पंजाब ….. क्या बन जाएगा रेगिस्तान?

देश के लिए अनाज का उत्पादन करने वाला पंजाब, क्या बन जाएगा रेगिस्तान?
केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा 6 अगस्त, 2024 को राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, पंजाब ने 2023-24 में प्रति हेक्टेयर 247.61 किलोग्राम उर्वरक की खपत की.

अनाज के पैदावार के मामले में भारत का नाम दुनिया के अव्वल देशों में शामिल है. चालू वित्तीय वर्ष की बात करें तो 2023-24 में भारत ने  323.5 मिलियन टन अनाज का उत्पादन किया है, जिसमें से लगभग 19.2 मिलियन टन अनाज पंजाब में उगाए गए थे. 

पंजाब, जिसे ‘अनाज का कटोरा’ कहा जाता है, भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है. यहां की उपजाऊ मिट्टी और समर्पित किसान हर साल लाखों टन अनाज का उत्पादन करते हैं, जो न केवल भारत की खाद्य जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि निर्यात में भी योगदान देता है. लेकिन हाल ही में आई रिपोर्टों ने चिंता का विषय खड़ा किया है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक पानी की खपत और भूमि उपयोग में बदलाव जैसे कारक पंजाब की कृषि भूमि को संकट में डाल सकते हैं. अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो क्या यह समृद्ध कृषि भूमि सचमुच एक रेगिस्तान में बदल जाएगी? 

क्या कहती है रिपोर्ट 

खेती में उच्च उपज प्राप्त करने के लिए उर्वरकों जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश का उपयोग पंजाब में सबसे अधिक होता है. केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा 6 अगस्त, 2024 को राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, पंजाब ने 2023-24 में प्रति हेक्टेयर 247.61 किलोग्राम उर्वरक की खपत की. यह राष्ट्रीय औसत 139.81 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से लगभग दोगुना है.

हालांकि पंजाब भारत के कृषि क्षेत्र का केवल 1.53 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन यह देश में उपयोग किए जाने वाले कुल उर्वरकों का लगभग नौ प्रतिशत खपत करता है. आंकड़ों के अनुसार, पिछले चार दशकों में (1980-2018) एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम) उर्वरकों की खपत में 180 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसी चार दशक के दौरान पंजाब में केवल यूरिया (नाइट्रोजन) के उपयोग में 202 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. 

इसी रिपोर्ट के अनुसार धान और गेहूं के लिए अनुशंसित यूरिया का उपयोग क्रमश 0.9 क्विंटल और 1.1 क्विंटल प्रति एकड़ (0.4 हेक्टेयर) होना चाहिए, लेकिन किसान सामान्यत इससे 0.4-0.6 क्विंटल अधिक का उपयोग करते हैं.

देश के लिए अनाज का उत्पादन करने वाला पंजाब, क्या बन जाएगा रेगिस्तान?

उर्वरक में वृद्धि, लेकिन उत्पादन में नहीं

उपज में स्थिरता के मामले में, 1980 से 2018 के बीच राज्य में उर्वरक की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. लेकिन इसके उलट, इस अवधि में धान की उपज केवल 68 प्रतिशत और गेहूं की उपज महज 85 प्रतिशत ही बढ़ी है. साथ ही, भूजल स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है, जिससे किसान पानी की उपलब्धता के लिए 500 फीट तक ट्यूबवेल खुदाई करने को मजबूर हो रहे हैं.

क्यों पंजाब में धान और गेहूं का उत्पादन होता है ज्यादा 

हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने में मदद की, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों ने कृषि और पर्यावरण पर गंभीर दुष्प्रभाव डाले हैं. इस क्रांति का सबसे अधिक प्रभाव पंजाब में देखा गया, जहां धान और गेहूं की खेती को प्राथमिकता दी गई. इस एकतरफा दृष्टिकोण ने किसानों को इन फसलों पर निर्भर बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप कृषि विविधता में कमी आई. इसके साथ ही, रासायनिक खाद और कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग पर्यावरण और जन स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन गया है.

पहले पंजाब में मक्का, बाजरा, ज्वार, दलहन, तिलहन और सब्जियों के साथ-साथ डेयरी उत्पादों का भी व्यापक उत्पादन होता था. इससे किसानों के परिवारों को स्थिर आय और संतुलित भोजन मिलता था. यह बहुआयामी कृषि प्रणाली किसानों को आत्मनिर्भर बनाए रखती थी, जिससे उन्हें बाजार पर कम निर्भरता होती थी. 

साल 1980 के दशक से पहले, किसान केवल माचिस, नमक, और मसालों जैसी छोटी-मोटी वस्तुएं बाजार से खरीदते थे, क्योंकि बाकी सभी आवश्यकताएं वे अपनी खेती से पूरी करते थे. उस समय की कृषि न केवल भूमि की उर्वरता को बनाए रखती थी, बल्कि किसान परिवारों की सेहत भी सुनिश्चित करती थी. 

क्या ज्यादा धान और गेहूं को उगाना बना रहा पंजाब के खेत को रेगिस्तान

ज्यादा धान और गेहूं की खेती ने पंजाब के खेतों को रेगिस्तान में बदलने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, अत्यधिक जल निकासी, भूमि की गुणवत्ता में गिरावट और रासायनिक उर्वरकों के अति उपयोग ने मिट्टी की उर्वरता को कमजोर किया है.

पंजाब कृषि विभाग की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि जलवायु परिवर्तन और अस्थिर मानसून के कारण जल संकट गहरा हो रहा है, जिससे कृषि भूमि की उत्पादकता प्रभावित हो रही है. लंबे समय तक एकल फसल प्रणाली ने मिट्टी की विविधता को समाप्त कर दिया है और इससे जल संसाधनों पर दबाव बढ़ा है. इस स्थिति के कारण, अगर उचित उपाय नहीं किए गए, तो पंजाब की खेती वाली जमीन एक दिन सचमुच रेगिस्तानी इलाके में तब्दील हो सकती है. 

देश के लिए अनाज का उत्पादन करने वाला पंजाब, क्या बन जाएगा रेगिस्तान?

कैसे ज्यादा गेहूं और धान का उत्पादन बना रहा खेतों को अनउपजाऊ, पांच कारण 

1. एकल फसल प्रणाली: लगातार एक ही फसल (जैसे धान और गेहूं) उगाने से मिट्टी की पोषक तत्वों की विविधता कम हो जाती है. इससे मिट्टी की उर्वरता प्रभावित होती है.

2. रासायनिक उर्वरकों का ज्यादा इस्तेमाल: इन फसलों की ज्यादा पैदावार के लिए किसानों ने रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ा दिया है. लंबे समय तक रासायनिक खाद के उपयोग से मिट्टी में संतुलन बिगड़ता है और उसकी प्राकृतिक उर्वरता घटती है.

3. जल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग: धान की खेती के लिए बड़े पैमाने पर पानी की आवश्यकता होती है. इससे भूजल स्तर में गिरावट आती है और जल संकट पैदा होता है, जिससे खेतों की उपजाऊ शक्ति कम होती है.

4. मिट्टी का क्षरण: लगातार फसल लेने से मिट्टी का क्षरण और कटाव बढ़ता है, जिससे उसकी संरचना और पोषण घटता है.

5. पर्यावरणीय असंतुलन: फसल विविधता की कमी से कीटों और रोगों का दबाव बढ़ता है, जिसके लिए किसानों को कीटनाशकों का अधिक उपयोग करना पड़ता है, जो मिट्टी और जल स्रोतों को भी प्रभावित करते हैं. 

क्या है इसका समाधान 

  • फसल विविधीकरण: किसानों को धान और गेहूं के बजाय अन्य फसलों, जैसे कि दलहन, तिलहन या फल-सब्जियों की खेती की ओर प्रेरित करना. इससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार होगा और लाभ भी मिलेगा.
  • सही उर्वरक का उपयोग: मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार उर्वरकों का चयन और उनका संतुलित उपयोग करने की दिशा में किसानों को जागरूक करना. इससे मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखा जा सकता है.
  • जल प्रबंधन: सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों, जैसे कि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई का उपयोग, जिससे पानी की बर्बादी कम हो सके. इससे भूजल स्तर में सुधार होगा.
  • सस्टेनेबल एग्रीकल्चर प्रथाएं: जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को अपनाना, जो मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद कर सकती हैं.
  • किसान शिक्षा और प्रशिक्षण: किसानों को नई कृषि तकनीकों और प्रथाओं के बारे में शिक्षित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करना, ताकि वे बेहतर निर्णय ले सकें.

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