क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर आरक्षण क्या है ?

 क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर आरक्षण क्या है, सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST, ओबीसी के दावे पर क्या आदेश दिया?
रिजर्व कैटेगरी के मेधावी छात्रों को अब केवल रिजर्व सीटों तक सीमित नहीं रहना होगा. अगर वे योग्य हैं तो उन्हें जनरल कैटेगरी में भी प्रवेश मिल सकता है.

यह मामला मध्य प्रदेश में MBBS सीटों के आवंटन से संबंधित है. कुल सीटों में से 5% सीटें सरकारी स्कूल (GS) के छात्रों के लिए आरक्षित थीं. मध्य प्रदेश शिक्षा प्रवेश नियम 2018 के नियम 2(जी) के अनुसार, कई सीटें खाली रह गईं. इन खाली सीटों को GS-UR श्रेणी से ओपन कैटेगरी में स्थानांतरित कर दिया गया.

अपीलकर्ताओं ने मध्य प्रदेश के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें योग्य रिजर्व कैटेगरी के छात्रों को जनरल कैटेगरी की सरकारी स्कूल कोटे की MBBS सीटें नहीं दी गई थीं. कुछ योग्य छात्र, जो रिजर्व कैटेगरी से थे उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के क्षैतिज आरक्षण लागू करने के तरीके को पहले हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. 

हालांकि हाई कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया था. इसके बाद अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. अपीलकर्ताओं ने कहा कि रिजर्व कैटेगरी के योग्य छात्रों को जनरल कैटेगरी के सरकारी स्कूल कोटे की MBBS सीटें दी जानी चाहिए, इससे पहले कि उन्हें ओपन कैटेगरी में जारी किया जाए. 

इस मामले में मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर आरक्षण का सही अर्थ क्या है. क्या एक योग्य छात्र, जो रिजर्व कैटेगरी से आता है उसको क्षैतिज आरक्षण योजना के तहत जनरल कैटेगरी में सीट पाने से रोका जा सकता है या नहीं?

पहले समझिए क्या है क्षैतिज आरक्षण
क्षैतिज आरक्षण (Horizontal Reservation) का मतलब है कि कुछ खास समूहों जैसे महिलाएं, सैनिक, ट्रांसजेंडर और विकलांग लोगों को भी आरक्षण का फायदा मिले. यह आरक्षण उन समुदाय के लिए होता है जो ऊर्ध्वाधर आरक्षण के तहत नहीं आते हैं. क्षैतिज आरक्षण का उद्देश्य समाज के उन वर्गों को समान अवसर प्रदान करना है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं. यह आरक्षण इन समुदायों को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में शामिल होने का मौका देता है.

मान लीजिए महिलाओं के लिए 50% का क्षैतिज आरक्षण है. इसका मतलब है कि चुने गए उम्मीदवारों में से आधे जरूर महिलाएं होनी चाहिए. यह हर ऊर्ध्वाधर कोटे के लिए लागू होगा. जैसे अगर SC कोटे से 10 लोग चुने गए हैं तो उनमें से 5 जरूर महिलाएं होनी चाहिए. इसी तरह, अगर सामान्य वर्ग से 20 लोग चुने गए हैं तो उनमें से 10 महिलाएं होनी चाहिए.

ऊर्ध्वाधर आरक्षण का क्या मतलब है
ऊर्ध्वाधर आरक्षण (Vertical Reservation) का मतलब है कि कानून के तहत निर्दिष्ट हर समूह के लिए अलग से आरक्षण दिया जाता है. जैसे, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति  (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए अलग-अलग आरक्षण होता है. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण को ऊर्ध्वाधर आरक्षण कहा जाता है. 

अनुच्छेद 16(4) ऊर्ध्वाधर आरक्षण का एक उदाहरण है. इस अनुच्छेद के तहत SC, ST और OBC के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया गया है. ऊर्ध्वाधर आरक्षण का उद्देश्य उन समूहों को समान अवसर प्रदान करना है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं. यह आरक्षण इन समूहों को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में शामिल होने का मौका देता है.

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एक साथ कैसे लागू होते हैं?
ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज आरक्षण दोनों अलग-अलग तरीके से लागू होते हैं. क्षैतिज आरक्षण हर ऊर्ध्वाधर श्रेणी के लिए अलग से लागू होता है, पूरे बोर्ड पर नहीं. जब दोनों तरह के आरक्षण एक साथ लागू होते हैं तो कई सवाल उठते हैं. जैसे एक SC महिला को महिला श्रेणी में गिना जाएगा या SC श्रेणी में? क्योंकि कोटे प्रतिशत में तय होते हैं, तो हर श्रेणी के लिए कितने प्रतिशत का कोटा तय किया जाएगा?

इन सवालों के जवाब देने में कई बार मुश्किल होती है और अलग-अलग मामलों में अलग-अलग तरीके से लागू किया जा सकता है.

मध्य प्रदेश में MBBS सीटों के मामले में याचिकाकर्ता का तर्क
मध्य प्रदेश के एमबीबीएस से जुड़े मामले में अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्य सरकार ने आरक्षित उम्मीदवारों को और छोटे समूहों में बांटा था, जैसे UR-GS, SC-GS, ST-GS, OBC-GS और EWS-GS. उनका तर्क था कि यह गलत है और सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों के खिलाफ है.

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने तर्क दिया कि मध्य प्रदेश सरकार की नीति गलत थी. इस नीति की वजह से कम योग्य छात्रों को जनरल कैटेगरी में सीट मिल गई, जबकि ज्यादा योग्य छात्रों को रिजर्व कैटेगरी में सीट नहीं मिली. उन्होंने जोर देकर कहा कि यह प्रथा सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों के खिलाफ थी. इन फैसलों में साफ कहा गया था कि अगर रिजर्व कैटेगरी के छात्र योग्य हैं तो उन्हें जनरल कैटेगरी में भी सीट मिलनी चाहिए.

मध्य प्रदेश सरकार की दलील
वहीं मध्य प्रदेश सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) नाचिकेता जोशी ने प्रदेश की नीति का बचाव किया, यह तर्क देते हुए कि क्षैतिज आरक्षण के भीतर उप-वर्गीकरण उचित और आवश्यक था ताकि सभी श्रेणियों में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके. 

उन्होंने दलील दी कि OBC-GS, ST-GS, SC-GS, URGS और EWS-GS श्रेणियों में बांटना सही है. यह क्षैतिज आरक्षण है, इसलिए ऊर्ध्वाधर आरक्षण की श्रेणियों जैसे SC/ST/OBC/EWS को UR-GS श्रेणी में स्थानांतरित करना संभव नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिया
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ताओं का तर्क सही है. अपीलकर्ता बहुत योग्य थे और जनरल कैटेगरी के छात्रों से ज्यादा नंबर लाए थे, लेकिन उन्हें GS-UR सीटें नहीं मिलीं. यह गलत तरीके से क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर आरक्षण लागू करने की वजह से हुआ है. कई छात्र, जो अपीलकर्ताओं से कम नंबर लाए थे उन्हें GS-UR सीटें मिल गईं. यह सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों के खिलाफ है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिजर्व कैटेगरी के योग्य छात्रों को जनरल कैटेगरी में सीटें पाने से रोकना गलत है. SC/ST/OBC श्रेणी के योग्य छात्रों को UR-GS कोटे के तहत सीटें मिलनी चाहिए थी, लेकिन उन्हें नहीं मिली. 

सुप्रीम कोर्ट ने सौरव यादव मामले में दिए गए पुराने फैसले के सिद्धांतों को दोहराया और कहा कि क्षैतिज आरक्षण को ऐसे कठोर नियम नहीं माना जाना चाहिए जिससे योग्य उम्मीदवारों को जनरल कैटेगरी में प्रतिस्पर्धा करने से रोका जाए. जस्टिस बीआर गवाई ने कहा कि जनरल कैटेगरी सभी के लिए खुली है. किसी भी उम्मीदवार को इस श्रेणी में दिखाने के लिए केवल योग्यता ही जरूरी है, चाहे उसे किसी भी तरह के आरक्षण का फायदा मिले या न मिले. रिजर्व कैटेगरी के योग्य उम्मीदवारों को अनारक्षित सीटों से रोकना न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि योग्यता के सिद्धांतों के खिलाफ भी है.

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सौरव यादव मामला समझिए अब
सौरव यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2020 का मामला यूपी में कांस्टेबल के पद भरने के लिए अलग-अलग आरक्षण श्रेणियों को कैसे लागू किया जाए, इससे संबंधित था. उत्तर प्रदेश सरकार की नीति थी कि रिजर्व कैटेगरी के उम्मीदवारों को केवल अपनी श्रेणी में ही सीटें दी जाएं, भले ही वे ज्यादा नंबर लाए हों. 

सौरव यादव मामले में दो छात्राएं सोनाम तोमर और रीता रानी ने एक परीक्षा में भाग लिया था. सोनाम तोमर ने OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) महिला श्रेणी में आवेदन किया था, जबकि रीता रानी ने SC (अनुसूचित जाति) महिला श्रेणी में आवेदन किया था. दोनों छात्राएं अपनी श्रेणी में क्वालीफाई नहीं कर पाईं. लेकिन सामान्य महिला (अनारक्षित-महिला) श्रेणी में अंतिम क्वालीफाई करने वाले उम्मीदवार ने 274.8298 अंक प्राप्त किए थे, जो सोनाम तोमर के अंकों से कम थे. इस मामले में सवाल यह था कि क्या सोनाम तोमर को सामान्य महिला श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए था, क्योंकि उन्होंने रिजर्व कैटेगरी में भी इतने अंक प्राप्त किए थे.

सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल यह था कि अगर चयन का आधार “योग्यता” है, तो क्या सोनाम तोमर को OBC-Female श्रेणी के बजाय General-Female श्रेणी में चुना जाना चाहिए, क्योंकि उसने ज्यादा अंक प्राप्त किए थे.

सौरव यादव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति रिजर्व कैटेगरी से आता है और उसके नंबर इतने अच्छे हैं कि उसे आरक्षण के बिना भी सीट मिल सकती है तो उसे आरक्षण के बिना ही गिना जाएगा और उसे सामान्य वर्ग में आरक्षण के कोटे से बाहर नहीं रखा जा सकता. 

हालांकि यूपी सरकार का मानना था कि रिजर्व कैटेगरी के छात्रों को केवल अपनी ही श्रेणी में प्रवेश मिलना चाहिए, चाहे वे कितने भी अच्छे अंक प्राप्त करें. लेकिन अदालत ने कहा कि ऐसा करना गलत है और सामान्य वर्ग को केवल उच्च जातियों के लिए आरक्षित रखने जैसा है.

मतलब योग्यता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता?
अदालत के फैसलों के आधार पर कहा जा सकता है कि योग्यता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. अगर कोई आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों से ज्यादा नंबर लाता है, तो उसे सामान्य वर्ग में ही गिना जाएगा. आरक्षण का उद्देश्य समाज के वंचित वर्गों को आगे बढ़ाना है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि योग्य उम्मीदवारों को नजरअंदाज किया जाए.

अदालत ने क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर आरक्षण के बीच एक संतुलन बनाने की कोशिश की है. दोनों तरह के आरक्षण को लागू करते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि योग्य उम्मीदवारों को नुकसान न पहुंचे.

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