थर्ड पार्टी से जांच कराए बिना ही सरकारी अस्पतालों को बांट रहे दवाइयां ?
गड़बड़झाला! थर्ड पार्टी से जांच कराए बिना ही सरकारी अस्पतालों को बांट रहे दवाइयां
अमानक दवाओं के उपयोग के प्रदेश में कई तो ऐसे उदाहरण भी हैं कि जब दवा की एक्सपायरी के तीन-चार माह ही बचे थे तब उपयोग पर रोक लगाई गई। इस वर्ष अमानक मिले सेफोटैक्सिम एंटीबायोटिक इंजेक्शन को ही लें तो इसका विनिर्माण अगस्त 2023 में हुआ और एक्सपायरी जनवरी 2025 में है। इस दवा की अमानक रिपोर्ट 28 मई को आने के बाद उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया।
मध्य प्रदेश में दवाओं के वितरण में हो रही है धांधली….
- प्रदेश में दवा खरीद और वितरण व्यवस्था में गोलमाल
- सैंपल भेजने से रिपोर्ट आने में लग जाते हैं 3-4 महीने
- इस साल अभी तक 13 दवाएं अमानक साबित हो चुकीं।
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया भोपाल। सरकारी अस्पतालों के लिए शासन की दवा खरीदी और वितरण की व्यवस्था में ही गोलमाल है। थर्ड पार्टी से बिना जांच कराए ही दवाइयों का उपयोग शुरू कर दिया जाता है। दवा आपूर्ति करने वाली कंपनी द्वारा दी गई लैब की गुणवत्ता रिपोर्ट को ही सही मानकर दवाओं का उपयोग करने के निर्देश हैं।
ऐसे में अमानक दवा मिलने के बाद उपयोग पर प्रतिबंध लगाने से पूर्व ही एक तिहाई से अधिक दवाएं खप जाती हैं। कारण, सैंपल भेजने से लेकर रिपोर्ट आने तक में तीन से चार माह लग जाते हैं।
दवा आपूर्ति के बाद निर्धारित तापमान में भंडारण नहीं करने से भी गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। कई दवा स्टोर का तापमान गर्मी में 35 डिग्री से भी ऊपर रहता है जो कि 25 से 30 के बीच होना चाहिए। इस वर्ष अब तक 13 दवाएं अमानक मिल चुकी हैं, बीते वर्ष पांच मिली थीं।
एनएबीएल मान्यता प्राप्त लैब की गुणवत्ता रिपोर्ट लगाना कंपनियों के लिए अनिवार्य
दरअसल, दवा आपूर्ति करने वाली कंपनी के लिए प्रत्येक बैच की दवा आपूर्ति के साथ नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फार लेबोरेट्रीज (एनएबीएल) मान्यता प्राप्त लैब की गुणवत्ता जांच रिपोर्ट लगाने की शर्त है। इस कारण सभी कंपनियां इन लैब से सैंपल जांच कराकर दवा के साथ ””ओके”” रिपोर्ट भी भेजती हैं।
इसके बाद इन्हीं में से स्टोर कीपर या ड्रग इंस्पेक्टर द्वारा जब सैंपल लेकर जांच के लिए भेजा जाता है तो कुछ अमानक मिल जाते हैं। यह दवाएं मेडिकल कालेजों से संबद्ध अस्पतालों से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक में उपयोग की जाती हैं। रोगियों से दवाओं का कोई शुल्क नहीं लिया जाता।
हर साल प्रदेश में 400 करोड़ की दवाओं की खरीदारी
प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग 400 करोड़ की दवाएं खरीदी जाती हैं। कुल बजट में से 80 प्रतिशत से दवा खरीदी मध्य प्रदेश पब्लिक हेल्थ सप्लाई कारपोरेशन और अति आवश्यक होने पर 20 प्रतिशत बजट से सीएमएचओ या सिविल सर्जन को दवा खरीदी का अधिकार है।
थर्ड पार्टी से जांच के बिना ही दवाओं के उपयोग को लेकर विभाग के अधिकारियों का तर्क है कि जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा करने पर तीन से चार महीने चले जाएंगे, इसीलिए कंपनी से एनएबीएल लैब की रिपोर्ट मांगी जाती है।