नवजात की मौत के 9 महीने बाद FIR ?
नवजात की मौत के 9 महीने बाद FIR ?
डॉक्टर बोले- हमारा पक्ष नहीं सुना; पुलिस का दावा-मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट से पकड़ाई गलती
दिव्या की 5 दिन की बेटी बेबी उर्फ माही की 9 दिसंबर 2023 को मौत हो गई थी। जब बच्ची की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि उसके हार्ट में तीन चैंबर थे, जबकि प्रेग्नेंसी के दौरान डॉक्टरों ने जांच में सब कुछ नॉर्मल बताया था।
दिव्या के पति अभिमन्यु ने इसे डॉक्टरों की लापरवाही बताते हुए रेडियोलॉजिस्ट और गायनाकोलॉजिस्ट के खिलाफ थाने में शिकायत की थी। पुलिस ने मामले की जांच की और 10 सितंबर को तीन डॉक्टरों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया। इसमें भागीरथ नर्सिंग होम की डॉ. साधना मिश्रा, ऋचा डायग्नोस्टिक सेंटर की डॉक्टर रीता जैन और डॉ. राकेश जैन शामिल हैं।
हालांकि, मामला दर्ज होने के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की सागर यूनिट इसका विरोध कर रही है। आरोपी डॉक्टरों का भी कहना है कि पुलिस ने उनका पक्ष नहीं सुना। दूसरी तरफ पुलिस का कहना है कि मामले की जांच मेडिकल बोर्ड से करवाई गई थी, जिसमें लापरवाही पाई गई।
अब जानिए क्या है परिजन के आरोप
अभिमन्यु ने बताया, पत्नी दिव्या का इलाज मकरोनिया के पद्माकर नगर स्थित भागीरथ नर्सिंग होम में डॉ. साधना मिश्रा कर रही थीं। इलाज के दौरान उन्होंने जो टेस्ट और सोनोग्राफी बताई, वह सभी ऋचा डायग्नोस्टिक सेंटर पर डॉ. रीता जैन व डॉ. राकेश जैन के यहां से कराई गई थीं।।
डॉ. साधना मिश्रा ने सभी जांच में बच्ची की स्थिति सामान्य बताई थी। डिलीवरी के पहले उन्होंने छठे महीने में 8 सितंबर को सोनोग्राफी करवाई, जिसमें लिखा कि बच्ची स्वस्थ है और उसके हार्ट में 4 चेंबर हैं। इसके बाद 9वें महीने में 27 नवंबर को सोनोग्राफी (कलर डॉपलर यूएसजी) में भी रिपोर्ट नॉर्मल बताई।
दूसरे दिन बच्ची की तबीयत बिगड़ी, तब हुआ खुलासा
अभिमन्यु कहते हैं कि हम सभी लोग बहुत खुश थे। जब अस्पताल से घर लौटे तो दूसरे दिन बच्ची के शरीर पर लाल धब्बे दिखाई दिए। हम तत्काल चैतन्य अस्पताल पहुंचे। यहां उसके टेस्ट किए गए। जब उसका इकोकार्डियोग्राफी टेस्ट कराया गया तो डॉक्टरों ने बताया कि उसका हार्ट अविकसित है।
जब हमने डॉक्टरों को पुरानी रिपोर्ट्स दिखाई तो वे बोले कि गलत रिपोर्ट्स हैं। अभिमन्यु बताते हैं कि अगले दो दिन बच्ची मौत से संघर्ष करती रही और आखिर में उसने दम तोड़ दिया। ये हमारे लिए ऐसा सदमा है, जिससे हम उबर नहीं सके हैं।
बच्ची की मां दिव्या कहती हैं कि मैं जब इसके बारे में सोचती हूं तो पूरा वाकया मेरे सामने आ जाता है। बच्ची की मौत के बाद मैं कई महीनों तक मानसिक रूप से परेशान रही। मैं प्ले स्कूल में बच्चों को पढ़ाती हूं, बच्ची के जाने के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया था। अब 1 महीने पहले ही जॉइन किया है। खुद को कैसे संभाला है, नहीं बता सकती।
जानिए पुलिस ने मामला दर्ज करने में 9 महीने क्यों लगाए
मोती नगर थाने के टीआई जसवंत राजपूत बताते हैं कि जब हमें शिकायत मिली तो पूरे मामले की जांच की। बच्ची की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और उसके जन्म से पहले की रिपोर्ट में अंतर था। कौन सी रिपोर्ट सही थी, इसकी जांच के लिए हमने जिले के सीएमएचओ को मेडिकल बोर्ड के गठन के लिए पत्र लिखा।
साथ ही जिन दो डॉक्टरों ने बच्ची का पोस्टमॉर्टम किया था उनसे जानकारी ली गई। पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर देवेश पटेरिया और डॉ. अजय यादव दोनों ने बच्ची के हार्ट में तीन चैंबर होने की पुष्टि की। इसके बाद जब मेडिकल बोर्ड का गठन हुआ तो उन्होंने ऋचा डायग्नोस्टिक सेंटर और चैतन्य अस्पताल की रिपोर्ट देखी।
उस आधार पर बोर्ड ने भी माना कि भागीरथ नर्सिंग होम की संचालक डॉ. साधना मिश्रा और दोनों रेडियोलॉजिस्ट ने गलत रिपोर्ट दी थी। इसके बाद हमने परिजन के बयान दर्ज किए।
कार्रवाई पर डॉक्टर कर रहे विरोध
रेडियोलॉजिस्ट डॉ. रीता जैन कहती हैं कि पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई की है। हमें तो मीडिया से ही ये सूचना मिली कि पुलिस ने गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है। डॉ. जैन कहती हैं कि पुलिस ने न तो हमसे जवाब लिए और न ही बयान दर्ज किए और इन धाराओं में मामला दर्ज कर लिया।
डॉक्टरों के इन आरोपों पर टीआई जसवंत सिंह राजपूत कहते हैं कि जिन डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की गई वे गलत बयान दे रहे हैं। हमने उन्हें नोटिस भेजा था। इनमें से दो डॉक्टरों ने नोटिस लेने से ही मना कर दिया था।
वहीं, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) भी पुलिस कार्रवाई को गलत ठहरा रहा है। आईएमए के सागर यूनिट के अध्यक्ष डॉ. सर्वेश तिवारी का कहना है कि ये ऑब्जर्वेशन का डिफेक्ट था। बच्ची के दिल में तीन चेंबर थे ये नेचुरल था, इसमें डॉक्टर कुछ नहीं कर सकते थे। उन्होंने कहा कि सेवा में कमी को लेकर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज करना गलत है।
परिवार बोला- डॉक्टरों को न्याय प्रक्रिया पर भरोसा रखना चाहिए
डॉक्टरों पर केस दर्ज करने और उनके विरोध को लेकर पीड़ित परिवार का कहना है कि यदि डॉक्टरों ने कुछ गलत नहीं किया तो उन्हें न्याय प्रक्रिया पर भरोसा रखना चाहिए। अभिमन्यु के पिता मधुकर शर्मा कहते हैं कि हमने अपनी बच्ची को खोया है। शिकायत दर्ज करने के 9 महीने बाद दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है।
जिन डॉक्टरों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ उन्हें कोर्ट जाना चाहिए। इसके बजाय डॉक्टर्स आंदोलन और प्रदर्शन कर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। पुलिस ने उन्हें नोटिस दिया था, उन्होंने उसका जवाब नहीं दिया।