संवाद की भाषा बदल रहे हैं ‘मीम’ !
संवाद की भाषा बदल रहे हैं ‘मीम’, जागरूकता के अभाव में बन रहे हैं चरित्र हनन का जरिया
इंटरनेट ने लोक व लोकाचार के तरीकों को काफी हद तक बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहुत सारे रिवाज अब अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह प्रक्रिया इतनी तेज है कि नया बहुत जल्दी पुराना हो जा रहा है। अब शब्द नहीं भाव और परिवेश बोल रहे हैं। जहां संचार के लिए न तो भाषा विशेष को जानने की अनिवार्यता है और न ही वर्तनी व व्याकरण की बंदिशें। तस्वीरें सार्वभौमिक भाषा बनकर उभर रही है। दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला व्यक्ति तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक पहुंचा पा रहा है। जाहिर है, इंटरनेट के कारण हम एक ऐसे युग के साक्षी बन रहे हैं, जो अपने आप में अनूठा है।
संवाद के इसी माध्यम के रूप में युवा पीढ़ी में तेजी से लोकप्रिय होती शैली है ‘मीम’ । पिछले कई वर्षों में, इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने नए शॉर्टहैंड बनाकर तेजी से संवाद के तरीके विकसित किए हैं। बीटीडब्ल्यू और एलओएल जैसे संक्षिप्त रूप इंटरनेट उपयोगकर्ताओं द्वारा बनाए गए नए शब्दकोष का हिस्सा हैं। इमोटिकॉन्स, या टेक्स्ट-आधारित एक्सप्रेशन भी लोकप्रिय मीम बन गए हैं। मीम के विषय कुछ भी हो सकते हैं, जैसे ब्लॉग या अन्य वेबसाइटों द्वारा लोकप्रिय हुए लोग, स्थान या जानवर या सार्वजनिक घोटाले में शामिल कोई राजनेता या सेलिब्रिटी।
मीम की आधुनिक परिभाषा इसे एक विनोदी छवि, वीडियो, किसी टेक्स्ट (पाठ) का टुकड़ा या एनीमेटेड तस्वीर (जीआईएफ) बताती है, जो सोशल मीडिया पर अक्सर थोड़े बदलाव के साथ प्रसारित होता है। मीम्स कोई भी बना सकता है और ये किसी भी चीज के बारे में हो सकते हैं-वर्तमान घटनाओं से लेकर किन्हीं भी सांसारिक कार्यों तक, जिनमें राजनीतिक सांस्कृतिक और फिल्म के संदर्भ शामिल होते हैं। मीम की लंबाई अलग-अलग होती है, क्योंकि वे छवियों, प्रतीकों, पाठ, वीडियो या जीआईएफ का रूप ले सकते हैं। वे एक छवि या वाक्यांश जितने छोटे हो सकते हैं और एक विस्तृत कथा के साथ कई मिनट के वीडियो जितने लंबे भी। कुछ मीम्स की लोकप्रियता क्षणिक होती है, जबकि कुछ वर्षों तक टिके रहते हैं।
मीम्स की अवधारणा की जड़ें जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिन्स की 1976 में प्रकाशित किताब द सेल्फिश जीन से मिलती हैं। डॉकिन्स ने मीम को एक सांस्कृतिक इकाई के रूप में परिभाषित किया है, जो एक से दूसरे व्यक्ति में फैलती है, जैसे कि जीन प्रजनन के माध्यम से फैलते हैं। मीम ग्रीक शब्द माइमेमा से आया है, जिसका अर्थ है ‘जिसकी नकल की जाती है।’ डॉकिन्स की किताब से पता चलता है कि मीम्स के उदाहरण सदियों पुराने हैं। लेकिन इन दिनों, जब हम मीम्स के बारे में सोचते हैं, तो आमतौर पर इंटरनेट मीम्स ही दिमाग में आते हैं। पहला इंटरनेट मीम व्यापक रूप से ‘डांसिंग बेबी’ माना जाता है, जिसमें एक 3डी एनिमेटेड बच्चा 1990 के दशक के अंत में लोकप्रिय हुआ। इंटरनेट कंसल्टिंग फर्म रेड्शीर की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में भारतीय स्मार्टफोन उपयोगकर्ता प्रतिदिन तीस मिनट का समय मीम्स देखने में बिता रहे थे।
साल 2021 के मुकाबले भारत में मीम्स की खपत में अस्सी प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी शोध के अनुसार, मीम लोगों का तनाव दूर करने का एक अच्छा माध्यम बनकर उभरा है। 2021 के इंस्टाग्राम आंकड़ों से पता चलता है कि सारी दुनिया में मीम शेयरिंग में दोगुनी वृद्धि हुई है। आज रोज लगभग दस लाख मीम शेयर किए जाते हैं। फोर्ब्स के एक शोध के अनुसार, मीम विज्ञापन अभियान ई-मेल मार्केटिंग की तुलना में चौदह प्रतिशत अधिक क्लिक-थ्रू दर प्राप्त करते हैं, जो उनकी शक्तिशाली वायरल अपील और व्यापक पहुंच को प्रदर्शित करता है।
हालांकि मीम का एक अवधारणा के रूप में अभी आकलन होना बाकी है, लेकिन पर्याप्त इंटरनेट जागरूकता के अभाव में मीम चरित्र हनन का भी एक बड़ा जरिया बन रहे हैं। इसके लिए लोगों को सचेत होने की जरूरत है कि मनोरंजन के लिए किसी का मजाक किस हद तक उड़ाया जाए।
दूसरी समस्या सामान्य लोगों की निजता की भी है, जिनके चेहरे इंटरनेट पर किसी वजह से वायरल हो जाते हैं, वे तरह-तरह के मीम का हिस्सा बन जाते हैं। संवाद और मनोरंजन का यह नया रूप भविष्य में कैसे जिम्मेदारी से विकसित होगा, इसका फैसला होने में अभी वक्त है।