ईरान पर हमला तय, लेकिन इसका अंजाम अनिश्चित है ?
ईरान पर हमला तय, लेकिन इसका अंजाम अनिश्चित है
हम मध्य-पूर्व में एक टर्निंग-पॉइंट की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन हम नहीं जानते कि यह टर्न हमें किस दिशा में ले जाएगा। ईरान ने इजराइल पर सीधे हमला करने का घातक कदम उठाया है। विश्लेषक चकित हैं कि ईरान ने ऐसा किया, हालांकि उसके सामने कोई और चारा भी नहीं था। वह दुनिया की नजरों में कमजोर दिखने लगा था।
अभी तक ईरान की नीति यह थी कि इजराइल की ओर से किसी सैन्य-प्रतिक्रिया को भड़काए बिना उसके खिलाफ कार्रवाई करते रहे, लेकिन अब ईरान ने इजराइल को जवाबी कार्रवाई का बहाना दे दिया है। इजराइल उसके परमाणु-स्थलों और सैन्य ठिकानों पर हमला कर सकता है या उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ तेल-स्रोतों पर भी धावा बोल सकता है। और ईरान जानता है कि इजराइल ऐसा करने में सक्षम है।
इजराइल यही चाहेगा कि ईरान पर सीधे हमला बोला जाए, क्योंकि वह उसके अनेक प्रॉक्सी से निपटते हुए थक चुका है। इजराइल की हुकूमत को इसके लिए पुरजोर घरेलू-समर्थन भी प्राप्त है, क्योंकि इसका मतलब होगा समस्या की जड़ पर प्रहार करना।
कुछ का यह भी मानना है कि इजराइली हमला ईरान के मौजूदा शासन के पतन का कारण बन सकता है। इस सप्ताह की शुरुआत में ही बेंजमिन नेतन्याहू ने कहा भी था कि ‘जब ईरान आखिरकार आजाद हो जाएगा- और वह लम्हा लोगों की सोच से बहुत पहले आ जाएगा- तो सब कुछ अलग होगा।’ हालांकि यह निश्चित नहीं है कि वैसी स्थिति में ईरान में किस तरह की हुकूमत को स्थापित किया जाएगा।
अधिक सम्भावना इसी बात की है कि ईरान अपनी मौजूदा हुकूमत को कायम रखते हुए अपने परमाणु-कार्यक्रम को बढ़ावा देता रहेगा। 7 अक्टूबर को- यानी लगभग एक साल पहले- इजराइल पर हमास के हमले और उसके बाद हिजबुल्ला द्वारा इजराइल के खिलाफ रॉकेट-हमलों ने इस क्षेत्र में तनाव को लगभग अपरिहार्य बना दिया था।
इस तथ्य को पर्याप्त रेखांकित नहीं किया जाता है कि हमलों के जोखिम से अपने नागरिकों को बचाने के लिए इजराइल ने अपनी उत्तरी सीमा से लगभग 60,000 नागरिकों को निकाला, लेकिन हिजबुल्ला और इजराइल के बीच लगातार बढ़ती गोलीबारी ने इन लोगों के लिए सुरक्षित रूप से वापस लौटना नामुमकिन बना दिया है। लड़ाई में नए मोर्चे इसलिए उभरे, क्योंकि गाजा में शक्ति-संतुलनों में एक नया परिदृश्य सामने आया था।
पिछले एक साल में, इजराइल ने हमास द्वारा अपने लिए उत्पन्न सैन्य-खतरे को तेजी से नगण्य बना दिया है। हमास के 10,000 से 20,000 लड़ाके मारे गए हैं, उसके कई नेताओं की या तो हत्या कर दी गई है या वे गाजा की सुरंगों की भूलभुलैया में अनिश्चित-काल तक छिपने के लिए मजबूर कर दिए गए हैं।
इसी के बाद इजराइल ने तय किया कि अब वह सुरक्षित रूप से अपना ध्यान उत्तरी सीमा और हिजबुल्ला पर केंद्रित कर सकता है। हिजबुल्ला के खिलाफ भी इजराइल ने अब तक जो हासिल किया है, वह भी प्रभावशाली है। पेजर और वॉकी-टॉकी में विस्फोट करके और फिर टारगेटेड बमबारी करके, इजराइल ने हिजबुल्ला की हाईकमान का खात्मा कर दिया है, जिसमें तीन दशकों से समूह का नेतृत्व कर रहा हसन नसरल्ला भी शामिल था।
7 अक्टूबर को इजराइल के खुफिया तंत्र से जो चूक हुई थी, वो उसको और इस पूरे क्षेत्र को बहुत महंगी पड़ी। लेकिन उसके बाद से हिजबुल्ला के खिलाफ हमलों में दुश्मनों के बारे में सटीक खुफिया जानकारी प्राप्त करके निर्णायक कार्रवाई करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करके इजराइली सुरक्षा तंत्र ने अपनी प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित कर दिया है। हिजबुल्ला से निपटने के बाद इजराइल ने लेबनान में जमीनी घुसपैठ भी की।
यह संघर्ष कितनी दूर तक जाएगा और कितने समय जारी रहेगा, यह तय नहीं है और इसका उद्देश्य भी स्पष्ट नहीं है। हिजबुल्ला को पूरी तरह से खत्म करना नामुमकिन है, और लेबनान के एक हिस्से पर कब्जा कर लेना कोई बहुत समझदारी भरा कदम नहीं होगा। यह स्पष्ट नहीं है कि यह सब आखिर कहां जाकर रुकेगा। लेबनान में इजरायल ने जो किया, उसके प्रति अगर सहानुभूति रखी भी जाए, तो गाजा में उसने जो किया, उसकी आलोचना की जा सकती है।
हिजबुल्ला की तरह हमास भी ईरान-समर्थित आतंकवादी संगठन है, जो इजराइल का विनाश चाहता है, लेकिन दोनों में बहुत अंतर है। हमास एक राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन है, जिसे फिलिस्तीनियों का समर्थन प्राप्त है। इसके विपरीत, हिजबुल्ला विशुद्ध रूप से ईरानी विदेश नीति का एक उपकरण है, जिसका लेबनानी या फिलिस्तीनी लोगों की आकांक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं है।
- इजराइल चाहेगा कि ईरान पर सीधे हमला बोले, क्योंकि वह उसके अनेक प्रॉक्सी से निपटते हुए थक चुका है। इजराइल को इसके लिए घरेलू-समर्थन भी प्राप्त है, क्योंकि इसका मतलब होगा समस्या की जड़ पर प्रहार करना।