कलह से ठिठकी प्रांतीय अर्थव्यवस्थाएं ?
आर्थिकी: कलह से ठिठकी प्रांतीय अर्थव्यवस्थाएं, इस रिपोर्ट से होता है विकास की अड़चनों का खुलासा
कहावत है कि घर में शांति हो, तो ऋद्धि-सिद्धि बढ़ती है, कलह हो, तो चूल्हा-चौका ठंडा पड़ जाता है। वैसे ही जिन प्रांतों में राजनीतिक स्थिरता रही, वे आमदनी और प्रति व्यक्ति आय में बढ़ गए, लेकिन जहां आतंकवाद और विदेश प्रेरित विद्रोही गतिविधियों, आंदोलनों की भरमार रही, वहां आमदनी भी घटी और सामान्य नागरिक की आय भी। यह प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा तैयार आर्थिक वृत्त में बताया गया है, जिसमें 1960-61 से लेकर 2023-24 तक विभिन्न प्रांतों की आर्थिक यात्रा का रोचक आकलन है।
इसमें वाम और ममता राज पर व्यंग्य करते हुए कहा गया है कि यद्यपि सभी सागर तटवर्ती राज्यों ने अर्थव्यवस्था में उछाल पाया, लेकिन बंगाल अपवाद रहा, जहां की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट को ‘नामी-गिरामी’ अर्थशास्त्री भी नहीं रोक पाए। उनका स्पष्ट इशारा मार्क्सवादी अर्थशास्त्रियों असीम मित्र और अशीमदास गुप्त (जो 1977 से 2011 तक राज्य के वित्त मंत्री रहे) और अमित मित्रा (जो 2011 से 2021 तक वित्त विभाग संभालते रहे) की ओर था। 1960-61 में बंगाल का राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में तीसरा सबसे बड़ा हिस्सा 10.5 प्रतिशत था, जो 2023-24 में गिरकर सिर्फ 5.6 प्रतिशत रह गया।
इस दौरान बंगाल ने कम्युनिस्ट हिंसा, नक्सलवाद, बांग्लादेशी घुसपैठ, उद्योगों का बंद होना तथा वहां के लोगों का अन्य राज्यों में पलायन, लगातार हड़तालें, बांग्लादेशी घुसपैठियों को राज्य द्वारा संरक्षण, टूटती कानून व्यवस्था का प्रायः रक्तरंजित अराजक दौर देखा और इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा। अक्सर पिछड़ा कहा जाने वाला ओडिशा उससे आगे निकल गया। यही परिस्थिति पंजाब की घटती आय के बारे में है। 1960-61 में पंजाब देश के अग्रणी राज्यों में था-जब देश के जीडीपी में इसका हिस्सा 3.2 प्रतिशत था और हरियाणा का हिस्सा केवल 1.9 फीसदी था। पंजाब की बढ़त का श्रेय तब की हरित क्रांति को दिया जा सकता है, लेकिन उसके बाद 1990-91 तक पंजाब केवल 4.3 फीसदी पर ठहर-सा गया और फिर लगातार गिरते-गिरते 2023-24 तक 2.4 प्रतिशत तक पहुंच गया। जबकि हरियाणा की आमदनी लगातार बढ़ती गई और राष्ट्रीय जीडीपी में उसका हिस्सा 2023-24 में 3.6 फीसदी तक पहुंच गया। आर्थिक वृत्त में कहा गया है कि संभवतः गुरुग्राम जैसे नगरों की स्थापना इस बढ़त का एक कारण हो सकती है।
पंजाब ने आय में वृद्धि की राष्ट्रीय गति के साथ अपनी गति नहीं मिलाई। साठ के दशक के बाद पंजाब ने रक्तरंजित खालिस्तानी आतंकवाद, भिंडरांवाले के उदय, पंजाब के जवानों का बड़ी संख्या में विदेशों में पलायन, खेती को छोड़कर अन्य उद्योगों का मोह, नशीले पदार्थों का विस्तार तथा विदेशी धन से संचालित अनेक अराजक आंदोलनों को झेला। राजनीतिक स्थिरता का वहां नितांत अभाव रहा। एक समय देश की रक्षक भुजा कहा गया पंजाब अशांति और पाकिस्तानी षड्यंत्रों से घिरा रहा। एक समय था, जब महाराष्ट्र, बंगाल और तमिलनाडु भारत के बड़े औद्योगिक केंद्र थे, लेकिन बंगाल पिछड़ गया, जबकि संपूर्ण दक्षिण भारत विद्या और वित्त में सर्वोच्च शिखर रचता गया और आज कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु मिलकर राष्ट्रीय जीडीपी का तीस प्रतिशत बनाते हैं। यही नहीं, सभी दक्षिणी राज्यों की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से अधिक है। दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात ने आर्थिक प्रगति की अपनी गति को लगातार बढ़ाया है और राष्ट्रीय औसत में अच्छे आर्थिक मापदंड रचे हैं।
सर्वाधिक चिंता का विषय पूर्वोत्तर की आर्थिक स्थिति का आकलन है। केवल सिक्किम की स्थिति शानदार कही जा सकती है, जिसकी प्रति व्यक्ति आय 2000-01 में राष्ट्रीय आय का सौ प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 2023-24 में 320 प्रतिशत हो गई है, जबकि अरुणाचल, नगालैंड, मणिपुर आदि की स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। असम की प्रति व्यक्ति आय 2023-24 में कुछ बढ़कर 73.7 प्रतिशत तक पहुंची है। लगातार विदेशी घुसपैठ, विद्रोही गतिविधियां, आंतरिक असुरक्षा, अलगाववादी चर्च समर्थित आंदोलन, बांग्लादेशी जेहादी घुसपैठ आदि ने इन राज्यों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया। परिणामस्वरूप सामान्य जीवन भी आर्थिक प्रगति के पथ पर कम बढ़ पाया।
उत्तर प्रदेश और बिहार ने कुछ बढ़त हासिल की है, लेकिन राष्ट्रीय औसत को देखते हुए वहां भी बहुत अधिक पुनर्निर्माण और अर्थव्यवस्था केंद्रित स्थिरता के आयामों पर जोर देने की आवश्यकता दिखाई देती है। इन प्रदेशों ने अब तक निरंतर राजनीतिक भूचाल, अस्थिरता और अराजक कानून व्यवस्था के दौर देखे तथा अब कुछ स्थिरता पाई, जिसके कारण अर्थव्यवस्था डगर पर आती दिखी है। खराब राजनीति सीधे-सीधे हमारी रसोई और जीवन स्तर को प्रभावित करती है।
इस दौरान बंगाल ने कम्युनिस्ट हिंसा, नक्सलवाद, बांग्लादेशी घुसपैठ, उद्योगों का बंद होना तथा वहां के लोगों का अन्य राज्यों में पलायन, लगातार हड़तालें, बांग्लादेशी घुसपैठियों को राज्य द्वारा संरक्षण, टूटती कानून व्यवस्था का प्रायः रक्तरंजित अराजक दौर देखा और इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा। अक्सर पिछड़ा कहा जाने वाला ओडिशा उससे आगे निकल गया। यही परिस्थिति पंजाब की घटती आय के बारे में है। 1960-61 में पंजाब देश के अग्रणी राज्यों में था-जब देश के जीडीपी में इसका हिस्सा 3.2 प्रतिशत था और हरियाणा का हिस्सा केवल 1.9 फीसदी था। पंजाब की बढ़त का श्रेय तब की हरित क्रांति को दिया जा सकता है, लेकिन उसके बाद 1990-91 तक पंजाब केवल 4.3 फीसदी पर ठहर-सा गया और फिर लगातार गिरते-गिरते 2023-24 तक 2.4 प्रतिशत तक पहुंच गया। जबकि हरियाणा की आमदनी लगातार बढ़ती गई और राष्ट्रीय जीडीपी में उसका हिस्सा 2023-24 में 3.6 फीसदी तक पहुंच गया। आर्थिक वृत्त में कहा गया है कि संभवतः गुरुग्राम जैसे नगरों की स्थापना इस बढ़त का एक कारण हो सकती है।
पंजाब ने आय में वृद्धि की राष्ट्रीय गति के साथ अपनी गति नहीं मिलाई। साठ के दशक के बाद पंजाब ने रक्तरंजित खालिस्तानी आतंकवाद, भिंडरांवाले के उदय, पंजाब के जवानों का बड़ी संख्या में विदेशों में पलायन, खेती को छोड़कर अन्य उद्योगों का मोह, नशीले पदार्थों का विस्तार तथा विदेशी धन से संचालित अनेक अराजक आंदोलनों को झेला। राजनीतिक स्थिरता का वहां नितांत अभाव रहा। एक समय देश की रक्षक भुजा कहा गया पंजाब अशांति और पाकिस्तानी षड्यंत्रों से घिरा रहा। एक समय था, जब महाराष्ट्र, बंगाल और तमिलनाडु भारत के बड़े औद्योगिक केंद्र थे, लेकिन बंगाल पिछड़ गया, जबकि संपूर्ण दक्षिण भारत विद्या और वित्त में सर्वोच्च शिखर रचता गया और आज कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु मिलकर राष्ट्रीय जीडीपी का तीस प्रतिशत बनाते हैं। यही नहीं, सभी दक्षिणी राज्यों की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से अधिक है। दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात ने आर्थिक प्रगति की अपनी गति को लगातार बढ़ाया है और राष्ट्रीय औसत में अच्छे आर्थिक मापदंड रचे हैं।
सर्वाधिक चिंता का विषय पूर्वोत्तर की आर्थिक स्थिति का आकलन है। केवल सिक्किम की स्थिति शानदार कही जा सकती है, जिसकी प्रति व्यक्ति आय 2000-01 में राष्ट्रीय आय का सौ प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 2023-24 में 320 प्रतिशत हो गई है, जबकि अरुणाचल, नगालैंड, मणिपुर आदि की स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। असम की प्रति व्यक्ति आय 2023-24 में कुछ बढ़कर 73.7 प्रतिशत तक पहुंची है। लगातार विदेशी घुसपैठ, विद्रोही गतिविधियां, आंतरिक असुरक्षा, अलगाववादी चर्च समर्थित आंदोलन, बांग्लादेशी जेहादी घुसपैठ आदि ने इन राज्यों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया। परिणामस्वरूप सामान्य जीवन भी आर्थिक प्रगति के पथ पर कम बढ़ पाया।
उत्तर प्रदेश और बिहार ने कुछ बढ़त हासिल की है, लेकिन राष्ट्रीय औसत को देखते हुए वहां भी बहुत अधिक पुनर्निर्माण और अर्थव्यवस्था केंद्रित स्थिरता के आयामों पर जोर देने की आवश्यकता दिखाई देती है। इन प्रदेशों ने अब तक निरंतर राजनीतिक भूचाल, अस्थिरता और अराजक कानून व्यवस्था के दौर देखे तथा अब कुछ स्थिरता पाई, जिसके कारण अर्थव्यवस्था डगर पर आती दिखी है। खराब राजनीति सीधे-सीधे हमारी रसोई और जीवन स्तर को प्रभावित करती है।