पार्टी ने बनाया मुख्यमंत्री, लेकिन उठाया बगावत का झंडा !

वो 10 नेता जिन्हें पार्टी ने बनाया मुख्यमंत्री, लेकिन उठाया बगावत का झंडा
राजनीति में ऐसे भी नेता हैं जिन्होंने पार्टी आलाकमान के कहने पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तो दे दिया, लेकिन फिर इसके बाद एक अलग राह पकड़ ली.

भारतीय राजनीति में कई ऐसे उदाहरण हैं जहां मुख्यमंत्री रह चुके नेताओं ने अपनी ही पार्टी के साथ बगावत कर दी. ये नेता जिस पार्टी से मुख्यमंत्री बनाए गए थे, उसी पार्टी के खिलाफ किसी कारणवश मोर्चा खोल दिया. फिर ऐसे नेताओं ने या तो नई पार्टी बना ली या फिर विपक्षी दल में शामिल हो गए.

हाल ही में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेता चंपाई सोरेन के सुर बागी हो गए. उन्होंने जेएमएम से बगावत करके अपनी नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है. 

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद पूर्व जेएमएम नेता चंपई सोरेन ने इसी साल 2 फरवरी को झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर पहली बार शपथ ली थी. जमानत पर हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. तीसरी बार हेमंत सोरेन झारखंड के सीएम बन गए.  चंपई सोरेन ने महज 5 महीने यानी 153 दिन मुख्यमंत्री रहते झारखंड को अपनी सेवाएं दी.

पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने इस्तीफा देने के बाद कहा था कि जब उन्हें विधायक दल की बैठक बुलाने की अनुमति नहीं दी गई और अचानक उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा गया तो उन्हें दूसरा ऑप्शन तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा. 

इसके बाद एक दूसरी पोस्ट में कहा, ‘मैं राजनीति से संन्यास नहीं लूंगा. मैंने तीन ऑप्शन बताए थे- रिटायरमेंट, संगठन या दोस्त. मैं रिटायर नहीं होऊंगा, मैं अपनी पार्टी को मजबूत करुंगा. नई पार्टी बनाउंगा और अगर रास्ते में कोई अच्छा दोस्त मिलता है तो उसके साथ आगे बढ़ूंगा.’

वो 10 नेता जिन्हें पार्टी ने बनाया मुख्यमंत्री, लेकिन उठाया बगावत का झंडा

ऐसे ही भारतीय राजनीति में कई नेता हैं जिन्होंने पार्टी आलाकमान के कहने पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा तो दे दिया, लेकिन फिर इसके बाद एक अलग राह पकड़ ली. ऐसे ही नेताओं की चलिए आज यहां चर्चा करते हैं.

जीतन राम मांझी: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री
जीतन राम मांझी ने 1980 में राजनीति में कदम रखा था. उन्होंने कांग्रेस, जनता दल जैसे कई राजनीतिक दलों में काम किया. लेकिन उनकी पहचान तब बनी जब वे 2005 में जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हुए. मई 2014 में जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि, उनका कार्यकाल लंबा नहीं चला. 2015 में उन्हें पार्टी ने इस्तीफा देने के लिए कहा ताकि नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बन सकें. 

मांझी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, लेकिन अंततः उन्हें बहुमत साबित करने के लिए विश्वास मत का सामना करना पड़ा. वह बहुमत साबित नहीं कर पाए और अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.

इसके बाद जीतन राम मांझी ने जेडी(यू) से भी इस्तीफा दे दिया और अपनी नई पार्टी ‘हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा’ का गठन कर दिया. 2015 के विधानसभा चुनाव में मांझी ने भाजपा और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें केवल एक सीट पर जीत मिली. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल होने का निर्णय लिया. फिर 2023 में भाजपा में वापसी की और मोदी सरकार में सबसे उम्रदराज मंत्री बने.

एनटी रामाराव: एक अभिनेता से मुख्यमंत्री बनने की कहानी
नंदमूरी तारक रामाराव (NTR) एक मशहूर तेलुगु अभिनेता थे जिन्होंने साल 1983 से 84, 1984 से 89 और 1994 से 95 तक तीन बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद संभाला था. राजनीतिक में आने से पहले एनटी रामाराव ने करीब 300 फिल्मों में काम किया था और अपने अभिनय से लाखों दिलों में जगह बनाई थी. उनके अभिनय ने उन्हें जल्द ही सुपरस्टार बना दिया था.

साल 1949 में एनटी रामाराव ने ‘मना देशम’ फिल्म से अपने करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद 1982 में एनटी रामाराव ने फिल्मी करियर छोड़कर राजनीति में कदम रखा और ‘तेलुगु देशम पार्टी’ (टीडीपी) की स्थापना की. उनका उद्देश्य आंध्र प्रदेश के तेलुगु भाषी लोगों के अधिकारों की रक्षा करना था. उनकी लोकप्रियता ने पार्टी को भी तेजी से मशहूर बना दिया और 1983 के विधानसभा चुनाव में टीडीपी ने शानदार जीत हासिल की. एनटी रामाराव आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.

एनटी रामाराव के पहले कार्यकाल (1983-1984) में कई अहम सुधार किए. उन्होंने गरीबों के लिए अन्ना कैंटीन की स्थापना की, जहां सस्ता भोजन उपलब्ध कराया जाता था. उनके कार्यकाल में कई कल्याणकारी योजनाएं लागू की गईं, जिससे आम लोगों को फायदा मिला. हालांकि, उनका दूसरा कार्यकाल (1984-1989) उतार-चढ़ाव से भरा रहा. साल 1994 में एनटी रामाराव ने तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का मौका पाया. लेकिन इस बार उनकी अपनी पार्टी के भीतर बगावत शुरू हो गई.

NTR की दूसरी पत्नी लक्ष्मी पर्वती ने पार्टी की राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया. इससे NTR के दामाद चंद्रबाबू नायडू (जो 1984 से उनके साथ थे) नाराज हो गए. समय के साथ अफवाहें फैलने लगीं कि NTR अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं. इससे नायडू और ज्यादा नाराज हो गए. सितंबर 1995 में उन्होंने NTR को अपनी ही पार्टी से बाहर कर दिया और खुद को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया. NTR के ज्यादातर विधायक चंद्रबाबू नायडू के साथ चले गए.

NTR ने गवर्नर से विधानसभा भंग करने की अपील की, लेकिन उनका अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया. 219 में से केवल 28 टीडीपी विधायकों ने उनका साथ दिया. आखिरकार नायडू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. एनटी रामाराव ने नायडू के विश्वासघात को उजागर करने के लिए एक यात्रा शुरू की. लेकिन उन्हें जनता का समर्थन नहीं मिला. एनटी रामाराव इस राजनीतिक संकट से कभी उबर नहीं पाए और 18 जनवरी 1996 को उनका निधन हो गया.

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह
अमरिंदर सिंह ने भारतीय सेना में सेवा दी है और एक कैप्टन के रूप में अपनी पहचान बनाई है. सेना में रहते हुए उन्होंने देश की सेवा की और बाद में राजनीति में कदम रखा. 1980 के दशक में कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की. 2002 में पहली बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने. उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने चुनावों में शानदार जीत हासिल की. पहला पांच साल का कार्यकाल ठीक-ठाक रहा.

2017 में अमरिंदर सिंह ने फिर से पंजाब के मुख्यमंत्री का पद संभाला. इस बार उनका सामना कई चुनौतियों से हुआ. 2019 में नवजोत सिंह सिद्दू के साथ उनकी टकराव की स्थिति पैदा हुई. विधानसभा चुनाव से पहले साल 2021 में जब तनाव ज्यादा बढ़ गया तो अमरिंदर को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसके बाद उनकी जगह चरणजीत सिंह चन्नी को पार्टी ने मुख्यमंत्री बना दिया, जो श्सिद्धू के करीबी माने जाते हैं.

वो 10 नेता जिन्हें पार्टी ने बनाया मुख्यमंत्री, लेकिन उठाया बगावत का झंडा

अपने इस्तीफे के बाद अमरिंदर सिंह ने एक नई पार्टी ‘पंजाब लोक कांग्रेस’ का गठन किया. हालांकि 2022 विधानसभा चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली. बाद में उनकी पार्टी का भाजपा में विलय हो गया. 

केशुभाई पटेल: गुजरात के पहले मुख्यमंत्री की कहानी
केशुभाई पटेल का जन्म 1928 में गुजरात के एक छोटे से गांव में हुआ था. उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और राजनीति में कदम रखा. वे भारतीय जनसंघ के सदस्य बने और बाद में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे. साल 1995 में गुजरात में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद 1998 में फिर से मुख्यमंत्री का पद संभाला. लेकिन 2001 में उन्हें अपने पद से हटा दिया गया.

बीजेपी आलाकमान ने उन्हें स्वास्थ्य कारणों और 2000 में भूकंप राहत कार्यों में कथित ‘अनियमितताओं’ के कारण हटा दिया था. इसके बाद नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला. केशुभाई पटेल को इससे गहरा दुख हुआ और 2012 में बीजेपी छोड़ ही. उन्होंने अपनी गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई. लेकिन उनकी पार्टी 2013 के राज्य चुनावों में बुरी तरह से हार गई. इसके बाद वह 2014 में बीजेपी में फिर से शामिल हो गए.

केशुभाई पटेल का 29 अक्टूबर 2020 को स्वास्थ्य समस्याओं के कारण निधन हो गया. उनका राजनीतिक जीवन उतार-चढ़ाव से भरा था. उन्होंने गुजरात में बीजेपी की पहली सरकार बनाई, लेकिन अंततः पार्टी के भीतर राजनीतिक संघर्ष के कारण उन्हें हटा दिया गया.

एक समय नारायण राणे शिवसेना के बेहद खास नेता के तौर पर गिने जाते थे. उन्हें शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का समर्थन हासिल था. उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत एक वार्ड लीडर के रूप में शुरू हुई थी. वह बृहन्मुंबई नगर निगम के एक पार्षद बने और बाद में बीएसटी समिति के अध्यक्ष भी बने. 1991 में सिंधुदुर्ग से विधायक चुने गए. 1995 में डेयरी विकास मंत्री का पदभार संभाला और बाद में राजस्व मंत्री बने. इस तरह वह धीरे-धीरे शिवसेना के नेतृत्व तक पहुंच गए. 

साल 1999 में जब मनोहर जोशी भूमि घोटाले में फंस गए, तो बाल ठाकरे ने उनकी जगह नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया. वहीं बालासाहेब ठाकरे अपने बेटे उद्धव ठाकरे को पार्टी अध्यक्ष बनाने की तैयारी करने लगे तो राणे उनके खिलाफ नाराज हो गए. उन्होंने तब शिवसेना छोड़ कांग्रेस पार्टी में शामिल होने का फैसला किया और शिवसेना के 40 विधायकों को अपने साथ लाने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहे.

2017 में नारायण राणे ने कांग्रेस पार्टी भी छोड़ ही, यह आरोप लगाते हुए कि उन्हें मुख्यमंत्री पद का वादा किया गया था. इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी ‘महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष’ की स्थापना की. ये पार्टी अंततः साल 2019 में भाजपा में विलय हो गई और खुद भी भाजपा में शामिल हो गए. जुलाई 2021 में राणे को केंद्रीय मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया. इस तरह नारायण राण एक वार्ड लीडर से लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे और फिर शिवसेना से बगावत करके कांग्रेस-भाजपा में शामिल हुए.

वसुंधरा राजे: राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री
वसुंधरा राजे ने साल 2003 में पहली बार राजस्थान की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. उनके नेतृत्व में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की थी. इसके बाद 2013 विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने फिर से जीत हासिल की और दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं. लेकिन इसबार उनके कार्यकाल में कुछ विवाद भी हो गए.

दरअसल, 2015 में वसुंधरा राजे की छवि पर सवाल उठने लगे, जब  पूर्व आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी के साथ उनके घनिष्ठ व्यापारिक संबंधों का आरोप लगाया गया. ललित मोदी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे और वे विदेश भाग गया था. वसुंधरा पर आरोप लगा कि उन्होंने ललित मोदी को ब्रिटेन जाने में मदद की. इस विवाद ने उनकी राजनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया. पार्टी आलाकमान की भी नाराजगी बढ़ा दी थी. हालांकि 2018 तक उन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. चुनाव बाद राज्य में कांग्रेस सरकार आ गई.

इसके बाद आरोप लगा कि 2021 में जब कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत की, तो वसुंधरा राजे ने भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश मेघवाल के साथ मिलकर गहलोत सरकार को बचाने की कोशिश की. लेकिन इसके बाद भी पार्टी में उनकी स्थिति कमजोर होती गई. 2023 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए भजन लाल शर्मा को उम्मीदवार चुना और पार्टी ने जीत हासिल की.

ओ पन्नीरसेल्वम: अन्नाद्रमुक का एक वफादार नेता
तमिलनाडु की राजनीति में ओ पन्नीरसेल्वम एक बड़ा नाम है. उन्हें AIADMK की सुप्रीमो जे जयललिता का उत्तराधिकारी माना जाता था. पहली बार साल 2001 में जब एआईएडीएमके की नेता जयललिता को अदालत की ओर से मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया, तब ओ पन्नीरसेल्वम को तमिलनाडु का सीएम बनाया गया. पन्नीरसेल्वम करीब 162 दिन मुख्यमंत्री रहे. जब जयललिता ने फिर से पार्टी की बागडोर संभाली तो पन्नीरसेल्वम ने कुर्सी स्वेच्छा से छोड़ दी.

इस तरह पन्नीरसेल्वम ने तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का पदभर संभाला. हालांकि, उनके सभी कार्यकाल अल्पकालिक रहे, क्योंकि उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया ताकि जयललिता फिर से मुख्यमंत्री बन सकें. एक बार तो उन्होंने शशिकला के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था.

वो 10 नेता जिन्हें पार्टी ने बनाया मुख्यमंत्री, लेकिन उठाया बगावत का झंडा

5 दिसंबर 2016 को जयललिता के निधन के बाद पन्नीरसेल्वम ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन कुछ ही दिनों बाद 20 फरवरी 2017 को उन्होंने फिर से इस्तीफा दे दिया ताकि शशिकला को मुख्यमंत्री चुना जा सके. हालांकि, दो दिनों के भीतर ही उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था और मुख्यमंत्री रहते हुए बार-बार अपमानित किया गया था. जयललिता के स्मारक के बाहर मरीना बीच पर उन्होंने विरोध प्रदर्शन भी किया. उसके बाद उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया और ई पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया गया.

हालांकि अगस्त 2017 तक पन्नीरसेल्वम और पलानीस्वामी के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक के दो गुट फिर से विलय हो गए, जिससे शशिकला को बाहर निकाल दिया गया. शशिकला उस समय संपत्ति के एक मामले में दोषी पाई गई थी और चार साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. लेकिन, 2021 के राज्य चुनावों में चुनावी हार के बाद दोनों गुटों के बीच तनाव फिर से बढ़ गया और पन्नीरसेल्वम के साथ-साथ कई समर्थकों को फिर से अन्नाद्रमुक से बाहर कर दिया गया. पलानीस्वामी को पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया.

दिगंबर कामत: गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री
दिगंबर कामत साल 1980 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) पार्टी में शामिल हुए थे. अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने पार्टी में अपना स्थान बनाया और धीरे-धीरे ऊंचाई पर पहुंचे. 2007 में दिगंबर कामत को गोवा का मुख्यमंत्री बनाया गया. उन्होंने अपना पांच साल कार्यकाल पूरा किया. 

कामत 2019 में भी कांग्रेस के साथ रहे, जब 14 विधायकों ने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया थे. लेकिन 2022 में दिगंबर कामत ने भाजपा में शामिल होने का फैसला कर लिया साथ ही अपने साथ विपक्ष के नेता माइकल लोबो और छह अन्य विधायकों को भी ले गए. उन्होंने पार्टी आलाकमान से असंतोष का हवाला देते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया.

इस तरह दिगंबर कामत ने मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया, लेकिन समय के साथ उन्हें पार्टी के भीतर की राजनीति के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उन्होंने बगावत करते हुए पार्टी का दामन छोड़ दिया.

विजय बहुगुणा: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री
उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा नाम है विजय बहुगुणा. वह 1970 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) पार्टी में शामिल हुए. 2012 में उन्हें उत्तराखंड का छठा मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया. लेकिन उनका कार्यकाल लंबा नहीं चला. 2013 में आई भीषण बाढ़ के बाद बहुगुणा सरकार की बाढ़ राहत कार्यों में विफलता के कारण उन्हें 2014 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. कांग्रेस पार्टी ने उनकी जगह हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना दिया.

इसके बाद साल 2016 में बहुगुणा ने कांग्रेस के आठ अन्य विधायकों के साथ मिलकर हरीश रावत सरकार के खिलाफ बगावत कर दी. उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगवाने की कोशिश की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हरीश रावत सरकार को बहाल कर दिया. फिर नाराज होकर बहुगुणा और उनके समर्थक भाजपा में शामिल हो गए. 

विजय शेट्टर: कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री
साल 2008 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की. पहले बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने, 2011 में सदानंद गौड़ा मुख्यमंत्री बने और 2012 में बीजेपी ने विजय शेट्टर को कर्नाटका का मुख्यमंत्री बनाया. 2013 में सरकार का कार्यकाल समाप्त हो गया.

इसके बाद लिंगायत समुदाय के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने पार्टी छोड़ दी. इससे पार्टी में विभाजन हो गया और 2013 चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. विजय शेट्टर को इसके बाद विपक्ष के नेता के रूप में चुना गया.

2019 में जब भाजपा ने कांग्रेस-जेडी (एस) सरकार गिरा दी. बीएस येदियुरप्पा फिर मुख्यमंत्री बने और विजय शेट्टर सरकार में मंत्री बने. फिर 2021 में जब बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया, तो विजय शेट्टर ने सरकार से बाहर रहने का निर्णय लिया. इस कारण 2023 चुनाव में पार्टी से उन्हें टिकट नहीं मिला, तो विजय शेट्टर ने बगावत करते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा कर्नाटका में लिंगायत समुदाय को दरकिनार कर रही है. हालांकि जनवरी 2024 में फिर से भाजपा में वापसी कर ली.

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