नई दिल्ली। हाल के दिनों में रेल हादसों का सिलसिला बता रहा कि एक खास कोना ज्यादा प्रभावित हो रहा है। आंकड़े बता रहे कि देश के दक्षिणी-पश्चिमी एवं मध्य हिस्से की पटरियां सुरक्षित हैं। यहां ट्रेनें बेपटरी नहीं हो रही हैं, किंतु पूर्वी एवं उत्तरी हिस्से में रेल हादसों की भरमार है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि एक खास हिस्से में ही ट्रेन हादसे धड़ाधड़ होने लगे हैं।

रेलवे अधिकारियों में हैरानी है कि बिहार, झारखंड, ओडिशा, बंगाल एवं उत्तर प्रदेश से जुड़े बड़े क्षेत्र में ही अधिकतर ट्रेनें बेपटरी क्यों होने लगी हैं। इस साल जून से अभी तक छोटे-बड़े 18 ट्रेन हादसे हुए हैं, जिनमें से 14 उत्तर-पूर्वी हिस्से में ही हुए हैं। शेष भारत लगभग अछूता है।

रेल हादसों से सुरक्षा एजेंसी हैरान 

साजिश का संकेत साफ है। इसे पाकिस्तानी आतंकी फरहतुल्लाह गोरी के वायरल वीडियो से जोड़कर भी देखा जा रहा है, जिसमें वह भारत में ट्रेनों को बेपटरी करने के लिए स्लीपर सेल के आतंकियों को उकसा रहा है। एक ही क्षेत्र में लगातार हो रहे हादसों से सुरक्षा एजेंसियां चौकस हो गई हैं। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से जब इस संबंध में बुधवार को सवाल किया गया तो उन्होंने इसे बेहद संवेदनशील मुद्दा बताकर कुछ स्पष्ट कहने से परहेज किया।

85 प्रतिशत से ज्यादा ट्रेनें बेपटरी

हालांकि उन्होंने माना कि कुछ दिनों से ऐसा ट्रेंड देखा जा रहा है, जो परेशान करने वाला है। प्रत्येक घटना का विस्तृत विश्लेषण किया जा रहा है। आमतौर पर ट्रेन हादसों के प्रमुख कारणों में पटरियां खराब होने, सिग्नल फेल, लोको पायलट की भूल एवं विभिन्न स्तरों पर गलतियां शामिल हैं। लेकिन हाल की घटनाओं में 85 प्रतिशत से ज्यादा ट्रेनों के बेपटरी होने की हैं। ताजा उदाहरण राजस्थान के पाली में जोधपुर से अहमदाबाद जा रही वंदे भारत ट्रेन की है। इसे चार दिनों के अंदर ही दो बार पलटने की साजिश सामने आई है। दोनों बार ट्रैक पर सीमेंट एवं कंक्रीट का बना ब्लाक रखा गया था।

रेलकर्मियों को प्रत्येक दिन कहीं न कहीं पटरियों पर रखे पत्थर, लोहे के टुकड़े या लकड़ी की बड़ी सिल्ली जैसी भारी चीजें हटानी पड़ रही हैं। ये तो ऐसे उदाहरण हैं, जिन्हें हादसे से पहले अनहोनी से बचा लिया गया। चूक होने पर दुर्घटना तय है। कानपुर और गोंडा के ट्रेन हादसे के पीछे भी ऐसी ही साजिश का पर्दाफाश हो चुका है। पिछले वर्ष दो अक्टूबर को भी उदयपुर से जयपुर जा रही वंदे भारत के अजमेर से गुजरने के दौरान पटरियों पर ऐसे ही पत्थर एवं सरिया रखा था।

मालगाड़ी के 8 डिब्बे पटरी से उतरे

हाल के हादसों के ट्रेंड ने कान खड़े कर दिए हैं। 25 अगस्त को बिहार के गया से नवादा जा रही मालगाड़ी के आठ डब्बे पटरी से उतर गए। 17 अगस्त को कानपुर के पास ट्रैक पर रखे लोहे के बड़े टुकड़े से टकराकर साबरमती एक्सप्रेस के 22 डब्बे ट्रैक से उतर गए।

नौ अगस्त को बिहार के कटिहार में पांच टैंकर पटरी से उतर गए। जुलाई में भी हादसों की भरमार रही। 30 जुलाई को झारखंड के सरायकेला-खरसावां में मुंबई-हावड़ा मेल के 18 डिब्बे पटरी से उतर गए, जिसमें दो की मौत हो गई। 29 जुलाई को दरभंगा से नई दिल्ली जा रही संपर्क क्रांति एक्सप्रेस समस्तीपुर में दो हिस्सों में बंट गई। इसी दिन भुवनेश्वर में मालगाड़ी पटरी से उतर गई।

ट्रेनें बेपटरी होने का एक कारण ये भी

उत्तर प्रदेश के गोंडा में 18 जुलाई को चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्स. के पांच डिब्बे पटरी से उतर गए, जिसमें चार की मौत हो गई। लोको पायलट ने हादसे से ठीक पहले एक जोरदार धमाका सुनने का दावा किया है, जिसके बाद उसने इमरजेंसी ब्रेक लगाई। 21 जुलाई को मालगाड़ी के बेपटरी होने की दो घटनाएं हुईं। एक बंगाल के रानाघाट और दूसरी राजस्थान के अलवर में। 17 जून को सिलीगुड़ी के पास कंचनजंगा एक्सप्रेस पहले से डिरेल एक मालगाड़ी से टकरा गई, जिसमें दस की मौत हो गई। ज्यादातर हादसे पटरियों पर रखे भारी वस्तु से टकराने के चलते हुए।