मणिपुर में फिर क्यों शुरू हुई हिंसा ?

 मणिपुर में फिर क्यों शुरू हुई हिंसा, केंद्र सरकार के पास क्या है अब विकल्प

मणिपुर में बिगड़ते कानून-व्यवस्था को देखते हुए कई जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है और इंटरनेट भी बंद कर दिया गया है.

मणिपुर में मैतेई समुदाय और कुकी जनजाति के बीच 19 महीने पहले शुरू हुआ हिंसा का सिलसिला अब भी थमा नहीं है. राज्य में पिछले 12 दिनों में 19 लोगों की जान जा चुकी है. वहीं एक साल में अब तक कम से कम 250 लोगों की मौत हुई है और 50 हज़ार से ज़्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं.

वर्तमान में इंफाल घाटी में हालात काफी तनावपूर्ण हैं, और जिरीबाम जिले में भी तोड़फोड़ और हिंसा की खबरें आ रही है. राज्य में बिगड़ते कानून-व्यवस्था को देखते हुए कई जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है और इंटरनेट भी बंद कर दिया गया है.

मणिपुर में बिगड़ते हालात को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार दोनों पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं. ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर बीजेपी की सरकार होने के बाद भी मणिपुर में हो रही हिंसा पर अब तक क्यों नहीं काबू किया जा सका, अब केंद्र के पास क्या विकल्प है?

हिंसा को रोकने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से क्या किया गया

1. इंटरनेट सेवा का निलंबन

18 नवंबर को मणिपुर प्रशासन ने इंफाल घाटी, कांगपोकपी औऱ चुराचंदपुर जिलों में इंटरनेट और मोबाइल डेटा सेवाओं के निलंबन को बढ़ा दिया. यह निलंबन गलत जानकारी फैलाने और अशांति के प्रसार को रोकने के लिए लागू किया गया था और यह 20 नवंबर तक जारी रहेगा. 

2. नई हिंसा के चलते केंद्र ने सुरक्षा बलों को बढ़ाया

पिछले सप्ताह मणिपुर में फिर से हिंसा का दौर शुरू हुआ, जिसके कारण केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को चुनावी राज्य महाराष्ट्र में निर्धारित रैलियां रद्द करनी पड़ीं. बढ़ती हिंसा के चलते केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के महानिदेशक को उत्तर-पूर्वी राज्य में भेजा गया है ताकि स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके और प्रतिक्रिया की योजना बनाई जा सके. 

न्यूज-18 की एक रिपोर्ट के अनुसार बढ़ते तनाव के कारण सुरक्षा बलों को आदेश दिया गया है कि जो लोग नुकसान या हिंसा फैला रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ा कदम उठाया जाए. उनकी जिम्मेदारी है कि वे हिंसा वाले इलाकों में ऑपरेशन करते हुए शिविरों, घरों और अन्य महत्वपूर्ण जगहों की सुरक्षा करें. 

3.  7,000 से ज्यादा सैनिकों को तैनात 

केंद्र सरकार ने मणिपुर में सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए 7,000 अतिरिक्त सैनिकों को तैनात करने का फैसला किया है.  गृह मंत्रालय ने बताया कि विरोधी समुदायों के कुछ सशस्त्र लोग हिंसा फैला रहे हैं, जिससे जानमाल का नुकसान हो रहा है. मंत्रालय ने इन लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का फैसला लिया है और इन मामलों की गहरी जांच के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दी है. इसके अलावा, मणिपुर के कुछ इलाकों में सेना को ‘आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट’ (AFSPA) के तहत और अधिकार दिए गए हैं.

मणिपुर में फिर क्यों शुरू हुई हिंसा, केंद्र सरकार के पास क्या है अब विकल्प

क्या है आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) 

आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट’ एक ऐसा कानून है जो भारतीय सेना को विशेष अधिकार देता है. यह कानून उन क्षेत्रों में लागू होता है, जहां पर सुरक्षा की स्थिति बहुत खराब हो और उग्रवाद या आतंकवाद की समस्या हो. इसके तहत, सेना को बिना वारंट के लोगों को गिरफ्तार करने, उनकी तलाशी लेने और उनकी संपत्ति को जब्त करने का अधिकार होता है. इसके अलावा, अगर सेना को लगता है कि कोई व्यक्ति या समूह खतरनाक है, तो वह आत्मरक्षा के लिए हथियारों का उपयोग भी कर सकती है. AFSPA का उद्देश्य उन क्षेत्रों में शांति बनाए रखना और हिंसा को रोकना है, लेकिन इसके लागू होने पर अक्सर मानवाधिकारों का उल्लंघन होने की शिकायतें भी उठती हैं. 

7 नवंबर को फिर से क्यों भड़की मणिपुर में हिंसा

हालिया हिंसा 7 नवंबर को शुरू हुई, जब जिरिबाम जिले में हथियारबंद चरमपंथियों ने कुकी कबीले की एक महिला को गोली मारने के बाद उनको कथित तौर पर मकान समेत जला दिया था. इस घटना के बाद से जिरीबाम में लगातार हिंसा हो रही है.

हिंसा का सिलसिला 11 नवंबर को भी जारी रहा, 11 नवंबर को जिरीबाम जिले में चरमपंथियों के साथ सीआरपीएफ की एक कथित मुठभेड़ भी हुई थी. मणिपुर पुलिस के अनुसार “हथियारबंद चरमपंथियों ने जिरीबाम ज़िले के जकुराडोर इलाक़े में स्थित सीआरपीएफ के एक पोस्ट पर हमला कर दिया. जिसके बाद बचाव में सुरक्षाबलों ने तुरंत जवाबी कार्रवाई की. मणिपुर पुलिस के मुताबिक यह मुठभेड़ लगभग 40 मिनट तक चली और इसके तुरंत बाद पुलिस ने 10 हथियारबंद चरमपंथियों के शव बरामद करने की पुष्टि की थी. मुठभेड़ में मारे गए सभी लोग आदिवासी युवक थे.

समाचार एजेंसी पीटीआई की मानें तो इस घटना के बाद जिरीबाम जिले में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया. हालांकि मुठभेड़ के कुछ देर बाद ही बोराबेकरा थाने के पास मौजूद एक राहत शिविर से मैतेई समुदाय के एक ही परिवार के छह सदस्य लापता हो गए थे. जिनमें तीन बच्चे भी थे. मैतेई लोगों ने इस अपहरण का आरोप हथियारबंद चरमपंथियों पर लगाया. 

इस अपहरण के बाद वहां से मैतई समुदाय के लोगों में काफी भारी आक्रोश था. इंफ़ाल में जगह-जगह महिलाएं विरोध प्रदर्शन भी कर रही थीं. इसी बीच पांच दिन बाद यानी 16 नवंबर को जिरीमुक गांव के पास राहत शिविर से लगभग 20 किलोमीटर दूर नदी में तीन शव मिले थे, जिनमें एक महिला और दो बच्चों के शव थे. इस शव के मिलने के बाद हिंसा और बढ़ गई. 16 नवंबर को मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह और भाजपा विधायकों के घरों पर हमले हुए.

इसके बाद कुछ भाजपा विधायकों और मंत्रियों ने मुख्यमंत्री को हटाने की मांग करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र भेजा. 17 नवंबर को जिरिबाम जिले में एक मैतेई प्रदर्शनकारी की पुलिस की गोली से मौत हो गई, जिसके बाद हालात और बिगड़ गए. इसी दिन CRPF के डीजी अनीश दयाल सिंह मणिपुर पहुंचे और हिंसा का जायजा लिया. 18 नवंबर को आखिरी किडनैप की गई महिला का शव भी मिल गया, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई. इन घटनाओं ने मणिपुर में हिंसा को और बढ़ा दिया है और हालात गंभीर हो गए हैं.

मणिपुर में फिर क्यों शुरू हुई हिंसा, केंद्र सरकार के पास क्या है अब विकल्प

मणिपुर में हिंसा के पीछे क्या कारण हैं?

मणिपुर में कूकी और मैतेई समुदायों के बीच संघर्ष की जड़ें कई कारणों में छिपी हैं. इन दोनों समुदायों के बीच बढ़ते तनाव और हिंसा की मुख्य वजहें जातीय, सांस्कृतिक और राजनीतिक मुद्दों से जुड़ी हुई हैं.

जातीय और सांस्कृतिक भिन्नताएं: मैतेई समुदाय मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहता है, जबकि कूकी और नागा समुदाय पहाड़ी इलाकों में बसे हुए हैं. मैतेई समुदाय हिंदू धर्म का पालन करता है, जबकि कूकी और नागा ईसाई धर्म के अनुयायी हैं. इस सांस्कृतिक और धार्मिक भिन्नता ने समय के साथ तनाव को बढ़ाया है.

राजनीतिक और संसाधन से जुड़ी समस्याएं: कूकी और नागा समुदाय लंबे समय से अपने अधिकारों और संसाधनों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कूकी और नागा समुदायों का आरोप है कि मैतेई समुदाय राज्य की राजनीति और संसाधनों पर हावी है, जिससे उन्हें अपने हिस्से का विकास और अधिकार नहीं मिल पा रहा है.

अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा: मई 2023 में हिंसा का कारण तब और बढ़ा, जब मैतेई समुदाय ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग की. कूकी और नागा समुदायों ने इसे अपने अधिकारों पर हमला मानते हुए इसका विरोध किया, क्योंकि यह उनके सामाजिक और राजनीतिक हितों के खिलाफ था.

भूमि और बसावट से जुड़ी समस्याएं: कूकी बस्तियां अक्सर संरक्षित वन क्षेत्रों में बसी हुई हैं, और राज्य सरकार ने उन्हें हटाने का प्रयास किया, जिससे कूकी समुदाय में विरोध उत्पन्न हुआ. कूकी समुदाय का कहना है कि उन्हें अपनी परंपरागत भूमि पर रहने का अधिकार होना चाहिए, और सरकार का हस्तक्षेप उनके अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है.

 

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