भारतीय राजनीति हो गयी है ध्यान खींचने और विवाद करने की जगह ?

बिट्टू हों या संजय राउत के बयान, भारतीय राजनीति हो गयी है ध्यान खींचने और विवाद करने की जगह

नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी काअमेरिका दौरा काफी विवादित हो रहा है. विवाद की वजह वहां दिए गए उनके बयान हैं. अपने दौरे पर राहुल गांधी ने सिखों के पगड़ी और कड़े को लेकर और लोकसभा चुनाव पर नियंत्रण को लेकर अपनी राय जाहिर की, लेकिन वह विवाद का बायस बन गयी. उनके बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने एक बयान दे दिया है, जिस पर अब विवाद हो गया है. उन्होंने कहा कि देश की एजेंसियों को सबसे पहले राहुल गांधी की जांच करनी चाहिए, क्योंकि वो आतंकवादी नंबर वन हैं.

वैसे, अगर बात रवनीत सिंह बिट्टू की हो, तो वो लंबे समय से कांग्रेस में रहे हैं. तीन बार से वो कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे हैं. हाल में ही वो भाजपा में शामिल हुए, और चुनाव हारने के बाद भी पार्टी ने उनको केंद्र में मंत्री बनाया , बाद में वे राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुने गए हैं. 

वफादारी दिखाने के लिए बयान 

रवनीत सिंह बिट्टू जिस तरह से कांग्रेस और राहुल गांधी पर हमला कर रहे हैं, उससे ये लग रहा है कि वो भाजपा के प्रति अपनी वफादारी निभा रहे हैं. रवनीत सिंह बिट्टू को अपनी वफादारी साबित करने की ललक है. कई बार ऐसा होता है कि लोग जब बाहर से दूसरी पार्टी में आते हैं, तो फिर उनको अपना स्थान सुरक्षित करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है. बिट्टू ये दिखाना चाह रहे हैं कि वो भाजपा के लिए वफादार है. अधिक कट्टरता साबित करने के इसी क्रम में कई बार ऐसा होता है कि बात आगे तक निकल जाती है. बिट्टू ने जिस तरह का बयान दिया है, उसी तरह का काम पिछले समय में हेमंत विश्व शर्मा ने किया है. हेमंत विश्व शर्मा काफी लंबे समय तक कांग्रेस में रहे, उसके बाद वो भाजपा में अपने विधायकों के साथ चले गए. उसके बाद असम में सीएम बने. 

उसके बाद से हेमंत विश्व शर्मा काफी अटैकिंग मोड में होकर कांग्रेस पर हमला कर रहे हैं. आज भारत की राजनीति काफी बदल चुकी है और ये अपने दौर के सबसे निचले स्तर पर जा चुकी है. ये किसी एक पार्टी विशेष की बात नहीं है, बल्कि हर दल में ऐसी स्थिति देखी जा रही है. कई बार ये देखा गया है कि राजनीतिक पार्टियों के नेता बोलते हुए काफी निचले स्तर तक पहुंच जाते हैं, जो कि लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. संजय राउत भी कई बार अजीब बयान देते रहते हैं, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं के ऐसे बयान देखे जा चुके हैं. इसके जरिये व्यक्तियों को आक्षेपित करने, व्यक्ति के ऊपर टकराने, व्यक्तियों की छवि निर्माण करने और व्यक्ति की छवि को धूमिल करने का काम किया जाता है, और इस क्रम में जनहित पीछे छूट जाता है.   

व्यक्तिगत प्रहार का प्रचलन 

आम जनता के जो सरोकार के विषय है वो काफी पीछे छूट रहे हैं, और व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप कहीं केंद्र में आ चुके हैं, हालांकि इससे समाज को काफी नुकसान है. ये चलन भी पहले नहीं था, बल्कि ये पिछले दस सालों की उपज है. इस जरिये किसी नेता की छवि को नुकसान पहुंचाने का काम किया जाता है. नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी इसके शिकार कई बार हो चुके हैं, जबकि पीएम मोदी भी इसका शिकार अब होने लगे हैं. इस तरह के बयानों का चलन इन दिनों काफी है. आने वाले समय में और भी इस तरह के बयानों का चलन बढ़ेगा. ऐसे बयानों के पीछे दो ही बातें होती है, पहला तो अपनी छवि को लाइमलाइट में लाना यानी मीडिया की सुर्खियों में बनाए रखना और दूसरा अपनी पार्टी के बड़े नेता को दिखाना कि वो उनके प्रति वफादार है.

हालांकि राहुल गांधी ने जो अमेरिका में बयान दिया, जिसमें सिख समुदाय पर टिप्पणी और आरक्षण को लेकर बात थी और जिसके बाद काफी विवाद हुआ, वह पूरा बयान अंग्रेजी में था, उसका ट्रांसलेशन हिंदी में कर के उसको कुछ और बना दिया गया, फिर उसी संदर्भ में एक वीडियो क्लिप काटकर वायरल किया गया, इससे पूरे बात का एक अलग मतलब निकला जाता है.  इस प्रकरण में भी यही किया गया. सिखों के मामले को लेकर भाजपा ने तो आरक्षण के नाम पर मायावती ने राहुल गांधी को घेरा. पॉलिटिक्स में अब अक्सर मैन्युफैक्चरिंग ओपिनियन यानी जनमत का निर्माण भी किया जाता है, वही वर्तमान में चल रहा है. अगर व्यक्ति के स्वास्थ्य, शिक्षा, देश की प्रगति, आर्थिक नीतियों, और अन्य कई चीजों पर ऐसा होता तो ये जनता के हित के लिए होता, लेकिन ये सिर्फ एक व्यक्ति पर केंद्रित हो गया है, पर्सनल हो गया है, किसी को अच्छा और बुरा कहने का संदर्भ-बिंदु बन गया है.   

लोकतंत्र के लिए नहीं ठीक 

हाल में ही शिवसेना के नेता संजय राउत ने पीएम मोदी के बारे में कहा कि उनका दिमाग सड़ा हुआ है. इस तरह के बयान आने अचानक से नहीं शुरू हुए हैं, बल्कि पिछले दस सालों से जिस प्रकार से राजनीतिक शैली में परिवर्तन हुआ है, ये उसी की उपज है, और मीडिया ने भी उसी को महत्ता दी है. समाज का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो इस तरह के बात को लेकर आनंदित होता है. उसका मन किसी चीजों के विस्तार में जाने का, तह तक जाकर सच जानने का नहीं होता. वह ऐसे कमेंट पर ही वो है. इसके अलावा ऐसे क्लिप सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल भी होते हैं.

आज का समाज दो धड़ों में बंट चुका है, जिसको जिस पक्ष की बातें अच्छी लगती है तो शेयर करता है और दूसरा उसका विरोधी हो जाता है. लेकिन दोनों धड़े इस बात को जानने की इच्छा नहीं रखते कि ये बात कहां से शुरू हुई, इसकी सच्चाई क्या है और तह तक जाने में किसी की रुचि नहीं है. इस तरह की स्थिति लोकतंत्र के लिए बेहद ही खराब है. इस तरह के मामलों से जनहित के जो मुद्दे होते हैं वो कहीं काफी पीछे छूट जाते हैं. संजय राउत और उनके समाचार पत्र सामना को देखें तो उसके जरिये वो हमेशा आक्रामक मूड में रहते हैं. इस तरह की परंपरा के संजय राउत काफी बड़े व्यक्ति है. भाजपा में सुधांशु त्रिवेदी हैं जो पर्सनल बातों को सामने लाने में काफी मुखर रहते हैं. हर पार्टी ने ऐसे लोग रखे हुए हैं. देश में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा है, और इस तरह के काम वो करती रही है. ये काम पहले आईटी सेल की ओर से किया जाता था, जब वो एक्सपोज हुए तो अब उनका काम लीडर करने लगे हैं.

भाजपा में इस तरह के काम की तादाद ज्यादा है. हालांकि, यह एक ट्रेंड है और किसी एक को दोष देना उचित नहीं. अभी राहुल गांधी के अमेरिका दौरे के बीच में एक पत्रकार से वहां के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने काफी बदसलूकी की, बाद में सैम पित्रोदा ने माफी मांगी. ये काफी ही बुरी हरकत थी. हालांकि, ये ट्रेंड भी अब चल गया है. जब कोई नेता प्रेस वार्ता करता है और कुछ ऐसे सवाल जब उसको अच्छे नहीं लगते, सूट नहीं करते तो वो गोदी मीडिया और किसी पार्टी के इशारे पर पूछे गए प्रश्न का उसको नाम देने लगता है. कुछ हद तक इसमें सच्चाई भी हैं. हालांकि, इस कदम से क्या लाभ होने वाला हैं, इसको भी देखे जाने की जरूरत है. अगर नेता अधिकारी को और अधिकारी नेता को चोर कहेगा तो समाज के अन्य वर्ग और लोगों पर क्या असर होगा. इस तरह से तो न्यायपालिका पर भी प्रश्न उठने लगेगा. इस ट्रेंड को रोकने में भलाई है, हालांकि समय ज्यादा बीत चुका है और इससे बाहर आने में काफी वक्त लगेगा.  

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि …. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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