‘साइबर’ अपराधों की नकेल कसना अब जरूरी हो गया है !

साइबर’ अपराधों की नकेल कसना अब जरूरी हो गया है

प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटल सुरक्षा के लिए तीन मंत्र दिए हैं- रुको, सोचो और एक्शन लो। रिपोर्ट के अनुसार डिजिटल अरेस्ट की घटनाओं से 120 करोड़ से ज्यादा की ठगी के मामले दर्ज हुए हैं। दूसरी तरफ पिछले दो हफ्तों में बम के 300 से ज्यादा फर्जी कॉल्स की वजह से एयरलाइंस कम्पनियों को 600 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है।

विमानों के रद्द होने से यात्रियों, होटलों, व्यापार और पर्यटन उद्योग को होने वाले नुकसान का आकलन किया जाए तो अर्थव्यवस्था के सामने गंभीर खतरे नजर आते हैं। मन की बात में प्रधानमंत्री ने जागरूकता का जो मंत्र दिया है, उससे हर समस्या का इलाज हो सकता है। जन-जागरूकता से अशिक्षा, गरीबी और बीमारी से बचाव के साथ पर्यावरण-संरक्षण भी हो सकता है। इन 5 पहलुओं पर त्वरित कार्रवाई करने की जरूरत है-

1. साइबर अपराधों के सभी मामले दर्ज हों : देश में करोड़ों लोग खरबों रुपयों के साइबर फ्रॉड का शिकार हो रहे हैं। राज्यों की पुलिस जो एफआईआर दर्ज करती है, उसका ब्योरा एनसीआरबी के पास होता है। हेल्पलाइन 1930 में दर्ज हो रही शिकायतों, बैंक, ई-कॉमर्स, क्रिप्टो, ऑनलाइन गेमिंग, डिजिटल अरेस्ट और सेक्साटार्शन जैसे सोशल मीडिया में घटित हो रहे अपराधों की संख्या से साफ है कि पुलिस में एक फीसदी से कम साइबर अपराध के मामले दर्ज हो रहे हैं। नए आपराधिक कानूनों के अनुसार साइबर अपराध से जुड़े सभी मामलों में एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। इससे समस्या की विकरालता का पता चलेगा और उसके समाधान के प्रयास भी तेज हो सकेंगे।

2. डिजिटल कम्पनियों की जवाबदेही : बम की झूठी अफवाहों के मामले में सरकार ने सोशल मीडिया कम्पनियों के लिए एडवाइजरी जारी की है। उसके अनुसार जो कम्पनियां विवरण साझा नहीं करेंगी, उन्हें आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत दी गई सेफ हार्बर की सुरक्षा वापस ले ली जाएगी। जबकि हकीकत यह है कि पिछले कई सालों से ऐसी अनेक घुड़कियों के बावजूद अभी तक मेटा, गूगल या एक्स जैसी विदेशी कम्पनियों का कानूनी सुरक्षा कवच अभेद्य बना हुआ है।

3. शिकायत अधिकारियों का विज्ञापन : आईटी इंटरमीडिएरी रूल्स के तहत एप्स और वेबसाइटस को इंटरमीडिएरी यानी पोस्टमैन सरीखा मानते हुए, उन्हें आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत कानूनी सुरक्षा मिलती है। केएन गोविंदाचार्य मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने दस साल पहले अनेक अहम फैसले दिए थे। उनके अनुसार सुरक्षा कवच बनाए रखने के लिए डिजिटल कंपनियों को अनेक नियमों का पालन जरूरी है। इसलिए गूगल, फेसबुक, वॉट्सएप्प, एक्स, स्काइप, एप्पल और जूम जैसी सभी कम्पनियों को भारत स्थित शिकायत अधिकारी का नाम, टोल फ्री नम्बर और ईमेल आईडी जारी करना चाहिए। ऐसे सभी विवरणों के साथ सरकारी विभाग भी विज्ञापन जारी करें।

4. बैंकों और राज्यों की पुलिस का नामांकित अधिकारियों से समन्वय : नेशनल हेल्पलाइन 1930 में दर्ज शिकायतों के समाधान के लिए रिजर्व बैंक के साथ बेहतर समन्वय की जरूरत है। ऐसा होने पर शिकायत दर्ज होने के साथ ही ठगों से जुड़े बैंक खातों के लेनदेन और निकासी पर रोक लग जाएगी। आईटी नियमों के अनुसार टेक कम्पनियों को सरकारी विभागों से नामांकित अधिकारियों का विवरण भी साझा करना चाहिए। ऐसा होने पर पुलिस की तत्काल कार्रवाई से साइबर अपराधों की सही तरीके से जांच के साथ संगठित अपराधियों को गिरफ्तारी हो सकेगी।

5. डेटा सुरक्षा कानून और नियम : डेटा सुरक्षा कानून संसद से पारित होने के बावजूद इससे जुड़े नियम नहीं लागू हुए। इसकी वजह से जनता का निजी डेटा कौड़ियों में नीलाम हो रहा है। इसके इस्तेमाल से ही साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट जैसी घटनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम दे रहे हैं। डेटा सुरक्षा के नियमों को सही तरीके से लागू करके, डेटा की नीलामी और बिक्री पर सख्त रोक लगे तो साइबर अपराधों में भारी कमी आएगी।

डेटा सुरक्षा कानून पारित होने के बावजूद इससे जुड़े नियम नहीं लागू हुए। इससे जनता का निजी डेटा कौड़ियों में नीलाम हो रहा है। इसके इस्तेमाल से ही साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट जैसी घटनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम दे रहे हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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