पूरी दुनिया की ही राजनीति में दिख रही है सत्ता-विरोधी लहर ?

पूरी दुनिया की ही राजनीति में दिख रही है सत्ता-विरोधी लहर

लगभग 50 राज्यों के कोने-कोने से वोटों को अपने पक्ष में करने के बाद व्हाइट हाउस की दौड़ में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत को देखकर लगता है कि हर तरह के जनसंख्या-समूह के बीच दक्षिणपंथ की लोकप्रियता बढ़ी है। लेकिन अमेरिका तो बस एक और देश है, जहां प्रोटेस्ट-वोट (मौजूदा सत्ता के विरोध में मतदान) हुआ है- चाहे दक्षिणपंथ के लिए हो या वामपंथ के लिए।

पूरी दुनिया में ही सत्ता-विरोधी लहर चल रही है और उस पर खासी चर्चा भी हुई है, लेकिन इसमें एक जरूरी तथ्य भुलाया जा रहा है। इस वर्ष, 50 सबसे ज्यादा आबादी वाले लोकतंत्रों में से विकसित देशों में 14 फीसदी चुनावों में सत्ताधारियों ने जीत हासिल की, जबकि विकासशील देशों में वे 73 फीसदी चुनाव जीते हैं।

अप्रूवल रेटिंग में भी यही अंतर दिखता है। विकसित दुनिया में सत्तारूढ़ नेता नापसंद किए जा रहे हैं, लेकिन विकासशील दुनिया में वे लोकप्रिय बने हुए हैं। यह उत्तर-पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं की बुराइयों के प्रति विद्रोह है, जिसका अमेरिका सबसे बड़ा उदाहरण है।

ऐसा 1800 के उत्तरार्ध के बाद पहली बार हुआ है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी लगातार तीन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव हारी है (2020 में ट्रम्प की हार सहित)। सत्ता-विरोधी भावना इतनी प्रबल है कि ट्रम्प को मिले जनादेश की मजबूती के बारे में कोई निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी।

सत्ताधारियों को मिलने वाले स्वाभाविक चुनावी लाभ खत्म हो गए हैं। एक सदी से हो रहे सरकारों के विस्तार ने पूंजीवाद को सभी की मदद करने वाली राज्य-प्रणाली में बदल दिया है, लेकिन इसने एक औसत अमेरिकी की तुलना में अमीर और ताकतवरों को कहीं ज्यादा फायदा पहुंचाया है।

ट्रम्प वैश्विक लोकलुभावनवाद के विरोधियों की उसी फेहरिस्त में शामिल हैं, जो 1890 के दशक में राष्ट्रपति विलियम मैककिनले के समय से चली आ रही है। लेकिन मैककिनले के बाद, ट्रम्प इस फेहरिस्त में से व्हाइट हाउस पहुंचने वाले पहले व्यक्ति हैं, जिससे पता चलता है कि अब लोकलुभावनवाद के प्रति​ हताशा 19वीं सदी के बाद से उच्चतम स्तर पर है।

सत्ताधारियों को तेज विकास से जीत मिले न मिले, लेकिन बढ़ती महंगाई से हार का खतरा जरूर बढ़ जाता है। फिर भी आशंका है कि अगर बाइडेन के शासन में मुद्रास्फीति नहीं बढ़ी होती और उनकी जगह किसी नए उम्मीदवार ने न ली होती, तब भी डेमोक्रेट्स हार गए होते।

विरोध में मतों के बढ़ने का बड़ा कारण, आर्थिक भविष्य में घटता विश्वास भी है। जहां 1940 के दशक में जन्मे दस अमेरिकियों में से नौ बड़े होकर अपने माता-पिता से ज्यादा कमाते थे, वहीं आज दस में से चार से भी कम लोगों को ऐसा कर पाने की उम्मीद है।

युवाओं के लिए घर अब कम किफायती हैं। कई संस्थानों पर भरोसा अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। वहीं राष्ट्रपति पर भरोसा 20 फीसदी से भी कम हो गया है और बड़ी कंपनियों पर यह 15 फीसदी से नीचे आ चुका है। बड़ी सरकार और बड़ी कंपनियों के प्रति विद्वेष और उनके बीच की सांठगांठ ने अमेरिकी राजनीति में ‘तीसरी ताकत’ के उदय को बढ़ावा दिया है।

1990 के दशक के उत्तरार्ध में खुद को ‘स्वतंत्र’ कहने वाले मतदाताओं की संख्या बहुत कम थी, लेकिन गैलप के अनुसार ये अब 37 फीसदी की मजबूत संख्या का प्रतिनिधित्व करते है। ये संख्या लगातार डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकंस से ज्यादा होती जा रही है।

फिर भी, इसमें कोई संदेह नहीं है कि ट्रम्प-शैली का लोकलुभावनवाद अतीत के प्रति लालसा को बढ़ाता है। वैश्वीकरण के कारण नौकरियों का प्रवाह चीन की ओर होने से पहले का अतीत, अमेरिका में अवैध इमिग्रेंट्स के आने से पहले का अतीत और बाइडेन के शासन में सरकार के विस्तार से पहले का अतीत। अब ट्रम्प को अपने द्वारा फैलाए जुनून के लिए काम करना होगा।

‘डीप स्टेट’ पर हमलों के बावजूद लगता है कि ट्रम्प की योजनाओं से ऐसा और ज्यादा होने का खतरा है। लोगों को खुश करने वाली कर-कटौती पर आधारित उनकी राजकोषीय नीति सिस्टम और वित्तीय बाजारों में ज्यादा सरकारी धन लाने का वादा करती है।

इससे बड़े कॉर्पोरेशन और अरबपतियों को ही लाभ होगा। नए ‘ट्रम्प ट्रेड’ का कितना भी विश्लेषण करें, लेकिन अमेरिकी संपत्ति की कीमतें उसी तरह बढ़ रही हैं, जैसी वे बाइडेन के शासन में बढ़ी थीं। अगले दौर के चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के लिए सत्ता-विरोधी पैटर्न को तोड़ने के लिए जरूरी है कि ट्रम्प एक सच्चे बदलाव लाने वाले और शक्ति-संतुलन को बड़े कॉर्पोरेशन और स्थापित अमीरों से दूर ले जाने वाले बनें। जनादेश की वही व्याख्या की जानी चाहिए, जो कि वह है- एक मजबूत प्रोटेस्ट-वोट।

इस वर्ष, 50 सबसे ज्यादा आबादी वाले लोकतंत्रों में से विकसित देशों में 14 फीसदी चुनावों में सत्ताधारियों ने जीत हासिल की, जबकि विकासशील देशों में वे 73 फीसदी चुनाव जीते हैं। अप्रूवल रेटिंग में भी यही अंतर दिखता है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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