चाहे जो सत्ता में आए, अमेरिका की नीतियां नहीं बदलेंगी
चाहे जो सत्ता में आए, अमेरिका की नीतियां नहीं बदलेंगी
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के लिए कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच कड़ी टक्कर है। ताजा-तरीन जनमत सर्वेक्षणों में कमला ट्रम्प पर थोड़ी बढ़त बनाए हुए हैं। उधर उपराष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवार भी एक-दूसरे से अलग हैं।
ट्रम्प के साथी जेडी वेंस 40 साल के हैं और वे बहुत मुखर हैं। उनकी पत्नी उषा चिलुकुरी अमेरिका में तेलुगु अप्रवासी माता-पिता के घर जन्मी हैं और एक सफल वकील हैं। अगर ट्रम्प-वेंस की जोड़ी जीत जाती है, तो व्हाइट हाउस में उषा की एक मजबूत उपस्थिति होगी।
हालांकि, ज्यादा संभावना इस बात की है कि कमला हैरिस भारतीय और अश्वेत मूल की पहली अमेरिकी राष्ट्रपति बनेंगी, और पहली अमेरिकी महिला राष्ट्रपति भी। कमला की मां श्यामला गोपालन एक तमिल जीव-विज्ञानी थीं।
लेकिन क्या कमला की भारतीय पृष्ठभूमि के कारण उनके राष्ट्रपति बनने का भारत-अमेरिका संबंधों पर असर पड़ेगा? इसका संक्षिप्त उत्तर है : नहीं। अमेरिकी नीतियां एक जटिल प्रक्रिया द्वारा निर्धारित की जाती है।
अमेरिकी कैबिनेट के सदस्य निर्वाचित नहीं होते हैं। वे डोमेन विशेषज्ञता वाले टेक्नोक्रेट होते हैं। उदाहरण के लिए, बाइडेन प्रशासन में विदेश मामलों की कैबिनेट के सबसे वरिष्ठ सदस्य और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन एक वकील हैं।
उन्होंने कंसल्टिंग फर्म वेस्टएक्सेक एडवाइजर्स की सह-स्थापना की है। उन्होंने बिल क्लिंटन और जॉर्ज डब्ल्यू. बुश प्रशासन में वरिष्ठ सलाहकार भूमिकाएं भी निभाई हैं- एक डेमोक्रेटिक, दूसरे रिपब्लिकन।
वहीं अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन एक सम्मानित सैनिक हैं, जिन्होंने सेना के उप-प्रमुख के रूप में कार्य किया है और इराक-अफगानिस्तान में युद्धों के मैदान की कार्रवाइयां देखी हैं। अन्य अमेरिकी कैबिनेट सदस्य भी विविध पृष्ठभूमियों से आते हैं, जैसे व्यवसाय, सैन्य, कानून और शिक्षा। कमला के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार टिम वाल्ज चीन में शिक्षक रह चुके हैं।
लेकिन अमेरिकी नीतियों में इससे भी अधिक महत्वपूर्ण तत्व वॉशिंगटन के विशाल प्रशासनिक तंत्र में मौजूद नौकरशाहों का एक अदृश्य समूह है। नीतियां यहीं बनती-बिगड़ती हैं। यहां शक्तिशाली लॉबीइस्ट हैं, जो अमेरिकी नीतियों, विशेष रूप से विदेशी मामलों, रक्षा और आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव डालते हैं।
सबसे धनी लॉबीइस्टों में से एक एआईपीएसी (अमेरिकन इजराइल पब्लिक अकाउंट्स कमेटी) है। यह सीनेटरों और अन्य नीति-निर्माताओं को उदारतापूर्वक दान देती है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अमेरिकी नीति दृढ़ता से इजराइल के पक्ष में बनी रहे।
हालांकि डेमोक्रेटिक पार्टी का वामपंथी धड़ा गाजा युद्ध में अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल के खिलाफ तेजी से मुखर हो रहा है। जब पिछले महीने वॉशिंगटन यात्रा के दौरान इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कमला हैरिस से मुलाकात की थी तो वे बाइडेन की तुलना में इजराइल के प्रति ज्यादा सख्त थीं। उन्होंने नेतन्याहू से गाजा में फिलिस्तीनियों की पीड़ा के बारे में स्पष्ट रूप से कहा था : ‘मैं चुप नहीं रहूंगी!’
इसके विपरीत, डोनाल्ड ट्रम्प ने गाजा में इजराइल के सैन्य अभियान का जोरदार समर्थन किया है। रिपब्लिकंस ट्रम्प के समर्थन-आधार का लाभ उठाने की उम्मीद कर रहे हैं, जो अप्रवासी विरोधी, नस्लवादी और इस्लामोफोबिक है।
यह वर्ग इजराइल को एक साथी गोरे देश के रूप में देखता है, जो उस भूमि के लिए अरबों से लड़ रहा है, जिसे ज़ायोनिस्टों के द्वारा यहूदियों की मातृभूमि कहा जाता है। यदि कमला हैरिस जीतती हैं, तो राष्ट्रपति के रूप में उनसे भी इजराइल के लिए अमेरिकी समर्थन को बनाए रखने की उम्मीद की जा सकती है। अमेरिकी डीप स्टेट (एफबीआई, सीआईए, होमलैंड सिक्योरिटी और पेंटागन) निरंतर युद्ध की संभावना को पसंद करता है, क्योंकि इससे उनके हथियार-निर्माण कारखानों को बढ़ावा मिलता है।
कमला के नेतृत्व में अमेरिका बीजिंग पर बाइडेन के सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी प्रतिबंध को दोगुना कर सकता है। इस्लामाबाद के अमेरिकी दूतावास में सीआईए की प्रभावी मौजूदगी रही थी, इसलिए पाकिस्तान के भीतर आतंकवादी हिंसा और भारत में आतंकवाद के निर्यात पर नजर रखी जाएगी।
व्यापार के मामले में, अमेरिका भारत के साथ संबंधों को और गहरा करेगा, जिसे वह इंडो-पैसिफिक में चीन के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है। वहीं ट्रम्प की जीत की स्थिति में ट्रम्प-वेंस प्रशासन चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रति सख्त होगा, लेकिन भारत पर आयात शुल्क कम करने के लिए दबाव डालेगा। अंत में न तो कमला और न ही ट्रम्प अतीत की नीतियों से कुछ अलग नीतियों को लागू करेंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)