जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों में बढ़ रही है महिलाओं के खिलाफ हिंसा ?
जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों में बढ़ रही है महिलाओं के खिलाफ हिंसा, क्या है वजह?
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप होने वाली आर्थिक समस्याएं, जैसे कृषि उत्पादन में गिरावट और खाद्य असुरक्षा, महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देती हैं.
जलवायु परिवर्तन केवल मौसम के पैटर्न को नहीं बदल रहा, बल्कि इसके गहरे सामाजिक प्रभाव भी सामने आ रहे हैं. हालिया शोध दर्शाते हैं कि जलवायु संबंधी घटनाओं जैसे तूफान, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाएं, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और यौन शोषण के मामलों को बढ़ावा दे रही हैं. इसके साथ ही, आर्थिक असुरक्षा और पारिवारिक दबाव के चलते जल्दी शादी के जोखिम भी बढ़ रहे हैं. यह न केवल महिलाओं के अधिकारों के लिए एक गंभीर खतरा है, बल्कि यह उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक स्थिति पर भी गंभीर असर डाल रहा है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में हम विस्तार से जानेंगे कि क्य वाकई जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों में बढ़ा रहा है महिलाओं के खिलाफ हिंसा?
हाल ही में द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में लंदन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक रिसर्च प्रकाशित की गई थी. इस अध्ययन में खुलासा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं. इस शोध में अलग-अलग जलवायु संबंधी घटनाओं, जैसे तूफान, भूस्खलन और बाढ़, के बाद महिलाओं के साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा के मामलों का विश्लेषण किया गया है.
इस रिसर्च में आंकड़े के तौर पर साल 1993 से साल 2019 के बीच 156 देशों के उन महिलाओं को शामिल किया गया है जिनका वर्तमान में कोई साथी है. इस अध्ययन ने शादी के रिश्ते में पति द्वारा की जाने वाली हिंसा को पिछले एक साल में होने वाली शारीरिक या यौन हिंसा के रूप में परिभाषित किया गया है.
इसके अलावा, इसी अध्य्यन में शोधकर्ताओं ने 190 देशों में 1920 से 2022 के बीच जलवायु संबंधी आंकड़ों का संग्रह किया और जलवायु घटनाओं के साथ अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा के बीच के संबंध का विश्लेषण किया, साथ ही देशों की आर्थिक स्थितियों पर भी ध्यान दिया.
इस रिसर्च को कराने वाली साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक सारा ने कहा, ‘जब हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में सोचते हैं, तो हमें अक्सर कुछ कठोर चीजें याद करते हैं. लेकिन, जलवायु परिवर्तन के कुछ छिपे हुए परिणाम भी हैं, जो आसानी से नजर नहीं आते या उन पर आसानी से स्टडी नहीं कर पाते हैं. इन्ही में शामिल है जेंडर आधारित हिंसा.’
क्लाइमेट चेंज से लोगों में असमानता बढ़ती है
इस रिसर्च के अनुसार आर्थिक समस्याएं, सामाजिक अस्थिरता, खराब पर्यावरण और तनाव जैसी परिस्थितियां हिंसा को बढ़ावा देती हैं. इसी अध्य्यन में ये भी बताया गया कि तूफान कैटरीना के बाद नई माताओं को पुरुषों द्वारा पीटे जाने का खतरा आठ गुना बढ़ गया था. इस रिपोर्ट के अलावा उप-सहारा अफ्रीका से संबंधित पांच शोधों में पाया गया है कि सूखा पड़ने के दौरान शारीरिक शोषण, बाल विवाह, दहेज हिंसा और स्त्री-हत्या के मामलों में भी वृद्धि हुई है.
ज्यादा जीडीपी वाले देशों में हिंसा कम
लंदन विश्वेविद्यालय के इसी अध्य्यन में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि जिन देशों की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ज्यादा है, वहां महिलाओं पर की जाने वाली हिंसा की दर कम है.
शोधकर्ताओं के अनुसार, मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि जब कोई महिला जलवायु संबंधी घटनाओं का सामना करती है, तो कुछ देशों में उसके हिंसा का शिकार होने की संभावना बढ़ जाती है, जबकि अन्य देशों में ऐसा नहीं होता. शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि उनका उद्देश्य यह समझना था कि राष्ट्रीय स्तर पर क्या हो रहा है, ताकि अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन नीतियों को बेहतर जानकारी प्रदान की जा सके. हालांकि, शोधकर्ताओं ने यह निर्धारित करने में असमर्थता व्यक्त की कि विभिन्न जलवायु घटनाएं साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा पर अलग-अलग प्रभाव क्यों डालती हैं.
उनका मानना है कि अलग अलग समस्याओं का प्रभाव हिंसा पर अलग-अलग समय में दिखाई दे सकता है, और डेटा की कमी के कारण दो साल की अध्ययन अवधि में इस पहलू को शामिल नहीं किया जा सका. इसलिए, शोधकर्ता देशों से महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित आंकड़ों के नियमित संग्रहण की अपील कर रहे हैं.
गर्म और नम मौसम में हिंसा बढ़ने की संभावना
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि कुछ सबूत ये भी दर्शाते हैं कि गर्म और नर्म मौसम में हिंसा और आक्रामक व्यवहार बढ़ सकता है. जलवायु आपदाएं परिवारों में तनाव और खाद्य असुरक्षा को बढ़ावा देती हैं, जिससे हिंसा में वृद्धि हो सकती है, इसके अलावा, ऐसी परिस्थितियों में सामाजिक सेवाओं, जैसे पुलिस और सिविल सोसाइटी, की उपलब्धता भी प्रभावित होती है, क्योंकि वे आपदा प्रबंधन पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं.
आर्थिक असुरक्षा और सामाजिक तनाव
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप होने वाली आर्थिक समस्याएं, जैसे कृषि उत्पादन में गिरावट और खाद्य असुरक्षा, महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देती हैं. जब परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब होती है, तो यह तनाव का कारण बनता है, जो अक्सर घरेलू हिंसा के रूप में प्रकट होता है. महिलाएं, जो पारंपरिक रूप से घरेलू कार्यों और बच्चों की देखभाल का जिम्मा संभालती हैं, ऐसे समय में अधिक असुरक्षित होती हैं.
सामाजिक-आर्थिक ढांचा
कुछ देशों में पितृसत्तात्मक संरचनाएं महिलाओं के खिलाफ हिंसा को सामान्यीकृत कर देती हैं. जब जलवायु परिवर्तन के कारण सामाजिक अस्थिरता बढ़ती है, तो यह लिंग आधारित हिंसा को बढ़ावा देती है. महिलाएं अक्सर ऐसे समुदायों में अधिक संवेदनशील होती हैं, जहां पारंपरिक लिंग भूमिकाएं प्रचलित होती हैं और जहां महिलाओं के अधिकारों का सम्मान नहीं किया जाता.
जलवायु आपदाएं और हिंसा का संबंध
जलवायु आपदाएं परिवारों में तनाव और खाद्य असुरक्षा को बढ़ाती हैं, जिससे महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ जाती हैं. एक अध्ययन में पाया गया कि गर्मी और नमी की स्थिति में हिंसा और आक्रामक व्यवहार बढ़ते हैं. जब परिवार संकट में होते हैं, तो अक्सर हिंसा का सहारा लिया जाता है, और महिलाएं इस स्थिति का सबसे अधिक शिकार होती हैं.
नीतिगत उपाय और समाधान
आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाओं के लिए आर्थिक अवसरों को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है. इससे वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनेंगी और हिंसा के खिलाफ अधिक सक्षम होंगीय
शिक्षा और जागरूकता: महिलाओं और लड़कियों के लिए शिक्षा के अवसरों को बढ़ाना जरूरी है. शिक्षा महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करती है और उन्हें सशक्त बनाती है.
सामाजिक सेवाओं में सुधार: पुलिस, स्वास्थ्य सेवाएं, और अन्य सामाजिक सेवाओं की उपलब्धता को बढ़ाना आवश्यक है, ताकि महिलाएं सहायता प्राप्त कर सकें. आपातकालीन स्थितियों में विशेष सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए.
समुदाय आधारित कार्यक्रम: स्थानीय समुदायों में कार्यक्रम चलाना जो महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाएं और सामाजिक निंदा को कम करें, बेहद महत्वपूर्ण है.
अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता
इस समस्या का समाधान केवल राष्ट्रीय स्तर पर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आवश्यक है. जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है, और इसके प्रभावों को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है. देशों को जलवायु परिवर्तन नीतियों में लिंग-आधारित दृष्टिकोण को शामिल करना चाहिए.