राजनीति : मजाक ,मजाक में मजाक !

राजनीति : मजाक ,मजाक में मजाक

अदावत की राजनीति के दौर में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव का मजाक ताजा हवा की तरह है। राजनीती में मसखरापन न हो तो राजनीति नीरस हो जाती है। हाल की राजनीती में जब से लालू यादव निष्क्रिय हुए हैं तब से कोई ऐसा जुमला सुनने को नहीं मिलता की पेट हंसी के मारे फूलने लगे। अखिलेश यादव ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मजाक में कहा है कि यदि आपको बुलडोजर से इतना ही प्यार है तो आप इसे चुनाव चिन्ह बनाकर चुनाव क्यों नहीं लड़ जाते ?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सपा की सरकार बनने पर बुलडोजर का रुख गोरखपुर की तरफ मोड़ने का बयान देने वाले सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव पर बुधवार को तंज कसा और कहा कि बुलडोजर चलाने के लिए ‘दिल और दिमाग’ की जरूरत होती है। अब अखिलेश यादव ने इस पर पलटवार किया है । अखिलेश ने कहा कि बुलडोजर में दिमाग नहीं बल्कि स्टीयरिंग होता है. उत्तर प्रदेश की जनता कब किसका स्टीयरिंग बदल दे, कुछ पता नहीं। अखिलेश ने अपने एक ट्वीट में कहा, ‘अगर आप और आपका बुलडोजर इतना ही सफल है तो अलग पार्टी बनाकर ‘बुलडोज़र’ चुनाव चिह्न लेकर चुनाव लड़ जाइए। आपका भ्रम भी टूट जाएगा और घमंड भी। वैसे भी आपके जो हालात हैं, उसमें आप भाजपा में होते हुए भी ‘नहीं’ के बराबर ही ह। अलग पार्टी तो आपको आज नहीं तो कल बनानी ही पड़ेगी।
अखिलेश और योगी के बीच इस तरह की चोंचें अक्सर लड़ती रहतीं हैं। अखिलेश को मजाक करना विरासत में मिला है। उनके पिता नेताजी मलायम सिंह अक्सर मजाक-मजाक में कुछ ऐसी बातें कह जाते थे j। हंसी का फब्बारा छुड़वा देती थीं। पिछले से पिछले दशक में राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव तो अपने मजाकिया अंदाज के लिए मशहूर थे है । उनके मजाक से शायद ही कोई बचा हो। श्रीमती सोनिया गाँधी हों या अटल बिहारी बाजपेयी सभी लालू जी की मजाकिया प्रवृत्ति के कायल रहे हैं। मजाक से राजनीति में जबरन का भारीपन कम हो जाता है और एक स्वस्थ्य वातावरण बनता है
बिहार की राजनीति में मजाक करने की प्रवृत्ति रही है। नीतीश बाबू भी कम मजाकिया नहीं है। लालू जी के बेटे तेजस्वी को भी मजाक करना आता है। राहुल गाँधी भी जब तब मजाक कर ही लेते हैं मजाकिया नेताओं में मुझे कल्पनाथ राय हमेशा याद आते हैं पीलू मोदी को जिन्होंने देखा हो वे जानते होंगे कि वे कितने बड़े मजाकिया थे। कुछ नेताओं का कद-काठी और पहनावा ही आपको हंसने के लिए विवश कर देता है तो कुछ नेताओं का बुझा और लटका चेहरा देखकर आपका मूड पूरे दिन के लिए खराब हो जाता है। कुछ नेता केवल कैमरे के सामने ही मुस्कराते हैं। सबकी अपनी अपनी आदत होती है।
राजनीती में मजाकिया नेताओं की वजह से ही राजनीयति रंगीन बनी रहती है। मुझे याद है कि मजाकिया, अजीबो गरीब होने के कारण जनता में कम समय में लोकप्रिय हुए। मजाक को केंद्र में रखकर अतीत में ऐसे ही नारे बने जिन्होंने राजनीतिक दलों के भाग्य को बदल दिया। और लोगों ने हंसते-हंसते पार्टी को वोट दिया।
जनसंघ को वोट दो, बीड़ी पीना छोड़ दो;
बीड़ी में तंबाकू है, कांग्रेस-वाला डाकू है
हमारे ग्वालियर कि अटल बिहारी बाजपेयी का तो हर अंदाज आपको हंसने पर मजबूर कर देता था । उनके जमाने में ही एक नारा उछाला था -ये देखो इंदिरा का खेल, खा गई शक्कर, पी गई तेल। श्रीमती इंदिरा गाँधी जब चिकमंगलूर से चुनाव लड़ रहीं थीं उस समय कांग्रेसी कवि श्रीकांत वर्मा ने एक मजाकिया नारा गधा था-एक शेरनी, सौ लुहार, चिकमंगलुर भाई चिकमंगलुर। लल्लू जी को लेकर गढ़ा गया मजाकिया नारा -जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू ‘ लोगों को आजतक याद है।लोकसभा अध्यक्ष के रूप में पीए संगमा का मजाकिया मूड कौन भूल सकता है ? राजयसभा कि सभापति जगदीप धनकड़ को भी मैंने अक्सर मजाकिया मूड में देखा है।
भारत की राजनीती में जब -जब मजाक गायब हुआ है तब-तब राजनीति बेमजा हुई है । आज की राजनीती में अदावत के बढ़ने की असल वजह मजाक का गायब होना ही है। पिछले दस साल से देश की सत्ता चलने वाली भाजपा की मौजूदा पीढ़ी में तो मजाक करने वाले नेता हैं ही नही। वे मजाक कि नाम पर विदोषक बन जाते हैं या उनका मजाक शालीनता की सारी सीमाएं लांघ चुका होता है हमारी राजनीती से मजाक कि गायब होने का ही नतीजा है की पिछले कार्यकाल में दोनों सदनों से सांसदों कि निलंबन का एक नया कीर्तिमान बना।

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