क्या राज्य को मिल सकती हैं पहली महिला मुख्यमंत्री …महाराष्ट्र चुनाव !
सियासत: महाराष्ट्र चुनाव और अनुत्तरित सवाल… क्या राज्य को मिल सकती हैं पहली महिला मुख्यमंत्री
अगर लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें, तो महाराष्ट्र में विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए), जिसमें कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा, शरद पवार) शामिल हैं, ने 48 में से 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, सत्तारूढ़ महायुति (भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की राकांपा) ने मिलकर 17 सीटों पर ही जीत दर्ज की थी। लेकिन जरूरी नहीं है कि विधानसभा चुनाव भी लोकसभा की तर्ज पर हो, भले ही एमवीए नेता आशान्वित हैं कि जमीनी स्तर पर माहौल और सहानुभूति उनके पक्ष में है।
लोकसभा चुनाव ने जहां एमवीए नेताओं का मनोबल बढ़ाया, वहीं सीट बंटवारे को लेकर उनके बीच खींचतान मची हुई है। हाल के दिनों में तीनों साझेदारों के बीच हुई बैठक में लगभग 160 सीटों (288 में से) पर सहमति बन गई है, लेकिन अभी उन्हें विशेष रूप से विदर्भ और मुंबई क्षेत्र को लेकर मतभेदों को दूर करना होगा। कांग्रेस जिसे अपना गढ़ समझती है, उसमें शिवसेना (उद्धव) को नहीं घुसने देना चाहती है। कुल मिलाकर कांग्रेस 120 सीटों के लिए जोर लगा रही है, जिन पर लोकसभा में उसका प्रदर्शन अच्छा था। वहीं, राकांपा (शरद पवार) का प्रदर्शन भी लोकसभा में अच्छा रहा था। उसने दस सीटों पर चुनाव लड़ा और आठ पर जीत दर्ज की, लेकिन उद्धव की शिवसेना उतना खास प्रदर्शन नहीं कर सकी थी।
सत्तारूढ़ महायुति में भी सीटों के बंटवारे को लेकर उतनी ही खींचतान है। लोकसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे का प्रदर्शन तीनों साझेदारों से श्रेष्ठ रहा था। उनकी सफलता लगभग 50 फीसदी थी, यानी उन्होंने 15 में से सात लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की। अजित पवार गुट ने चार में से केवल एक सीट पर जीत दर्ज की। अजित पवार को भाजपा और आरएसएस के अंदरूनी विरोध का भी सामना करना पड़ा था। दरअसल, अजित पवार से गठबंधन के लिए आरएसएस ने कथित तौर पर भाजपा की तीखी आलोचना भी की थी। कई लोग मानते हैं कि अजित पवार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होने के बावजूद उन्हें गठबंधन में शामिल करने का फैसला भाजपा को महंगा पड़ा। इतना ही नहीं, देवेंद्र फडणवीस की पदानवति कर उन्हें एकनाथ शिंदे की अगुवाई में उपमुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, फडणवीस अब भी उपमुख्यमंत्री हैं, वह ब्राह्मण हैं और हाल में राज्य में जारी मराठा राजनीति के पुनरुत्थान को देखते हुए भाजपा के पास राज्य में ऐसा मजबूत चेहरा भी नहीं है, जो चुनाव में उसे नेतृत्व प्रदान करे।
जातिगत मुद्दे के अलावा, महायुति को सबसे बड़ी उम्मीद मध्य प्रदेश की ‘लाडली बहना योजना’ की तर्ज पर शुरू की गई ‘लाडली लड़की योजना’ से है। लाडली बहना योजना की वजह से भाजपा को मध्य प्रदेश में हालिया लोकसभा चुनाव में महिलाओं का जबरदस्त साथ मिला था। महायुति में सीट बंटवारे के अलावा, विवादास्पद मुद्दा नेतृत्व का है। महा विकास अघाड़ी भी इससे ही जूझ रहा है। उद्धव ठाकरे ने एमवीए सरकार का करीब दो वर्ष तक नेतृत्व किया, जब तक कि भाजपा ने शिवसेना को तोड़कर उनकी सरकार को गिरा नहीं दिया था। बाद में राकांपा को भी तोड़कर महायुति में शामिल कर लिया। दोनों ही पार्टियों के विधायकों का बड़ा हिस्सा टूटकर एकनाथ शिंदे व अिजत पवार वाले गुटों में शामिल हो गया, जिन्हें अदालत से मान्यता और चुनाव चिह्न, दोनों मिल गए।
राज्य में फिर से उठ खड़े होने की संभावना को देखते हुए कांग्रेस का राज्यस्तरीय नेतृत्व इस बात पर जोर दे रहा है कि नेतृत्व उसके पास रहना चाहिए, या फिर चुनाव में जिस पार्टी को ज्यादा सीटें मिलें उसे कमान मिले। शिवसेना गठबंधन की कमान फिर से अपने पास ही रखना चाहेगी। यह माना जा रहा है कि हाल में उद्धव ठाकरे दिल्ली में जब राहुल गांधी से मिले, तो उन्हें आश्वासन दिया गया कि चुनाव में उनको (उद्धव ठाकरे) मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए बिना ही जनता के सामने जाएंगे। लेकिन, अगर एमवीए को बहुमत मिलता है, तो वही नेता होंगे।
दूसरी तरफ, एमवीए के संस्थापक शरद पवार ने संकेत दे दिया है कि नेतृत्व के मुद्दे को चुनाव के बाद के लिए छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि 1977 में जब जनता पार्टी सत्ता में आई थी, तब मोरारजी देसाई चुनाव के बाद ही प्रधानमंत्री घोषित किए गए थे। लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान शरद पवार ने मुझे बताया था कि उन्हें लगता है कि आगामी एक-दो वर्षों में उनकी पार्टी समेत अन्य क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस में विलय हो सकता है। इस स्तर पर फिलहाल यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि राकांपा इस विकल्प पर कब और किस तरह विचार करेगी। लेकिन यह बात तय है कि शरद पवार अपनी पार्टी और अपनी बेटी सुप्रिया सुले, जो राकांपा (शरद पवार) की कार्यकारी अध्यक्ष हैं, को यथासंभव राजनीतिक रूप से सुरक्षित करना चाहते हैं।
कथित तौर पर भतीजे अजित पवार ने भी अपने चाचा को पुरानी बातें भूल जाने की पेशकश की है। सार्वजनिक रूप से वह कह चुके हैं कि बारामती से बहन सुप्रिया के खिलाफ पत्नी सुनेत्रा को चुनाव लड़ाकर उन्होंने बड़ी गलती की थी। लेकिन वरिष्ठ पवार उन्हें माफ करने, भूलने या स्वागत करने और पार्टी में फिर से उत्तराधिकार के मुद्दे को खोलने के मूड में नहीं दिख रहे। यदि महाराष्ट्र में एमवीए की सत्ता में वापसी होती है, तो स्वाभाविक है कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद के लिए दावा पेश करेंगे। वहीं, कांग्रेस यदि ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही, तो शीर्ष गद्दी पर वह अपना दावा जताएगी। शरद पवार भी अपने पत्ते खोलने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रहे। महाराष्ट्र में कुछ अनुत्तरित सवाल ये भी हैं कि अगर परिस्थितियां बनने लगीं, तो क्या शरद पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश करेंगे? क्या सुप्रिया सुले छुपी रुस्तम बनकर राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनेंगी?
लोकसभा चुनाव ने जहां एमवीए नेताओं का मनोबल बढ़ाया, वहीं सीट बंटवारे को लेकर उनके बीच खींचतान मची हुई है। हाल के दिनों में तीनों साझेदारों के बीच हुई बैठक में लगभग 160 सीटों (288 में से) पर सहमति बन गई है, लेकिन अभी उन्हें विशेष रूप से विदर्भ और मुंबई क्षेत्र को लेकर मतभेदों को दूर करना होगा। कांग्रेस जिसे अपना गढ़ समझती है, उसमें शिवसेना (उद्धव) को नहीं घुसने देना चाहती है। कुल मिलाकर कांग्रेस 120 सीटों के लिए जोर लगा रही है, जिन पर लोकसभा में उसका प्रदर्शन अच्छा था। वहीं, राकांपा (शरद पवार) का प्रदर्शन भी लोकसभा में अच्छा रहा था। उसने दस सीटों पर चुनाव लड़ा और आठ पर जीत दर्ज की, लेकिन उद्धव की शिवसेना उतना खास प्रदर्शन नहीं कर सकी थी।
सत्तारूढ़ महायुति में भी सीटों के बंटवारे को लेकर उतनी ही खींचतान है। लोकसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे का प्रदर्शन तीनों साझेदारों से श्रेष्ठ रहा था। उनकी सफलता लगभग 50 फीसदी थी, यानी उन्होंने 15 में से सात लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की। अजित पवार गुट ने चार में से केवल एक सीट पर जीत दर्ज की। अजित पवार को भाजपा और आरएसएस के अंदरूनी विरोध का भी सामना करना पड़ा था। दरअसल, अजित पवार से गठबंधन के लिए आरएसएस ने कथित तौर पर भाजपा की तीखी आलोचना भी की थी। कई लोग मानते हैं कि अजित पवार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होने के बावजूद उन्हें गठबंधन में शामिल करने का फैसला भाजपा को महंगा पड़ा। इतना ही नहीं, देवेंद्र फडणवीस की पदानवति कर उन्हें एकनाथ शिंदे की अगुवाई में उपमुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, फडणवीस अब भी उपमुख्यमंत्री हैं, वह ब्राह्मण हैं और हाल में राज्य में जारी मराठा राजनीति के पुनरुत्थान को देखते हुए भाजपा के पास राज्य में ऐसा मजबूत चेहरा भी नहीं है, जो चुनाव में उसे नेतृत्व प्रदान करे।
जातिगत मुद्दे के अलावा, महायुति को सबसे बड़ी उम्मीद मध्य प्रदेश की ‘लाडली बहना योजना’ की तर्ज पर शुरू की गई ‘लाडली लड़की योजना’ से है। लाडली बहना योजना की वजह से भाजपा को मध्य प्रदेश में हालिया लोकसभा चुनाव में महिलाओं का जबरदस्त साथ मिला था। महायुति में सीट बंटवारे के अलावा, विवादास्पद मुद्दा नेतृत्व का है। महा विकास अघाड़ी भी इससे ही जूझ रहा है। उद्धव ठाकरे ने एमवीए सरकार का करीब दो वर्ष तक नेतृत्व किया, जब तक कि भाजपा ने शिवसेना को तोड़कर उनकी सरकार को गिरा नहीं दिया था। बाद में राकांपा को भी तोड़कर महायुति में शामिल कर लिया। दोनों ही पार्टियों के विधायकों का बड़ा हिस्सा टूटकर एकनाथ शिंदे व अिजत पवार वाले गुटों में शामिल हो गया, जिन्हें अदालत से मान्यता और चुनाव चिह्न, दोनों मिल गए।
राज्य में फिर से उठ खड़े होने की संभावना को देखते हुए कांग्रेस का राज्यस्तरीय नेतृत्व इस बात पर जोर दे रहा है कि नेतृत्व उसके पास रहना चाहिए, या फिर चुनाव में जिस पार्टी को ज्यादा सीटें मिलें उसे कमान मिले। शिवसेना गठबंधन की कमान फिर से अपने पास ही रखना चाहेगी। यह माना जा रहा है कि हाल में उद्धव ठाकरे दिल्ली में जब राहुल गांधी से मिले, तो उन्हें आश्वासन दिया गया कि चुनाव में उनको (उद्धव ठाकरे) मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए बिना ही जनता के सामने जाएंगे। लेकिन, अगर एमवीए को बहुमत मिलता है, तो वही नेता होंगे।
दूसरी तरफ, एमवीए के संस्थापक शरद पवार ने संकेत दे दिया है कि नेतृत्व के मुद्दे को चुनाव के बाद के लिए छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि 1977 में जब जनता पार्टी सत्ता में आई थी, तब मोरारजी देसाई चुनाव के बाद ही प्रधानमंत्री घोषित किए गए थे। लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान शरद पवार ने मुझे बताया था कि उन्हें लगता है कि आगामी एक-दो वर्षों में उनकी पार्टी समेत अन्य क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस में विलय हो सकता है। इस स्तर पर फिलहाल यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि राकांपा इस विकल्प पर कब और किस तरह विचार करेगी। लेकिन यह बात तय है कि शरद पवार अपनी पार्टी और अपनी बेटी सुप्रिया सुले, जो राकांपा (शरद पवार) की कार्यकारी अध्यक्ष हैं, को यथासंभव राजनीतिक रूप से सुरक्षित करना चाहते हैं।
कथित तौर पर भतीजे अजित पवार ने भी अपने चाचा को पुरानी बातें भूल जाने की पेशकश की है। सार्वजनिक रूप से वह कह चुके हैं कि बारामती से बहन सुप्रिया के खिलाफ पत्नी सुनेत्रा को चुनाव लड़ाकर उन्होंने बड़ी गलती की थी। लेकिन वरिष्ठ पवार उन्हें माफ करने, भूलने या स्वागत करने और पार्टी में फिर से उत्तराधिकार के मुद्दे को खोलने के मूड में नहीं दिख रहे। यदि महाराष्ट्र में एमवीए की सत्ता में वापसी होती है, तो स्वाभाविक है कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद के लिए दावा पेश करेंगे। वहीं, कांग्रेस यदि ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही, तो शीर्ष गद्दी पर वह अपना दावा जताएगी। शरद पवार भी अपने पत्ते खोलने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रहे। महाराष्ट्र में कुछ अनुत्तरित सवाल ये भी हैं कि अगर परिस्थितियां बनने लगीं, तो क्या शरद पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश करेंगे? क्या सुप्रिया सुले छुपी रुस्तम बनकर राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनेंगी?