दक्षिण भारत में उठी जनसंख्या बढ़ाने की बात, आखिर क्या है वजह?

दक्षिण भारत में उठी जनसंख्या बढ़ाने की बात, आखिर क्या है वजह?

दक्षिण भारत के दो मुख्यमंत्री जनसंख्या बढ़ाने की बात कर रहे हैं. लेकिन इसके पीछे का कारण क्या है? क्या यह सिर्फ बुढ़ापे की समस्या है या फिर कुछ और भी है?

दक्षिण भारत में जनसंख्या बढ़ाने की मांग उठी है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने राज्य की घटती जनसंख्या दर पर चिंता जताते हुए महिलाओं से कम से कम दो या उससे अधिक बच्चे पैदा करने की अपील की है. अमरावती की एक सभा में नायडू ने कहा कि दक्षिण भारत में बुजुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है और युवाओं की संख्या घट रही है.

उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह ऐसे ही चलता रहा, तो आने वाले समय में ज्यादातर लोग बुजुर्ग ही होंगे. अगर हर महिला दो से ज्यादा बच्चे पैदा करेगी, तो ही जनसंख्या बढ़ेगी. उन्होंने यहां तक कहा कि ज्यादा बच्चे पैदा करना सिर्फ निजी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि देश के लिए भी जरूरी है.

नायडू ने कहा कि पैसा तो किसी भी काम से कमाया जा सकता है, लेकिन काम करने के लिए लोग भी तो चाहिए ना? और लोग कहां से आएंगे अगर बच्चे ही नहीं होंगे? उन्होंने यह भी कहा कि वो खुद इस मुद्दे को अपना मिशन बना लेंगे. नायडू ने यूरोप और जापान का उदाहरण देते हुए कहा कि वहाँ भी जनसंख्या घट रही है और यह एक बड़ी समस्या बन गई.

चंद्रबाबू नायडू का यू-टर्न!
चंद्रबाबू नायडू ने सूबे में लागू पॉपुलेशन पॉलिसी को खत्म करने का ऐलान करते हुए नया कानून लाने का ऐलान कर दिया. राज्य में अब तक दो से ज्यादा बच्चे वाले लोग चुनाव नहीं लड़ सकते थे. अब नायडू सरकार ने ऐसा कानून लाने का ऐलान किया है जिसमें यह प्रावधान होगा कि दो से ज्यादा बच्चे वाले ही निकाय चुनाव लड़ सकते हैं. 

नायडू ने कहा कि हालांकि 2047 तक तो भारत में युवाओं की संख्या ज्यादा रहेगी, लेकिन दक्षिण भारत में तो अभी से ही बुढ़ापे की समस्या दिखने लगी है. जापान, चीन, और कुछ यूरोपीय देशों में भी यही समस्या है जहां बुजुर्गों की संख्या बहुत ज्यादा है. दक्षिण भारत में तो यह समस्या और भी बड़ी है क्योंकि यहां के युवा देश के दूसरे हिस्सों या फिर विदेश चले जाते हैं.

दक्षिण भारत में उठी जनसंख्या बढ़ाने की बात, आखिर क्या है वजह?

नायडू ने बताया कि दक्षिण भारत में हर महिला से औसत 1.6 बच्चे पैदा हो रहे हैं, जबकि पूरे देश का औसत 2.1 है. अगर यह ऐसे ही चलता रहा, तो 2047 तक यहां ज्यादातर लोग बुजुर्ग ही होंगे. उन्होंने यह भी कहा कि आंध्र प्रदेश और देश के कई गांवों में तो अभी से ही सिर्फ बुजुर्ग ही रह गए हैं, सारे युवा शहरों में चले गए हैं.

“हमें 16 बच्चे क्यों नहीं पैदा करने चाहिए?”
वहीं साउथ के एक दूसरे राज्य तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन भी चंद्रबाबू नायडू की तरह ज्यादा बच्चे पैदा करने की बात कर रहे हैं. लेकिन उन्होंने थोड़ा अलग अंदाज से कहा. हालांकि दोनों अलग-अलग राजनीतिक घटक दल के नेता हैं. चेन्नई में एक कार्यक्रम में स्टालिन ने एक पुरानी तमिल कहावत का जिक्र किया, “पधिनारुम पेट्रु पेरु वाज़्वु वाज़्गा”. इसका मतलब है कि लोगों के पास 16 तरह की दौलत होनी चाहिए, जैसे कि शोहरत, शिक्षा, वंश, पैसा वगैरह. इसका मतलब यह नहीं है कि 16 बच्चे होने चाहिए! लेकिन धीरे-धीरे लोगों ने यह मान लिया है कि छोटा परिवार ही खुशहाली की निशानी है.

स्टालिन को भी नायडू की तरह यह चिंता है कि जनसंख्या कम होने से तमिलनाडु की लोकसभा में सीटें कम हो सकती हैं. इसलिए वो भी चाहते हैं कि लोग ज्यादा बच्चे पैदा करें. उन्होंने कहा, हमें कम बच्चे पैदा करने तक ही क्यों सीमित रहना चाहिए? हमें 16 बच्चे क्यों नहीं करने चाहिए?

क्या भारत में सच में बुढापा बढ़ रहा है?
मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बुजुर्गों की संख्या हर साल बढ़ रही है. 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों का प्रतिशत पूरे देश में बढ़ेगा, लेकिन दक्षिण भारत में यह बढ़ोतरी उत्तरी भारत से ज्यादा होगी. 2036 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या दोगुनी हो जाएगी. 2011 में जहां 10 करोड़ बुजुर्ग थे, वहां 2036 में 23 करोड़ हो जाएंगे. मतलब कि बुजुर्गों का आंकड़ा 8.4% से बढ़कर 14.9% हो जाएगा.

वहीं केरल में तो पहले ही बच्चों की संख्या कम हो गई थी और लोगों की उम्र भी ज्यादा होने लगी थी. इसलिए 2011 में जहां 13% लोग 60 साल से ज्यादा उम्र के थे, वहां 2036 में यह संख्या बढ़कर 23% हो जाएगी. मतलब कि हर चार में से एक आदमी बुजुर्ग होगा. लेकिन यूपी में ऐसा नहीं होगा. यहां 2011 में 7% लोग 60 साल से ज्यादा उम्र के थे और 2036 में यह संख्या बढ़कर 12% होगी. 

रिपोर्ट के अनुसार, 2011 से 2036 के बीच भारत की आबादी 31.1 करोड़ बढ़ने की संभावना है. इसमें से आधी से ज्यादा बढ़ोतरी तो सिर्फ 5 राज्यों में होगी- बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश. यूपी में तो सबसे ज्यादा 19% की बढ़ोतरी होगी. लेकिन दक्षिण भारत के 5 राज्यों (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु) में सिर्फ 2.9 करोड़ की बढ़ोतरी होगी, जो कि कुल बढ़ोतरी का सिर्फ 9% है. 

दक्षिण भारत में उठी जनसंख्या बढ़ाने की बात, आखिर क्या है वजह?

बुढ़ापा बढ़ना और जनसंख्या कम होना क्यों है चिंता की बात?
जब किसी देश या राज्य में बुजुर्गों की संख्या ज्यादा होती है, तो यह चिंता की बात हो सकती है. क्योंकि बुजुर्ग लोग काम नहीं करते, लेकिन उन्हें सेहत और दूसरी सुविधाओं की जरूरत होती है. इससे सरकार पर खर्चा बढ़ जाता है. 

वहीं अगर किसी राज्य की जनसंख्या दूसरे राज्यों से कम है, तो उसे लोकसभा में कम सीटें मिल सकती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि लोकसभा की सीटें जनसंख्या के हिसाब से बंटी होती हैं. दक्षिण भारत के राज्यों को डर है कि अगर उनकी जनसंख्या कम रही, तो उन्हें कम सीटें मिलेंगी और उनका राजनीतिक प्रभाव कम हो जाएगा.

लोकसभा में कम सीटें होने का मतलब है केंद्र सरकार में कम प्रतिनिधित्व और कम राजनीतिक प्रभाव. कम प्रतिनिधित्व का असर दक्षिण भारत के लिए मिलने वाले फंड और विकास कार्यों पर भी पड़ सकता है. दक्षिण भारत की पार्टियों को यह भी डर है कि उत्तर भारत में बीजेपी का प्रभाव ज्यादा है और वो अपने फायदे के लिए सीटें बढ़ाने का फैसला कर सकती है.

आबादी का लोकसभा सीटों से क्या नाता?
भारत में हर 10 लाख की आबादी पर एक सांसद होता है. अगर किसी राज्य की जनसंख्या ज्यादा है, तो उसे लोकसभा में ज्यादा सीटें मिलती हैं. लोकसभा में अभी 545 सीटें हैं, जो कि 1971 की जनगणना के हिसाब से हैं. उस समय देश की आबादी 55 करोड़ थी. लेकिन अब देश की आबादी 140 करोड़ से ज्यादा हो गई है, फिर भी लोकसभा की सीटें नहीं बढ़ी हैं. 1971 के बाद सरकार ने जनसंख्या कंट्रोल करने के लिए कई योजनाएं चलायी. दक्षिण भारत के राज्यों ने इसमें अच्छी सफलता हासिल और उनकी जनसंख्या वृद्धि दर कम हो गई. लेकिन उत्तरी भारत में ऐसा नहीं हुआ. 

  • हिंदी पट्टी का जलवा: उत्तर प्रदेश (80 सीटें), बिहार (40 सीटें), मध्य प्रदेश (29 सीटें) जैसे राज्यों के साथ हिंदी पट्टी में लोकसभा की कुल 225 सीटें हैं.
  • दक्षिण भारत का पलड़ा हल्का: आंध्र प्रदेश (25 सीटें), कर्नाटक (28 सीटें), तमिलनाडु (39 सीटें) जैसे राज्यों को मिलाकर दक्षिण भारत के पास कुल 130 सीटें ही हैं.

अगर जनसंख्या के हिसाब से लोकसभा सीटों का बंटवारा हुआ, तो हिंदी पट्टी के राज्यों की सीटें काफी बढ़ जाएंगी. जैसे बिहार की सीटें 40 से बढ़कर 131 सीटें हो जाएंगी. उत्तर प्रदेश में 80 से 131 सीटें हो जाएंगी. इससे दक्षिण भारत के राज्यों का लोकसभा में प्रभाव कम हो जाएगा और उनकी आवाज दब जाएगी.

साल 2000 में भी दक्षिण भारत की पार्टियों ने परिसीमन पर रोक लगवाने के लिए सरकार पर दबाव बनाया था. अब भी वो यही रणनीति अपना सकते हैं और 2026 के बाद भी परिसीमन पर रोक लगाने की कोशिश कर सकते हैं. लेकिन इसके साथ ही वो जनसंख्या बढ़ाने पर भी जोर दे रहे हैं ताकि भविष्य में उनका राजनीतिक प्रभाव कम न हो. वो नहीं चाहते कि सत्ता का केंद्र पूरी तरह से उत्तर भारत में शिफ्ट हो जाए. 

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