स्कूल स्टूडेंट से कॉलेज स्टूडेंट बनने तक का सफर ?

 ‘आंखों में सपने लिए, घर से हम चल तो दिए…’ पहली बार पढ़ाई के लिए छोड़ा शहर? नई जगह और नए लोगों के बीच ऐसे करें एडजस्ट
Entering College Life: स्कूल से कॉलेज लाइफ में एंट्री, स्टूडेंट लाइफ का एक बड़ा बदलाव होता है. ऐसे में अगर पढ़ाई के लिए दूसरे शहर जाना पड़े तो रास्ता और भी नया हो जाता है. कैसे करें इस सफर को आसान?

Moving To Another City For Education: राजीव को मुंबई आए एक महीने से ऊपर हो गया है, पर वह अब भी यहां की तेज रफ्तार जिंदगी के साथ कदम नहीं मिला पा रहा. अपने घर में जितना बड़ा रूम उसे अकेले के लिए मिला था, यहां पूरा घर उतना बड़ा है. एक कमरे में चार से पांच स्टूडेंट, खाने में मैदा की रोटी, कॉलेज में प्रोफेसर के भागते-भागते लेक्चर, कैंपस का एनवायरमेंट और यहां का वेदर. राजीव को कुछ समझ नहीं आ रहा.

बार-बार घर लौट जाने का मन करता है तो सीनियर्स की रैगिंग का डर सताता रहता है और असाइनमेंट्स टाइम से नहीं पूरे हो रहे सो अलग. स्कूल से कॉलेज लाइफ में आते ही उसकी जिंदगी इतनी बदल जाएगी, राजीव ने कभी नहीं सोचा था. क्या आपके बच्चे के साथ भी ऐसा हो रहा है?

पहले से करें तैयारी

नीट यूजी काउंसलिंग से लेकर डीयू और जेएनयू तक, आजकल हर जगह कॉलेज में एडमिशन चल रहे हैं और कई जगह प्रवेश की प्रक्रिया पूरी भी हो गई है. स्कूल से कॉलेज के बदलाव को एडजस्ट करने के साथ ही कुछ स्टूडेंट्स को नये शहर में एडस्ट होने का प्रेशर भी हैंडल करना है.

दरअसल पढ़ाई के लिए अक्सर 12वीं के बाद स्टूडेंट्स दूसरे शहर का रुख करते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि 12वीं के बाद के ये बदलाव किसी भी स्टूडेंट के लिए कठिन हो सकते हैं लेकिन इनसे डील करने की पहली कड़ी है – प्री प्रिपरेशन.

किस तरह की समस्याएं आती हैं?

होमसिकनेस: घर से पहली बार दूर जाने वाले बहुत से बच्चों को होमसिकनेस और अकेलेपन की समस्या आती है. मां-बाप, भाई-बहन, दोस्तों से दूरी तो होती ही है साथ ही नई जगह किसी से जान-पहचान होने में समय लगता है. इससे बच्चा अकेला महसूस करने लगता है.

क्लचरल शॉक, वेदर एंड क्लाइमेट: ये मुख्य तौर पर इस बात पर निर्भर करता है कि कैंडिडेट पढ़ाई के लिए कहां गया है पर छोटी से छोटी दूरी पर जाने पर भी खाने-पीने से लेकर, लाइफस्टाइल तक का अंतर उसे फेस करना पड़ता है. कई बार नयी जगह का वेदर, क्लाइमेट भी बच्चों को सूट नहीं करता.

फाइनेंस एंड टाइम मैनेजमेंट: जब सब काम खुद करने होते हैं, एक तय समय पर उठना और क्लास अटेंड करनी होती है. अपने छोटे-छोटे फाइनेंशियल डिसीजन भी खुद लेने होते हैं तो कई बार समझ नहीं आता कि कैसे मैनेज करें. या तो गलत डिसीजन होते हैं या पैसा बर्बाद होता है या चीजें संभल नहीं पाती.

एकेडमिक प्रेशर एंड इमोशनल वेलबीइंग: नयी जगह पर पढ़ाई का स्तर एकदम अलग होता है, कॉलेजों में पढ़ाई करवाने का तरीका भी अलग होता है. ऐसे में कैंडिडेट्स के लिए एकेडमिक प्रेशर बहुत बढ़ जाता है. इन सब से उपजे स्ट्रेस और एंग्जाइटी को डील करने न कर पाने और तमाम तरह के प्रेशर में रहने से कैंडिडेट्स की मानसिक अवस्था बिगड़ने लगती है.

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कैसे करें तैयारी, कैसे करें सिचुएशन को डील?

किसी दूसरे शहर में पढ़ाई के लिए जा रहे हैं तो कुछ टिप्स आपके बहुत काम आएंगे. धीरे-धीरे आप नए एनवायरमेंट में सेट होने लगेंगे.

रिसर्च, कनेक्ट एंड प्रिपेयर: किसी भी शहर में जाने से पहले उस कॉलेज, सिटी और वहां के कल्चर के बारे में जितनी हो सके जानकारी हासिल कर लें. कॉलेज के आसपास के एरिया को पहले ही अपने पैरेंट्स के साथ जाकर समझ लें, घूम लें, रास्ते याद कर लें. बैंक, पोस्ट ऑफिस, अस्पताल, रोज की जरूरतों का सामान वगैरह आपके स्टे की जगह से कितना दूर है और वहां तक कैसे पहुंचना है, इसकी जानकारी पहले से करना बहुत जरूरी है.

कॉलेज के फोरम या ग्रुप वगैरह के बारे में पता करें और उन्हें ज्वॉइन कर लें. घर से प्री प्रिपरेशन करके चलें ताकि बिना किसी बड़ी समस्या के बाहर का रुख करना ही न पड़े. घर से जरूरी सामान पैक करके आएं जिसमें मेडिसिन बॉक्स और सेल्फ केयर का सामान हो. कैम्पस के अंदर कहां, क्या है ये भी पहले ही जान लें.

कॉलेज, क्लास मिस न करें: भले आपको कॉलेज की पढ़ाई अभी पल्ले नहीं पड़ रही पर कॉलेज, क्लासेस मिस न करें. ओरिएंटेशन प्रोग्राम जरूर ज्वॉइन करें और अपने असाइनमेंट्स वगैरह डेडलाइन से पहले पूरे करें. मदद मांगने से हिचके नहीं और कोई समस्या होने पर टीचर्स से बात करें.

पर्सनल लाइफ, इंडिपेंडेंट लिविंग: पैरेंट्स से वीडियो कॉल पर रेग्यूलर बात करें और किसी तरह की समस्या जो आपसे नहीं सुलझ रही है तो उसके बारे में उन्हें बताएं. अपना दिन, दोस्त, टीचर, कॉलेज या कुछ भी अजीब महसूस करते हों तो पैरेंट्स या फैमिली में से किसी न किसी से जरूर शेयर करें. कोई परेशान कर रहा है, बुली हो रहे हैं या रैगिंग चल रही है, किसी भी स्थिति में मां-बाप से कुछ न छिपाएं. अपनी मेंटल हेल्थ का ध्यान रखें और फैमिली के टच में रहें.

ओपेन माइंडेड बनें और बदलावों के लिए तैयार रहें: घर से निकले हैं तो घर जैसा आराम नहीं मिलेगा. कंफर्ट जोन को तोड़ें और आने वाले वाजिब संघर्षों के लिए खुद को मेंटली प्रिपेयर करें. ओपेन माइंडेड बनें और फ्लैक्सिबल रहें. बदलावों को स्वीकार करें और रिजिड एटिट्यूड न अपनाएं. घर से निकलने से पहले थोड़ी-बहुत तैयारी जैसे मिनमल कुकिंग, कपड़े धोना (अगर पहले से नहीं आता है तो) सीख लें.

नीट, जेईई नहीं, असली संघर्ष अब

जब तक कैंडिडेट मेडिकल, इंजीनयिरिंग या किसी और डिग्री कोर्स के एंट्रेंस की तैयारी करता है तो उसे लगता है कि सेलेक्शन के साथ ही उसका संघर्ष खत्म हो गया है. जबकि ऐसा नहीं है, असली संघर्ष कॉलेज ज्वॉइन होने के बाद शुरू होता है. यहां आप से कहीं ज्यादा इंटेलीजेंट बच्चे होते हैं, कांपटीशन तगड़ा होता है, एकेडमिक प्रेशर स्कूल से बहुत अधिक होता है, असाइनमेंट पूरे करने होते हैं, आए दिन पेपर होते हैं (जिनमें बैक लगने का डर रहता है), प्रोफेसर स्ट्रेट फॉरवर्ड होते हैं, छोटी गलतियों की भी माफी नहीं होती और डेडलाइन का प्रेशर होता है.

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इन सब चीजों को पहले से दिमाग में रखकर और खुद को मेंटली प्रिपेयर करके चलेंगे तो समस्या कम होगी. ये याद रखें कि नीट, जेईई या ऐसा ही कोई एग्जाम पास करना केवल पहला चरण है, अभी सफर बहुत लंबा है जिसे केवल मेहनत और निरंतरता से पार किया जा सकता है.

सेपरेशन एंग्जाइटी

उम्र कोई भी हो, जब घर, परिवार या जिस चीज से गहरा लगाव हो और वो छूटे तो समस्या आती है. इसे इग्नोर करने के बजाय इससे डील करें. एक्सपर्ट्स के मुताबिक सबसे पहले समस्या को स्वीकर करें और अपनी फैमिली से कनेक्टेड रहें.

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सपोर्ट नेटवर्क बिल्ड करें और जरूरत लगने पर मदद मांगे. शुरू-शुरू में घर विजिट जल्दी-जल्दी करें या पैरेंट्स को बुला लें, धीरे-धीरे अलग रहने की आदत डालें. समस्या बहुत बढ़े तो प्रोफेशनल की हेल्प लें.

माता-पिता के लिए टिप्स
  • बच्चे से रोज बात करें और उसे इस कंफर्ट लेवल पर चर्चा करें कि वो अपनी समस्या को आपसे साझा करे.
  • उसके व्यवहार में किसी प्रकार का बदलाव नोटिस करें तो उसे इग्नोर न करें. बच्चा कम बोले, फोन पर बात करने से कटे, अपना हाल न दे, डिप्रेस लगे तो मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाएं.
  • नयी जगह पर उसके साथ जाएं और सभी जरूरी लोगों से मिलकर, बच्चे को मिलाकर लौटें. रूममेट के बारे में जानकारी करें और फोन नंबर भी ले लें.
  • शुरुआती दौर में पढ़ाई का प्रेशर कतई न डालें और एक-एक करके समस्या से निकलने का समय दें.
  • ज्यादा लाड़ न जताएं और न ही खाने-पीने को लेकर विशेष चिंता जाहिर करें. बैलेंस्ड रहें और स्ट्रांग बनें ताकि बच्चे को आपसे मजबूती मिले.
गलत संगत न पकड़ ले बच्चा

इस बारे में एजुकेशनल काउंसलर और साइकोलॉजिस्ट डॉ. अमिता बाजपेयी का कहना है कि कई बार बच्चे बाहर जाने पर गलत संगत में भी पड़ जाते हैं. सेपरेशन एंग्जाइटी, एकेडमिक प्रेशर, सीनियर्स का बुली करना या किसी भी और वजह से वे ड्रग्स वगैरह लेने लगते हैं. कई बार नयी लाइफ का एडवेंचर ही ऐसा करा देता है.

इस सिचुएशन से निपटने के लिए पैरेंट्स को बच्चों को पहले ही इन चीजों से वाकिफ करा देना चाहिए. साथ ही उन्हें ना कहना सिखाएं. नशे या किसी और गलत काम की आदत का मुख्य कारण पियर प्रेशर होता है. बच्चों को बताएं कि ऐसे लोगों से कैसे दूर रहना है, उन्हें कैसे मना करना है और अपना व्यवहार दोस्ताना रखें ताकि वे जरूरत पड़ने पर आपको अप्रोच कर सकें.

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