। छत्तीसगढ़ और झारखंड की 32 आदिवासी जनजातियां स्वयं को रामपंथी संप्रदाय से जोड़ती हैं। रामनामी संप्रदाय तो बताता है कि मुगलों ने उन्हें राम से अलग करने की कोशिश की तो उन्होंने अपने पूरे शरीर पर ‘राम’ का नाम गुदवा लिया। भील शबरी, निषाद राज केवट आदि ने भगवान राम को धर्म की स्थापना के लिए सहयोग दिया था। भगवान राम की माता कौशल्या ‘कश्यप’ गोत्र की थी, जो ‘कंवर’ जनजाति का गोत्र है।
आज भी ‘कंवर’ समुदाय के लोग कौशल्या को बेटी के रूप में पूजते हैं और भगवान राम को भतीजा मानते हैं। भारत में आदिवासी समाज शैव और भैरव के साथ जंगल, पहाड़, नदियों, सूर्य की आराधना करते हैं। आदिवासियों के लोक देवता, ग्राम देवता, कुल देवता होते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में शिव जैसी मूर्ति मिली हैं। सनातन धर्म को मानने वाले भी नदियों, पेड़ों, प्रकृति, शिव आदि की पूजा करते हैं। स्पष्ट है कि वनवासी से लोग ग्रामवासी और फिर नगरवासी बने।
समय और विकास की दौड़ के साथ नगर बढ़ते चले गए। ग्राम और वन छोटे होते गए। आज जरूरत हमारी जनजातियों के संरक्षण की है। देश में विकास की बड़ी परियोजनाओं के लिए वन भूमि के अधिग्रहण और जनजातियों के पुनर्वास को लेकर द्वंद चल रहा है। हमारी जनजातियां सुरक्षित रहे हैं, इसके लिए सरकारों को संवेदनशील होकर कार्य करने की जरूरत है। ऐसे कानून बनाने की आवश्यकता है, जिससे भारत की आत्मा यानी जनजातियां सुरक्षित रहें। मूल निवासी और बाहरी का जो झगड़ा समाज में खड़ा करने की कोशिश पिछले कुछ वर्षों से हो रही है, उस खाई को भी पाटने की आवश्यकता है।
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