1983 में लोकसभा में उठा था वनस्पति घी में चर्बी की मिलावट का मसला ?

पुराने पन्नों से : 1983 में लोकसभा में उठा था वनस्पति घी में चर्बी की मिलावट का मसला, मंत्री को देनी पड़ी सफाई
….. 1 नवंबर 1983 को प्रकाशित खबर के मुताबिक इस मसले पर विश्वनाथ प्रताप सिंह को लखनऊ में पत्रकार सम्मेलन बुलाना पड़ा था। उनका कहना था कि, वह इस मसले पर सदन में विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की घोषणा कर चुके हैं। 
The issue of adulteration of fat in vegetable ghee had reached the Lok Sabha in 1983.

तिरुपति के श्री वेंकटेश्वर मंदिर के प्रसादम लड्डू में चर्बी और मछली के तेल के इस्तेमाल के खुलासे के बाद सियासत गर्म है। इससे पहले घी और साबुन पर भी यह तोहमत लग चुकी है। 41 साल पहले वनस्पति घी में चर्बी के इस्तेमाल का मामला पूर्व केंद्रीय वाणिज्य मंत्री मोहन धारिया ने उठाया था।

सियासत में तब भी उबाल आया था। अमर उजाला ने 1983 और 1968 में इन मामलों को प्रमुखता से उठाया था। अमर उजाला में छपी खबरों के मुताबिक 1983 में वनस्पति घी में चर्बी के इस्तेमाल का मामला उछला था। तब विश्वनाथ प्रताप सिंह केंद्रीय वाणिज्य मंत्री थे। इसी महकमे के पूर्ववर्ती मंत्री मोहन धारिया का कहना था कि वनस्पति में गाय की चर्बी का इस्तेमाल हो रहा है। उन्होंने जांच की मांग उठाई थी।

अमर उजाला में 1 नवंबर 1983 को प्रकाशित खबर के मुताबिक इस मसले पर विश्वनाथ प्रताप सिंह को लखनऊ में पत्रकार सम्मेलन बुलाना पड़ा था। उनका कहना था कि, वह इस मसले पर सदन में विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की घोषणा कर चुके हैं। 

उन्होंने चर्बी के आयात और मिलावट के साक्ष्य सदन में पेश करने का भरोसा दिया था। वीपी सिंह के मुताबिक चर्बी का आयात जनता पार्टी के शासन में 3 अप्रैल 1978 को नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए जाने पर शुरू हुआ था। तब इसका किसी ने विरोध नहीं किया। 1968 में साबुन भी इस आरोप से नहीं बचा। यह मामला इसी साल लोकसभा में पहुंचा। 

अमर उजाला में 30 जुलाई 1968 को छपी खबर के मुताबिक साबुन में चर्बी का इस्तेमाल सामने आने पर पेट्रोलियम एवं रसायन राज्यमंत्री के रघुरामैया लोकसभा में अवाक रह गए थे। खाद्य और सौंदर्य उत्पादों में चर्बी के इस्तेमाल के मामले इस दौर में खूब सुर्खियों में रहे थे।

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