क्या लू भी एक आपदा है?

क्या लू भी एक आपदा है? जानिए डिजास्टर मैनेजमेंट से जुड़े संशोधित विधेयक में क्या हैं नई बातें
आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024 हाल ही में लोकसभा में पेश किया गया है. इस विधेयक में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 में संशोधन का प्रस्ताव है.

असल में आपदा जब आती है, तो सिर्फ जान ही नहीं ले जाती, बल्कि  माल का भी भारी नुकसान करती है. सितंबर 2024 में आंध्र प्रदेश में आई बाढ़ का शुरुआती अनुमान ही 6880 करोड़ रुपये से ज्यादा का है. ये आंकड़ा बताता है कि आपदा से कितना बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है.

जिनेवा स्थित इंटरनल डिसप्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर के अनुसार, 2022 में भारत में करीब 25 लाख लोग प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ और चक्रवात के कारण विस्थापित हुए. ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में छपी एक स्टडी बताती है कि भारत के पश्चिमी तट पर चक्रवात न सिर्फ ज्यादा आ रहे हैं, बल्कि उनकी ताकत भी बढ़ रही है. 

दुनिया की सिर्फ 2.4% जमीन पर भारत का अधिकार है, जहां दुनिया की करीब 17.78% आबादी रहती है. इसका सीधा असर ये होता है कि भारत पर आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है. इन आपदाओं से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) बनाया गया है.

क्या है राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
23 दिसंबर 2005 को भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू किया था. इस अधिनियम के तहत ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं. साथ ही, राज्यों में ‘राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (SDMA) बनाए गए जिनके अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं.

NDMA भारत में आपदा प्रबंधन का सबसे बड़ा संगठन है. इसकी जिम्मेदारी है कि देश भर के लिए आपदा प्रबंधन की राष्ट्रीय योजनाओं को मंजूरी दी जाए. ये सरकार के अलग-अलग विभागों द्वारा बनाई गई योजनाओं को भी मंजूरी देता है. राज्यों को अपनी आपदा प्रबंधन योजना बनाने के लिए दिशा-निर्देश देता है. ये भी सुनिश्चित करता है कि सरकार की विकास योजनाओं में आपदा से बचाव के उपाय शामिल हों. 

एनडीएमए आपदा से बचाव के लिए जरूरी पैसे का इंतजाम करने की सिफारिश करता है. अगर किसी दूसरे देश में कोई बड़ी आपदा आती है, तो NDMA उस देश को मदद भी पहुंचाता है. साथ ही, आपदा से बचाव उसके प्रभाव को कम करने और उससे निपटने की तैयारी के लिए जरूरी कदम उठाता है.

2005 के आपदा प्रबंधन कानून में कहां रह गई कमी?
भारत में जब भी कोई आपदा आती है, तो अलग-अलग विभागों के बीच तालमेल की कमी दिखाई देती है. अलग-अलग विभागों के बीच तालमेल में गड़बड़ी होने से राहत और बचाव कार्य में देरी होती है और नुकसान बढ़ जाता है. भूकंप के लिए ‘नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी’ और ‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ जिम्मेदार हैं. खदान में होने वाली दुर्घटनाओं के लिए ‘खान विभाग’ जिम्मेदार है. अब समस्या ये है कि इन दोनों तरह की आपदाओं में काफी कुछ मिलता-जुलता है, लेकिन इनके लिए कोई एक केंद्र नहीं है जो तालमेल बना सके. इससे राहत कार्य में देरी होती है. 

2005 के कानून में ‘राष्ट्रीय कार्यकारी समिति’ और ‘राज्य कार्यकारी समिति’ बनाने का भी प्रावधान था, जो  NDMA और SDMA को  अपने कामों में मदद करती थीं. इन समितियों का एक मुख्य काम था राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन योजनाएं बनाना. NDMA और SDMA इन योजनाओं को मंजूरी देकर उन्हें लागू करते थे.

क्या लू भी एक आपदा है? जानिए डिजास्टर मैनेजमेंट से जुड़े संशोधित विधेयक में क्या हैं नई बातें

NDMA के पास खुद के प्रशासनिक और आर्थिक अधिकार नहीं हैं. उसे हर फैसले के लिए गृह मंत्रालय से मंजूरी लेनी पड़ती है, जिससे काम में देरी होती है और अक्षमता आती है. इस कानून में बहुत ज्यादा कागजी कार्रवाई है, जिससे काम धीमा हो जाता है. इस कानून की कमियों की वजह से आपदा के समय देरी से कार्रवाई होती है. 2018 में केरल में आई बाढ़ और 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ इसके उदाहरण हैं.

नया कानून क्या कहता है?
नए कानून में ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) और ‘राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (SDMA) को आपदा प्रबंधन योजना बनाने का अधिकार दिया गया है. इस बदलाव से NDMA और SDMA को आपदा प्रबंधन में ज्यादा अधिकार मिल गए हैं. अब वे खुद तय कर सकेंगे कि उनके स्तर पर आपदा से निपटने के लिए क्या योजना होनी चाहिए. इससे आपदा प्रबंधन में तेजी आने की उम्मीद है.

पहले ये काम ‘राष्ट्रीय कार्यकारी समिति’ (NEC) और ‘राज्य कार्यकारी समिति’ (SEC) करती थीं. लेकिन अब भी NEC और SEC ही आपदा प्रबंधन में तालमेल बनाने का काम करेंगी. मतलब ये कि योजना बनाने का काम तो NDMA और SDMA करेंगे, लेकिन उस योजना को लागू करने और उसमें तालमेल बनाने की जिम्मेदारी NEC और SEC की होगी, जिनके पास अब योजना बनाने का कोई अधिकार नहीं होगा.

NDMA और SDMA के नए काम
नए कानून के तहत, NDMA और SDMA समय-समय पर आपदा के खतरों का आंकलन करेंगे जिसमें जलवायु परिवर्तन से जुड़े नए खतरे भी शामिल हैं. साथ ही, अपने से निचले स्तर के अधिकारियों को तकनीकी सहायता प्रदान करेंगे.

एनडीएमए और एसडीएमए राहत के लिए न्यूनतम मानकों के बारे में दिशा-निर्देश देंगे, ताकि सभी आपदा प्रभावितों को एक समान मदद मिल सके. एनडीएमए राष्ट्रीय स्तर पर और एसडीएमए राज्य स्तर पर आपदा से जुड़ा डेटाबेस तैयार करेंगे. 

इस बिल में एक और अहम बदलाव है. अब राज्य सरकारें राज्य की राजधानियों और नगर निगम वाले शहरों के लिए एक अलग ‘शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ बना सकेंगी. इस प्राधिकरण में अध्यक्ष नगर आयुक्त, उपाध्यक्ष जिला कलेक्टर होंगे. बाकी अन्य सदस्य राज्य सरकार द्वारा तय किए जाएंगे. यह प्राधिकरण अपने इलाके के लिए आपदा प्रबंधन योजना बनाएगा और उसे लागू करेगा.

SDRF के कामों में क्या खास बदलाव?
आपदा प्रबंधन कानून में ‘राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल’ बनाने का प्रावधान है, जो आपदा के समय विशेष रूप से प्रशिक्षित होकर मदद करता है. अब नए बिल में राज्य सरकारों को भी ‘राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल’ (SDRF) बनाने का अधिकार दिया गया है. 

SDRF के काम राज्य सरकार तय करेगी. यह बल आपदा के समय तुरंत मौके पर पहुंचकर राहत और बचाव कार्य करेगा. इसमें लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना, खाना-पानी और दवाइयां उपलब्ध कराना और जरूरी मदद पहुंचाना शामिल होगा. SDRF में खास तौर से प्रशिक्षित लोग होंगे जो आपदा से निपटने में माहिर होंगे. राज्य सरकार SDRF के सदस्यों की सेवा शर्तें भी तय करेगी, जिसमें उनकी नियुक्ति, वेतन और अन्य सुविधाएं शामिल होंगी.

कुछ खास कमेटियों को मिली और ताकत
आपदाओं से निपटने के लिए सरकार ने कुछ कमेटियां बनाई हैं. पहले इन कमेटियों के पास ज्यादा अधिकार नहीं थे. लेकिन अब नए बिल में इन कमेटियों को कानूनी रूप से मजबूत बना दिया गया है. अब ये कमेटियां अपने फैसले खुद ले सकेंगी और आपदा से निपटने के लिए जरूरी कदम उठा सकेंगी. 

पहले NDMA में कौन काम करेगा, यह केंद्र सरकार तय करती थी. लेकिन अब नए बिल में एनडीएमए को यह अधिकार दे दिया गया है कि वह खुद तय कर सके कि उसे कितने और किस तरह के अधिकारी और कर्मचारी चाहिए. हालांकि, इसके लिए उसे केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होगी. एनडीएमए जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञों की भी नियुक्ति कर सकेगा. एनडीएमए को ज्यादा अधिकार मिलने से वह अपने हिसाब से टीम बना सकेगा और आपदा प्रबंधन को और बेहतर बना सकेगा.

क्या लू भी एक आपदा है? जानिए डिजास्टर मैनेजमेंट से जुड़े संशोधित विधेयक में क्या हैं नई बातें

आपदा प्रबंधन संशोधन विधेयक: क्या हैं चिंताएं?
नया आपदा प्रबंधन संशोधन विधेयक 2024 कई चिंताओं को भी जन्म दे रहा है. यह बिल आपदा प्रबंधन को और ज्यादा केंद्र सरकार के हाथ में दे देता है. इससे कई नए प्राधिकरण और कमेटियां बनेंगी, जिससे फैसले लेने में देरी हो सकती है और आपदा के समय जल्दी मदद नहीं पहुंच पाएगी. 

इस बिल में ‘राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया निधि’ (NDRF) के इस्तेमाल के तरीके में भी बदलाव किया गया है. पहले इस निधि का पैसा कैसे खर्च होगा, इसके लिए कुछ नियम थे, लेकिन अब उन्हें हटा दिया गया है. केंद्र सरकार के हाथ में ज्यादा ताकत होने से पहले भी देरी होती रही है. तमिलनाडु और कर्नाटक को आपदा के समय पैसे देने में काफी देर लगी थी.

यह बिल शहरों में ‘शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (UDMA) बनाने की बात करता है, लेकिन यह नहीं बताता कि UDMA को बनाने और उन्हें चलाने के लिए पैसे कहां से आएंगे. स्थानीय स्तर पर पैसे की कमी होने से UDMA अपना काम ठीक से नहीं कर पाएंगे. वहीं अलग-अलग राज्यों में और कभी-कभी एक ही राज्य के अंदर भी एक जैसी आपदा आने पर राहत के तरीके अलग-अलग होते हैं. इससे यह सवाल उठता है कि क्या सभी आपदा पीड़ितों को एक जैसी मदद मिल रही है.

इसके अलावा, यह बिल जलवायु परिवर्तन के असर को पूरी तरह से आपदा प्रबंधन में शामिल नहीं करता. ‘सेंडाई फ्रेमवर्क’ और ‘पेरिस समझौता 2015’ जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों के बावजूद यह बिल जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है. इस बिल में यह भी साफ नहीं है कि सरकारी विभाग, गैर-सरकारी संगठन (NGO), निजी क्षेत्र और आम जनता मिलकर आपदा प्रबंधन में कैसे काम करेंगे. 

क्या लू भी एक आपदा है?
भारत में लू की वजह से हर साल कई लोगों की मौत हो जाती है. लेकिन सरकार अभी लू को आपदा मानने के लिए तैयार नहीं है. इसका मतलब है कि लू से होने वाली मौतों और नुकसान को आपदा नहीं माना जाएगा और उसके लिए आपदा राहत निधि का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. 

आपदा की परिभाषा बहुत सीमित है. लू जैसी आपदाओं का असर अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग होता है, लेकिन इस बिल में इस बात का ध्यान नहीं रखा गया है.

यह बिल केंद्र सरकार को ज्यादा ताकत देता है, जिससे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तनाव बढ़ सकता है. राज्य सरकारें पैसे और फैसले लेने के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर हो जाएंगी, जिससे आपदा प्रबंधन में उनकी आजादी कम हो जायेगी.

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