पर्यटन में कुछ नया सोचें तो हमारे लिए बेहतर संभावनाएं हैं
पर्यटन में कुछ नया सोचें तो हमारे लिए बेहतर संभावनाएं हैं
तिरुपति या वैष्णो देवी हमेशा तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करते रहेंगे, क्योंकि इन स्थानों से आस्था जुड़ी है। लेकिन गोवा जैसे पर्यटन-स्थल की बात अलग है। 1990 के दशक में, गोवा का एकाधिकार था। यह एकमात्र ऐसा स्थान था, जहां भारत के लोग समुद्र तटों, सस्ती शराब और अपेक्षाकृत किफायती दरों पर पार्टियों का आनंद ले सकते थे। गौरतलब है कि भारत में हजारों किलोमीटर की तटरेखा है, लेकिन इसके बावजूद हम कोई दूसरा गोवा नहीं बना पाए हैं।
ये उन दिनों की बात है, जब गोवा जैसे अंतरराष्ट्रीय डेस्टिनेशन भारतीयों की पहुंच से बाहर होते थे। हवाई यात्राएं महंगी थीं, वीजा पाना कठिन था और अच्छे समुद्र तटस्थलों तक आसान कनेक्टिविटी नहीं थी। अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के टूरिज्म-मैप पर भी गोवा एक हिप्पी डेस्टिनेशन के रूप में मौजूद हुआ करता था। लेकिन दुनिया अब बदल गई है।
कम लागत वाले कैरियर्स के साथ हवाई यात्रा सस्ती हो गई है। अन्य दक्षिण-पूर्वी डेस्टिनेशन बुनियादी ढांचे, बेहतरीन अनुभव और कनेक्टिविटी के मामले में विकसित हुए हैं। इंटरनेट आ गया है, जिससे टिकटें, होटलें बुक करना और वीजा पाना आसान हो गया। सोशल मीडिया ने लोगों की नई जगहों की खोज करने में मदद की है।
दुनिया के दूसरे पर्यटन-स्थलों ने बढ़ती प्रतिस्पर्धा को समझा और कीमतों को कम रखते हुए पर्यटकों के अनुकूल नीतियां बनाईं। लेकिन गोवा और भारत ने अलग तरीके से सोचा। भारत में लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि जो कुछ भी अच्छा, शानदार और मजेदार है, उसे अपराध-बोध से भरा होना चाहिए और उस पर नए नियम-कानून और टैक्स लाद देने चाहिए।
गोवा के मामले में यह 7,500 रु. (लगभग 89 डॉलर) से अधिक कीमत वाले कमरों पर 28% का भारी-भरकम जीएसटी है। दिल्ली-गोवा और दिल्ली-फुकेट (थाईलैंड) की अगले सप्ताहांत की हवाई टिकटों पर सरसरी नजर डालने से पता चलता है कि उनकी कीमतें लगभग समान हैं।
होटलों के साथ भी यही है, उलटे फुकेट में उच्च श्रेणी वाले होटल तो और सस्ते हैं। फुकेट में सड़कें बेहतर हैं, समुद्र नीला है, समुद्र तट साफ हैं, कैब सस्ती हैं, और खाने-पीने के विकल्प अधिक हैं। अकेले थाईलैंड में ऐसे कई और डेस्टिनेशन हैं।
इसमें वियतनाम, मलेशिया, श्रीलंका और भारतीयों के पसंदीदा दुबई को भी जोड़ लें। ये सभी स्थान गोवा के समान ही कीमत पर छुट्टियां बिताने का अवसर प्रदान करते हैं, लेकिन बेहतर और अधिक आकर्षक अनुभव के साथ।
घरेलू पर्यटक आज भी गोवा की ओर आकर्षित होते हैं। यह अभी भी पुणे, मुंबई या बेंगलुरु के निवासियों के लिए एक अनूठी जगह है, जहां लोग इनोवा में बैठकर कैलंगुट तक ड्राइव कर सकते हैं या ट्रेन भी ले सकते हैं। यही कारण है कि गोवा कभी वीरान नहीं होगा।
हालांकि गोवा में उच्च-स्तरीय पर्यटक कम हो रहे हैं। सभी पर्यटक एक जैसे नहीं होते। अगर विरार का कोई पर्यटक रोजाना 500 रु. खर्च करता है, सस्ते गेस्ट हाउस में रहता है और खुदरा दुकानों से बीयर खरीदता है, तो कोई अन्य पर्यटक प्रतिदिन 5,000 या यहां तक कि 20,000 रु. भी खर्च कर करता है। इन उच्च-स्तरीय पर्यटकों के पास विदेशों में बेहतर विकल्प होते हैं, इसलिए उनके लिए गोवा में छुट्टी मनाने का ज्यादा औचित्य नहीं होता। फिर सोशल मीडिया पर विदेश-यात्रा का दिखावा करने की बात ही क्या।
टूरिज्म के मामले में हम दुनिया से बेमेल साबित हो रहे हैं। हमें टैक्सी-कार्टेल को समाप्त करना होगा। लोग पांच मिनट में अपने दरवाजे पर कार और ड्राइवर पाने के आदी हो गए हैं, वह भी किफायती दरों पर। हमें लग्जरी रूम जीएसटी को कम करना होगा।
अव्वल तो 89 डॉलर का कमरा अब विलासिता की चीज नहीं रह गई है। दूसरे, आप होटल के कमरे पर 28% कर नहीं लगा सकते, जबकि अन्य देशों में दरें बहुत कम हैं। थाईलैंड ने तो पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होटल वेट को 10% से घटाकर 7% कर दिया था।
हम भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते? हमें एक पर्यटक के रूप में सनसेट पॉइंट्स से परे भी सोचना होगा। आज भी भारतीय पर्यटक टूरिज्म को मौज-मस्ती और रिलैक्स होने की चीज नहीं मान पाते हैं। नतीजतन, हम अपने पर्यटन स्थलों को उन अनुभवों को पूरा करने के लिए विकसित नहीं करते। और हां, हमें विदेशियों को भी सहज महसूस कराने की आवश्यकता है, खासकर समुद्र-तटों पर। घूरकर देखना, उचित स्विम-वियर के बिना समुद्र में जाना, कूड़ा फेंकना और तेज आवाज में व्यवहार करना हमारे घरेलू पर्यटकों, खासकर पुरुषों के साथ समस्याएं हैं।
भारत में लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि जो कुछ भी अच्छा, शानदार और मजेदार है, उसे अपराध-बोध से भरा होना चाहिए और उस पर नए नियम-कानून और टैक्स लाद देने चाहिए। टूरिज्म भी अपवाद नहीं है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)