खेती में मशीनों का सुखा !

140 करोड़ लोगों का पेट भरने वाली खेती में 50% भी मशीनों का इस्तेमाल नहीं!
सरकारी अधिकारियों का अनुमान है कि खेती में 75-80 फीसदी मशीनों का इस्तेमाल करने में अभी 25 साल और लग सकते हैं. अभी खेती में सिर्फ 47 फीसदी काम मशीनों से होता है.

चावल, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, दालें, तिलहन, कपास और गन्ने जैसी मुख्य फसलों को देखें तो पता चलता है कि इन फसलों की खेती में अगस्त 2022 तक औसतन सिर्फ 47 फीसदी ही मशीनों का इस्तेमाल होता था. यानी आधे से भी कम काम मशीनों से होता है. ये आंकड़ा चीन (60%) और ब्राजील (75%) जैसे दूसरे विकासशील देशों से भी कम है.

कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण संबंधी स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश को 75-80% मशीनीकरण तक पहुंचने में लगभग 25 साल लग सकते हैं. इसका कारण है कि दो हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों की संख्या कुल किसानों की 86% है. ऐसे में इन छोटे किसानों के लिए अपनी खुद की मशीन खरीदना मुश्किल होता है.

पहले समझिए खेती में मशीनों का क्या महत्व
खेती को एक व्यापार के रूप में बढ़ाने के लिए मशीनों का इस्तेमाल बहुत जरूरी है. मशीनों से काम जल्दी होता है और सही तरीके से किया जा सकता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है. ज्यादा उत्पादन होने से किसानों की आय बढ़ जाती है.

इतना ही नहीं, मशीनें हाथों से काम करने की तुलना में बहुत तेजी से काम करती हैं. इससे किसान कम समय में ज्यादा काम कर पाते हैं. मशीनों से काम करने पर किसानों को कम मेहनत करनी पड़ती है और फसल को नुकसान भी कम होता है. मशीनों का इस्तेमाल करके खेती को आधुनिक बनाया जा सकता है. 

140 करोड़ लोगों का पेट भरने वाली खेती में 50% भी मशीनों का इस्तेमाल नहीं!

उधर खेती के लिए मशीनें बनाने वाली कंपनियां भी अपनी मशीनों को और बेहतर बनाने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रही हैं, जैसे रोबोट, जीपीएस और नेविगेशन सिस्टम. इससे भारत में खेती में मशीनों के इस्तेमाल का नया दौर शुरू हो रहा है.

देश के खेती वाले इलाकों में बिजली की उपलब्धता भी बढ़ी है. पहले 1975-76 में एक हेक्टेयर जमीन पर 0.36 किलोवाट बिजली मिलने पर एक साल में दो फसलें ली जाती थीं. फिर 2016-17 में एक हेक्टेयर जमीन पर 2.24 किलोवाट बिजली मिलने लगी तो एक साल में ढाई से ज्यादा फसलें ली जाने लगीं.

किस खेती में मशीनों का इस्तेमाल कितना होता है?
खेती के अलग-अलग कामों में मशीनों का इस्तेमाल अलग-अलग होता है. बीज बोने की तैयारी में सबसे ज्यादा मशीनों का इस्तेमाल होता है, लगभग 70 फीसदी काम मशीनों से होता है. बीज बोने या रोपाई के काम में 40 फीसदी मशीनों का इस्तेमाल होता है. 

खरपतवार हटाने और फसलों की देखभाल में 32 फीसदी मशीनों का उपयोग होता है. फसल काटने और दाने निकालने में 34 फीसदी मशीनों का इस्तेमाल होता है. इन सबको मिलाकर देखा जाए तो कुल मिलाकर खेती में औसतन 47 फीसदी काम मशीनों से होता है.

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छोटे किसानों के सामने क्या है परेशानी?
किसानी के लिए मशीनें बहुत महंगी होती हैं. इसलिए छोटे किसानों के लिए ये मशीनें खरीदना मुश्किल होता है. सरकार ने इस समस्या को देखते हुए ‘कस्टम हायरिंग सेंटर’ और ‘फार्म मशीनरी बैंक’ शुरू किए हैं. यहां किसान मशीनें साझा कर सकते हैं. अब तक ऐसे 37,097 केंद्र बनाए गए हैं जिनमें से 17,727 फार्म मशीनरी बैंक हैं. एक अच्छे तरीके से चलने वाला केंद्र लगभग 100 से 200 किसानों को मशीनें उपलब्ध कराता है.

समिति ने देखा कि लगभग सभी राज्यों में फार्म मशीनरी बैंक बनाए गए हैं. लेकिन इनका फायदा अभी तक गांव, पंचायत और जिला स्तर तक अच्छे से नहीं पहुंच पाया है. समिति ने सुझाव दिया कि सरकार को ऐसी योजनाओं के बारे में लोगों को अच्छी तरह से बताना चाहिए और इन केंद्रों का पता लगाने के लिए एक ऐप बनाना चाहिए.

खेती में मशीनों का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए सरकार ने कुछ किया?
संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट की मानें तो खेती में मशीनों का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं. कृषि और किसान कल्याण विभाग ने इस दिशा में खास काम किया है. सरकार किसानों को मशीनें खरीदने के लिए सब्सिडी देती है ताकि उनके पास खेती के लिए जरूरी साधन उपलब्ध हों जाएं. कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने खेती में मशीनों को बढ़ावा देने वाली योजनाओं के लिए हर साल बजट में रकम भी बढ़ाई है.

सरकार ने साल 2014-15 में एक योजना शुरू की थी जिसका नाम है ‘कृषि यंत्रीकरण उप-मिशन’ (Sub Mission on Agricultural Mechanization). इस योजना के तहत राज्यों को मदद दी जाती है ताकि किसानों को मशीनों के बारे में बताया जा सके और उन्हें मशीनें खरीदने में मदद की जा सके. इसके अलावा मशीनों को किराए पर देने के लिए सेंटर भी बनाए जाते हैं.

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खेती में बिजली की क्या जरूरत
खेती में बिजली की उपलब्धता का फसल की पैदावार पर बहुत असर पड़ता है. संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, अभी औसतन एक हेक्टेयर जमीन पर 2.5 किलोवाट बिजली मिलती है, लेकिन इसे 2030 तक बढ़ाकर 4 किलोवाट प्रति हेक्टेयर करना होगा.

अलग-अलग राज्यों में बिजली की उपलब्धता भी अलग-अलग है. उदाहरण के लिए, पंजाब में एक हेक्टेयर जमीन पर 6 किलोवाट बिजली मिलती है, जबकि मिजोरम में सिर्फ 0.7 किलोवाट मिलती है. अगर बिजली की आपूर्ति अच्छी होगी तो खेती के काम समय पर हो सकेंगे और ज्यादा जमीन पर खेती हो सकेगी, जिससे उत्पादन बढ़ेगा.

मशीनों के इस्तेमाल में क्या कमी है?
समिति ने कहा कि खेती में मशीनों के इस्तेमाल का अभी तक कोई पूरा अध्ययन नहीं हुआ है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने सुझाव दिया है कि हर राज्य में एक अध्ययन किया जाए ताकि पता चल सके कि मशीनों के इस्तेमाल में क्या कमी है और क्या किया जा सकता है.

समिति ने यह भी कहा कि किसानों को मशीनों के बारे में बताने और सिखाने के लिए इंजीनियरों की कमी है. अभी तक सिर्फ मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में ही कृषि इंजीनियरिंग विभाग है. सरकार ने राज्यों से कहा है कि वे भी अपने राज्य में ऐसा विभाग बनाएं. समिति ने भी हर राज्य में ऐसा विभाग बनाने का सुझाव दिया है.

समिति ने पाया कि एक मोबाइल ऐप बनाया गया है जिसका नाम कृषि यंत्र मित्र है. इस ऐप के जरिए किसानों को जानकारी दी जाती है. इस ऐप का ज्यादा से ज्यादा प्रचार किया जाना चाहिए ताकि सभी किसानों को इसका फायदा मिल सके.

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