क्या समंदर ले रहा है बदला?

बाढ़, बारिश और आपदा, क्या समंदर ले रहा है बदला?
केदारनाथ से लेकर केरल तक बारिश इस साल अपने रौद्र रूप में है और जानकार कह रहे हैं ये सिलसिला अभी थमेगा नहीं. 30 जुलाई केरल के वायनाड में मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा में जानलेवा भूस्खलन भारी बारिश का ही नतीजा है.

एक वक्त था जब दादी नानी बड़ा याद करके बताया करती थीं… जब लल्ला चार बरस के रहे होंगे तब गांव में बहुत जोर का आंधी तूफान आया था फिर वैसा कभी नहीं देखा, लेकिन अब एक वक्त ये आया है जब आए दिन बारिश से हाहाकार मचा रहता है. सड़कें छोड़िए फ्लाईओवर तक पानी से पटे पड़े मिलते हैं. जन जीवन अस्तव्यस्त हो जाता है. पहाड़ी इलाके छोड़िए जिन्हें मेट्रो सिटीज कहा जाता है यह उनकी कहानी है.

26 जुलाई 2005 को मुंबई में हुई बारिश असाधारण थी और मुंबई के पास खराब ड्रेनेज का उलाहना भी था, लेकिन दिल्ली को क्या हुआ है?मिंटो ब्रिज और जखीरा पुल की पानी भरी तस्वीरें हर बारिश में वायरल होती हैं. जैसे ये पुल बने ही इसलिए हैं कि कब बारिश हो और ये अर्ध जलमग्न होकर वायरल हो जाएं.

क्यों एक बारिश में डूब रहे हैं हम?

केदारनाथ से केरल तक बारिश सब कुछ अपने साथ बहा देने पर आमादा हैं. ऐसे में ये चिंतन ज़रूरी हैं कि कारण क्या हैं?

  1. क्या जलनिकासी का खऱाब मैनेजमेंट है.
  2. क्या अतिनिर्माण पहाड़ मे बारिश में हो रहे विनाश का कारण हैं.
  3. क्या सिस्टम में निपटने क्षमता नहीं है.
  4. क्या दिल्ली में लोगों को परेशान करने की राजनीति करके राजनीति हो रही है.
  5. ग्लोबल वार्मिंग अपने सबसे भयावह रूप में हमारे सामने हैं.
असाधारण बारिश क्या है

अक्सर टीवी, मोबाइल और अखबार में आपने पढ़ा सुना होगा कि भारत मौसम विभाग (IMD) ने अगले इतने दिनों के लिए बारिश को लेकर अलर्ट जारी किया है. अब इस के साथ यह भी जुड़ गया है कि इस इलाके में असाधारण बारिश यानी एक्सेप्शनल हेवी रेनफॉल होने की संभावना है. अब यहां सवाल उठता है कि आखिर असाधारण बारिश क्या है?

दरअसल अब तक इस बात की एक तय लिमिट और आकलन होता था कि किसी एक महीने में कितनी बारिश होनी चाहिए, अगर बारिश उस लिमिट की हद को छू ले या उसे पार कर जाए तो इसे असाधारण बारिश कहा जाता है.एक्सेप्शनल हेवी रेनफॉल एक दिन में 12 सेंटीमीटर से अधिक बारिश को कहते हैं, इसलिए जब मौसम विभाग अलर्ट जारी करता है उसका मतलब होता है कि बारिश जान-माल के लिए जोखिम पैदा कर सकती है. ऐसे में स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन हाई अलर्ट पर होता है लोगों से अपील की जाती है बेवजह घऱ से ना निकलें एनडीआरएफ यानि नेशनल डिज़ास्टर रिस्पांस फोर्स भी तैयार रहती है.जैसा आपने 26 जुलाई 2005 को मुंबई में हुई असाधारण बारिश के मामले में देखा होगा.

जुलाई महीने में हुई असाधारण बारिश

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के डॉयरेक्टर जनरल मृत्युंजय महापात्रा ने बताया कि केवल जुलाई महीने के दौरान असाधारण भारी बारिश हुई.

  • 8 जुलाई- पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को प्रभावित किया. इस क्षेत्र में बरेली जिले के बहेड़ी में 46 सेमी और चंपावत के बनबसा में 43 सेमी बारिश हुई.
  • 19 जुलाई- सौराष्ट्र के पोरबंदर जिले के पोरबंदर क्षेत्र में 49 सेमी बारिश हुई, देवभूमि द्वारका जिले के कल्याणपुर में 29 सेमी बारिश हुई.
  • 20 जुलाई-द्वारका में ही 42 सेमी बारिश हुई.

यानि जुलाई में कुल मिलाकर 298.1 मिमी बारिश हुई, जो 1901 के बाद से 51वीं और 2001 के बाद से आठवीं घटना है.

भारत में बारिश का कहर

केदारनाथ से लेकर केरल तक बारिश इस साल अपने रौद्र रूप में है और जानकार कह रहे हैं ये सिलसिला अभी थमेगा नहीं. 30 जुलाई केरल के वायनाड में मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा में जानलेवा भूस्खलन भारी बारिश का ही नतीजा है और ये भारी बारिश ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण सामान्य से 10 फीसदी ज्यादा थी और ये बात खुद मौसम के जानकारों ने मानी है.

31 जुलाई उत्तराखंड मे जगह जगह हुई भारी बारिश ने भी भारी नुकसान किया है जिसकी वजह से गौरीकुंड से केदारनाथ तक का मार्ग पिछले 26 दिन तक बंद रहा से बंद था. 19 किलोमीटर का से रास्ता 29 जगह पर बारिश के कहर का शिकार हुआ और पहाड़ो पर रास्ते टूटना का अर्थ आप समझ सकते हैं.पिछले सालों में बाढ़ जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. दिल्ली, मुंबई, गुजरात, असम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और अब बिहार और बंगाल भी इसकी चपेट में आ चुका है.भारत, स्वीडन, अमेरिका और ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने चेताया है कि जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती जाएगी, ये घटनाएं आम होती जाएंगी.

भारत में बारिश से आई आपदा का इतिहास

उत्तराखंड आपदा: 16 जून, 2013 को उत्तराखंड में बादल फटने से आई विनाशकारी बाढ़ भारत के इतिहास की सबसे विनाशकारी बाढ़ों में से एक है. इस बाढ़ में हजारों की संख्या में लोग बह गए, जिनमें से कई लोगों के शव कभी मिले ही नहीं. पूरा का पूरा पहाड़ नदी में समा रहा था और लोग बहते हुए चले जा रहे थे. कई लोग अपनी आंखों से अपने परिवार को पानी के बहाव में बहते हुए देख रहे थे लेकिन वह उन्हें बचा नहीं पा रहे थे. बाढ़ और लैंडस्लाइड से उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ जिलों में भारी तबाही हुई. लाखों श्रद्धालु मंदिर में ही फंस गए थे.

कश्मीर बाढ़- 6 सितंबर, 2014 को कश्मीर घाटी में आई बाढ़ ने सैकड़ों ज़िंदगियां लील ली थीं. इस बाढ़ से कई इलाके प्रभावित हुए. इससे हजारों करोड़ रुपये की सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचा. लोगों के मकानों के अलावा पुल, सड़कें, सरकारी इमारतें, फसलों को भारी क्षति पहुंची. इस बाढ़ से अनंतनाग, श्रीनगर, पुलवामा, बारामुला और सोपोर जिले बुरी तरह से प्रभावित हुए थे. झेलम नदी का पानी लगातार मूसलाधार बारिश की वजह से बढ़ता गया और कश्मीर क्षेत्र के रिहायशी इलाकों में घुस गया .

बिहार की बाढ़– 2007 में भागलपुर, पूर्वी चंपारण, दरभंगा, पटना, मुजफ्फरपुर, सहरसा, सीतामढ़ी, और सुपौल जिलों में बाढ़ आई थी. जिसमें लाखों लोग प्रभावित हुए और 1,287 लोगों की मौत हो गई थी.

असम– 2016 ब्रह्मपुत्र नदी में आई बाढ़ से असम के कई गांव और जिले जलमग्न हो गए थे. इस घटना में भी सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी.

महाराष्ट्र -2017 में महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में बाढ़ आई थी. जिसमें मुंबई में लगातार 12 घंटे तक बारिश हुई थी. गुजरात और राजस्थान में भी बाढ़ की वजह से काफी नुकसान हुआ था.

केरल– 2018 में केरल में आई बाढ़ ने जमकर तबाही मचाई थी, इस बाढ़ को 1924 के बाद का सबसे भयानक बाढ़ बताया गया था.

असाधारण बारिश का कारण

आपको हैरत होगी अगर आपको पता चले कि करोलबाग की पिंकी की वजह से केरल में बाढ़ आई, क्योंकि पिंकी घर में दिन रात एसी चलाकर रहती है. अगर आपसे कहा जाए कि आगरा के सुरेश के वजह से में पिथौरागढ़ जिले के धारचूला व्यास घाटी में ओम पर्वत का ओम पर्वत का ओम पिघल गया है क्योकिं सुरेश कारपूल की सुविधा होते हुए भी रोज अपनी डीजल गाड़ी से बीस किलोमीटर ऑफिस आना जाना करते हैं. पता चले औरगांबाद मे दिन भर एसी में रहने वाले पंकज की वजह से ऑस्ट्रेलिया में गर्मी बढ़ गई है क्योंकि उन्होनें पेड़ काटकर घर में दो कमरे एक्सट्रा बना लिए.

दरअसल जितना हम इन बातों को जितना इम्पॉसिबल मानते हैं ये उतनी ही इंटरकनेक्टेड हैंपर्यावरणविद ,हरित कार्यकर्ता और हिमालयन पर्यावरण अध्ययन और संरक्षण संगठन यानि HESCO के फाउंडर डॉक्टर अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं आप देखिए दुनिया में क्या शहर और क्या गांव ग्लोबल वार्मिंग का असर सब जगह समान रूप से पड़ रहा है.इसके लिए हर कोई जिम्मेदार है. जिस तरह का एनर्जी कंजप्शन पैटर्न है और जिस तरह की लाइफस्टाइल है. हर एक आदमी एनर्जी कंज्यूम कर रहा है. आप कल्पना करिए कि ये जो गाड़ियां सड़कों पर चल रही हैं और एक आदमी एक कार में बैठा है. चार आदमी एक कार में क्यों नहीं बैठते?

आप हर घर की लाइफस्टाइल देखिए, AC हमारी सुविधा का हिस्सा हो गया. पहले वह आवश्यकता नहीं होती थी, अब गर्मी बढ़ गई तो आवश्यकता बन गई. पहले वो ठाठ-बाठ की निशानी थी. असल में मनुष्य ने अपने लिए गड्ढा खुद खोद दिया है और अब धीरे-धीरे प्रकृति तो समानता लाएगी. उसके लिए क्या सेठ और क्या गरीब. वह गांव शहर, दोनों को दबोचेगी, इसके बड़े दोषी शहर हैं. जिन्होंने कोई चीज नहीं जोड़ी. गांव ने तो फिर भी जंगल हवा मिट्टी पानी जोड़ा है, शहरों ने क्या जोड़ा? वो तो कंज्यूमर हैं, मैटेरियलिस्टिक हैं और पॉलिसी वहां बनती है. ये सब उसका असर है.

बारिश अमीर गरीब सबको बहा ले जाएगी

जानकार कह रहें हैं अब मामला पहाड से मैदानी इलाकों तक बराबर है. बाढ़ों और तूफानों में एक समानता आ गई है.पहले सवाल हिमालय की संवेदनशीलता पर उठता था, लेकिन अब पंजाब और गुजरात भी बाढ़ की चपेट में है.डॉ अनिल जोशी कहते हैं बाढ़ और भूकंप पहले भी हमारा हिस्सा था, लेकिन अब इनकी frequency बदल गई है और intensity बढ़ गई है. पहले जहां एक साथ बारिश होने का पैटर्न नहीं था, अब वहां एक साथ एक रात में एक शहर में बादल टूट पड़ते हैं और एक तबाही ले आते हैं. ऐसे ही तूफानों की कहानी भी थी, पहले हम तूफानों को कोई नाम नहीं देते थे.

इन घटनाओं के बढ़ने का मूल कारण क्लाइमेट चेंज ही है. वो भी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हुआ है. ग्लोबल वार्मिंग का मतलब बस धरती पर होने वाला असर ही नहीं हैं यह समुद्र से भी जुड़ता है. ग्लोबल वॉर्मिंग का बड़ा असर समुद्र पर पड़ रहा है जो दुनिया का बड़ा हिस्सा है.जब समुद्र की सतह तपेगी और समुद्र लगातार कार्बन डाई ऑक्साइड सोखेगा तो उसकी efficiency पर असर आएगा. जलवायु में अंतर आएगा. अंटार्कटिका का हमारे मानसून पर बहुत बड़ा असर पड़ता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तापमान से उतार चढ़ाव से बहुत सी चीजें होती हैं अगर दुनिया का तापमान औसतन बढ़ें तो मानसून जैसी परिस्थिति कभी हो सकती हैं. कभी जल्दी मानसून आ जाता है और कभी देर में जाता है. कभी बारिश में ही चेन्नई डूब जाता है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग का जो पैटर्न है, इससे पूरे मौसम चक्र पर असर डाल दिया है. पहले गर्मी, बरसात और सर्दी का एक पैटर्न था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. शहरों का ऐसा हाल हो गया है, उन्हें कल्पना ही रही होगी कि बारिश उन्हें इस तरह से लील लेगी.

ग्लोबल वॉर्मिग से आई बेतहाशा बारिश

जिओमैटिक्स के डायरेक्टर भूवैज्ञानिक और पर्यावरणविद् राजेश सोलोमन पॉल भी यही कहते हैं.ग्लोबल वार्मिंग के कारण intensity और फ्रीक्वेंसी दोनों बढ़ गई है. गर्मी ज्यादा होने के समुद्र में वाष्पीकरण ज्यादा हो रहा है, उसकी वजह से बादल ज्यादा बन रहे हैं. एक तो ग्लोबल वार्मिंग के वाष्पीकरण ज्यादा हो रहा है और दूसरा क्लाइमेट चेंज, जिसकी वजह से सबकुछ सामान्य नहीं रह गया है. जैसे, जहां ज्यादा बारिश हो रही थी, वहां कम हो रही है. पिछले साल अमेरिकन एजेंसी नोवा ने कहा था कि भारत में 2 डिग्री तापमान बढ़ने वाला है. इसका असर पिछले 7-8 महीने से देखने को मिल ही रहा है. इस बार गर्मी ज्यादा थी तो वाष्पीकरण ज्यादा हुआ है, ऐसे में बारिश भी ज्यादा हो रही है.

अमेरिकी संस्था नेशनल ओसिनिक एंड एटमॉस्पेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन) यानि एनओएए ने पिछले साल ही इस बात की चेतावनी दी थी कि भारत में तापमान सामान्य ये दो डिग्री बढ़ेगा और यहीं इस पूरे प्रकोप के कारण को आसान भाषा में समझाता है. गर्मी बढ़ेगी तो वाष्पीकरण बढ़ेगा यानि बादल ज्यादा बनेगा और बादल ज्यादा बनेंगे तो बारिश भी ज्यादा होगी.

अल नीनो ला नीनो का असर

प्रशांत महासागर में उतार-चढ़ाव होता रहता है. यह हर दो साल में थोड़ा गर्म या थोड़ा ठंडा हो जाता है. दुनिया भर में हो रही भारी बारिश की बड़ी वजह अल नीनो और ना नीना भी है. प्रशांत महासागर में हवाएं गर्म पानी को दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर ले जाती हैं, फिर ठंडा पानी गहराई से ऊपर आता है. अल नीनो और ला नीना दो मौसम की वो स्थितियां हैं जो इस सामान्य घटनाक्रम को बदल देती हैं.

अल नीनो के दौरान, ये हवाएं कमजोर हो जाती हैं, जिससे गर्म पानी अमेरिका के पश्चिमी तट की ओर चला जाता है. इससे अमेरिका के कुछ हिस्सों में सूखा पड़ता है और गर्मी होती है, जबकि बाकी हिस्सों में ज्यादा बारिश होती है. समुद्र में भी इसका असर पड़ता है, जिससे मछलियों और अन्य समुद्री जीवों की गिनती भी कम हो जाती है.

ला नीना- के दौरान हवाएं और तेज हो जाती हैं, जिससे एशिया की ओर ज्यादा गर्म पानी जाता है और अमेरिका के तट पर ठंडा पानी ऊपर आता है. इससे दक्षिणी अमेरिका में सूखा पड़ता है जबकि उत्तरी अमेरिका में ज्यादा बारिश होती है. ला नीना के दौरान समुद्र का ठंडा पानी मछलियों और दूसरे जीवों के लिए ठीक हो जाता है.ये घटनाएं हर कुछ सालों में होती हैं और इनके कारण मौसम में बड़े बदलाव आ सकते हैं.अल नीनो के कारण तापमान में और वृद्धि हुई है जिससे एक्सट्रीम वेदर कंडीशन और जलवायु-संबधित घटनाएं बढ़ेगी जैसे हीटवेव बाढ़ और सूखा होता है.

अभी तो और बरसेंगे बादल और सर्दी सताएगी

राजेश पॉल कहते हैं अभी आने वाले समय में इसका असर और ज्यादा देखने को मिलेगा, अभी तो ये शुरुआत ही है. एक साल पहले ही अमेरिकन एजेंसी नोवा ने ये जानकारी दी थी कि इस साल भारी बारिश होने वाली है ग्लोबल वार्मिंग का असर अब सभी जगह दिखना शुरु हो गया है. जहां पर सर्दी नहीं पड़ती थी, अब वहां भी सर्दी पड़ेगी.

कैसे बदलेगा मौसम का रौद्र रूप

पर्यावरणविद् और मौसम के जानकार कहते हैं में sustainability की तरफ जाना पड़ेगा. लाइफस्टाइल में बदलाव करना पड़ेगा. हम थ्योरी में ऐसा कह तो लेते हैं लेकिन उसे अडॉप्ट नहीं कर पाते हैं.कम से कम एनर्जी का consumption करना होगा और ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देना होगा जैसे बैटरी वाला कार का उपयोग किया जाए.ग्लोबल वार्मिंग को ध्यान में रखते हुए अर्बन आइलैंड में फ्रिज एसी जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल करने होंगे.

शहरों को हरा-भरा करने के लिए पेड़-पौधे लगाने होंगे. बहुत सारे देशों की पब्लिक बिल्डिंग की दीवारों और बालकनी पर हरियाली कर देते हैं. जहां पर पेड़-पौधे लगे होते हैं, वहां एक-दो डिग्री टेम्परेचर कम ही हो जाता है. हीट कम होगी तो ग्लोबल वॉर्मिंग कम होगी.फॉसिल फ्यूल और थर्मल पावर प्लांट है, उसका उपयोग कम करना पड़ेगा.

निर्माण कार्य पर भी काफी स्टे करना पड़ेगा उसकी जगह ईको फ्रेंडली निर्माण करना पड़ेगा. डेवलपमेंट अच्छी बात है लेकिन काफी सस्टेनेबल तरीके से बढ़ाना पड़ेगा, वरना बहुत ही दिक्कत होने वाली है. पूरी दुनिया को ही इस बात को समझना पड़ेगा.

ग्लोबल वार्मिंग के लिए कितना जिम्मेदार है भारत?

राजेश सोलमन पॉल कहते हैं ग्लोबल वार्मिंग के तीन अहम कारण हैं

1-औद्योगीकरण ,

2-शहरीकरण

3- ग्रीन हाउस गैसें का emissions,

भारत में इंडस्ट्रियलिज्म भी बढ़ रहा है, चीन के बाद देख तो इंडिया में काफी तेजी से औद्योगीकरण हो रहा है. हर घर में फ्रिज, AC लगने लगे हैं, उसे ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन हो रहा है. आज से 5 साल 10 साल पहले कितने घरों में AC होता था? छोटे शहरों में तो कम ही रहते थे. अब लगभग हर घर में AC वगैरह होने लगे हैं तो उसे ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन हो ही रहा है. इंडस्ट्रियलिज्म और अर्बनाइजेशन की वजह से ऐसा हो रहा है. जब शहर बनते हैं तो क्या होता है वहां ग्रीनरी की तुलना में कंक्रीट की मात्रा ज्यादा हो जाती है. जिससे जो कंकरीट मैटेरियल होते हैं, वो अर्बन हीट आयरन बन जाते हैं यानी कि उसमें सूरज की रोशनी ज्यादा ऑब्जर्ब करती है और फिर वह ज्यादा रिलीज होती है.जहां भी कंक्रीट और मिट्टी रहेगी, वहां कंकरीट ज्यादा गर्म होगी. जब वह गर्म होती है और रात में रिलीज होती है. ऐसे में ज्यादा टेंपरेचर रिलीज हो जाता है और ओजोन लेयर के कारण वह बाहर नहीं जा पाती है. इसके कारण फिर धीरे-धीरे वार्मिंग हो जाती है. अब ग्रीन हाउसेस बनाने और इको फ्रेंडली हाउसेस बनाने पड़ेंगे जिसमें आपको रोशनी के लिए बल्ब ना जलाना पड़े या सोलर का उपयोग करना ज्यादा जरूरी होगा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *