किताबी ज्ञान से इतर भी दुनिया है, कौशल सीख कर लोगों से बनाएं नेटवर्क ?
Beyond The Bookish: किताबी ज्ञान से इतर भी दुनिया है, कौशल सीख कर लोगों से बनाएं नेटवर्क
तौर-तरीके और संस्कृति
वर्तमान में इग्नू, दिल्ली विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, एएमयू, जेएनयू जैसे कई ऐसे संस्थान हैं, जहां अन्य देशों के छात्र-छात्राएं भी दाखिला लेते हैं। ऐसे विद्यार्थी आपके साथ एक ही कक्षा में बैठकर पढ़ाई भी करते हैं। हो सकता है आप किसी हिचकिचाहट के कारण उनसे बात करने में संकोच करते हों। बजाय इसके आपको डिबेट, प्रोजेक्ट, सेमिनार और प्रॉब्लम सॉल्विंग तकनीकों आदि के माध्यम से उनके तौर-तरीकों और संस्कृति को समझने का प्रयास करना चाहिए।
विदेश के संस्थानों का रुख
विदेश में हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड, ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसे कई ऐसे संस्थान हैं, जो समय-समय ऑनलाइन कोर्सेज की पेशकश करते रहते हैं। भारत में भी आईआईटी, एनआईटी, डीयू, स्वयं पोर्टल जैसे कई प्लेटफॉर्म हैं, जो विदेश के संस्थानों से किसी कोर्स के जरिये जुड़ने का मौका देते हैं। इन कोर्सेज में शामिल होकर आप खुद को वैश्विक छात्रों से जोड़ सकेंगे। वहां के शिक्षकों से पढ़ने का अनुभव पा सकेंगे और कॅरिअर बनाने के लिए खुद को वहां की संस्कृति में ढाल सकेंगे।
वैश्विक नेटवर्किंग
वैश्विक नेटवर्किंग बनाने के लिए आपको ऐसे स्कूलों में दाखिला लेना चाहिए, जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर के छात्र पढ़ते हों। ऐसे में आपके लिए वैश्विक नेटवर्किंग बनाना आसान होगा। इसके इतर वैश्विक नेटवर्किंग के लिए विभिन्न देशों में इंटर्नशिप और फेलोशिप का रुख करना भी एक अच्छा विचार है। अंतरराष्ट्रीय इंटर्नशिप और फेलोशिप के माध्यम से आपको विभिन्न देशों में कामकाज करने के तौर-तरीके और उस विशेष देश की संस्कृति से जुड़ने का भी अवसर मिलेगा।
संचार कौशल
छात्रों को स्कूल व कॉलेज में संचार कौशल और सहयोग करने जैसे कौशल को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। कॉलेज स्तर पर आप अलग-अलग देश के छात्रों से जुड़कर अपनी किसी भी पसंदीदा भाषा को आसानी से सीख सकते हैं। इससे आपके अंदर किसी भी विषय पर गंभीरता से सोचने की कला विकसित होगी।
किताबी ज्ञान तक ही सीमित न हों शिक्षा के मायने
क्या असल जिंदगी के दोहे सिखा सकेगा किताबी ज्ञान?
शिक्षा कैसी होना चाहिए? आखिर शिक्षा के मायने क्या होने चाहिए? क्या रट-रट कर हासिल किए गए श्रेष्ठ अंक ले आना बेहतर शिक्षा कहला सकती है? किताबी कीड़ा बनकर एक बेहतर शिक्षार्थी बना जा सकता है? क्या आप भी यही सोचते हैं कि शिक्षा महज़ किताबी ज्ञान हो? सिर्फ चंद किताबें पढ़ लेने और उनके हिसाब से परीक्षा में शामिल होकर अच्छे अंक ले आना ही क्या वाकई में शिक्षा की परिभाषा है? किताबी ज्ञान की असल जीवन में यदि महत्ता हासिल न कर सके, तो क्या ही शिक्षा अर्जित की? पास हो जाने का नाम शिक्षा नहीं है।
लेकिन तथ्य की ओर देखा जाए, तो आज की शिक्षा सच-मुच इसी ढर्रे पर आगे बढ़ रही है, और पीछे छोड़ती जा रही है इससे मिलने वाली वास्तविक सीख को। आज की शिक्षा से मिलने वाला किताबी ज्ञान महज़ किताबों तक ही सीमित है, जिसका जीवन के पाठ से कोई लेना-देना नहीं। ज़रा बताएँ कि जीवन के किस मोड़ पर वो रटे-रटाए सूत्र और समीकरण काम आए? असल जीवन में कहाँ लगाया आपने वह गणित का साइन थीटा, कॉस थीटा, डेल्टा या फिर सिग्मा? क्या कभी पानी माँगने या साधारण रूप से पानी की बात ही निकलने पर इसे इसके वैज्ञानिक नाम H2O से पुकारा है? (a+b)² = a² + 2ab + b² का उपयोग कहाँ किया? या फिर x और y की वैल्यू स्कूल और कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद निकालने की कहाँ जरुरत पड़ी?
पहले के समय में लोग गुरुकुल में रहकर शिक्षा अर्जित किया करते थे, जहाँ उनकी पहचान सिर्फ शिक्षा अर्जित करने तक ही नहीं थी, वे यहाँ जीवन जीने की कला भी सीखते थे। गुरु के आश्रम में उनके सानिध्य में रहकर सदाचार और बुद्धि ज्ञान प्राप्त करते थे। संस्कार भी तो गुरु से ही प्राप्त करने का सौभाग्य कच्ची उम्र में शिष्यों को मिलता था। इसे कच्ची उम्र में मिली पक्की सीख कहना, मुझे नहीं लगता कि तनिक भी गलत होगा। फिर गुरु भी जीवन भर के तजुर्बे हासिल किए हुए होते थे। धूप में तपकर सोना हुए महान व्यक्तित्व के धनी गुरु, पत्थर रुपी अपने शिष्यों को अद्भुत मूर्ती के रूप में तराशने का काम करते थे। बच्चे भी काफी मेहनती हुआ करते थे, सबसे श्रेष्ठ बनने का जुनून जैसे उनकी रगों में दौड़ता था, शायद यही वजह थी कि वे हर क्षेत्र में अव्वल आते थे। इतना ही नहीं, जीवन के कौशल को भी बखूबी सीखते थे और एक महान इंसान बनने की राह पर आगे बढ़ते थे।
बदलते ज़माने के साथ-साथ शिक्षा के मायने और उसूल भी दिन-ब-दिन बदलते चले गए और धीरे-धीरे इस क्षेत्र में भी नए-नए बदलाव देखे जाने लगे। शिक्षा की परिभाषा भी साथ-साथ संकुचित होती चली गई। आज के समय में होते-होते यही इतनी संकुचित हो गई है कि बच्चों का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपनी कक्षा पास करने पर है। अव्वल आने का दर्जा प्राप्त करने और जीवन के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का जुनून अब कम ही छात्रों में देखने को मिलता है। यदि तुलना की जाए, तो अपनी पढ़ाई को लेकर गंभीर रहने वाले छात्रों का आँकड़ा कम ही निकलेगा। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि बच्चों को शिक्षा की महत्ता से आज के समय में वंचित रखा जाने लगा है।
सही मायने में बच्चों को समझाया ही नहीं जाता है कि आखिर में ग्रेविटी थ्योरी क्यों बनी? क्यों विज्ञान को एक अलग विषय बनाया गया? सामाजिक विज्ञान क्यों पढ़ाया जा रहा है? इतिहास के क्या मायने हैं? गणित की परिभाषा सिर्फ कैल्क्युलेशन्स तक ही सीमित नहीं है। सामान्य ज्ञान भी जीवन में जरुरी है। असल में बच्चों को ऐसी चीजें सिखाई जाना चाहिए, जिससे उनमें कौशल निखर कर सामने आए। हो सकता है कि एक इंजीनियर की पढ़ाई कर रहा बच्चा एक बहुत अच्छा लेखक या गायक हो सकता है। जरुरी नहीं है कि सिर्फ पढ़-लिख कर ही कुछ बना जा सकता है, कभी-कभी मन से सीखा हुआ काम भी हमें कुशल साबित कर सकता है। यहाँ हरगिज़ मैं पढ़ाई को दूसरी प्राथमिकता देने की बात नहीं कर रहा हूँ।
आपने गौर किया है कि आज की शिक्षा प्रणाली पूरी तरह डिजिटल होने लगी है, शिक्षा प्रणाली क्या, पूरी दुनिया ही डिजिटल होने लगी है। बेशक बदलाव अच्छे हैं, लेकिन तब, जब इनसे लोगों को लाभ अधिक और नुकसान कम हों। कभी इसकी गंभीरता आँकी है कि डिजिटल की दुनिया में लिप्त बच्चे सीख क्या रहे हैं? वे बच्चे होकर भी बच्चों का आचरण भूलने लगे लगे हैं। सोशल मीडिया सारे सवालों के जवाब अपने में लिए बैठा है। जिस उम्र में पठन-पाठन पर ध्यान होना चाहिए, उस उम्र में नन्हें-नन्हें बच्चे युवाओं को पीछे छोड़ ऐसी-ऐसी रील्स बना रहे हैं, जिन्हें देखने वाला एक क्षण को दंग रह जाए। मुझे कहने में बिल्कुल भी हर्ज नहीं है कि वे छोटी उम्र में ही उम्र का एक पड़ाव पार कर चुके हैं और खुद को कच्ची उम्र में ही युवा बना चुके हैं।
अब जब मन दुनियादारी और सोशल मीडिया में लगने लगा है, तो शिक्षा में कैसे लगेगा, यह आज के समय का बहुत बड़ा सवाल है। कैसे बच्चों को पता लगेगा कि आखिर हमारा इतिहास क्या है? अंग्रेजों से आज़ादी का संग्राम क्या था? क्यों और कैसे बने नियम व कानून? क्या है जीवन चक्र? और भी बहुत कुछ, जो बच्चे अब सिर्फ रट लेते हैं और परीक्षा में भर-भर कर लिख देते हैं। क्या यहीं तक आकर सीमित हो गए हैं शिक्षा के मायने?
वर्तमान समय की सबसे बड़ी माँग है कि रटी-रटाई किताबी बातें और किताबी ज्ञान से बच्चों को दूर किया जाए। और सबसे विशेष, पढ़ाई की गंभीरता से दूर जा रहे बच्चों को पुनः ट्रैक पर लाया जाए और उन्हें पढ़ाई की महत्ता समझाई जाए। पास होने या परीक्षा में अच्छे अंक लाने के बजाए बच्चों को सही मायने में शिक्षा लेने और अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
यदि इस बात को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो मुझे लगता है कि आने वाले समय में बच्चे स्कूल जाना ही भूल जाएँगे। वे स्कूली शिक्षा और पढ़ाई के महत्व से खुद को दूर पाएँगे, जबकि स्कूल ही वह बुनियाद होती है, जो हमें बचपन से अनुशासन सिखाती है, जो हमें बताती है कि आपस में कैसा व्यवहार रखना चाहिए। शिक्षा में सुधार बेशक किए जा रहे हैं। समय-समय पर विभिन्न अभियान चलाए जाते हैं, नियम और कानून भी बनाए जाते हैं, लेकिन ये काफी नहीं हैं, क्योंकि कहीं न कहीं ये अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुँचने में खुद को असहाय पाते हैं।
यहाँ सबसे अधिक आवश्यकता है हमारी शिक्षा प्रणाली की बुनियाद को मजबूत करने की। यदि अब भी एक कुशल शिक्षा प्रणाली के सृजन पर काम नहीं किया गया, तो वास्तव में बहुत देर हो जाएगी। छात्रों से अधिक आवश्यकता शिक्षकों को कुशल और निपुण बनाने की है। ठीक उसी प्रकार, जैसे एक मोबाइल को समय-समय पर अपग्रेड किया जाता है, तो क्यों छात्रों और शिक्षकों को अपग्रेड करने का सिलसिला बचपन रुपी नींव से और इस नींव को मजबूत बनाने वाली शिक्षा तक बरकरार रखा जाए?
किताबी ज्ञान तक सीमित हमारी शिक्षा नीति और इंडस्ट्री के लिए जरुरी कौशल के बीच की खाई
भारत के हलचल और महत्वाकांक्षाओं से भरे एक शहर में, आन्या रहती है। आन्या 20-22 साल की एक होनहार बालिका है, जिसने हाल ही में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया है। ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद अब वह एक अच्छी-सी नौकरी चाहती है। पढ़ाई पूरी होने के बाद नौकरी की चाह रखने वाली वह कोई अकेली बालिका नहीं है, बल्कि यह तो देश के हर पढ़े-लिखे युवा का सपना है। घर से दूर रह कर, दिन-रात एक करके उसने अपनी पढ़ाई पूरी की थी। उसकी यह डिग्री, कड़ी मेहनत और किताबों में दबी हुई अंतहीन रातों का परिणाम थी। कई लोगों की तरह उसका भी मानना था कि उसकी डिग्री उसके सपनों को साकार करने की राह खोलेगी। लेकिन जब वह वही डिग्री के भरोसे अपनी मनपसंद नौकरी लेने पहुँची, तो उसे पता चला कि इतने साल जिस डिग्री के लिए उसने दिन-रात एक किए, लोन लेकर फीस भरी, घर से दूर रही, वह डिग्री, वह पढ़ाई उस नौकरी को पाने के लिए काफी नहीं है, जिसका उसने सपना देखा था।
नौकरी के लिए ऐसे कौशल की जरुरत है, जो उन्हें कभी सिखाया ही नहीं गया
इसमें दोष इन युवाओं का नहीं है, बल्कि हमारी शिक्षा प्रणाली ही कुछ ऐसी है, जो रटंत विद्या और नंबरों पर जोर देने के चक्कर में छात्रों को आधुनिक उद्योगों की नई-नई माँगों के हिसाब से तैयार करने में विफल है। हर साल देश की युनिवर्सिटीज़ से हजारों युवा ग्रेजुएट होकर निकलते हैं, फिर भी उनमें से अधिकतर बेरोजगारी से जूझते हैं या फिर बेमन से कोई छोटी-मोटी नौकरी करते हैं, फिर उनके लिए यह भी मायने नहीं रखता कि जो नौकरी उन्हें मिली है, वह उनकी फिल्ड की है भी या नहीं। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ ऐसे उम्मीदवारों की तलाश करती हैं, जो गंभीर रूप से सोच सकें, जल्दी से अमल कर सकें और जिनके पास व्यावहारिक अनुभव हो। ये कुछ ऐसे गुण हैं, जिन्हें पारंपरिक शिक्षा प्रणालियाँ अक्सर नज़रअंदाज़ कर देती हैं।
इस समस्या का कारण किताबी ज्ञान तक सीमित हमारी शिक्षा नीति और इंडस्ट्री के लिए जरुरी कौशल के बीच की खाई है। इंडिया स्किल्स रिपोर्ट के अनुसार, केवल 46% भारतीय ग्रेजुएट ही रोजगार के लिए तैयार हैं। यह आँकड़ा एक गंभीर वास्तविकता को दर्शाता है। हमारी शिक्षा प्रणाली उद्योग की माँगों के अनुरूप नहीं है। टेक्नोलॉजी में तेजी से प्रगति और नौकरियों की लगातार विकसित हो रही प्रकृति के लिए ऐसे लोगों की आवश्यकता है, जो चुस्त हों, लीक से हटकर सोचते हों और नई मशीनों और टेक्नोलॉजी में कुशल हों। जबकि हमारे युवा आज भी बरसों पहले बने सिलेबस पर ही अटके हुए हैं, जिसमें कोई नयापन नहीं है।
अपने कई साथियों की तरह, आन्या को भी इस कड़वी सच्चाई का एहसास बहुत देर से हुआ। कॉलेज सर्टिफिकेट में ए ग्रेड पाने के बावजूद, उसमें उस व्यावहारिक ज्ञान की कमी थी, जो कम्पनियाँ वास्तव में चाहती थीं। कोडिंग लैंग्वेज, डेटा एनालिसिस टेक्निक्स, कम्यूनिकेशन और टीम वर्क जैसी सॉफ्ट स्किल्स उसके कॉलेज सिलेबस का कभी हिस्सा रहीं ही नहीं। इसका खामियाजा आज आन्या को भुगतना पड़ रहा था। उसके मन में एक ही प्रश्न था कि आखिर गलती किसकी है?
आन्या का किस्सा ही ले लीजिए, उसके माता-पिता को उससे बड़ी उम्मीदें थीं। आप खुद ही सोचिए कि उन्होंने उसे कॉलेज तक पहुँचाने के लिए क्या कुछ त्याग नहीं किया होगा। क्यों? क्योंकि उन्हें यह विश्वास था कि बिटिया पढ़ने में होनहार है। उसकी नौकरी लग जाएगी, तो वह उसकी पढ़ाई के लिए लिया हुआ सारा कर्ज उतार देगी। साथ ही, वह पूरे परिवार का भविष्य भी संवार देगी। हर दिन जब वह बिना नौकरी के घर लौटती थी, तो यह उसे यह एक हार की तरह महसूस होता था। यह हार उसके ऊपर एक बोझ बनती जा रही थी, जिसे वह चुपचाप ढोती जा थी। अधूरी उम्मीदों का बोझ और अनिश्चित भविष्य का डर उसकी आत्मा को कचोट रहा था। अगर आन्या को उसकी पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी पाने के लिए जरुरी गुर भी सिखाए गए होते, तो आज वह भी किसी अच्छी कंपनी में नौकरी कर रही होती। उसकी सालों की मेहनत और उसके माता-पिता की खून पसीने की कमाई ऐसे बर्बाद न हुई होती।
आन्या जैसे युवाओं से मैं बस यही कहना चाहता हूँ कि एक हार पर जिंदगी खत्म नहीं हो जाती। मानता हूँ कि आगे का रास्ता कठिन है, लेकिन यह मत भूलिए कि सफल होने का दृढ़ संकल्प भी अटल है। आजीवन सीखने और अपने कौशल को लगातार अपडेट करने से, नौकरी की उथल-पुथल से बखूबी निपटा जा सकता है।
साथ ही, यह कहानी फिर किसी युवा के साथ न दोहराई जाए, इसके लिए जरुरी है कि हमारी शिक्षा नीति को अपडेट किया जाए। उसमें आज की जरुरत के हिसाब से नया कोर्स जोड़ा जाए, जो युवाओं को आज की नौकरियों की जरुरत के हिसाब से तैयार कर सके। इसके लिए सरकार, शैक्षणिक संस्थानों, उद्योगों और स्वयं छात्रों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। जैसे-जैसे राष्ट्र आगे बढ़ रहा है, एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का सपना जो वास्तव में अपने युवाओं को भविष्य के लिए तैयार करती है, दूर की कौड़ी नहीं है। बस कमी है थोड़े से प्रयास की, तो क्यों न यह थोड़ा-सा प्रयास करके इन युवाओं का भविष्य निराशा की गर्त में जाने से रोका जाए और देश के लिए भी एक उज्जवल भविष्य बनाया जाए?