सवार पीके के सामने सवालों और चुनौतियों का अंबार ?
बिहार की उम्मीदों के लहर पर सवार पीके के सामने सवालों और चुनौतियों का अंबार
अब प्रशांत किशोर सीधी राजनीति में हैं वो भी अपने दल-बल के साथ.. अपने दल का आगाज उन्होंने अपने प्रदेश बिहार से किया है.. बिहार की जनता को प्रशांत किशोर से उम्मीदें बेशुमार है.. उनके राजनीतिक दल से बिहार में व्यापक बदलाव की उम्मीद की जा रही है.. प्रशांत किशोर का भी दावा है कि वह बिहार में बदलाव का बयार बहा देंगे.. विकास की नई गाथा लिखी जाएगी.. प्रदेश से पलायन रुकेगा.. रोजगार के अवसर प्रदान होंगे.. नए लोगों को राजनीति में बेहतर अवसर मिलेगा.. पूरे आत्मविश्वास के साथ प्रशांत किशोर ने बिहार भर में पिछले कई वर्षों से घूम घूम कर इन वादों को प्रसारित किया है.. ।।
अब जब प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी का गठन कर ही दिया है तो उनसे कई सवाल है.. कई चुनौतियों का उन्हें सामना करना पड़ेगा.. कई सवालों के जवाब उन्हें देने होंगे..
चुनाव लड़ेंगे नहीं, सिर्फ लाडवायेंगें
पहला और बड़ा सवाल तो यही है कि प्रशांत किशोर ने कहा है वो न तो पार्टी के अध्यक्ष बनेंगे, नहीं मुख्यमंत्री बनेंगे.. तो फ़िर पार्टी का संचालन कैसे करेंगे.. क्या उन्होंने राजनीतिक दल का गठन इसलिए किया है कि जो चुनाव लड़ाने का कार्य पर अन्य दलों के लिए क्या करते थे अब वह अपने दल के लिए करेंगे.. चुनाव लड़ेंगे नहीं सिर्फ लाडवायेंगें? अगर मान लिया जाए कि प्रशांत किशोर बिहार विधानसभा 2025 में अपनी उम्मीद के अनुरूप सफलता पा लेते हैं, तो फिर मुख्यमंत्री कौन होगा? कैसे तय होगा? अगर वह मुख्यमंत्री बना लेते हैं तो क्या वह मुख्यमंत्री आगे चलकर भी प्रशांत किशोर के विचारों को आगे बढ़ाएगा? क्या गारंटी है कि वह अपनी राजनितिक चाल नहीं चलेंगे?
प्रशांत किशोर के हैं शब्दों में ही कहें तो उन्होंने जन सुराज के प्रदेश अध्यक्ष मनीष भारती के तौर पर एक नमूना पेश किया है और इसी तरह के नमूनों के आगे की राजनीति करेंगे.. देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री के संभावित उम्मीदवार के तौर पर किस तरह का नमूना पेश करते हैं..
रोजगार के अवसर कैसे प्रदान होंगे और पलायन कैसे रुकेगा?
बिहार के लिए रोजगार एक बड़ी समस्या है.. बिहार वासियों को अपने प्रदेश में रोजगार नहीं मिलता है इसलिए उन्हें बाहर के प्रदेशों में पलायन करना पड़ता है.. पलायन के बाद उन्हें दो जून की रोटी तो मुहैया होता है लेकिन अपमान का दंश भी झेलना पड़ता है.. बिहार में रोजगार के अवसर पिछले कुछ दशकों में मानव थम सा ही गया है.. ऐसे में प्रशांत किशोर ने वादा किया है कि बिहार के लोगों को बाहर रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा.. उन्होंने मॉडल भी बताया है और जो मॉडल बताया है उसके आधार पर कहा है कि प्रदेश में है 10,000 से 12,000 रुपए की व्यवस्था पलायन करने वाले युवकों को उपलब्ध हो जाएगी… लेकिन कहने वाले तो कहेंगे कि मनरेगा के तहत मजदूरों को इतनी राशि उपलब्ध हो ही जाती है, इसके बाद भी पलायन नहीं रुका है.
युवकों के लिए ऋण वितरण की बात कर रहे हैं… यह अच्छी बात है.. बिहार के युवकों को बैंक ऋण वितरण में आनाकानी एक समस्या है.. महिलाओं को जो ऋण देने की बात कर रहे हैं वह मुद्रा लोन, महिलाओं को विशेष सब्सिडी आदि माध्यमों से पहले से है, इसमें कुछ खास नया नहीं है.. कृषि को मनरेगा से जोड़ने की बात पीके ने की है… अगर ऐसा होता है तो क्रांतिकारी होगा लेकिन इसकी जटिलताओं का कैसे समाधान होगा इसके बारे में बताना होगा..
शराब के पैसों से शिक्षा में सुधार ?
पीके ने अपनी पार्टी गठन के अवसर पर उपस्थित जन समूह को संबोधित करते हुए कहा कि बिहार से शराब बंदी हटा देंगे.. कई मायनों में उनके इस वादे का स्वागत होगा.. क्योंकि बिहार में शराबबंदी होते हुए भी शराब की अवैध खपत जारी है.. सरकार इस पर लगाम कसने में पूरी तरह नाकामयाब है.. लेकिन पीके का यह कहना कि शराब बेचने से जो टैक्स आएगा उसे बिहार के शिक्षा का सुधार होगा यह थोड़ा अटपटा लगा.. क्योंकि अगर शराब के पैसों से इतना ही टैक्स आता है और किसी भी प्रदेश के विकास में वह इतना ही आम है तो फिर पंजाब, हरियाणा या अन्य राज्य जहां शराब की भारी खपत है, बड़ा टैक्स आता है, वहां पर यह मॉडल क्यों नहीं लागू है?
दिल्ली जैसे राज्य जहां शिक्षा में व्यापक सुधार की बात हो रही है लेकिन वहां शराब के टैक्स के पैसे के बूते शिक्षा में बदलाव संभव नहीं हुआ है.. माना कि बिहार के लोग आपकी उम्मीदों के अनुरूप शराब पीते हैं और उम्मीद के अनुरूप उससे टैक्स आता है तो शिक्षा अच्छी हो जाएगी.. अगर ऐसा नहीं होता है तो क्या होगा? क्या फिर बिहार के शिक्षा में सुधार नहीं होगा या फिर कोई और वैकल्पिक वादा है आपके पास? कहीं पीके यह तो नहीं कहना चाह रहे हैं की खूब पीयेंगे शराब आप, तभी शिक्षित होंगे आपके नवनिहाल? … मुझे लगता है कि इसमें नैतिकता भी आड़े आयेगी…
पुराने दिग्गजों पर ही दाव क्यों?
प्रशांत किशोर का दल भले ही नया हो, लेकिन इसमें एक से एक पुराने राजनीतिक दिग्गज शामिल हो चुके हैं.. कई पार्टियों या यूं कहिए कि प्रदेश के सभी स्थापित पुराने पार्टियों में प्रशांत किशोर की पार्टी ने हलचल मचा दिया है.. कई पार्टियों के दिग्गज नेता प्रशांत किशोर के साथ जुड़ रहे हैं या जुड़ चुके हैं.. पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे डीपी यादव, पूर्व सांसद छेदी पासवान, पूर्व सांसद पूर्णमासी राम, पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री मोनाजिर हसन, पूर्व सांसद सीताराम यादव सहित कई बड़े नेता प्रशांत किशोर की पार्टी से अपनी राजनीति को आगे बढ़ने का सिलसिला शुरू कर चुके हैं..
टके का सवाल है कि दशको तक बिहार की राजनीति में सक्रिय रहे इन लोगों ने अगर कोई व्यापक बदलाव नहीं किया तो प्रशांत किशोर के साथ जुड़कर करके क्या करिश्मा कर पाएंगे? क्या चूके हुए राजनीतिक चौहानों के बदौलत प्रशांत किशोर बिहार की नई पटकथा लिखना चाहते हैं?
पूर्व नौकरशाहों पर ही भरोसा क्यों?
कुछ दिनों पूर्व प्रशांत किशोर ने बिहार के मुख्यमंत्री पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा था की कुछ चुनिंदा पूर्व नौकरशाहों के द्वारा बिहार की सरकार को चलाया जा रहा है जो कि नीतीश कुमार के लिए नासूर बन गया है.. सवाल यह है कि पूर्व नौकरशाहों के राजनीतिक हस्तक्षेप पर नीतीश कुमार से सवाल खड़ा करने वाले प्रशांत किशोर की पार्टी में पुराने नौकरशाहों की भरमार क्यों है? जैन स्वराज का पहला कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती के पूर्व नौकरशाह हीं हैं.
दर्जन भर से अधिक पूर्व नौकरशाह प्रशांत किशोर की पार्टी से आधिकारिक तौर पर जुड़ गए हैं.. कहा जा रहा है कि 100 से अधिक पूर्व आईएएस व आईपीएस अधिकारी जन सुराज से जुड़े हुए हैं या जुड़ने वाले हैं.. प्रशांत किशोर की पार्टी का विधान भी इन्हीं पूर्व अधिकारियों के द्वारा लिखा जा रहा है.. दूसरे राजनेताओं को पूर्व अधिकारियों पर भरोसा जताने के लिए सवालों में घेरने वाले प्रशांत किशोर आखिर खुद क्यों पूर्व अधिकारियों से घिरे हुए हैं?
जात-पात की राजनीति से क्या ऊपर उठ पाएंगे पीके?
प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में एक अपनी लकीर खींचने का दावा कर रहे हैं.. लेकिन सवाल उनसे यह भी पूछा जाएगा कि पीके की पार्टी का पहला प्रदेश अध्यक्ष दलित ही होगा, ऐसा क्यों? क्या इससे जातिगत राजनीति को बल नहीं मिल रहा है? आप जात-पात की राजनीति को बिहार में और बढ़ावा तो नहीं दे रहे हैं? जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी जैसी बात पीके भी कर रहे हैं..
मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति पर पीके की नर्मी क्यों?
प्रशांत किशोर मुसलमानों को रिझाने में जुटे हुए हैं.. बिहार में मुसलमान की गारंटर मानी जाने वाले दल राजद और कांग्रेस में इसको लेकर खलबली है.. कुछ लोगों का दावा है कि आरजेडी या कांग्रेस मुसलमान प्रत्याशी देगी, पर जन सुराज का उम्मीदवार नहीं होगा.. कहा यह भी जा रहा है कि प्रशांत किशोर कम से कम अपनी पार्टी से मुसलमान को 40 सीट पर सिंबल चुनाव लड़ने के लिए देंगे.. क्या यह पीके का मुस्लिम तुष्टिकरण राजनीति नहीं है?
लोकलुभावन वायदे पीके को क्यों करना पड़ रहा है?
वृद्धा पेंशन में बढ़ोतरी,, महिलाओं को आसान ऋण किसानों की आय आदि-आदि जैसे लोक लुभावन वायदे दशकों से विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किया जा रहा है… सच कहें तो कई योजनाएं इस तरह की चल भी रही है.. फिर प्रशांत किशोर को क्या मजबूरी है कि उन्हें ऐसे लोक लुभावना वायदे करने पड़ रहे हैं?
क्या पीके की पार्टी से पूंजीगत राजनीति को बढ़ावा मिलेगा?
विपक्ष का आरोप है कि प्रशांत किशोर कॉरपोरेट स्टाइल के नेता हैं.. उनके साथ जुड़े हुए अधिकांश राजनेता बड़े पूंजीपति हैं, बड़े व्यवसायी हैं और बड़े रसूखदार हैं.. जबकि बात प्रशांत किशोर दलितों वंचितों और बिहार के बेरोजगारों की बात करते हैं.. प्रशांत किशोर के आने से बिहार की राजनीति महंगी हो जाएगी.. किशोर को इस मसले पर सवाल पूछा जाएगा की क्या उनके आने से बिहार की राजनीति महंगी हो रही है??
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