हिंसा और राजनीतिक हलचल …. कई राज्यों की आर्थिक तरक्की को रोक दिया है ?
हिंसा और राजनीतिक हलचल, किन राज्यों की इन दोनों ने रोकी आर्थिक रफ्तार?
हाल ही में EAC-PM ने ‘भारतीय राज्यों का सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन: 1960-61 से 2023-24’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है. जिसके अनुसार भारत के अलग-अलग राज्यों के बीच विकास की गति में भारी अंतर है.
भारत में हिंसा और राजनीतिक उथल-पुथल ने कई राज्यों की आर्थिक तरक्की को रोक दिया है. हिंसा और राजनीतिक विवादों ने व्यापार में रुकावट डाली है, जिससे नौकरियों का सृजन भी प्रभावित हुआ है. इन वजहों से भारत को कई राज्यों की आर्थिक वृद्धि धीमी हो गई है, जो न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर डाल रही है.
दरअसल हाल ही में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) ने ‘भारतीय राज्यों का सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन: 1960-61 से 2023-24’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में साल 1960-61 से लेकर साल 2023-24 तक भारतीय राज्यों के आर्थिक प्रदर्शन में महत्वपूर्ण असमानताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार भारत के अलग अलग राज्यों के बीच विकास की गति में भारी अंतर है. कुछ राज्यों ने इस सालों में उच्च आर्थिक विकास दर हासिल की है, तो कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां के लोग आज भी बुनियादी विकास से कोसों दूर हैं. इस रिपोर्ट में राज्यों के बीच इस असमानता का मुख्य कारण राजनीतिक अस्थिरता, हिंसा, और सही नीतियों का अभाव बताया गया है, जिसने कई राज्यों की आर्थिक प्रगति में बाधा डाली है.
रिपोर्ट में राज्यों की सामाजिक और आर्थिक संरचना, निवेश के स्तर, और विकास की गति का विश्लेषण किया गया है. इसके आधार पर, यह स्पष्ट होता है कि ज्यादातर संपन्न राज्यों ने बेहतर नीतिगत निर्णय और स्थिरता के जरिये आर्थिक वृद्धि को गति दी है, जबकि कमजोर राज्यों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.
किन राज्यों ने किया विकास
रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारतीय राज्य भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन राज्यों का मार्च 2024 तक GDP में लगभग 30% योगदान होगा. जबकि पश्चिम बंगाल का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान पिछले कुछ दशकों में काफी कम हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार, साल 1960-61 में पश्चिम बंगाल का भारत के जीडीरी में 10.5% का योदजान था, जो कि साल 2024 में घटकर 5.6% रह जाएगा. यह एक महत्वपूर्ण गिरावट है, जो बताती है कि राज्य की आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है.
पश्चिम बंगाल के आर्थिक स्थिति में गिरावट के कारण
पश्चिम बंगाल की आर्थिक स्थिति में गिरावट के कई कारण हैं, जिनमें नीतियों में गतिरोध, औद्योगिक क्षरण, राजनीतिक अस्थिरता, और कुशल प्रतिभाओं का पलायन मुख्य कारण माना जाता है. इन सभी कारकों ने राज्य के विकास को प्रभावित किया है. पश्चिम बंगाल में विकास के लिए जरूरी नीतियों को लागू करने में कठिनाई आ रही है. सरकार के निर्णयों में देरी और विवाद के कारण प्रगति रुक गई है. इस अस्थिरता ने उद्योगों को निवेश करने के लिए अनिच्छुक बना दिया है.
इसके अलावा राज्य में औद्योगिकीकरण की गति धीमी हुई है. कई पुराने उद्योग बंद हो गए हैं या अन्य राज्यों में स्थानांतरित हो गए हैं. इससे न केवल रोजगार में कमी आई है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ा है.
राजनीतिक अस्थिरता कैसे बनी विकास की बड़ी बाधा
पश्चिम बंगाल में काफी लंबे वक्त से राजनीतिक अस्थिरता चल रही है, जो विकास के लिए एक बड़ी बाधा है. चुनावी विवाद और राजनीतिक संघर्षों ने निवेशकों का विश्वास कम कर दिया है. जब राजनीतिक माहौल स्थिर नहीं होता, तो उद्योगपति निवेश करने से हिचकिचाते हैं.
इन बड़े राज्यों का हाल भी जान लीजिये
‘भारतीय राज्यों का सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन: 1960-61 से 2023-24’ रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 13.3% के साथ सबसे बड़ा योगदानकर्ता बना हुआ है. इसका मतलब है कि देश की कुल आर्थिक गतिविधियों में महाराष्ट्र का हिस्सा सबसे ज्यादा है. हालांकि, पिछले कुछ सालों की तुलना में राज्य की GDP में भागीदारी में 15% से अधिक की कमी आई है, जो एक चिंता का विषय है.
साल 1960-61 में आंध्र प्रदेश भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 7.7 प्रतिशत का योगदानकर्ता था, लेकिन 2024 में यब बढ़कर 9.7 प्रतिशत पर पहुंच गया है. इसके अलावा असम साल 1960-61 में 2.6 प्रतिशत योगदानकर्ता था वहीं साल 2024 में इस राज्य ने भारत के कुल जीडीपी में 1.9 प्रतिशत का योगदान किया है. ठीक इसी तरह बिहार भी 1960-61 से 7.8% योगदान किया था जो कि साल 2024 में घटकर 4.3 प्रतिशत पर पहुंच गया.
वहीं उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो इस राज्य ने भी साल 1960-61 में भारत के कुल जीडीपी में 14.4 प्रतिशत का योगदान किया था जो कि साल 2024 आते आते घटकर 9.5 प्रतिशत पर पहुंच गया. वहीं दिल्ली में ये प्रतिशत बढ़कर 1.4 प्रतिशत से 3.6 पर पहुंच गया है.
प्रति व्यक्ति आय का डेटा
साल 2023-24 के लिए भारत के कुछ राज्यों की प्रति व्यक्ति आय में महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है. यहां उन राज्यों के बारे में बताया गया है जहां प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है. रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली, तेलंगाना, कर्नाटक और हरियाणा में इस साल यानी 2024 में प्रति व्यक्ति आय सबसे ज्यादा होगी.
दिल्ली: दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से 250.8% अधिक है, जो इसे देश के सबसे अमीर क्षेत्रों में से एक बनाती है.
गुजरात और महाराष्ट्र: गुजरात की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का 160.7% है. वहीं महाराष्ट्र की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का 150.7% है. ये दोनों राज्य साल 1960 के दशक से लगातार औसत से अधिक आय बनाए रखे हुए हैं.
ओडिशा में सुधार: ओडिशा की प्रति व्यक्ति आय में उल्लेखनीय सुधार हुआ है. यह वर्ष 2000-01 में 55.8% थी, जो अब 88.5% हो गई है.
पंजाब बनाम हरियाणा: पंजाब में आर्थिक विकास स्थिरता पर है, और यहां की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से 106% कम हो गई है. इसके उलट, हरियाणा में आर्थिक वृद्धि अच्छी रही है, और यहां की प्रति व्यक्ति आय अब 176.8% हो गई है.
छोटे राज्यों में प्रगति
सिक्किम की प्रति व्यक्ति आय साल 1990-91 में राष्ट्रीय औसत के 93% से बढ़कर 2023-24 में 319% हो गई है. वहीं गोवा की प्रति व्यक्ति आय वर्ष 1970-71 में 144% से बढ़कर 290% हो गई है. जब हम प्रति व्यक्ति आय की बात करते हैं तो वर्तमान में, सिक्किम और गोवा भारत के सबसे अमीर राज्यों में शामिल हैं.
सबसे गरीब राज्यों की चुनौतियां
रिपोर्ट के अनुसार भारत के राजनीतिक दृष्टीकोण से दो महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार आर्थिक विकास में कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान केवल 9.5% है. इसका मतलब है कि देश की कुल अर्थव्यवस्था में उत्तर प्रदेश का हिस्सा काफी कम है.
वहीं बिहार की बात की जाए तो इस राज्य का योगदान और भी कम है, सिर्फ 4.3%. इससे साफ है कि यह राज्य आर्थिक विकास के मामले में काफी पीछे है. ओडिशा में कुछ सुधार देखने को मिले हैं, लेकिन फिर भी यह बिहार की तरह विकास में पीछे है.
इन राज्यों को अपनी स्थिति को सुधारने के लिए समन्वय बनाए रखने और विकास के लिए बेहतर नीतियां लागू करने की जरूरत है. अगर ये राज्य अपनी समस्याओं का समाधान नहीं करते, तो आर्थिक विकास में आगे बढ़ना कठिन होगा.
पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में स्थिर वृद्धि के कारण
उद्योग और सेवा क्षेत्र: ये राज्य उच्च तकनीक वाले उद्योगों और सेवा क्षेत्रों में तेजी से विकास कर रहे हैं. बंगलुरू, कर्नाटक का ‘सिलिकॉन वैली’ माना जाता है, जहां आईटी कंपनियों का बड़ा केंद्र है.
शिक्षा और कौशल विकास: दक्षिण भारत के कई राज्य उच्च शिक्षा और कौशल विकास पर ध्यान दे रहे हैं, जिससे यहां के युवा अच्छी नौकरी पा रहे हैं. इससे आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही हैं.
कृषि और बागवानी: कृषि में भी इन राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है. उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु फल और सब्जियों के उत्पादन में प्रमुख हैं.