कारों को क्यों है सेफ्टी रेटिंग की जरूरत?

क्या 5 स्टार रेटिंग है सेफ, कैसे देखें सेफ्टी-रेटिंग, कार लेने से पहले क्या चेक करें
क्या इससे बढ़ जाएगी गाड़ियों की कीमत, जानिए सभी सवालों के जवाब

सरकार द्वारा शुरू किए जा रहे इस प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य लोगों को सुरक्षित कार की सवारी कराना है। स्टार रेटिंग टेस्ट के लिए मॉडल कार के अंदर मानव डमी को बैठाया जाता है और इसे किसी दीवार या मजबूत ढांचे से टकराई जाती है। इसके आने के बाद संभव रूप से देश में कारों के दाम बढ़ सकते हैं।

उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस-वे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (UPEIDA) के मुताबिक कार की स्पीड 150 से 160 के बीच थी। इस वजह से ड्राइवर ने अचानक कंट्रोल खो दिया।

टोयोटा कंपनी की फॉर्च्यूनर कार की सेफ्टी रेटिंग 5 है। इसलिए इसे बहुत ही सुरक्षित कार माना जाता है। शायद यही वजह थी कि मुशीर के साथ गाड़ी में सवार सभी लोग खतरे से बाहर हैं।

लेकिन क्या आप भी कार खरीदते समय उसकी सेफ्टी रेटिंग देखते हैं। हम भारतीय कार खरीदते समय सबसे पहले उसका लुक, माइलेज और कीमत देखते हैं, लेकिन इन सबसे कहीं ज्यादा जरूरी है, कार के सेफ्टी फीचर्स और उसकी सेफ्टी रेटिंग देखना।

 सेफ्टी रेटिंग की। साथ ही जानेंगे कि-…

  • सेफ्टी रेटिंग का क्या मतलब होता है?
  • सेफ्टी रेटिंग कैसे दी जाती है?
  • कार लेने से पहले किन बातों का ख्याल रखना जरूरी है?

सवाल- नई कार कितनी सेफ है, यह कैसे पता कर सकते हैं?

जवाब- ग्लोबल न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (GNCAP) द्वारा कार की सेफ्टी को लेकर 1 से 5 तक रेटिंग दी जाती है। इस रेटिंग के लिए कारों को कई तरह के टेस्ट से गुजरना पड़ता है। इन्हीं टेस्ट के आधार पर कारों की सेफ्टी का पता चलता है। ये सेफ्टी बड़ों और बच्चों, दोनों के लिए अलग-अलग होती है। भारत में कारों को सेफ्टी रेटिंग देने वाली संस्था भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (Bharat NCAP) है, जो भारत में मैन्युफैक्चर होने वाली या बेची जाने वाली नई कारों को कुछ सुरक्षा मानकों पर सेफ्टी रेटिंग देती है। नीचे ग्राफिक में देखिए-

सवाल- किसी भी कार का क्रैश टेस्ट कैसे होता है?

जवाब- इस टेस्ट के लिए कार में सवारी के तौर पर इंसानी ढांचे वाले डमी का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद डमी के चेहरे, घुटनों और सिर के हिस्सों पर अलग-अलग तरह का रंग लगाया जाता है।

सबसे पहले कार को फ्रंटल इम्पैक्ट टेस्ट से गुजरना पड़ता है। इसमें कार के सामने के हिस्से को 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बैरियर से टकराया जाता है। इसके बाद कार का साइड इम्पैक्ट टेस्ट किया जाता है। इसी के आधार पर कार के अन्य सेफ्टी फीचर्स का भी आंकलन किया जाता है।

सवाल- किस आधार पर कार को सेफ्टी रेटिंग दी जाती है?

जवाब- सेफ्टी टेस्ट के दौरान चाइल्ड ऑक्यूपेंट प्रोटेक्शन (COP), सेफ्टी असिस्ट टेक्नोलॉजी (SAT) और एडल्ट ऑक्यूपेंट प्रोटेक्शन (AOP) जैसे सेफ्टी मेजर्स का खास ख्याल रखा जाता है। इन तीनों सेफ्टी फीचर्स के मुताबिक ही देखा जाता है कि कार में बैठने वाले बच्चे या एडल्ट कितने सेफ हैं। इसके अनुसार कार को सेफ्टी के पैमाने पर रेटिंग दी जाती है। यह रेटिंग 1 से 5 स्टार तक होती है। 5 स्टार सबसे सुरक्षित रेटिंग मानी जाती है, जबकि 1 स्टार रेटिंग वाली कार को सबसे खराब माना जाता है। दुर्घटना की स्थिति में इसमें सबसे ज्यादा खतरा रहता है।

सवाल- कार खरीदने से पहले किस तरह के सेफ्टी फीचर्स का ध्यान रखना चाहिए?

जवाब- आमतौर पर लोग नई कार खरीदते समय उसके लुक और डिजाइन पर ज्यादा फोकस करते हैं। जबकि बदलती टेक्नोलॉजी के दौर में कार के लुक, कलर और डिजाइन के साथ उसके सेफ्टी फीचर्स का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

किसी दुर्घटना की स्थिति में सेफ्टी फीचर्स न सिर्फ आपकी कार की सुरक्षा करते हैं, बल्कि वाहन में बैठे लोगों की जान भी बचाते हैं।

नीचे दिए ग्राफिक से समझिए कि कार खरीदने से पहले किन सेफ्टी फीचर्स को देखना चाहिए।

भारत में सड़क दुर्घटनाओं का 70% कारण ओवरस्पीडिंग

भारत में करीब हर साढ़े 3 मिनट पर एक व्यक्ति की सड़क हादसे में मौत हो रही है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में भारत में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या 4 लाख 60 हजार से ज्यादा थी। यानी हर घंटे देश में 53 सड़क हादसे हुए, जिसमें हर एक घंटे में 19 लोगों की जान चली गई।

वर्ष 2022 में हुई सड़क दुर्घटनाओं में 70% मौतें तेज स्पीड से वाहन चलाने यानी ओवर स्पीडिंग की वजह से हुईं। इसके अलावा शराब पीकर गाड़ी चलाने और ड्राइविंग के समय मोबाइल का इस्तेमाल करने से भी हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसलिए कार में सेफ्टी फीचर्स देखने के अलावा यातायात के नियमों का पालन करना भी बहुत जरूरी है, जिससे आपकी और अन्य वाहन चालकों की जिंदगी सुरक्षित रहे।

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कारों को क्यों है सेफ्टी रेटिंग की जरूरत?
क्या इससे बढ़ जाएगी गाड़ियों की कीमत, जानिए सभी सवालों के जवाब

सरकार द्वारा शुरू किए जा रहे इस प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य लोगों को सुरक्षित कार की सवारी कराना है। स्टार रेटिंग टेस्ट के लिए मॉडल कार के अंदर मानव डमी को बैठाया जाता है और इसे किसी दीवार या मजबूत ढांचे से टकराई जाती है। इसके आने के बाद संभव रूप से देश में कारों के दाम बढ़ सकते हैं।

नई दिल्ली, … केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने सुरक्षा मानकों पर कारों की स्टार रेटिंग की भारत की अपनी व्यवस्था को अंतिम रूप दे दिया है। भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (BNCAP) के परीक्षण प्रोटोकॉल को वैश्विक क्रैश-टेस्ट प्रोटोकॉल के साथ जोड़ा गया है। देश की सभी नई कारों को अब 1 से 5 की रेंज में रेटिंग दी जाएगी। पांच स्टार उच्चतम सुरक्षा रेटिंग का संकेत देंगे और इसे 1 अक्टूबर से लागू किया जाना है। आइए जानते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया को किस तरह से अंजाम दिया जाएगा।

भारत में क्यों है स्टार रेटिंग की जरूरत?

विभिन्न देशों का अपना कार मूल्यांकन कार्यक्रम (एनसीएपी) है। भारत में इसे भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (बीएनसीएपी) कहा जाएगा। भारत ने 2014-2015 में कार मूल्यांकन कार्यक्रम लाने की आवश्यकता पर चर्चा शुरू की गई थी और अब इसे शुरु किए जाने की तैयारी हो रही है। NCAP के लिए वैश्विक विचार कारों को आगे की सीटों पर वयस्कों और पीछे की सीटों पर बच्चों के लिए सुरक्षित बनाना है। एनसीएपी यह आकलन करता है कि दुर्घटना की स्थिति में कार कितनी सुरक्षित है।

क्रैश टेस्ट के लिए, उपयोग किए जाने वाले वाहन मॉडल पर एक प्रोटोकॉल होता है। इनका परीक्षण कर स्टार रेटिंग दी जाती है। मलेशिया जैसे कुछ देशों में स्टार रेटिंग देने के लिए संस्थाएं स्थापित की गई हैं। भारत में, हमारे पास BNCAP नामक एक प्राधिकरण होगा।

कारों को क्रैश टेस्ट के बाद रेटिंग दी जाएगी और सड़क परिवहन मंत्रालय में संयुक्त सचिव या अतिरिक्त सचिव के अधीन एक उच्च स्तरीय समिति इसके लिए प्रमाण पत्र देगी और इससे स्टार रेटिंग प्रणाली को विश्वसनीयता मिलेगी। इस प्रक्रिया में न्यूनतम सुरक्षा वाली कारों में एक स्टार होगा और अधिकतम सुरक्षा वाली कारों को 5 स्टार दिए जाएंगे। पिछले कई सालों से लोग कार का माइलेज और लुक देखकर ही उसे खरीदते हैं लेकिन अब इसकी सुरक्षा पर भी फोकस किया जा सकेगा।

क्यों महत्वपूर्ण है कारों का मूल्यांकन?

सरकार द्वारा शुरू किए जा रहे इस प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य लोगों को सुरक्षित कार की सवारी कराना है। स्टार रेटिंग टेस्ट के लिए मॉडल कार के अंदर मानव डमी को बैठाया जाता है और इसे किसी दीवार या मजबूत ढांचे से टकराई जाती है। साथ ही जांचने के लिए रियर टेस्ट किया जाता है कि वाहन स्थिर है या नहीं और उसमें बैठे लोगों की सुरक्षा कर सकता है या फिर नहीं। ऐसे में कार को दोनो तरफ से दुर्घटनाग्रस्त किया जाता है। दुर्घटनाएं ये जांचती हैं कि उनका रहने वालों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। प्रक्रिया पूरी होने के बाद मॉडल को स्टार रेटिंग दी जाती है।

देश में अभी क्या हैं जांच के पैरामीटर?

हमारे देश में हर कार को फ्रंटल क्रैश टेस्ट से गुजरना पड़ता है। किसी कार के सड़क पर चलने के लिए यह न्यूनतम आवश्यकता है। आगे की सीट पर बैठे यात्रियों के लिए एयरबैग अनिवार्य है। सरकार सभी कारों में 6 एयरबैग को अनिवार्य बनाने पर काम कर रही है। इनसे पीछे की सीटों पर बैठे लोगों को पर्याप्त सुरक्षा मिलेगी। फिलहाल, इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी सिस्टम एक प्रीमियम सुरक्षा सुविधा है।

दो से तीन साल में यह सभी कारों के लिए अनिवार्य हो सकता है और स्पीड अलर्ट सिस्टम पहले से ही अनिवार्य है। जब आप 80 किमी से अधिक ड्राइव करते हैं तो कार अलार्म बजाती है। यदि आप 100 किमी से आगे जाते हैं तो इसकी आवाज और तेज हो जाती है।

क्या स्टार रेटिंग नई कारों को और महंगी बना देगी?

इसके आने के बाद संभव रूप से देश में कारों के दाम बढ़ सकते हैं। इस अग्निपरीक्षा से निकलने के लिए कार निर्माता कंपनियां अपने मॉडलों के लिए लागत बढ़ा सकती हैं, लेकिन ये ज्यादा नहीं होगी। कारों को टेस्टिंग के लिए विदेश नहीं भेजना पड़ेगा और इसका असर लागत पर पड़ेगा। वहीं, हाई स्टार रेटिंग के लिए, निर्माताओं को अधिक एयरबैग और इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी सिस्टम जैसे जरूरी सेफ्टी फीचर्स देने होंगे।

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